छत्तीसगढ़ के हसदेव वन में काटे गए 94,460 पेड़, 2,73,757 और काटे जाने है, संसद में दी जानकारी

Written by Navnish Kumar | Published on: December 9, 2024
“छत्तीसगढ़ सरकार से जुलाई-2024 के महीने के दौरान प्राप्त जानकारी के अनुसार, परसा ईस्ट केटे बेसन खदान में 94,460 पेड़ काटे गए हैं और मुआवजे (प्रतिपूरक वनीकरण, खदान सुधार और स्थानांतरण) के रूप में 53,40,586 पेड़ लगाए गए हैं। हालांकि इनमें से 40,93,395 पेड़ बच गए हैं। इसके अलावा, मंत्री ने बताया है कि आने वाले वर्षों में खनन गतिविधियों के लिए इस जंगल में 2,73,757 पेड़ काटे जाने हैं।" 



"केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने राज्यसभा में बताया कि छत्तीसगढ़ के हसदेव वन में 94,460 पेड़ काटे गए, 2,73,757 और काटे जाएंगे। मंत्री ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के सांसद पीपी सुनीर के प्रश्न के जवाब में यह जानकारी दी है।"

हाल में राज्यसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार (5 दिसंबर) को खुलासा किया कि छत्तीसगढ़ के हसदेव वन क्षेत्र में परसा ईस्ट केटे बेसन (पीईकेबी) खदान में 94,460 पेड़ काटे गए हैं। “छत्तीसगढ़ सरकार से जुलाई-2024 के महीने के दौरान प्राप्त जानकारी के अनुसार, परसा ईस्ट केटे बेसन खदान में 94,460 पेड़ काटे गए हैं और मुआवजे (प्रतिपूरक वनीकरण, खदान सुधार और स्थानांतरण) के रूप में 53,40,586 पेड़ लगाए गए हैं। हालांकि इनमें से 40,93,395 पेड़ बच गए हैं। इसके अलावा, मंत्री ने बताया है कि आने वाले वर्षों में खनन गतिविधियों के लिए इस जंगल में 2,73,757 पेड़ काटे जाने हैं।" 

द वायर में छपी रिपोर्ट के अनुसार, मंत्री ने यह जवाब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के सांसद पीपी सुनीर के उस सवाल के जवाब में दिया जिसमें पीईकेबी क्षेत्र में खनन के संबंध में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की सिफारिशों के बारे में पूछा गया था। इसके अतिरिक्त, मंत्री से यह बताने का अनुरोध किया गया कि क्या डब्ल्यूआईआई ने खनन विस्तार से उत्पन्न होने वाले संभावित मानव-पशु संघर्षों के बारे में चेतावनी दी थी, और क्या सरकार ने ऐसे संघर्षों की संभावना वाले क्षेत्रों की पहचान की है। मंत्री से पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बावजूद क्षेत्र में खनन मंजूरी देने के पीछे के कारणों के बारे में भी जानकारी देने को कहा गया, साथ ही हसदेव क्षेत्र में खनन के लिए काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या के बारे में भी जानकारी देने को कहा। यादव ने अपने जवाब में बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव-अरण्य कोयला क्षेत्र के जैव विविधता मूल्यांकन अध्ययन का काम भारतीय वानिकी, अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद को सौंपा था, जिसने डब्ल्यूआईआई के साथ मिलकर अध्ययन किया और रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी। यह रिपोर्ट बाद में 14 जून, 2021 को केंद्र सरकार को सौंपी थी।

मंत्री ने कहा, ‘उक्त रिपोर्ट में अन्य बातों के साथ-साथ यह सुझाव दिया गया है कि गेज-झिंक जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले आवंटित चार समीपवर्ती कोयला ब्लॉक अर्थात तारा (15), परसा (13) पीईकेबी (14) और केते एक्सटेंशन (12), जो या तो पहले से ही खोले जा चुके हैं या वैधानिक मंजूरी/टीओआर स्वीकृत होने के अग्रिम चरण में हैं, उन पर सतही जल और जैव विविधता के प्रबंधन के लिए उचित संरक्षण उपायों सहित सख्त पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के साथ खनन के लिए विचार किया जा सकता है।’ उल्लेखनीय रूप से वन प्रबंधन और विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण के प्रति सरकार के दृष्टिकोण ने पर्यावरणविदों और आदिवासी समूहों के बीच चिंताएं पैदा की हैं। आलोचकों का तर्क है कि वनीकरण और पुनर्वनीकरण परियोजनाओं के लिए सरकार का जोर प्राकृतिक वनों की बहाली के बजाय वाणिज्यिक वृक्षारोपण को तरजीह देता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हसदेव अरण्य 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ घना जंगल है, जो छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान भी है। इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है। जिसके चलते क्षेत्र में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है और जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। उधर, खबर है कि 
मुआवजे के तौर पर जो 53,40,586 पेड़ लगाए गए हैं। उनमें 40,93,395 पेड़ बचे हैं।

खास है कि 2010 में हसदेव अरण्य जंगल को कोयला मंत्रालय तथा पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था। हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी जिसके चलते 2013 में खनन शुरू हो गया था। यही नहीं, छत्तीसगढ़ में भाजपा के सत्ता में आते ही पिछले साल दिसबंर में हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा पूर्व और केटे बासन (पीईकेबी) दूसरे चरण के विस्तार कोयला खदान के लिए पेड़ काटने की कवायद पुलिस सुरक्षा घेरे के बीच बड़े पैमाने पर हुई थी। स्थानीय प्रशासन ने दावा किया था कि उसके पास पीईकेबी-II में पेड़ काटने के लिए सभी आवश्यक अनुमतियां हैं, जो पीईकेबी-I खदान का विस्तार है। इससे पहले वन विभाग ने मई 2022 में पीईकेबी चरण-2 कोयला खदान की शुरुआत के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी, जिसका स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था। बाद में इस कार्रवाई को रोक दिया गया था।

'अमीर राज्य के लोग कब तक गरीब रहेंगे' कहकर सरकार करती आ रही बचाव

छत्तीसगढ़ के वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री केदार कश्यप ने पिछले दिनों राज्य में कोयला खनन और अन्य विकास परियोजनाओं का बचाव करते हुए कहा था कि ये लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए आवश्यक हैं। एक इंटरव्यू में, कश्यप ने कहा था कि ‘इस संसाधन संपन्न क्षेत्र के लोग कब तक गरीब रहेंगे? विकास और ऊर्जा समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।’ मंत्री के अनुसार, 'लोगों को रोजगार की जरूरत है। हां, अगर पेड़ काटे जाते हैं, तो उस नुकसान की भरपाई करना हमारी जिम्मेदारी है। हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रभावित समुदायों के स्वास्थ्य और आजीविका की रक्षा की जाए।'

हालांकि ऐसी परियोजनाओं के लिए ग्राम सभा की सहमति के मुद्दे पर कश्यप ने कहा, 'कानून ग्राम सभाओं को 'ना' कहने की शक्ति देता है। कुछ मामलों में, उन्होंने उस शक्ति का उपयोग किया है, लेकिन ज्यादातर मामलों में उन्होंने (कोयला खनन और अन्य परियोजनाओं) का समर्थन किया है।' जैव विविधता से भरपूर हसदेव अरण्य वन में कोयला परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई के विरोध के बारे में पूछे जाने पर मंत्री ने माना कि कुछ लोगों ने कोयला और अन्य विकास परियोजनाओं के लिए जंगलों की कटाई का विरोध किया है, लेकिन जोर देकर कहा कि ज्यादातर ने इनका समर्थन किया है।

क्यों खास है हसदेव अरण्य?

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्र में तीन कोयला ब्लॉक मौजूद हैं... पहला परसा, दूसरा परसा ईस्ट केंटे बसन (PEKB) और तीसरा केंटे एक्सटेंशन कोल ब्लॉक (KECB)। तीनों कोयला ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित किए गए हैं। 1,701 वर्ग किलोमीटर में फैला हसदेव अरण्य का जंगल भारत के सबसे व्यापक घने वन क्षेत्रों में से एक है। यह 25 लुप्तप्राय प्रजातियों, 92 पक्षी प्रजातियों और 167 दुर्लभ और औषधीय पौधों की प्रजातियों का घर हैं। लगभग 15,000 आदिवासी अपनी आजीविका, सांस्कृतिक पहचान और जीविका के लिए हसदेव अरण्य वनों पर निर्भर हैं। वहीं भारतीय खान ब्यूरो के अनुसार, इस वन में 5,179.35 मिलियन टन कोयला भंडार है। जनवरी में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने पीईकेबी कोयला खनन परियोजना के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का स्वत: संज्ञान लिया और राज्य वन विभाग से रिपोर्ट मांगी थी।

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