उत्तराखंड: पुलिस की आलोचना करने पर ट्रेड यूनियन के नेता के खिलाफ 'राजद्रोह' का मुकदमा

Written by sabrang india | Published on: April 4, 2020
उत्तराखंड पुलिस ने जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी के पंप ऑपरेटर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (राजद्रोह) के तहत मामला दर्ज किया है, जो पंतनगर में एक ट्रेड यूनियन नेता भी है। पुलिस ने आरोप लगाया है कि 52 वर्षीय अभिलाख सिंह ने व्हाट्सएप पर एक संदेश भेजा था, जो ‘सरकार के खिलाफ’ गया था और राजद्रोह के तहत आता है।



द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक उधम सिंह नगर के पुलिस अधीक्षमक प्रमोद कुमार ने  बताया, उन्होंने एक व्हाट्सएप ग्रुप पर एक संदेश भेजा था। हमारे सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल ने इसे देखा। यह सरकार और देश के खिलाफ था। इसलिए हमने एक एफआईआर दर्ज की है और अब इस मामले की जांच करेंगे।

यह पूछे जाने पर कि जांच में क्या शामिल होगा, कुमार ने कहा, ‘हम व्हाट्सएप संदेश की जांच करेंगे और आरोपी की अन्य गतिविधियों की भी जांच करेंगे।’ अभिलाख सिंह के जिस मैसेज की ‘जांच’ की जा रही है वह व्हाट्सएप ग्रुप पर पंतनगर और रुद्रपुर के सदस्यों को भेजा गया था।

व्हाट्सएप मैसेज में लिखा गया था, ‘गरीब और असहाय चेहरे के लिए चाहे कितनी भी परेशानी हो, इससे अंध भक्तों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अग्रेजों ने भारतीय जनता पर शासन के लिए पुलिस अधिनियम 1860 के तहत पुलिस का गठन किया और इसका उपयोग भारतीय लोगों पर अत्याचार करने के लिए किया। गोरे अंग्रेजों (ब्रिटिश शासकों) के जाने के बाद काले अंग्रेजों (भारतीय पूंजीपतियों) ने पुलिस अधिनियम के तहत वहीं स्थिति बनाए रखी। पहले पुलिस अंग्रेजों के लिए मजदूर वर्ग पर अत्याचार करती थी। अब यह पूंजीपतियों के इशारे पर मजदूर वर्ग को प्रताड़ित कर रही है। शासक पूंजीपतियों के पुलिस प्रशासन को भंग करके और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करके ही मजदूर वर्ग को सुरक्षित किया जा सकता है।’

यह बताते हुए कि उन्होंने ये क्यों लिखा, अभिलाख सिंह ने कहा, ‘लॉकडाउन की घोषणा के बाद किसी ने घर जा रहे मजदूर के साथ पिटाई का पुलिस का वीडियो पोस्ट किया था। उसका खून बह रहा था और पुलिस उन्हें बेरहमी से पीट रही थी। मेरा दिन उन तस्वीरों को देखने के बाद टूट गया था।’

अभिलाख सिंह कहते हैं, ‘मैं हमेशा पुलिस अधिनियम और दंड संहिता का आलोचक रहा हूं। अंग्रेजों ने उन्हें हमारे ऊपर शासन करने, हमें वश में करने के लिए डिजाइन किया। भले ही हम अब स्वतंत्र हैं, लेकिन वे प्रावधान वैसे ही बने हुए हैं जैसे वे ब्रिटिश शासन के दौरान थे। इन्हें बदलने की आवश्यकता है ताकि पुलिस अब उन श्रमिकों पर किसी तरह का अत्याचार न कर सके जो वे घर जा रहे थे।’

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