यूपी में पिछड़े वर्ग की भाजपा से बढ़ रही है दूरी

Written by SabrangindiaROMA (AIUFWP) | Published on: November 18, 2017
पिछड़े वर्ग के मतों से 2014 के लोकसभा चुनाव व 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत पाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ पिछड़े वर्ग के नेताओं का गुस्सा बढ़ रहा है। निकाय चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी ने जहां अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं, वहीं भाजपा भी अब उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी में है।

UP BJP

गोरखपुर में कुर्मी-सैंथवार समाज के नेता धर्मेंद्र सिंह को मेयर पद का टिकट दिए जाने के संकेत के बाद उनका टिकट काट दिया गया। पिछड़े वर्ग की आरक्षित सीट होने की वजह से पिछड़े वर्ग का प्रत्याशी उतारना भाजपा की मजबूरी थी। सीताराम जायसवाल समाजवादी पार्टी से भी गोरखपुर से चुनाव भी लड़ चुके हैं। चुनाव हारने के बाद वह मंदिर से जुड़ गए और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खास हो गए। वहीं धर्मेंद्र सिंह छात्र जीवन से ही एबीवीपी और उसके बाद लगातार भाजपा का झंडा ढो रहे हैं, लेकिन उन्हें टिकट का लालच दिलाकर फिर टिकट काट दिया गया। इससे पूर्वांचल की राजनीति में प्रभावशाली कुर्मी-सैंथवारों में अच्छी खासी नाराजगी है। इसके अलावा निकाय चुनाव में भी कुर्मियों को किनारे लगाया जा रहा है, जिन्होंने इस आस में भाजपा को वोट दिया था कि उनके नेता स्वतंत्रदेव सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे।

सत्ता में आने के बाद से भाजपा ने ओमप्रकाश राजभर व उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को औकात दिखाना शुरू कर दिया था। सुहेलदेव के नाम पर करीब डेढ़ दशक से पार्टी चला रहे ओमप्रकाश राजभर का अपनी बिरादरी में जनाधार है। विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ समझौता कर 4 विधानसभा सीटें जीतने वाले ओमप्रकाश राजभर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बने। लेकिन उनकी इतनी भी औकात नहीं रही कि वे एक जिलाधिकारी का स्थानांत्रण करा पाएं। मंत्री बनने के कुछ माह बाद ही गाजीपुर के जिलाधिकारी से उनका विवाद हो गया। उन्होंने ऐलान कर दिया कि अगर जिलाधिकारी नहीं हटे तो वह मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। लेकिन राज्य सरकार में उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। जिलाधिकारी अपने पद पर बने रहे।

ओमप्रकाश राजभर के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने होमगार्ड मंत्री अनिल राजभर को लगा दिया है। ब्राह्मण नेता और प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष डॉ महेंद्रनाथ पांडेय इस मसले पर कुछ भी नहीं बोल रहे हैं। खबर आ रही है कि अन्य राजभर नेताओं को छोटे मोटे पद देने के बाद भाजपा आने वाले महीनों में ओमप्रकाश राजभर की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर सकती है। ओमप्रकाश राजभर के प्रभाव वाले इलाकों में प्रचार के लिए भाजपा ने अनिल राजभर को उतार दिया है। अनिल राजभर ने मऊ में ओम प्रकाश राजभर पर टिकट बेचने तक के आरोप लगाए। अनिल ने ओमप्रकाश को सीमा में रहने की नसीहत तक दे डाली।

ओमप्रकाश राजभर भी गुस्से में हैं। उन्होंने कहा कि हम सरकार से हटने को तैयार हैं। लोकसभा चुनाव में इनको देखेंगे, हमारा दल पीछे नहीं हटेगा।

हालांकि पिछड़े वर्ग की केंद्रीय सूची में 76 जातियां हैं और एक एक उपजाति की पचासों उपजातियां हैं। ऐसे में कुर्मी, अहिर, निषाद, राजभर वगैरा जैसी कुछ जातियों को छोड़ दें तो अन्य किसी की चर्चा भी नहीं होती है और बाकी जातियों ने मुफ्त में भाजपा का जयकारा लगाया था। जातियों और उपजातियों में विभाजित पिछड़े वर्ग का भाजपा बखूबी फायदा उठा रही है और ऐसे में जो भी पिछड़े वर्ग का नेता पिछड़ों के हित में आवाज उठा रहा है, उसे फेंकने या उसका पर कतरने में जरा भी देरी नहीं की जा रही है।

भाजपा की पिछड़े वर्ग को औकात दिखा देने की इस कोशिश से पिछड़े वर्ग के उन लोगों में भी नाराजगी है, जो सत्ता से दूर हैं। उनकी नाराजगी की वजह यह है कि छोटे मोटे ठेका पट्टी का काम देखने वाले पिछड़े वर्ग के लोग अमूमन पिछड़े वर्ग के नेताओं से ही काम पाते हैं। इन नेताओं की उपेक्षा की वजह से जमीनी स्तर पर भी उपेक्षा बढ़ी है और सरकार से उनके सपने टूट रहे हैं।
 

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