जेएनयू हिंसा का एक साल, आज भी इंसाफ़ का इंतजार

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: January 6, 2021
5 जनवरी 2020 की शाम लाठियों पत्थरों से लैस नकाबपोशों का विद्यार्थियों और शिक्षकों पर हमला, चैनल के स्टिंग का दावा, एबीवीपी के सदस्यों ने की थी मारपीट



दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में बीते साल 5 जनवरी 2020 को कैम्पस के अन्दर नकाबपोश लोगों द्वारा किए गए हमले का एक साल पूरा हो चूका है, इस मामले में अब तक न किसी की गिरफ़्तारी हुई है और न ही कोई चार्जशीट दायर की गई है यहाँ तक कि विश्वविद्यालय के अन्दर चल रही जाँच को भी रोक दिया गया है. यहाँ पीड़ित आज तक इन्साफ का इन्तजार कर रहे हैं और उन्होंने कैम्पस के अन्दर प्रदर्शन कर आवाज़ बुलंद की है.   

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, “दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच की विशेष जाँच टीम (SIT) ने 15 संदिग्ध (युवाओं) की पहचान की है लेकिन कोरोना की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के ऐलान और सभी छात्रों के अपने घर लौटने की वजह से जाँच प्रक्रिया रोक दी गयी. गौरतलब बात यह है कि इसी SIT की टीम को पूर्वोतर दिल्ली में फ़रवरी में हुए दंगों व् कोरोना प्रोटोकॉल के उल्लंघन मामले में निजामुद्धीन मरकज के प्रमुख मौलाना साद के ख़िलाफ़ मामले की जाँच करने को भी कहा गया था. वर्तमान में कथित रूप से दिल्ली दंगा में आरोपी सहित जामिया, JNU के स्टूडेंट्स व् सामाजिक कार्यकर्ता जेल की सलाखों के पीछे हैं. 

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षा और शोध के लिए जाना जाता है. यह विश्वविद्यालय भारत की सर्वोच्च रैंकिंग वाले संस्थानों में से एक है. जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व स्टूडेंट्स में नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री, नेपाल और लीबिया के पूर्व प्रधानमंत्री, दर्जनों कद्दावर राजनेता, बेहतरीन कलाकार और अपने-अपने क्षेत्र के विद्वान लोग शामिल हैं. हर क्षेत्र में JNU की इतनी शोहरत, इस विश्वविद्यालय के माहौल को बनाने में लगे 50 साल के बावजूद भी लाठी, पत्थर और लोहे की छड़ को लेकर आने वाले गुंडों का दौर शुरू हो गया. इस हमले में दर्जनों अध्यापक सहित कई स्टूडेंट्स घायल हुए और उससे भी अधिक स्टूडेंट सदमे और भय के माहौल में जीने को मजबूर हो गए. एक ही समय में कैंपस के अन्दर गुंडागर्दी, और विश्वविद्यालय के गेट पर कथित रूप से राष्ट्रवादी नारेबाजी, और सामने खड़ी पुलिस की उदासीनता विश्वविद्यालय के बदलते भय भरे माहौल को दिखा रहा था. उस भय के माहौल को कोरोना लॉक डाउन के अकल्पनीय साल भर बीतने के बाद भी कैंपस में महसूस किया जा सकता है. 

हिंसा के बाद पिछले साल 9 जनवरी को पुलिस द्वारा की गयी प्रेस कांफ्रेंस में 9 संदिग्धों के नाम जारी किए गए थे हालाँकि इस मामले में एबीवीपी और वामपंथी छात्र नेताओं के द्वारा एक दसरे पर आरोप लगाते भी देखा गया है. मीडिया को दिए बयान में जवाहरलाल नेहरु विश्व विद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू ) अध्यक्ष आईशी घोष ने कहा, “एक साल बाद हमें इस मामले में कम से कम कुछ प्रगति दिखनी चाहिए थी. पुलिस नें हमें बताया कि वे हमारे साथ हैं लेकिन एक बाद हमारा बयान ले लेने के बाद उन्होंने कुछ भी नहीं किया. हमें कैम्पस की आंतरिक जाँच से कोई उम्मीद नहीं है उन्होंने हमसे कोई बात नहीं की”. 

बता दें कि 5 जनवरी 2020 की घटना के दौरान जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आईशी घोष पर कथित तौर पर लोहे की रॉड से हमला कर बुरे तरीके से घायल कर दिया था. 

जेएनयू में हुई हिंसा और छात्रों, अध्यापकों पर हुए हमले को लेकर पिछले साल 5 जनवरी को समाचार चैनल आजतक ने एक स्टिंग ऑपरेशन भी किया था जिसमें नक़ाब पहनकर जेएनयू में गुंडागर्दी करने वालों से भी बातचीत करके पुरे मामले की पोल खोलने का दावा किया था. हिंसा करने वाले समूहों में लड़कियों के शामिल होने की पुष्टि भी सोशल मीडिया पर जारी वीडियो और फ़ोटो में किया गया था. 

आजतक चैनल ने भी यह दावा किया कि हिंसा में शामिल लड़की का नाम कोमल शर्मा है और वह दिल्ली विश्व विद्यालय की छात्रा है. वह छात्र संगठन एबीवीपी से जुड़ी हुई है और 5 जनवरी 2020 की शाम वो JNU में मौजूद थी. इसके अलावा दर्जनों एबीवीपी के कार्यकर्ता नें इस हिंसा में शामिल होने की बात कबूल की है. यह दावा चैनल ने स्टिंग ओपरेशन के आधार पर किया था. एबीवीपी सत्ताधारी बीजेपी के वरदहस्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छात्र संगठन है. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व्यापक रूप से सत्तारूढ़ राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी का पैतृक संगठन माना जाता है. जब से प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आए हैं वो लोकतंत्र में विरोध की आवाज को दबाने, व विरोधियों को देश विरोधी बताने की जुगत में लगे हैं वो अलग अलग नाम से विरोध कर रहे लोगों को संबोधित करते हैं जिसका वर्तमान उदाहरण 40 दिन से दिल्ली के बॉर्डर पर किसानो के जमावड़े से समझा जा सकता है. किसानों को सरकार द्वारा खालिस्तानी तक की उपाधि से नवाजा जा चुका है. कानून व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाकर बेरोक-टोक हिंसा द्वारा संदेह और नफरत का माहौल बनाया जा रहा है जिसे बेहद संगठित तरीके से अंजाम किए जाने का कार्यक्रम बदस्तूर जारी है. यह लोकतंत्र और खास कर शिक्षण संस्थानों के लिए बेहद ख़तरनाक है. 

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