“सरदार सरोवर बांध पर मोदी जी का बयान, भ्रम के सिवा कुछ नहीं” - मेधा पाटकर

Published on: June 28, 2019
प्रधानमंत्री मोदी जी के सरदार सरोवर बांध पर दिए गए बयान का नर्मदा घाटी में कड़ा विरोध किया जा रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े सदस्यों का कहना है कि मोदी जी का यह बयान झूठा है, ज़मीनी हालात प्रधानमंत्री के दावों से बिल्कुल अलग हैं। आंदोलन का मुख्य रूप से नेतृत्व कर रहीं, मेधा पाटकर का कहना है कि, ‘सरदार सरोवर बाँध से किसानों की खेती के लिये और, कच्छ, सौराष्ट्र व राजस्थान के सूखे इलाके में पीने का पानी पहुंचाने के लिये बनाया गया था। लेकिन किसानों के बदले 481 निजी कंपनियों को पानी दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी दावा किया कि इसकी सूची उनके पास है। 

Medha patkar

प्रधानमंत्री एक ओर सरदार सरोवर बांध का जिक्र कर अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, मेधा पाटकर का कहना है कि, गुजरात सरकार और केंद्र सरकार चाहती है कि सरदार सरोवर बांध में 139 मीटर तक जो पानी भरना है, उसके लिए मध्यप्रदेश से पानी छोड़ा जाए। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को बांध से सिर्फ बिजली का ही लाभ मिलना है और जितनी बिजली का उत्पादन होगा उसका 57 प्रतिशत मध्यप्रदेश को और महाराष्ट्र को 27 प्रतिशत को दिया जाएगा। परन्तु, आज तक इन राज्यों को न अपेक्षित बिजली मिल सकी और न ही हजारो विस्थापितों को पुनः स्थापित किया गया है। मेधा पाटकर ने तो मोदी जी पर तंज कसते हुए यह भी कहा कि ‘मोदी जी भले ही गुजरात का सपना माथे पर चढ़ाए हैं, लेकिन वह पूरा नहीं कर पाएंगे। ’



गौरतलब है कि, संसद में कुछ दिनों पहले मोदी जी ने कहा था कि उनकी सरकार द्वारा सरदार सरोवर बांध बनाने से चार करोड़ लोगों को पानी मिल रहा है। उन्होने कहा कि “प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल के पहले 15 दिनों में ही सरदार सरोवर बांध का काम उनकी सरकार ने करवा दिया था। जिसके कारण आज करीब चार करोड़ लोगों सहित सात महानगरों और 9000 गांवों को पीने का शुद्ध पानी मिल रहा है। ” इस पर मेधा पाटकर कहती हैं कि ‘किसानों और अन्य लोगों को पानी दिलाने के स्थान पर आज 481 कंपनियों को पानी दिया जा रहा है। ” लोगों की सुविधा के लिए बिजली उत्पादन में इज़ाफा करने से जुड़े सरकार के दावों पर मेधा पाटकर ने कहा कि, ‘हमारे हाथ में जो सूचीयाँ मिली है उनके आंकड़े बताते हैं कि इस साल 2019 में जनवरी से मई महीने तक मात्र 223 मीलियन यूनिट बिजली बनी है, जो 15 सालों में सबसे कम है। जबकि हकीकत में मध्यप्रदेश के पास बिजली उत्पादन पर्याप्त है । साथ ही, गुजरात सरकार भी सरोवर बांध से बिजली बनाने के स्थान पर निजी कंपनियों से बिजली खरीद रही है, क्योंकि उनको सिर्फ कंपनियों के लिये पानी चाहिए और इसी कारण से कच्छ और सौराष्ट्र के किसान भी आक्रोशित हैं। 

प्रधानमंत्री के झूठे दावों से आहत मेधा पाटकर ने कहा कि, ‘प्रधानमंत्री मोदी जी उन्हीं किसानों के बारे में कहते हैं कि, कुछ लोग सरदार सरोवर बांध के संबंध में भ्रम फैला रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे खुद ही लाभों का भ्रम फैला रहे हैं । आकड़ों का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘वर्ष 2014 में 2,019 मीलियन यूनिट बिजली बनी, वर्ष 2015 में 2,149 मीलियन यूनिट, वर्ष 2016 में 3,200 मीलियन यूनिट, तो फिर वर्ष 2017 में बांध का 17 मीटर्स उंचाई का गेट बंद होने के बाद भी बिजली उत्पादन कम कैसे हो गया?’ मेधा पाटकर ने जलवायु परिवर्तन के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि ‘मोदी जी जानते हैं कि, ‘यह आज के विकास की गलत अवधारणा का ही नतीजा है। जिसकी जिम्मेदार राज्य की सरकारें भी हैं। ’

बांध निर्माण में विस्थापित परिवारों का जिक्र करते हुए, मेधा पाटकर ने कहा कि “डूब क्षेत्र के केवल धार जिले के 24 गांवों में 6000 परिवार रहते हैं, लेकिन कुछ अधिकारी भ्रमित करने के लिए पूरे डूब क्षेत्र में 6000 परिवार के होने का जिक्र करते हैं। जबकि पूरे डूब क्षेत्र में तकरीबन 30,000 परिवार निवासरत हैं और जो 16,000 परिवारों को डूब से विस्थापित किया गया है, वह पूरी तरह से अनुचित है। जिसे वर्ष 2010 में केंद्र के विशेषज्ञों की कमेटी ने नकार दिया था। ” नर्मदा घाटी की दुर्दशा पर चिंता जताते हुए, उन्होंने आगे कहा कि “आज भी घाटी के लोगों के साथ हज़ारों मवेशी गाँवों में भरे पड़ें हैं। पुनर्वास नीति के कानूनों का पालन अब भी बाकी है और बिना पुनर्वास के न तो गाँव खाली हो सकते हैं, न ही बांध में पानी भरा जा सकता हैं । 

लोगों की स्थिति को सरकार द्वारा नज़रअंदाज़ किए जाने पर मेधा पाटकर ने नाराज़गी जताई है। केंद्र सरकार को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा कि, ‘हम केंद्र सरकार को चुनौती देते हैं कि बिना पुनर्वास के हम बांध में पानी नहीं भरने देंगे । केंद्र शासन निष्पक्ष भूमिका अदा करे अन्यथा आदिवासी विरोधी और विस्थापित विरोधी साबित हो जाएंगे। लोगों के विस्थापन को लेकर एक महिला (सुनीता) ने कहा कि, ‘आज गाँवों से स्कूलों को पुनर्वास स्थल पर स्थांतरित करने से हजारों बच्चों का स्कूल जाना बंद हो गया है। एक तरफ सरकार ‘सर्व शिक्षा अभियान’. ‘स्कूल चले हम’ जैसे अभियानों में करोड़ो रूपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर नर्मदा घाटी के बच्चों को उनके ‘शिक्षा के अधिकार’ से इस तरह से वंचित किया जा रहा है। ’

रेत खनन की समस्या का जिक्र करते हुए, मेधा पाटकर ने बताया कि ‘जैसे रेत खनन से यमुना नदी खत्म सी हुई है, आज यही स्थिति नर्मदा की है। आज सरदार सरोवर बांध के जलग्रहण क्षेत्र में 2015 से ही जबलपुर उच्च न्यायालय और हरित पर्यावरण न्यायाधिकरण ने रोक लगा रखी है। लेकिन आज भी गैरकानूनी ढंग से रेत खनन जारी है। साथ ही, कहा कि ‘छोटा बड़दा में रेत खनन के दौरान हुई 5 मजदूरों की मौत के अलावा सेकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है, और नर्मदा मैय्या की तो हत्या की जा रही है। ’ 

मध्यप्रदेश सरकार का समर्थन करते हुए, मेधा पाटकर ने कहा कि, ‘मध्यप्रदेश सरकार ने जो भूमिका मुख्य रूप से ली है, उसपर उन्हें अडिग रहना चाहिए । हम मध्यप्रदेश की सरकार का स्वागत करते हैं कि उन्होंने हमारे इस आंदोलन में हमारा साथ दिया। उनकी सरकार का मुख्यमंत्री हो या मंत्री हो, सभी अधिकारी, कलेक्टरों ने हमसे बातचीत की। ’ मेधा पाटकर ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि, पूर्व की सरकार ने बीते 15 सालों में कभी कोई संवाद नहीं किया। 

आपको बता दें, कि पुनर्वास स्थल पर आज तक सर्वोच्च न्यायलय के 8 फरवरी 2017 के आदेश अनुसार कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है। आज भी नालियों का निर्माण, पानी निकासी की व्यवस्था, पीने के पानी की व्यवस्था नहीं की गई है, और टिन-शेड भी नाम मात्र के लिए बनाए गए हैं। । मेधा पाटकर ने मध्यप्रदेश सरकार से अपील की है कि ‘आज मध्यप्रदेश की राज्य सरकार को समझना चाहिए कि नर्मदा मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है, जो पिछली सरकार ने किया वह इस सरकार ने नहीं दोहराना चाहिए।’
 

बाकी ख़बरें