कांवड़ियों की ख़िदमत में दिन-रात जुटे हैं मुसलमान

Written by आस मुहम्मद कैफ़ | Published on: July 18, 2017
मुज़फ़्फ़रनगर/शामली/सहारनपुर : जहां पूरे मुल्क में एक ख़ास तबक़े के लोगों द्वारा नफ़रत फैलाई जा रही है वहीं मुज़फ़्फ़रनगर, शामली, सहारनपुर, मेरठ और बाग़पत की सड़कों पर हज़ारों मुस्लिम युवक मुहब्बत का पैग़ाम देते आपको मिल जाएंगे.

Muslims helping kanwaria

साम्प्रदयिक सौहार्द की इस समय देश को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, इसको देखते हुए तमाम मुस्लिम तंज़ीम मुज़फ़्फ़रनगर, शामली और सहारनपुर में इंसानियत व मुहब्बत का संदेश देते हुए कांवड़ियों की सेवा में जुटी हुई हैं.
मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद बनाई गई सामाजिक संस्था पैग़ाम-ए-इंसानियत सबसे संवेदनशील जगह खालापार मीनाक्षी चौक पर कांवड़ियों की ख़िदमत में डटी है. यह वही संस्था है जिसने दंगों के बाद दोनों समुदायों की खाई को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.



संस्था के अध्यक्ष आसिफ़ राही बताते हैं कि, संस्था के 25 सक्रिय और सामाजिक रूप से प्रभावशाली कार्यकर्ताओं को कांवड़ियों की सेवा करने की ड्यूटी पर लगाया गया है, जिसमें ख़ास तौर पर दिलशाद पहलवान, शहज़ाद कुरैशी, अमीर आज़म, आमिर अंसारी और मैं खुद दिन-रात कांवड श्रद्धालुओं की सेवा में डटे हुए हैं. वो आगे बताते हैं, इस कैम्प में आराम, दवाई, चाय और खाना जैसे इंतेज़ाम हैं.

बताते चलें कि पैग़ाम-ए-इंसानियत ने शहर के बीचों-बीच एक कैम्प लगाया है, जहां से सबसे ज्यादा कांवड़िये गुज़रते हैं.

शामली शहर में मुख्य चौक पर लगाया गया सैफ़ी वेलफ़ेयर समिति का कैम्प भी काफ़ी तारीफ़ बटोर रहा है. दरअसल यह एक मेडिकल कैम्प है और इसमें 15 डॉक्टरों का एक समूह बैठा हुआ है. यह सभी डॉक्टर मुसलमान हैं. आप आजकल सोशल मीडिया पर कांवड़ियों के पैरों का ज़ख़्म साफ़ करते हुए तस्वीरें देख रहे होंगे. वायरल हुई तस्वीरें शामली के इसी कैम्प की हैं.



डॉक्टर आबिद सैफ़ी बताते हैं कि पिछले कुछ साल से उन्होंने यह कैम्प शुरू किया. हमसे अपने कांवड भाईयों के पैरों के छाले देखे नहीं जाते. हमें लगा कि सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि इनके लिए मेडिकल ट्रीटमेंट का कैम्प लगाया जाए ताकि डॉक्टर की ज़रूरत पड़ने पर हम उनके लिए हमेशा हाज़िर रहें.

मशहूर सामाजिक संस्था खुदाई ख़िदमतगार ने भी मुज़फ़्फ़रनगर में कैम्प लगाया है. बताते चलें कि खुदाई ख़िदमतगार भारत रत्न ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान द्वारा बनाई गई संस्था है, जिसे 2010 में देश के नामचीन सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों द्वारा दुबारा पुनर्गठित किया गया.

दिल्ली से आए खुदाई ख़िदमतगार के सचिव क़मर इंतेख़ाब बताते हैं कि, हम पूरे देश में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा व राष्ट्रीय एकता और दूसरे सामाजिक कार्यो को युद्धस्तर पर कर रहे हैं. चाहे इलाहाबाद कुंभ मेला हो या हरिद्वार या फिर अजमेर हो या अमृतसर हर जगह हमारे कार्यकर्ता सदैव अपनी सेवाएं देने को तत्पर दे रहे हैं. आज मुज़फ़्फ़रनगर के मदनी चौक सरवट पर एक फ्री मेडिकल कांवड़ शिविर हम लोगों ने लगाया है ताकि दोनों धर्मो के बीच बेहतर संवाद स्थापित हो सके, जो आज नफ़रत भरे माहौल में बहुत ज़रूरी है.

आई इंडिया संस्था के मुहम्मद ग़ालिब बताते हैं कि, इससे पहले भी हम ज़िले के विभिन्न स्थानों पर ऐसे कैम्प कर चुके हैं. हम चाहते हैं कि इसके ज़रिए यहां के मुस्लिम भाई मिलकर कांवड़ सेवा से पूरे भारत को भाईचारे का सन्देश दे सके, वो भी किसी राजनितिक महत्वकांक्षा के बिना, ताकि मुज़फ़्फ़नगर की गंगा-जमुनी तहज़ीब को दुबारा से दोनों क़ौमे मिलकर बहाल करे दें.



मुज़फ़्फ़रनगर की एक और संस्था आवाज़-ए-हक़ ने भी एक कांवड सेवा शिविर की कल शुरूआत की है.  सहारनपुर में गाड़ा युवा मंच के कार्यकर्ता भी जनकपुरी चौक पर कांवड की सेवा में जुटे हैं.

ग़ौरतलब रहे कि पूरे एक सप्ताह पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुज़फ़्फ़रनगर, शामली, सहारनपुर, मेरठ और बाग़पत जैसे कामकाजी ज़िले पूरी तरह बंद रहते हैं. लोगों का जनजीवन पूरी तरह से भगवा हो जाता है. यातायात सेवा पूरी तरह ठप्प हो जाती है. इसकी वजह है कि उत्तरी भारत से बड़ी संख्या में कांवड़िये हरिद्वार में गंगा से पवित्र जल लेकर विभिन्न स्थानों पर महादेव को अर्पित करते हैं.

पिछले साल कांवड़ियों की संख्या 2 करोड़ आंकी गयी थी. प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार इस बार यह संख्या ज्यादा हो जाएगी. प्रशासन की माने तो इस कावंड यात्रा ने पिछले 15 सालो में अप्रत्याशित वृद्धि की है.

Courtesy: TwO Circles
 

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