‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने की योजना आपराधिक प्रवृत्ति से पीड़ित दिमाग़ की उपज है!

Written by Shamsul Islam | Published on: September 5, 2021
‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने से पहले कुछ खास बातों को जरूर जान लेना चाहिए। एक यह कि भारत पांच हजार साल पुरानी सभ्यता है। दूसरा कि यह कोई पहली विभीषिका नहीं है। महाभारत की विभीषिका हुई। हमारी पुरानी कथाओं के मुताबिक 120 करोड़ लोग इसमें मारे गए। द्रोपदी के कपड़े उतारे गए। सीता का अपहरण हुआ। द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा कटवाया। गांधी जी की हत्या की गई। दलितों और अल्पसंखयकों के हज़ारों जनसंहार हुए जिनके मुजरिमों की पहचान और सज़ा का अभी भी इंतज़ार है।आशा है प्रधान-मंत्री मोदी इन विभीषिकाओं की स्मृति के दिवसों की भी जल्द ही घोषणा करेंगे।    

मोदी दुवारा हर 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने की घोषणा का जिस हर्षोउल्लास के साथ हिन्दुत्वादी टोली ने स्वागत किया है उस से साफ़ पता लगता है कि उनके हाथ उत्तर प्रदेश के चुनाव से पहले मुसलमानों को हड़काने और ज़लील करने का एक नया अस्त्र उनके ह्रदय-सम्राट ने उनको उपलब्ध करा दिया है।  सब मुसलमानों ने मिलकर विभाजन कराया था और हिंसा एक-तरफ़ा थी इस कथानक के कई झूठ को जानना ज़रूरी है। इस शर्मनाक सच के दस्तावेज़ी सबूत मौजूद हैं कि सन 1906 में हिंदू महासभा और आर्य समाज ने घोषणा कर दी थी कि हिंदुस्तान सिर्फ़ हिन्दुओं के लिए है, उनको यहाँ रहना है तो हिन्दू बनकर रहना होगा नहीं तो मुसलमानों को अफगानिस्तान भेज दिया जाए। सन 1924 में लाला लाजपत राय ने लिख दिया था कि मुसलमानों को जहां-जहां वे बहुसंख्यक हैं, एक नहीं, दो नहीं, तीन-चार पाकिस्तान दे दिए जाएं। लेकिन उनसे छुटकारा पा लिया जाए। सन 1937 में सावरकर ने अहमदाबाद में जब पहली बार हिंदू महासभा की कमान संभाली, तो कह दिया कि हिंदू मुसलमान दोनों प्रतिद्वंद्वी हैं और दोनों साथ नहीं रह सकते। 

“फ़िलहाल हिंदुस्तान में दो प्रतिद्वंदी राष्ट्र पास-पास रह रहे हैं। कई अपरिपक्व राजनीतिज्ञ यह मानकर गंभीर ग़लती कर बैठते हैं कि हिंदुस्तान पहले से ही एक सद्भावपूर्ण राष्ट्र के रूप में ढल गया है या सिर्फ हमारी इच्छा होने से ही इस रूप में ढल जायेगा। इस प्रकार के हमारे नेकनीयत वाले पर लापरवाह दोस्त मात्र सपनों को सच्चाईयों में बदलना चाहते हैं। दृढ़ सच्चाई यह है कि तथाकथित सांप्रदायिक सवाल और कुछ नहीं बल्कि सैकड़ों सालों से हिन्दू और मुसलमान के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय प्रतिद्वंदिता के नतीजे में हम तक पहुंचे हैं। आज यह क़तई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एक एकता में पिरोया हुआ और मिलाजुला राष्ट्र है। बल्कि इसके विपरीत हिंदुस्तान में मुख्यतौर पर दो राष्ट्र हैं- हिन्दू और मुसलमान।”

सच्ची बात यह है कि जिन्ना ने दो- राष्ट्रीय सिद्धांत को 1940 में अपनाया। 

मशहूर समाजवादी चिंतक और आज़ादी की जंग के एक स्तंभ राममनोहर लोहिया ने साफ लिखा कि हिंदुत्व इसके लिए जिम्मेदार था क्योंकि उसने इस तरह के हालात पैदा कर दिए कि हिंदू मुसलमानों के बीच कोई भी समझौता नहीं हो सके। राम मनोहर लोहिया के अनुसार, 

“हिंदुत्ववादी संगठन मुस्लिम विरोधी प्रचार के चलते मुस्लिम लीग के लिए अच्छा-खासा आधार तैयार चुके थे, जिसके आसरे लीग मुस्लिमों के बीच संरक्षक के तौर पर लोकप्रियता हासिल कर सके। इससे ब्रिटेन एवं मुस्लिम लीग को देश का विभाजन करने में मदद मिली...उन्होंने एक ही देश में हिंदू व मुस्लिमों को आपस में करीब लाने के लिए कुछ भी नहीं किया। इसके उलट, उन्होंने इनमें परस्पर एक दूसरे के बीच मनमुटाव पैदा करने की हर संभव कोशिश की। इस तरह की हरकतें ही देश के विभाजन की जड़ों में थीं।”

द्विराष्ट्र का सिद्धांत था कि हिंदू मुसलमान साथ नहीं रह सकते। जिन्ना ने तो 1940 में कहा। आर्य समाज, लाला लाजपत राय, भाई परमानंद और लाला हरदयाल यह कब से कह रहे थे कि मुसलमानों की शुद्धि करो, नहीं तो इनको अफगानिस्तान की तरफ भेज दो। 

सावरकर ने सन 1923 में अपनी किताब ‘हिंदुत्व’ में यह सब लिखा। 1939 में गोलवरकर ने ‘वी ऑर ऑवर नेशनहुड डिफाइंड’ में कहा कि हिंदू मुसलमान साथ नहीं रह सकते। इतना ही नहीं, 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हुआ। 14 अगस्त को आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने दो संपादकीय लिखे। इनमें लिखा कि तिरंगा झंडा (जो सारे हिंदू, मुसलमान, सिख और इसाई की एकता का झंडा है) को हम नहीं मानते। यह तीनों रंग मनहूस हैं। फिर लिखा कि इस आजादी को हम नहीं मानते क्योंकि इसमें यह माना जा रहा है कि हिंदुओं के अलावा बाकी दूसरे धर्मों के लोग भी भारत राष्ट्र में शामिल होंगे।  

इस सबके बीच बहुत महत्वपूर्ण बात है कि 1947 में हिंदू मुसलमान और सिखों ने एक-दूसरे को बचाने की जो कोशिशें कीं, वह अद्भुत हैं। अगर इंसानी समाज में विश्वास करते हैं, तो उनको महिमामंडित करना चाहिए। जैसे, महशहूर अभिनेता सुनील दत्त के पूरे परिवार की एक मुसलमान मां ने (जिसके छह बेटे सेना में थे) कैसे हिफाजत की। उस मां ने अपने बेटों से कहा कि अगर तुमने मेरा दूध पिया है, तो तुम लोगों को हिंदुओं को बचाना होगा और उन्होंने बचाया। अमृतसर में सिखों ने मुसलमानों को और लाहौर में मुसलमानों ने हिंदुओं को बचाया। मालेर कोटला को सिखों ने बचाया। हांसी (हरियाणा) में इंज़माम-उल-हक़ [पाकिस्तान का मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी] के परिवार को एक गोयल परिवार ने बचाया था। ऐसे हजारों किस्से हैं। 
   
यह जानना कम दिलचस्प नहीं होगा कि आखिर अब अचानक इसकी याद क्यों आई। इसलिए कि हिंदू मुसलमान करने के इनके सारे फार्मूले नाकाम हो चुके हैं। बंगाल चुनाव ने क्या तय किया। बंगाल चुनाव में सन 1947 के बाद सबसे ज्यादा हिंदू मुसलमान झगड़ा कराने का प्रयास किया गया। ममता बनर्जी को बेगम तक कहा गया। इसके बावजूद यह चला नहीं। लव जिहाद नहीं चला। मुसलमानों की आबादी बढ़ती जा रही है, नहीं चला। तो अब यह नया शिगूफा। यह भी नहीं चलेगा क्योंकि लोग बहुत झेल चुके हैं। 

यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जिन्ना की तारीफ तो आडवाणी ने वहां जाकर की थी जहां पाकिस्तान का प्रस्ताव पास हुआ था। पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह जिन्ना को सेक्युलर बता चुके हैं। संघ टोली के प्यारे और पूजनीय ''वीर" सावरकर ने सात बार अंग्रेजों से माफी मांगी। आजादी की लड़ाई में इनका कोई आदमी वंदे मातरम गाते हुए या गौहत्या पर पाबंदी लगवाने के लिए एक मिनट के लिए भी कभी जेल नहीं गया। सन 1932 से लेकर 1939 तक दीनदयाल उपाध्याय, एल के आडवाणी, नानाजी देशमुख और गोलवरकर आरएसएस में आ गए। 14 अगस्त, 1947 को कहा कि राष्ट्रीय झंडा मनहूस झंडा है। हिंदू इसको कभी नहीं मानेंगे। आजादी के बाद जब देश लड़खड़ा रहा था, अर्थव्यवस्था खराब थी और दंगे हो रहे थे, तब इन्होंने गांधी जी की हत्या की और उसके बाद गाय के नाम पर इन्होंने पार्लियामेंट को घेरा। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष के घर को आग लगाई। यह देश को अस्थिर करने में लगे थे। यानी यह वह सब कर रहे थे जो पाकिस्तान चाह रहा था। यह इनका राष्ट्रविरोधी चरित्र रहा है। अभी भी वही कर रहे हैं। पाकिस्तान का इंटरेस्ट यह है कि यहां के हिंदू मुसलमान लड़ें। यह पाकिस्तान का रणनीतिक लक्ष्य है और इसे पूरा कर रहा है आरएसएस। 

सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जब कांग्रेस पार्टी प्रतिबंधित थी, उस वक्त हिंदू महासभा और आरएसएस दोनों साथ थे। इन्होंने मिलकर तीन प्रांतों में मिलीजुली सरकारें चलाईं। बंगाल में डिप्टी प्राइम मिनिस्टर (उस समय डिप्टी चीफ मिनिस्टर को डिप्टी प्रधानमंत्री कहते थे) श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। उनके पास गृह मंत्रालय था जिसका जिम्मा क्विट इंडिया मूवमेंट को दबाने का था। उन्होंने वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर को जो खत लिखे उसमें कहा गया था कि कैसे इस आंदोलन को दबाया जाए। वह किसी को भी शर्म दिलाने वाली चिट्ठियां हैं। इन्होंने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार चलाई। जब नेता जी सुभाषचंद्र बोस सेना बनाकर बाहर से देश को आजाद करने की कोशिश कर रहे थे, तब उनकी सेना को हराने के लिए आरएसएस की सहयोगी हिंदू महासभा ने एक लाख हिंदू अंग्रेज सेना में भर्ती कराए। 

यह सब कुछ उनके दस्तावेजों में है। यह भी देखने की बात है कि हिंदुओं से जुड़े संगठनों ने किन लोगों को मरवाया है। नरेंद्र दाभोलकर, एमएम कलबुर्गी, गोविंद पनसारे और गौरी लंकेश आदि को मरवाया। उसके बाद भीमा कोरेगांव मामले में जिन लोगों को जेलों में बंद कर रखा है, सब हिंदू और इसाई हैं। लोगों की गलतफहमी है कि ये मुसलमानों के खिलाफ और हिंदुओं के पक्ष में हैं। ये गांधी जैसे सच्चे हिंदू को बर्दाश्त नहीं कर सके। सत्ता में आने के सात साल बाद इसलिए याद आ रहा है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव आ रहा है, तो कुछ नया ढूढ़ना है। क्योंकि इस देश की 80% आबादी जो हिन्दू है उसकी भुखमरी, ग़रीबी, बेरोज़गारी, बीमारी के लिए कुछ भी नहीं किया, सब को भिखारी बना दिया। लोग इनकी जुमलेबाजी से वाकिफ हैं। इनका जो 15 से 20 परसेंट का वोटर है, उसमें भी अब काफी कमी आई है।   

कोई भी देश या समाज तब चलता है जब उसमें एकता होती है और एक-दूसरे के साथ मिलना-जुलना होता है। ये लगातार साजिशें कर रहे हैं। अगर देश में मुसलमान नहीं होते, तो यह मुसलमान पैदा कर लेते। जिन्ना के साथ सरकारें चलाईं। आरएसएस और हिंदू महासभा दोनों ने कहा कि जिन्ना मुसलमानों के प्रतिनिधि हैं और हिंदुओं के प्रतिनिधि हम हैं। बाबा साहब ने कहा कि जिस दिन हिंदुत्व का राज आ जाएगा, उस दिन इस देश की मौत हो जाएगी। किसी भी कीमत पर देश को हिंदू राष्ट्र बनने से रोका जाना चाहिए। 

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