File Photo | Image: The Indian Express
सितंबर 2013 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक दंगों के दौरान एक मुस्लिम महिला से सामूहिक बलात्कार के एक मामले में मुजफ्फरनगर की निचली अदालत ने दो लोगों को दोषी ठहराया है। उन्हें आईपीसी की धारा 376(2)(जी), 376-डी और 506 के तहत दोषी ठहराया गया है। यह पीड़िता द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमे के शीघ्र निपटान के लिए प्रार्थना करने के बाद आया है, जिसमें शुरू से ही पक्षपातपूर्ण जांच और पीड़ित को थका देने के लिए जानबूझकर और लंबी देरी देखी गई थी।
2013 के आपराधिक कानून संशोधन के अनुसार आईपीसी की धारा 376 (2) (जी) के तहत सजा का यह संभवत: पहला मामला है, जिसने सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बलात्कार को एक विशिष्ट अपराध के रूप में मान्यता दी थी। इससे पहले 2002 के गुजरात नरसंहार के दौरान नरोदा पाटिया मामले में कई बलात्कारी दोषी ठहराए गए थे। अकेली जीवित पीड़िता सुश्री ज़रीना को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये दिए गए।
मुजफ्फरनगर मामले में पीड़िता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ताओं: सुश्री वृंदा ग्रोवर, सुश्री रत्ना अप्नेंदर, सुश्री देविका तुलस्यानी, श्री सौतिक बनर्जी और सुश्री मन्नत टिपनिस द्वारा किया गया और कई एक्टिविस्ट द्वारा समर्थित किया गया।
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