औरंगज़ेब: जो न तो हिंदुत्व वादियों द्वारा प्रचारित मूर्ति भज्जक था, न ही मुस्लिम दक्षिण पंथियों वाला फ़रिश्ता

Written by हसन पाशा | Published on: August 3, 2021
मुग़ल शासकों की वंशावली में सबसे विवादस्पद नाम औरंगज़ेब का रहा. हिन्दू दक्षिण पंथी उसे शैतान मानता है और मुस्लिम दक्षिण पंथी उसे फ़रिश्ता कहता है. ये एक्शन और रिएक्शन की तरह है. एक ने जितना उसे सूली पर चढ़ाया , उतना ही दूसरे ने उसे पहुंचा हुआ वली ठहराया।



हक़ीक़त ये है कि औरंगज़ेब वली तो ज़रा भी नहीं था लेकिन हिंदुत्व वादी जो उसे मूर्ति भज्जक कहते हैं और हिन्दुओं पर ज़ुल्म करने वाला बताते हैं वो भी सही नहीं है.

कांग्रेस के बालगंगाधर तिलक को न जाने क्या सूझी कि उन्होंने आज़ादी की धर्मनिरपेक्ष लड़ाई में हिंदुत्व का रंग भरना चाहा। आंदोलन को push देने के लिए उन्होंने इतिहास को खंगाला और कुछ हीरो और कुछ खलनायक तलाश किये। हीरो हिन्दू शासक और खलनायक मुस्लिम हुक्मरां थे. उनकी इस खोज से पहले जो क़िस्से नहीं थे वो सुनाए जाने लगे और क़िस्सों में क़िस्से जुड़ते चले गए. औरंगज़ेब भारतीय विगत के सबसे बड़े दानव के रूप अवतरित हो गया.

मंदिर विध्वंस की घटनाएं जो निष्पक्ष्य इतिहासकार भी औरंगज़ेब की ज़ात से जोड़ते हैं वो सिर्फ़ दो मंदिर थे: मथुरा का श्री कृष्ण मंदिर और बनारस का ज्ञानव्यापी मंदिर। दिल्ली के आसपास के गूजर शहर में आकर लूटपाट करते थे और खदेड़े जाने पर मथुरा के मंदिर के तहख़ाने में छुप जाते थे. इस स्थिति से निपटने का तरीक़ा औरग़ज़ेब को यही नज़र आया कि मंदिर ही तुड़वा दो. उसके सलाहकारों ने मना किया और ये भी कहा कि हिन्दू इस बात को कभी भूलेंगे नहीं। औरंगज़ेब की ज़िद तो मशहूर है.

औरंगज़ेब के एक सात हज़ारी मनसबदार ( सबसे ऊंचा मनसब ) राजा जसवंत सिंह की रानी अपनी दासियों के साथ तीर्थ यात्रा पर बनारस गयी. विश्वनाथ मंदिर के तहखाने में उनकी आबरू लूटी गयी और उसके बाद सबको मार दिया गया. औरंगज़ेब दकन में था. उसे ख़बर मिली। उसने कहा कि एक पवित्र स्थान को अपवित्र कर दिया गया. यह प्रतिक्रिया आते ही गुस्से से उबलते हुए जसवंत सिंह ने न सिर्फ़ मंदिर का विध्वंस किया बल्कि वहां एक मस्जिद बनवा दी. हिन्दू दक्षिण पंथी दोनों घटनाओं को इस तरह पेश नहीं करता।

मुझे लगता है कि औरंगज़ेब अगर सचमुच मंदिर विध्वंसक होता तो सबसे पहले अपनी राजधानी दिल्ली के मंदिर ख़त्म करता। ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता। बल्कि दिल्ली स्थित प्राचीन योग माया मंदिर के मौजूदा पुजारियों का कहना है कि मंदिर की देखरेख के लिए औरंगज़ेब ने खर्चा मंज़ूर किया था. प्रमाण इस बात के भी हैं कि मथुरा और वृन्दावन के पुजारियों से औरंगज़ेब के अच्छे संबंध थे. एक तरफ़ वो हिन्दुओं का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कराएगा, दूसरी तरफ़ मंदिरों को ग्रांट देगा और पुजारियों से सम्बन्ध रखेगा, अपने दरबार  दो दो हिन्दू सात हज़ारी (जय सिंह, जसवंत सिंह) रक्खेगा, क्या ये अजीब सा विरोधाभास नहीं है ?

मैं औरंगज़ेब को वली या सूफ़ी क़तई नहीं मान सकता। जो आदमी बादशाहत हासिल करने के लिए अपने भाईयों को तड़पा तड़पा कर मरवाएगा और अपने बाप को उसकी मौत तक क़ैद में रक्खेगा, उसे आप वली अल्लाह कहेंगे ? वो बादशाह बनने के लिए ये कुकर्म करेगा टोपी बुनकर अपनी रोज़ी चलाने के लिए ? ऐसा आदमी तो सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता, वली अल्लाह होना बड़ी दूर की बात है. 

औरंगज़ेब एक निहायत नाकाम हुक्मरां था जो बादशाह बनने के 23 साल बाद बग़ावतें दबाने और नए मैदान सर करने दक्खिन की तरफ़ कूच कर गया जहां वो 27 साल बाद लौटा भी तो रास्ते में ही उसकी मौत हो गयी. क़ुदरती है कि उसकी इस क़दर लम्बी गैरहाज़िरी में उसके प्रतिनिधियों और अधिकारियों ने उसके नाम पर वो वो काम किये जिससे अराजकता की स्थिति पैदा हुई। उन्होंने जी भर भ्रष्टाचार किया और जनता दुखी हुई. प्रशासक अपने प्रशासन की धूरी से ही लापता रहे यह एक क्रूर मज़ाक जैसा नहीं लगता ? उसके बाद ही  मुग़ल साम्राज्य का जो पतन शुरू हुआ उसके लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार औरंगज़ेब का कुप्रबंधन और ज़िद भरी नीतियां थीं. 

एक तरफ़ उसकी राजधानी राम भरोसे थी, दूसरी तरफ़ वो इतनी शक्की तबीयत का था कि जो अफसर और मंत्री सही मायने में लायक थे और अपनी ज़िम्मेदारियाँ निबाहने में सही सक्षम थे उनको मौक़ा देने से वो कतराता था. औरंगज़ेब की हुकूमत अकबर की हुकूमत से बिलकुल विपरीत थी. अकबर के यहां भरोसा और सहयोग की भावना थी और औरंगज़ेब के यहां कठोरता, अविश्वास, ज़िद और सलाफ़ी इस्लाम का कट्टरपन था. 

औरंगज़ेब की मज़हबी समझ भी बस एक ख़ास तरह की थी. सलाफ़ीवाद के अलावा इस्लाम का कोई भी बिलीफ़ सिस्टम उसे पसंद नहीं था. शियाओं और सूफ़ियों से उसे चिढ़ थी. मंदिरों से कहीं ज़्यादा उसने मज़ार और खानकाहें तुड़वाईं। दक्षिण में वो जिनसे लड़ रहा था उनमें मुस्लिम हुकूमतें भी थीं. कम से कम ज़मीनों के मामले में उसने हिन्दू और मुसलमान में कोई फ़र्क़ नहीं देखा। 

अपने मज़हब के लिए उसकी संजीदगी की झलक आप इस घटना में भी देख सकते हैं. दक्षिण की हुकूमतों पर चढ़ाई करने जाने से पहले औरंगज़ेब ने अपने दरबारी मौलवी से जब जेहाद का फ़तवा माँगा तो मौलवी ने ये कह कर मना कर दिया कि वो जिन राज्यों पर हमला करेगा उनमें मुस्लिम हुकूमतें भी थीं. औरंगज़ेब ने फ़ौरन उसे हटा दिया और उसकी जगह नया मौलवी रख लिया जिसने ख़ुशी ख़ुशी फ़तवा दे दिया।
 

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