किसान एकता जिंदाबाद...किसानों की ताकत देखेगा भारत, 5 सितंबर ऐतिहासिक किसान महापंचायत, क्रांति की धरा मुजफ्फरनगर रचेगी किसान आंदोलन का इतिहास जैसे नारे लिखे बड़े-बड़े होर्डिंगों से पाट दिया गया है। चारों तरफ लाउडस्पीकर लगे हैं। एक ही आवाज, मुजफ्फरनगर चलो...किसानों की ताकत देखेगा भारत... गूंज रही है।
जी हां, किसान आंदोलन की दिशा तय करने और सत्ता परिवर्तन का बिगुल फूंकने को लेकर यूपी की सबसे बड़ी महापंचायत आज मुजफ्फरनगर में हो रही है। मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान पर महापंचायत में शामिल होने के लिए एक दिन पहले से ही बड़ी संख्या में किसान मुजफ्फरनगर पहुंचना शुरू हो गए है। रविवार को सुबह से ही सड़कों पर किसानों के काफिले ट्रैक्टरों, गाड़ियों और बसों से पहुंचना शुरू है। सुबह दस बजे तक महापंचायत स्थल पर लाखों की भीड़ देखने को मिल रही है। एक अनुमान के अनुसार, पांच से सात लाख किसानों के जुटने की संभावना हैं। मोदी-योगी की सरकार किसानों को रोकने में जुटी हुई है लेकिन कुछ बस में नहीं है। आलम यह है कि मुज़फ़्फ़रनगर जाने वाली हर सड़क पर किसान ही किसान नजर आ रहे हैं। पुलिस की लोकल इंटेलिजेंस के लोगों का भी कहना है कि हर एक घंटे में क़रीब दस हज़ार किसान मुजफ्फरनगर में प्रवेश कर रहा है। पुलिस, पीएसी और मोर्चा के वालंटियरों ने व्यवस्था की कमान संभाल रखी है। किसानों के रहने, खाने-पीने की व्यवस्था को 500 से ज्यादा लंगर लगे है तो किसान ट्रॉलियों में अपना खुद का राशन भी लेकर आये हैं।
बाहर से आए किसानों का हलवा खिलाकर स्वागत करते स्थानीय लोग pc-Twitter
बता दें कि महापंचायत के मंच से संयुक्त किसान मोर्चा मिशन यूपी का बिगुल बजाएगा। करीब 22 राज्यों के तीन सौ से ज्यादा किसान संगठन और खाप चौधरी एक मंच पर एकत्र होकर जन आंदोलन शुरू करेंगे। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने, एमएसपी और अन्य मुद्दों पर किसान मोर्चा ने भाजपा सरकार की घेराबंदी के लिए महापंचायत बुलाई गई है। शनिवार को कर्नाटक, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों के किसान पहुंच गए। पंजाबी बरातघर, राधा स्वामी सत्संग भवन, छोटूराम कॉलेज, रालोद कार्यालय व जीआईसी ग्राउंड में किसानों को ठहराया गया है। जीआईसी ग्राउंड पर हो रही किसान महापंचायत में शामिल होने के लिए यूपी के अलावा पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे 15 राज्यों से किसानों के जुटने का दावा है। दिल्ली बॉर्डर पर जो लंबे समय से आंदोलन चल रहे हैं वहां से भी किसान इस महापंचायत में शामिल होने जा रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा का दावा है कि ये अब तक की सबसे बड़ी महापंचायत होगी।
राकेश टिकैत समेत संयुक्त मोर्चा के सभी नेता मुजफ्फरनगर पहुंच गए हैं। महापंचायत में हजारों की संख्या में महिलाएं भी आईं हैं। इन महिलाओं ने केंद्र सरकार से तीनों कानूनों की वापसी की मांग की है। वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने फोटो ट्वीट कर महापंचायत में उमड़ी भीड़ को 'ताकत' बताया है। संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि अब सरकार को किसानों की मांग मान लेनी चाहिए।
जीआईसी मैदान में आयोजित किसान महापंचायत के लिए शनिवार रात से ही बड़ी संख्या में किसानों की आवाजाही सहारनपुर, मुरादाबाद, शामली, संभल, बुलंदशहर, हापुड़, मेरठ समेत कई जनपदों से जारी है। देर रात तक जिले के बॉर्डर पर पुलिस फोर्स मुस्तैद की गई है, ताकि किसानों को कोई परेशानी न हो। बताया गया कि किसानों की सुरक्षा के मद्देनजर एसएसपी ने शनिवार रात में खुद ही बॉर्डर पर जाकर जांच की और ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों से बात भी की थी। एसएसपी प्रभाकर चौधरी का कहना है कि पुलिस का ज्यादा फोकस मुजफ्फरनगर जाने वाले मार्ग पर है। इसको देखते हुए ही पुलिस की ड्यूटी लगाई है।
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत, योगेंद्र यादव, राजेवाल, दर्शन पाल, कामरेड हन्नान मुल्ला, मेधा पाटकर समेत अनेक खापों के चौधरी भी पंचायत स्थल पर पहुंच गए हैं। उधर, रालोद के किसान महापंचायत को समर्थन देने के साथ बागपत में समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी महापंचायत को समर्थन देने का निर्णय लिया है। सपा कार्यकर्ता भी पंचायत स्थल के लिए रवाना हो गए हैं। महापंचायत पर पुष्पवर्षा करने के लिए रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को प्रशासन की तरफ से अनुमति नहीं दी गई, जिसके बाद उन्होंने ट्वीट कर कहा कि बहुत माला पहनी है मैंने, मुझे जनता ने बहुत प्यार और सम्मान दिया है। उन्होंने कहा कि मैं अन्नदाताओं पर पुष्पवर्षा कर किसानों को नमन और उनका सम्मान करना चाहता था। लेकिन प्रशासन ने इसके लिए अनुमति नहीं दी। इसके अलावा उन्होंने लिखा कि किसान के सम्मान से सरकार को खतरा है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रेस प्रभारी शमशेर राणा ने बताया कि किसानों के स्वागत के लिए यूपी गेट से मुजफ्फरनगर तक रास्ते में पड़ने वाले सभी गांवों में वॉलंटियर्स तैनात किए गए हैं। उनके स्वागत में कोई कमी न रह जाये इसके लिए मुजफ्फरनगर में खाने तथा जलपान के करीब 600 भण्डारे लंगर की व्यवस्था की गई है। साथ ही चिकित्सा सुविधा हेतु 20-25 मेडिकल कैंप लगाए गए हैं। साथ ही यह भी ध्यान रखा गया है कि इस गैर राजनीतिक राष्ट्रीय महापंचायत में कोई भी राजनीतिक दल का नेता संबोधित न करें। महापंचायत के लिए जिला प्रशासन ने भाकियू नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर शहर का यातायात प्लान तैयार किया है। इसके लिए शहर में आईटीआई कॉलेज का मैदान, नुमाइश मैदान, इस्लामिया इंटर कॉलेज का मैदान, डीएवी इंटर कॉलेज का मैदान, रेलवे यार्ड और कूकड़ा नवीन मंडी स्थल पर वाहनों को खड़ा करने के लिए निर्धारित किए गए हैं।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने एलान किया है कि महापंचायत में एक बड़ा फैसला लिया जाएगा। टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार को भारतीय जनता पार्टी की सरकार न कह कर इसे मोदी सरकार कहा जाए तो बेहतर होगा। इस सरकार ने जो तीन कृषि कानून पास किए हैं। वह किसानों के हक में नहीं है। यह कानून पूरी तरह से देश को विदेशी हाथों में सौंपने की तैयारी है। उन्होंने कहा कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान 9 महीने से दिल्ली के चारों तरफ बैठे हैं, लेकिन सरकार किसानों की सुनवाई नहीं कर रही है।
दूसरा जिस तरह सरकार एकतरफा निजीकरण की राह पर बढ़ निकली है और महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। उससे साफ है कि किसान आंदोलन देश बचाने की लड़ाई बनता जा रहा है और देश में नीतिगत बदलाव की लड़ाई का एक बड़ा राष्ट्रीय मंच बनने की ओर बढ़ रहा है !
राकेश टिकैत ने कहा भी है कि ”इस सरकार से किसान कोई उम्मीद ना हीं करें तो ठीक है। किसान को अब सत्ता परिवर्तन की ही लड़ाई लडऩी होगी। किसान नौ महीने से देश की राजधानी को घेरे बैठे हैं। लेकिन केंद्र सरकार ने आज तक शहीद हुए किसानों के बारे में भी कोई शोक संदेश नहीं भेजा। यह सरकार कुछ कदम उठायेगी ऐसी उम्मीद नहीं दिखती’ ‘हमें अपनी पगड़ी के साथ फसल और नस्ल भी बचानी है वर्ना आने वाली पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेंगी। इसके लिए फिर से यह आजादी की लड़ाई छिड़ चुकी है। तीनों कृषि बिल पूरी तरह से देश को विदेशी हाथों में सौंपने की तैयारी है। पहले एक ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में आई थी। उसने देश को गुलाम बना लिया था और अब तो ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ व साउथ सभी दिशाओं से अनगिनत कम्पनियां देश को निगलने के लिये अपना जाल फैला चुकी हैं।’
जानकारों का भी कहना है कि किसान नेताओं ने इस महारैली के सामाजिक-राजनैतिक महत्व की शिनाख्त बिल्कुल सही किया है । इसी मुजफ्फरनगर में 2013 में प्रायोजित दंगों ने समाज को बांटने का काम किया था, और उसी साम्प्रदयिक विभाजन की लहर पर सवार होकर मोदी का अश्वमेघ का घोड़ा पूरे उत्तर भारत में सरपट दौड़ा था और मोदी 2014 में दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब हुए थे तथा उसी आवेग में 2017 में प्रचण्ड बहुमत से भाजपा सत्ता में आई और ध्रुवीकरण की उस राजनीति के पोस्टर-ब्वाय योगी का राज्यारोहण हुआ था। आज इतिहास का चक्र 180 डिग्री घूम गया है, उसी मुजफ्फरनगर से हिन्दू-मुस्लिम-सिख भाईचारे की मिसाल कायम करता किसान एकता का कारवां एक सैलाब की तरह आगे बढ़ रहा है, किसानों के आक्रोश का यह सैलाब न सिर्फ 22 में योगी और 24 में मोदी को बहा कर ले जाएगा, बल्कि नफरत और विभाजन की सियासत को ज़मींदोज़ करने का काम करेगा।
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बिहार के 500 से ज्यादा किसान गाजीपुर बॉर्डर पर सप्ताह भर चलने वाले विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए
जी हां, किसान आंदोलन की दिशा तय करने और सत्ता परिवर्तन का बिगुल फूंकने को लेकर यूपी की सबसे बड़ी महापंचायत आज मुजफ्फरनगर में हो रही है। मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान पर महापंचायत में शामिल होने के लिए एक दिन पहले से ही बड़ी संख्या में किसान मुजफ्फरनगर पहुंचना शुरू हो गए है। रविवार को सुबह से ही सड़कों पर किसानों के काफिले ट्रैक्टरों, गाड़ियों और बसों से पहुंचना शुरू है। सुबह दस बजे तक महापंचायत स्थल पर लाखों की भीड़ देखने को मिल रही है। एक अनुमान के अनुसार, पांच से सात लाख किसानों के जुटने की संभावना हैं। मोदी-योगी की सरकार किसानों को रोकने में जुटी हुई है लेकिन कुछ बस में नहीं है। आलम यह है कि मुज़फ़्फ़रनगर जाने वाली हर सड़क पर किसान ही किसान नजर आ रहे हैं। पुलिस की लोकल इंटेलिजेंस के लोगों का भी कहना है कि हर एक घंटे में क़रीब दस हज़ार किसान मुजफ्फरनगर में प्रवेश कर रहा है। पुलिस, पीएसी और मोर्चा के वालंटियरों ने व्यवस्था की कमान संभाल रखी है। किसानों के रहने, खाने-पीने की व्यवस्था को 500 से ज्यादा लंगर लगे है तो किसान ट्रॉलियों में अपना खुद का राशन भी लेकर आये हैं।
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बता दें कि महापंचायत के मंच से संयुक्त किसान मोर्चा मिशन यूपी का बिगुल बजाएगा। करीब 22 राज्यों के तीन सौ से ज्यादा किसान संगठन और खाप चौधरी एक मंच पर एकत्र होकर जन आंदोलन शुरू करेंगे। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने, एमएसपी और अन्य मुद्दों पर किसान मोर्चा ने भाजपा सरकार की घेराबंदी के लिए महापंचायत बुलाई गई है। शनिवार को कर्नाटक, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों के किसान पहुंच गए। पंजाबी बरातघर, राधा स्वामी सत्संग भवन, छोटूराम कॉलेज, रालोद कार्यालय व जीआईसी ग्राउंड में किसानों को ठहराया गया है। जीआईसी ग्राउंड पर हो रही किसान महापंचायत में शामिल होने के लिए यूपी के अलावा पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे 15 राज्यों से किसानों के जुटने का दावा है। दिल्ली बॉर्डर पर जो लंबे समय से आंदोलन चल रहे हैं वहां से भी किसान इस महापंचायत में शामिल होने जा रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा का दावा है कि ये अब तक की सबसे बड़ी महापंचायत होगी।
राकेश टिकैत समेत संयुक्त मोर्चा के सभी नेता मुजफ्फरनगर पहुंच गए हैं। महापंचायत में हजारों की संख्या में महिलाएं भी आईं हैं। इन महिलाओं ने केंद्र सरकार से तीनों कानूनों की वापसी की मांग की है। वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने फोटो ट्वीट कर महापंचायत में उमड़ी भीड़ को 'ताकत' बताया है। संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि अब सरकार को किसानों की मांग मान लेनी चाहिए।
जीआईसी मैदान में आयोजित किसान महापंचायत के लिए शनिवार रात से ही बड़ी संख्या में किसानों की आवाजाही सहारनपुर, मुरादाबाद, शामली, संभल, बुलंदशहर, हापुड़, मेरठ समेत कई जनपदों से जारी है। देर रात तक जिले के बॉर्डर पर पुलिस फोर्स मुस्तैद की गई है, ताकि किसानों को कोई परेशानी न हो। बताया गया कि किसानों की सुरक्षा के मद्देनजर एसएसपी ने शनिवार रात में खुद ही बॉर्डर पर जाकर जांच की और ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों से बात भी की थी। एसएसपी प्रभाकर चौधरी का कहना है कि पुलिस का ज्यादा फोकस मुजफ्फरनगर जाने वाले मार्ग पर है। इसको देखते हुए ही पुलिस की ड्यूटी लगाई है।
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत, योगेंद्र यादव, राजेवाल, दर्शन पाल, कामरेड हन्नान मुल्ला, मेधा पाटकर समेत अनेक खापों के चौधरी भी पंचायत स्थल पर पहुंच गए हैं। उधर, रालोद के किसान महापंचायत को समर्थन देने के साथ बागपत में समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी महापंचायत को समर्थन देने का निर्णय लिया है। सपा कार्यकर्ता भी पंचायत स्थल के लिए रवाना हो गए हैं। महापंचायत पर पुष्पवर्षा करने के लिए रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को प्रशासन की तरफ से अनुमति नहीं दी गई, जिसके बाद उन्होंने ट्वीट कर कहा कि बहुत माला पहनी है मैंने, मुझे जनता ने बहुत प्यार और सम्मान दिया है। उन्होंने कहा कि मैं अन्नदाताओं पर पुष्पवर्षा कर किसानों को नमन और उनका सम्मान करना चाहता था। लेकिन प्रशासन ने इसके लिए अनुमति नहीं दी। इसके अलावा उन्होंने लिखा कि किसान के सम्मान से सरकार को खतरा है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रेस प्रभारी शमशेर राणा ने बताया कि किसानों के स्वागत के लिए यूपी गेट से मुजफ्फरनगर तक रास्ते में पड़ने वाले सभी गांवों में वॉलंटियर्स तैनात किए गए हैं। उनके स्वागत में कोई कमी न रह जाये इसके लिए मुजफ्फरनगर में खाने तथा जलपान के करीब 600 भण्डारे लंगर की व्यवस्था की गई है। साथ ही चिकित्सा सुविधा हेतु 20-25 मेडिकल कैंप लगाए गए हैं। साथ ही यह भी ध्यान रखा गया है कि इस गैर राजनीतिक राष्ट्रीय महापंचायत में कोई भी राजनीतिक दल का नेता संबोधित न करें। महापंचायत के लिए जिला प्रशासन ने भाकियू नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर शहर का यातायात प्लान तैयार किया है। इसके लिए शहर में आईटीआई कॉलेज का मैदान, नुमाइश मैदान, इस्लामिया इंटर कॉलेज का मैदान, डीएवी इंटर कॉलेज का मैदान, रेलवे यार्ड और कूकड़ा नवीन मंडी स्थल पर वाहनों को खड़ा करने के लिए निर्धारित किए गए हैं।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने एलान किया है कि महापंचायत में एक बड़ा फैसला लिया जाएगा। टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार को भारतीय जनता पार्टी की सरकार न कह कर इसे मोदी सरकार कहा जाए तो बेहतर होगा। इस सरकार ने जो तीन कृषि कानून पास किए हैं। वह किसानों के हक में नहीं है। यह कानून पूरी तरह से देश को विदेशी हाथों में सौंपने की तैयारी है। उन्होंने कहा कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान 9 महीने से दिल्ली के चारों तरफ बैठे हैं, लेकिन सरकार किसानों की सुनवाई नहीं कर रही है।
दूसरा जिस तरह सरकार एकतरफा निजीकरण की राह पर बढ़ निकली है और महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। उससे साफ है कि किसान आंदोलन देश बचाने की लड़ाई बनता जा रहा है और देश में नीतिगत बदलाव की लड़ाई का एक बड़ा राष्ट्रीय मंच बनने की ओर बढ़ रहा है !
राकेश टिकैत ने कहा भी है कि ”इस सरकार से किसान कोई उम्मीद ना हीं करें तो ठीक है। किसान को अब सत्ता परिवर्तन की ही लड़ाई लडऩी होगी। किसान नौ महीने से देश की राजधानी को घेरे बैठे हैं। लेकिन केंद्र सरकार ने आज तक शहीद हुए किसानों के बारे में भी कोई शोक संदेश नहीं भेजा। यह सरकार कुछ कदम उठायेगी ऐसी उम्मीद नहीं दिखती’ ‘हमें अपनी पगड़ी के साथ फसल और नस्ल भी बचानी है वर्ना आने वाली पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेंगी। इसके लिए फिर से यह आजादी की लड़ाई छिड़ चुकी है। तीनों कृषि बिल पूरी तरह से देश को विदेशी हाथों में सौंपने की तैयारी है। पहले एक ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में आई थी। उसने देश को गुलाम बना लिया था और अब तो ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ व साउथ सभी दिशाओं से अनगिनत कम्पनियां देश को निगलने के लिये अपना जाल फैला चुकी हैं।’
जानकारों का भी कहना है कि किसान नेताओं ने इस महारैली के सामाजिक-राजनैतिक महत्व की शिनाख्त बिल्कुल सही किया है । इसी मुजफ्फरनगर में 2013 में प्रायोजित दंगों ने समाज को बांटने का काम किया था, और उसी साम्प्रदयिक विभाजन की लहर पर सवार होकर मोदी का अश्वमेघ का घोड़ा पूरे उत्तर भारत में सरपट दौड़ा था और मोदी 2014 में दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब हुए थे तथा उसी आवेग में 2017 में प्रचण्ड बहुमत से भाजपा सत्ता में आई और ध्रुवीकरण की उस राजनीति के पोस्टर-ब्वाय योगी का राज्यारोहण हुआ था। आज इतिहास का चक्र 180 डिग्री घूम गया है, उसी मुजफ्फरनगर से हिन्दू-मुस्लिम-सिख भाईचारे की मिसाल कायम करता किसान एकता का कारवां एक सैलाब की तरह आगे बढ़ रहा है, किसानों के आक्रोश का यह सैलाब न सिर्फ 22 में योगी और 24 में मोदी को बहा कर ले जाएगा, बल्कि नफरत और विभाजन की सियासत को ज़मींदोज़ करने का काम करेगा।
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