JNU हिंसा पर त्वरित टिप्पणी- क्या हम फासिस्ट दौर में पहुँच गए हैं?

Written by प्रेमकुमार मणि | Published on: January 6, 2020
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से भयानक खबरें आ रही हैं. आज लाठी -डंडे से लैस, चेहरे पर पट्टी डाले सैंकड़ों की संख्या में बाहरी गुंडे वहां पहुंचे और चुन -चुन कर उन छात्रों और शिक्षकों की पिटाई शुरू कर दी, जिन पर लेफ्ट आइडियोलॉजी से जुड़े होने की बात कही जाती थी. इसका अर्थ यह है कि भीतरी शक्तियां भी उन गुंडों के साथ थीं. क्योंकि उनकी पहचान कैसे होती. अनेक लोगों के घायल होने की खबर है, जिसमें छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष भी शामिल हैं. इन्हें एम्स में भर्ती कराया गया है.



यह खुला आक्रमण है. कह सकते हैं एक गृह युद्ध का आरम्भ. लेकिन युद्ध तो दोनों तरफ से होता है. इसे आक्रमण कहना होगा. जेएनयू में ये आतंकवादी कैसे घुसे ? ये कहाँ के घुसपैठिये हैं ? इसका जवाब कौन देगा ? 

हम जानते हैं कि मध्यकाल में जिस तरह नालंदा यूनिवर्सिटी (महाविहार) को तुर्कों ने जला दिया था ,वैसे ही कुछ लोग जेएनयु को विनष्ट करने पर आमादा हैं. भारत की यह एकमात्र यूनिवर्सिटी है, जिसका पूरी दुनिया में सम्मान है. मौजूदा हुकूमत को तो सैकड़ों फ़ीट ऊँची मूर्तियॉ और महामंदिर बनाने की फ़िक्र है,. उसके एजेंडे में यूनिवर्सिटियां स्थापित, विकसित करना नहीं हैं. हाँ, उनका नाश किया जा सकता है.

जेएनयू 1969 में स्थापित हुआ और पांच वर्ष के भीतर अपने चरित्र को लेकर चर्चित हो गया. मैं पहली दफा 1976 में वहां गया था. उस वक़्त ही उसकी प्रतिष्ठा स्थापित हो गयी थी. पूरी दुनिया से लोग वहां पढ़ने -पढ़ाने आने लगे थे. इंदिरा गाँधी की इमरजेंसी का सबसे तगड़ा विरोध जेएनयू में ही हुआ था. इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री के नाते वहां की चांसलर थीं. वह वहां गयीं, तब छात्रों ने उन्हें घेर लिया और चांसलरी से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया.

शाबास ! अमित शाह,नरेंद्र मोदी आपने जेएनयू को अंततः बर्बाद कर ही डाला. आप इतिहास में अमर हो गए. बख्तियार खिलजी के साथ आपका नाम भी जुड़ गया.

ओह ! प्रतीत होता है हम वाकई फासिस्ट दौर में पहुँच गए हैं.
 

बाकी ख़बरें