फिल्म करियर के अपने चरमोत्कर्ष के समय की तरह आज शत्रुघ्न सिन्हा नई दिल्ली के कंस्टीटूशन क्लब में ऑटोग्राफ और सेल्फी लेने वालों की भीड़ से बुरी तरह घिर गए थे।
सीताराम येचुरी, डी राजा, अली अनवर साहब के सम्बोधन के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने हाल में दिए गए भाषणों में सबसे ज़बरदस्त भाषण दिया।
शत्रुघ्न सिन्हा अपने सम्बोधन की शुरुआत इस बात से कि, "मैं मन की बात नहीं करूँगा क्योंकि इसका 'एकाधिकारी' एक व्यक्ति ने ले रखा है, इसलिए मैं 'दिल की बात' करना चाहता हूँ।"
"अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार!"
शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा की आज आप कुछ भी कहें तो सरकार के पक्ष में कहें या कहते हुए दिखें, वरना आप 'एन्टी नेशनल' हो गए। देश की अनेकता में एकता के परिकल्पना समाप्त कर दी गयी है। माहौल ऐसा हो गया है कि आप को बोलने नहीं दिया जा रहा है। सच बोलना दूर की बात है। स्थिति ऐसी हो गयी है की बुद्धिजीवी, पत्रकार और जज मारे जा रहें हैं और इस के बारे में लिखने की हिम्मत कोई अखबार को नहीं है। कोई पत्रकार लिखना भी चाहता हो तो उसके मालिक का पैगाम आ जायेगा। देश में खौफ, ईर्ष्या, हिंसा, लोभ, लालच आदि का माहौल है।
देश के अलग अलग प्रान्त, धर्म, जाति के लोग देश से प्यार करते हैं, परन्तु उनके देशभक्ति पर सवाल खड़ा किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि जब मैंने नोटबन्दी और जीएसटी पर सवाल उठाये, तो मुझसे कहा गया कि आप इकोनॉमी पर कैसे बोल रहें है? पर एक वकील बाबू इकोनॉमी पर फैसला कर रहें हैं, एक टीवी कलाकार देश की शिक्षा मंत्री बन रही है, एक चायवाला देश का रहनुमा बन सकता है, लेकिन मैं फिल्म इंडस्ट्री से हूँ तो इकोनॉमी पर बोल नहीं सकता।
इस देश में नोटबंदी से हुई आर्थिक तबाही, लोगों के रोजगार पर हुए हमला, गरीब लोगों को हुए नुकसान पर बोल नहीं सकता। हमने 2 करोड़ रोजगार का वायदा किया था, परन्तु युवाओं को रोजगार नहीं मिल रही, तो युवाओं की बात कौन करेगा? किसानों को फसल का उचित मूल्य देने की बात कही थी, किसान आत्महत्या कर रहें हैं, तो किसानों की बात कौन करेगा? जीएसटी से व्यापार और देश अर्थव्यवस्था रहे नुकसान की बात कौन करेगा? हम संसद में चुन लोगों की बात कहने के लिए आये हैं ? फिर जनतंत्र में कहने की आज़ादी नहीं है, तो लानत है हमारे सांसद बनने पर। हम खुशामद नहीं कर सकते।
मोदी सरकार के मंत्रियों का मजाक उड़ाते हुए सिन्हा ने कहा, ‘उनमें से 90 फीसदी को कोई नहीं जानता. उन्हें भीड़ में कोई नहीं पहचानेगा. वे खुशामदीदों की टोली हैं. वे वहां कुछ बनाने के लिए नहीं हैं, बस बने रहने की कोशिश में लगे हैं.’
उन्होंने चंद लाइनें कह कर अपनी बात को समाप्त किया :
"अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
आप बच कर चल सकें ऐसी कोई सूरत नहीं
रहगुज़र घेरे हुए मुर्दे खड़े हैं बेशुमार
रोज़ अखबारों में पढ़कर यह ख़्याल आया हमें
इस तरफ़ आती तो हम भी देखते फ़स्ले—बहार
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार
इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके—जुर्म हैं
आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फ़रार
रौनक़े-जन्नत ज़रा भी मुझको रास आई नहीं
मैं जहन्नुम में बहुत ख़ुश था मेरे परवरदिगार!"