राजस्थान चुनाव में गौमाता किसे आशीर्वाद देगी?

Written by Sabrangindia Staff | Published on: December 7, 2018
जयपुर। राजस्थान विधानसभा में आज सभी उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो जाएगी। राजस्थान में पिछले करीब दो दशक से एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में रही हैं। इस बार वसुंधरा राजे से लोगों की नाराजगी नजर आ रही है। महारानी के शासन से लोग संतुष्ट नजर नहीं आ रहे। राज्य में काऊ विजिलेंस और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर आज जनता वोट कर रही है। राजस्थान में जानवरों की खरीद फरोख्त एक बड़ा व्यापार है। राज्य के चुनाव भी इस पर काफी हद तक निर्भर करते हैं लेकिन बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से गाय के नाम पर काफी सतर्कता बढ़ गई है और कई बार लोगों पर हमले तक हुए हैं। 

भरतपुर, जयपुर, पुष्कर, अजमेर और अलवर में मवेशी मेलों के साथ राजस्थान का एक समृद्ध इतिहास है, इन शहरों में विशेष रूप से हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान पशु खऱीदने के लिए जाते हैं। पुष्कर का मेला तो विदेशों तक प्रसिद्ध है। लेकिन मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद से राज्य में पशुओं की खरीद फरोख्त में अचानक से कमी आई है। 

राजस्थान के मवेशी बाजार गायब 
19वीं पशुधन जनगणना 2012 के अनुसार, राजस्थान में 577.32 लाख पशुधन (जिसमें मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, घोड़े और टट्टू, म्यूल्स, गधे, ऊंट, सुअर) और 80.24 लाख पोल्ट्री शामिल हैं। डेयरी गायों, बैल, भैंस और ऊंट सबसे आम तौर पर व्यापार किए जाने वाले जानवर होते हैं. राजस्थान में घोड़ों और भेड़ों का भी व्यापार होता है। लोकप्रिय गोवन कारोबार की जाने वाली नस्लों में राठी, कंकरेज, नागौर, थारपाकर, संचोरी और मेहवाती शामिल हैं। मुर्राह राज्य में व्यापार करने वाली एकमात्र भैंस की नस्ल है।

राज्य पशुधन मेला अधिनियम 1963 के अनुसार राजस्थान में 9 प्रमुख मवेशी मेले आयोजित किए जाते हैं। भरतपुर और अजमेर के अलावा पुष्कर मेला सबसे लोकप्रिय है. पुष्कर मेला ऊंट बाजार के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है। हालांकि, पुष्कर में गाय, बैल आदि भी खरीदे और बेचे जाते हैं। लोकहित पश्मन पालन संस्थान के अनुसार, 2011 में पुष्कर मेले में 17,604 जानवर बेचे गए थे जिसमें 8238 ऊंट, 4403 घोड़े और 4256 मवेशी शामिल थे। लेकिन 2017 में बेचे गए मवेशियों की संख्या सिर्फ 8 रह गई! 

राजस्थान के पशुपालन विभाग द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान के नौ राज्य स्तरीय पशुधन मेले में 2012-13 और 2016-17 के बीच मवेशी बिक्री में 90 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है। 2012-13 में, जबकि 54,423 मवेशियों को नौ राज्य स्तरीय मेलों में लाया गया था, इनमें से 37,24 9 बेचे गए थे। 2016-17 में, इस आंकड़े में काफी गिरावट आई थी। बिक्री के लिए केवल 10,827 पशु आए और केवल 2973 खरीदे गए थे। इसी आंकड़ों के मुताबिक, फरवरी में मवेशियों के मालिकों द्वारा संचयी कमाई 2012-13 में 92.18 करोड़ रुपये थी, जो 2016-17 में 39.42 करोड़ रुपये रह गई। इस बीच, पशुपालन विभाग के राजस्व में भी भारी गिरावट आई है। पशुपालन विभाग जो रसीदों की बिक्री के माध्यम से राजस्व कमाता है, ने 2016-17 में कम से कम 1.88 लाख रुपये अर्जित किए, जबकि 2012-13 में 7 लाख रुपये अर्जित किए गए थे।

राजस्थान में हाल ही में पहलू खान, उमर मोहम्मद औ रखबार उर्फ ​​अकबर खान जैसे लिंचिंग के मामले सामने आए। कुछ डेयरी किसान यहां से मवेशी खरीदारी करते हैं। लेकिन गाय के नाम पर कई लोगों के मारे जाने के बाद इन किसानों की सांसें अटकी हुई हैं और राजस्थान से खरीदारी करने से बच रहे हैं। ऐसे में राजस्थान के पशुपालन विभाग को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है। 


राजस्थान में 80 प्रतिशत ग्रामीण आबादी पशुओं पर आश्रित है। पशु आमदनी का मुख्य श्रोत हैं। हाल के दिनों में दूध नहीं देने वाले पशुओं को बाहर छोड़ दिया जा रहा है जिसके कारण वे किसानों की फसल की बर्बादी कर रहे हैं। बिना दूध के पशुओं से किसानों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ रहा है। वे इन्हें बेच नहीं पा रहे हैं जिसके चलते खेतों में झुंड का झुंड आवारा पशु नजर आते हैं। यह किसी भी तरह से एक महत्वहीन वोट बैंक नहीं है। किसान अपनी बर्बादी की कीमत पर भाजपा को वोट करने से कतराएंगे।  

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