मोदीजी के इंटरव्यू की बड़ी धूम है, होनी भी चाहिए क्योंकि वे इंटरव्यू दिए हैं। इससे पूर्व भी जब उन्होंने दूर देश में जोशीजी को इंटरव्यू दिया था तब भी बहुत बातें हुईं थी। सभी लोग इन साक्षात्कारों को प्रायोजित बताने लगे। देश के प्रधानमंत्री मोदीजी निरन्तर प्रेस से भागते रहे हैं। एक -- दो बार जब पत्रकारों से मिले भी हैं तो यही बात सामने आई है कि पीएमओ पहले ही प्रश्नों की सूची मंगा लेता है जिसके उत्तर तैयार किये जाते हैं और यही तैयार प्रश्नावली ही मोदी जी का इंटरव्यू होता है जिसमें क्रॉस क्वेश्चन पूछने की अनुमति नहीं होती।
यह न सिर्फ मोदीजी की बनाई गई उस छवि का परिणाम है जिसमें उन्हें महान विकास पुरुष , दूर दृष्टि वाले नेता , 18-18 घण्टे काम करने वाले बेहद ईमानदार व्यक्ति और मजबूत नेता के रूप में प्रचारित किया गया था , जिसको गुब्बारे की तरह खूब हवा भरकर देश के सामने पेश किया गया था। यह इंटरव्यू कोई इंटरव्यू नहीं है बल्कि विरोधियों को यह जवाब देने की कोशिश भर है कि "देखो मोदीजी प्रेस से डरते नहीं और उन्होंने इंटरव्यू दिया है", जबकि इस इंटरव्यू के पीछे का मनोविज्ञान बहुत ही डरावना और देश के लिए घातक तो है ही मोदीजी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समझने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। मनोविज्ञान के सीमित ज्ञान के वाबजूद इस इंटरव्यू से निम्न निष्कर्ष निकल जाते हैं।
1, घोर अज्ञान का होना --- ज्ञानी व्यक्ति कभी भी प्रश्नों से भागता नहीं बल्कि वह प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देता है और क्रॉस क्वेश्चन किसी भी मुद्दे की तह तक पहुंचने हेतु आवश्यक होते हैं। मुद्दों की जानकारी न होना गलत नहीं है लेकिन देश के प्रधानमंत्री का घोर अज्ञानी होना उस राष्ट्र के लिए घातक है। मीडिया में हर क्षेत्र के विद्वान हैं जो मुद्दों पर गहरी पकड़ रखते हैं अतः मोदीजी कभी भी प्रेस को पास भी फटकने नहीं देते। इससे उनके अज्ञान का भांडा फूटने का भय है।
बिना गहरे ज्ञान के आप मुद्दों पर बोल नहीं सकते , क्योंकि आप को उनके बारे में गहरी जानकारी है ही नहीं। अधिसंख्य संघी व्यक्तियों का ज्ञान यों ही उथला होता है। किसी भी मुद्दे की वास्तविक समझ इन्हें है ही नहीं तो बोलेंगे क्या ? गौरक्षा, कश्मीर, घर वापसी , विदेश मामले मुख्यतः पाकिस्तान, चीन , भूटान , नेपाल , श्रीलंका आदि के साथ जो संबध बन बिगड़ रहे हैं उन पर आप कुछ नहीं जानते। केवल सेना की आड़ में छुपकर इन प्रश्नों से बचने का प्रयास भर करते रहे हैं। इसी तरह नोटबन्दी से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव हो या जीएसटी , बल्कि देश की बिगड़ती आर्थिक व्यवस्था पर आप एक शब्द नहीं बोल सकते। इसी तरह रोजगार हो या समाज में फैल रही हिंसा के संबन्ध में आप एक शब्द नहीं बोल सकते , क्योंकि आप इसके नुकसान को जान समझ ही नहीं रहे हैं।
2, निरंकुश व्यक्तित्व -- किसी भी प्रकार अपनी बात थोपना। सामने बैठी पत्रकार की असहजता से इसे आसानी से समझा जा सकता है कि वह पत्रकार अंदर से कितनी भयभीत है। इस तरह भयभीत पत्रकार क्या क्रॉश क्वेशचन पूछती ?
3, खुद को पाक साबित करना -- मोदीजी की आदत रही है कि सफलता सारी अपने सिर बांधना और असफलता से किनारे कर लेना। रफाएल पर उनके उत्तर हों या अन्य सभी साढ़े चार साल की घटनाओं पर वे यही करते आये हैं। यह उनकी छवि निर्माण के समय से ही चलता रहा है बाकी मीडिया तो अपनी है ही सब प्रचार और विपक्ष का दुष्प्रचार करेगी ही।
4, हमेशा विपक्ष को दोष देना -- मोदीजी सदैव दूसरों को दोषी देने के आदी रहे हैं। अब जब उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है और उपलब्धि के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं तो अब वे परेशान हैं और केवल विपक्ष को जिम्मेदार ठहराकर या पूर्व की सरकारों को दोष देकर बचना चाहते हैं।
5, राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम का झूठा दंभ, धार्मिक -- साम्प्रदायिक विभाजन, राम मंदिर या गाय के नाम पर जनता को बरगलाना ही इनकी राजनीति का केंद्र है और ये जनता को लगातार इन्हीं आधारों पर भड़काते रहना चाहते हैं।
यह मोदीजी का इंटरव्यू नहीं बल्कि 2019 के चुनाव की तैयारी का आरंभ है ताकि विरोधियों को चुप कराया जा सके कि मोदीजी ने फलाने तारीख को इंटरव्यू दिया था।
निम्न चित्र दो व्यक्तियों के ज्ञान और व्यक्तित्व को समझने के लिए काफी हैं। किसी प्रायोजित राजनीतिक फ़िल्म से कहीं अधिक, मात्र ये दो चित्र काफी हैं मोदीजी और डॉ. मनमोहन सिंह की वास्तविकता को समझने हेतु ...
मोदीजी को नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ ....कमल..।
(यह आर्टिकल कमल कुमार की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है।)
यह न सिर्फ मोदीजी की बनाई गई उस छवि का परिणाम है जिसमें उन्हें महान विकास पुरुष , दूर दृष्टि वाले नेता , 18-18 घण्टे काम करने वाले बेहद ईमानदार व्यक्ति और मजबूत नेता के रूप में प्रचारित किया गया था , जिसको गुब्बारे की तरह खूब हवा भरकर देश के सामने पेश किया गया था। यह इंटरव्यू कोई इंटरव्यू नहीं है बल्कि विरोधियों को यह जवाब देने की कोशिश भर है कि "देखो मोदीजी प्रेस से डरते नहीं और उन्होंने इंटरव्यू दिया है", जबकि इस इंटरव्यू के पीछे का मनोविज्ञान बहुत ही डरावना और देश के लिए घातक तो है ही मोदीजी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समझने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। मनोविज्ञान के सीमित ज्ञान के वाबजूद इस इंटरव्यू से निम्न निष्कर्ष निकल जाते हैं।
1, घोर अज्ञान का होना --- ज्ञानी व्यक्ति कभी भी प्रश्नों से भागता नहीं बल्कि वह प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देता है और क्रॉस क्वेश्चन किसी भी मुद्दे की तह तक पहुंचने हेतु आवश्यक होते हैं। मुद्दों की जानकारी न होना गलत नहीं है लेकिन देश के प्रधानमंत्री का घोर अज्ञानी होना उस राष्ट्र के लिए घातक है। मीडिया में हर क्षेत्र के विद्वान हैं जो मुद्दों पर गहरी पकड़ रखते हैं अतः मोदीजी कभी भी प्रेस को पास भी फटकने नहीं देते। इससे उनके अज्ञान का भांडा फूटने का भय है।
बिना गहरे ज्ञान के आप मुद्दों पर बोल नहीं सकते , क्योंकि आप को उनके बारे में गहरी जानकारी है ही नहीं। अधिसंख्य संघी व्यक्तियों का ज्ञान यों ही उथला होता है। किसी भी मुद्दे की वास्तविक समझ इन्हें है ही नहीं तो बोलेंगे क्या ? गौरक्षा, कश्मीर, घर वापसी , विदेश मामले मुख्यतः पाकिस्तान, चीन , भूटान , नेपाल , श्रीलंका आदि के साथ जो संबध बन बिगड़ रहे हैं उन पर आप कुछ नहीं जानते। केवल सेना की आड़ में छुपकर इन प्रश्नों से बचने का प्रयास भर करते रहे हैं। इसी तरह नोटबन्दी से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव हो या जीएसटी , बल्कि देश की बिगड़ती आर्थिक व्यवस्था पर आप एक शब्द नहीं बोल सकते। इसी तरह रोजगार हो या समाज में फैल रही हिंसा के संबन्ध में आप एक शब्द नहीं बोल सकते , क्योंकि आप इसके नुकसान को जान समझ ही नहीं रहे हैं।
2, निरंकुश व्यक्तित्व -- किसी भी प्रकार अपनी बात थोपना। सामने बैठी पत्रकार की असहजता से इसे आसानी से समझा जा सकता है कि वह पत्रकार अंदर से कितनी भयभीत है। इस तरह भयभीत पत्रकार क्या क्रॉश क्वेशचन पूछती ?
3, खुद को पाक साबित करना -- मोदीजी की आदत रही है कि सफलता सारी अपने सिर बांधना और असफलता से किनारे कर लेना। रफाएल पर उनके उत्तर हों या अन्य सभी साढ़े चार साल की घटनाओं पर वे यही करते आये हैं। यह उनकी छवि निर्माण के समय से ही चलता रहा है बाकी मीडिया तो अपनी है ही सब प्रचार और विपक्ष का दुष्प्रचार करेगी ही।
4, हमेशा विपक्ष को दोष देना -- मोदीजी सदैव दूसरों को दोषी देने के आदी रहे हैं। अब जब उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है और उपलब्धि के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं तो अब वे परेशान हैं और केवल विपक्ष को जिम्मेदार ठहराकर या पूर्व की सरकारों को दोष देकर बचना चाहते हैं।
5, राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम का झूठा दंभ, धार्मिक -- साम्प्रदायिक विभाजन, राम मंदिर या गाय के नाम पर जनता को बरगलाना ही इनकी राजनीति का केंद्र है और ये जनता को लगातार इन्हीं आधारों पर भड़काते रहना चाहते हैं।
यह मोदीजी का इंटरव्यू नहीं बल्कि 2019 के चुनाव की तैयारी का आरंभ है ताकि विरोधियों को चुप कराया जा सके कि मोदीजी ने फलाने तारीख को इंटरव्यू दिया था।
निम्न चित्र दो व्यक्तियों के ज्ञान और व्यक्तित्व को समझने के लिए काफी हैं। किसी प्रायोजित राजनीतिक फ़िल्म से कहीं अधिक, मात्र ये दो चित्र काफी हैं मोदीजी और डॉ. मनमोहन सिंह की वास्तविकता को समझने हेतु ...
मोदीजी को नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ ....कमल..।
(यह आर्टिकल कमल कुमार की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है।)