अघोषित आपातकाल का दौर

Written by Uttam Kumar | Published on: June 27, 2018
अगर मैं यूं कहूं कि आपातकाल का मुख्य कारण चुनाव में धांधली थी तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज ही के दिन आपातकाल लागू हुआ था। समय 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें इंदिरा गांधी अपने प्रतिद्वंदी राजनारायण को हराया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चिर प्रतिद्वंदी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था।



राजनारायण सिंह की दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। न्यायालय ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद जिद्दी गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं। इंदिरा गांधी ने न्यायालय के निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील के बहाने 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।

आपातकाल की घोषणा के पहले ही सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए गए थे। जेलों में जो लोग ठूंसे गए लगभग सभी प्रमुख सांसद थे। गिरफ्तारी का उद्देश्य संसद को ऐसा बना देना था कि इंदिरा जो चाहें करा लें। जयप्रकाश नारायण सहित दूसरे विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया तो कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य चंद्रशेखर और संसदीय दल के सचिव रामधन को भी गिरफ्तार कर लिया गया। साधारण कार्यकर्ताओं की छोडि़ए किसे कहां रखा गया है इसकी भी कोई खबर नहीं दी गई थी। दो महीने तक मिलने-जुलने की कोई सूरत न थी। बंदियों को तंग करने, उनको अकेले में रखने, इलाज न कराने और शाम छह बजे से ही उन्हें कोठरी में बंद कर देने के सैकड़ों कहानी हैं। आपातकाल के पहले हफ्ते में ही करीब 15 हजार लोगों को बंदी बनाया गया।

पुलिस अत्याचारों की बहुत-सी उदाहरण हैं। विरोध प्रदर्शन करने और भूमिगत कार्यकर्ताओं को उनके सहयोगियों के नाम जानने, उनके ठिकानों का पता लगाने, उनके कामकाज की जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से बहुत तंग किया गया। रात को भी सोने न देना, खाना न देना, प्यासा रखना या बहुत भूखा रखने के बाद बहुत खाना खिलाकर किसी प्रकार आराम न करने देना, घंटों खड़ा रखना, डराना-धमकाना, हफ्तों-हफ्तों तक सवालों की बौछार करते रहना जैसी चीजें बहुत आम थीं। इस दौरान दो आदिवासी नेता किश्तैया गौड़ और भूमैया को फांसी दे दी गई। केरल के राजन को तो मशीन के पाटों के बीच दबाकर उसकी हड्डियों तक को तोड़ डाला गया। दिल्ली के जसवीर सिंह को उल्टा लटकाकर उसके बाल नोंचे गए। ऐसे लोगों को कू्ररता से ऐसी गुप्त चोटें दी गईं, जिसका कोई प्रमाण ही न रहे। बेंगलुरू में लारेंस फर्नांडिस की इतनी पिटाई की गई कि वह सालों तक सीधे खड़े नहीं हो पाए।

इंदिरा गांधी को सबसे पहले राजनारायण के मुकदमे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले का निबटारा करना था। संविधान का 42वां संशोधन कर संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करने, उसकी संघीय विशेषताओं को नुकसान पहुंचाने और सरकार के तीनों अंगों के संतुलन को बिगाडऩे का प्रयास किया गया।संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 को निलंबित कर दिया गया। ऐसा करके सरकार ने कानून की नजर में सबकी बराबरी, जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी और गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर अदालत के सामने पेश करने के अधिकारों को रोक लगा दिया। जनवरी 1976 में अनुच्छेद 19 को भी निलंबित कर दिया गया। रासुका में 29 जून, 1975 के संशोधन से नजरबंदी के बाद बंदियों को इसका कारण जानने का अधिकार भी खत्म कर दिया गया। साथ ही नजरबंदी को एक साल से अधिक तक बढ़ाने का प्रावधान कर दिया गया। तीन हफ्ते बाद 16 जुलाई, 1975 को इसमें बदलाव करके नजरबंदियों को कोर्ट में अपील करने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया।

आपातकाल लगते ही अखबारों पर सेंसर लगा दिया गया था। नए कानून का समर्थन करते हुए तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने मीडिया पर दमन तेज कर दिया। एजेंसियों पीटीआई, यूएनआई, हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती को खत्म करके उन्हें ‘समाचार’ नामक एजेंसी में विलीन कर दिया। अंग्रेजी दैनिक ‘इंडियन एक्सप्रेस’ पुणे के साप्ताहिक ‘साधना’ और अहमदाबाद के ‘भूमिपुत्र’ पर प्रबंधन से संबंधित मुकदमे चलाए गए। बड़ोदरा के ‘भूमिपुत्र’ के संपादक को तो गिरफ्तार ही कर लिया गया। लेकिन सबसे ज्यादा तंग ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को किया गया। इस समय हम अघोषित आपातकाल के नए दौर से होकर गुजर रहे हैं। देश में नोटबंदी कर कईयों की नौकरी खत्म कर दी गई। जीएसटी लगाकर कई सारे उद्योग धंधों को बंद कर राजनेताओं ने अकूत सम्पत्ति का संचय किया। नौकरशाहों को विधायिका के द्वारा गुलाम बना लिया गया है।

कोर्ट के जज न्याय की रक्षा के लिए सार्वजनिक रूप से जनता के न्यायालय में उपस्थित हो चुके हैं। कई राज्यों में लोगों में धार्मिक घृणा का संचार करते हुए कानून और व्यवस्था को अपने हाथ लेते हुए सामूहिक हिंसा को हवा दी जा रही है। पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई। कई सारे पत्रकारों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया गया। अखलाक, जुनैद और नजीब को यूनिवर्सिटी से गायब कर दिया गया। कांचा अलैया को उनके पुस्तक के लिए नजरबंद कर दिया गया। सत्ता के सारे पदों पर दक्षिणपंथियों का वर्चस्व कायम करते हुए दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर शोषण अत्याचार तेज कर दिए गए।

कुल मिलाकर आपातकाल का इंदिरा युग के साथ दक्षिणपंथियों का यह युग भी समाप्त होने के कगार पर है। शासन से तंग आकर छत्तीसगढ़ में सिपाहियों ने 1857 जैसी जनसंघर्षों को तेज किया जिसका नेतृत्व घरेलू महिलाएं कर रही है। छत्तीसगढ़ के साथ देश भर में कर्मचारियों, किसानों, मजदूरों और छात्र नौजवानों में आक्रोष व्याप्त है जो जयप्रकाश नारायण की तरह सब कुछ बदल देने को तत्पर है।

abhibilkulabhi007@gmail.com

(नोटः ये लेखक के निजी विचार हैं। उत्तम कुमार वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक कौशल के एडिटर इन चीफ हैं। ये लेख पूर्व में उनके फेसबुक पोस्ट में प्रकाशित किया गया है।)

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