स्टैच्यू ऑफ यूनिटीः मीडिया ने क्यों नजरअंदाज किया 75,000 आदिवासियों का विरोध प्रदर्शन?

Written by KUMAR SAMEER | Published on: November 5, 2018
बीते 31 अक्टूबर 2018 को गुजरात में बड़े ही तामझाम के साथ देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशालकाय प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस प्रतिमा को ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की संज्ञा दी गयी है और यह अमेरिका के ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ से दोगुनी उंची है। जब एक अत्यंत ही भव्य समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरदार पटेल की मूर्ति का अनावरण कर रहे थे, उसी समय 72 गांवों के आदिवासी शोक मना रहे थे। ये वे आदिवासी थे जिनकी जमीन पर सरदार पटेल की प्रतिमा स्थापित की गयी है।



कथित तौर पर मुख्यधारा की मीडिया ने सरदार पटेल की विशालकाय प्रतिमा और इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ के पुल बांध दिये। परंतु मीडिया को हजारों आदिवासियों का विरोध न तो दिखायी दिया और न ही सुनाई। पूरे दिन मीडिया के जरिए यह बताया जा रहा था कि सरदार पटेल का स्टेचू अमेरिका में स्थित ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ से करीब दो गुनी ऊंची है और इसे बनाने में 70,000 टन से ज़्यादा सीमेंट, 18,500 टन री-एंफोंर्समेंट स्टील, 6,000 टन स्टील और 1,700 मीट्रिक टन कांसा का इस्तेमाल किया गया है।

दूसरी ओर प्रदर्शनकारी आदिवासी चिल्ला—चिल्लाकर कह रहे थे कि सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने के लिए उनके जिन 72 गांवों को उजाड़ा गया है, अब तक सिवाय वादों के उनको कुछ भी राहत या मदद सरकार की तरफ से नहीं दी गई है। इतना ही नहीं नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर डैम के विस्थापितों को भी आज तक कोई सहायता नही मिली है।

बताते चलें कि 31 अक्टूबर को मूर्ति अनावरण की सुबह से ही आदिवासी बड़ी तादाद में सड़कों पर उतरने शुरू हो गए थे। सावली जिले में जहां पूरा बाजार आदिवासियों के समर्थन में बंद रहा वहीं सतपुड़ा जिले में भी जनता ने स्वत: स्फूर्त बंद आयोजित किया था। राजपिपला में तो स्टेचू के सामने वाली पहाड़ी पर एक आदिवासी कार्यकर्ता ने सुरक्षा घेरे को तोड़कर मोदी को विरोधस्वरूप काले झंडे तक दिखाए। इतना ही नहीं देहगाम, अलीपुर, धरमपुर, वलसाड सहित सारे मुख्य जिलों और तहसीलों की जनता ने भी बंद और विरोध मार्च आयोजित किए, लेकिन मीडिया ने इन खबरों को तवज्जो नहीं दी।

विरोध स्वरूप इस दौरान तकरीबन 75 हजार आदिवासियों के घरों में चूल्हा नहीं जला। यह भी खबर मीडिया में नहीं आई जबकि वहां आदिवासी नवयुवक, वृद्ध, महिलायें और बच्चे सभी ऐसे शोक मना रहे थे जैसे उनके यहां किसी की मौत हुई हो। शांतिपूर्ण तरीके से बड़े पैमाने पर विरोध किया गया और जिसे जहां मौका मिला उसने विरोधस्वरूप काले झंडे दिखा अपना रोष व्यक्त किया। शांतिपूर्ण तरीके से रोष व्यक्त करने का आदिवासियों ने अनोखा नमूना भी पेश किया जब आदिवासियों ने आसमान में काले गुब्बारे उड़ाये। मीडिया या किसी और संगठन की इस पर भी नजर नहीं गई कि ऐतिहासिक कार्यक्रम के दौरान आखिर कहां से आसमान में काले-काले गुब्बारे छोड़े जा रहे हैं।



इतना ही नहीं आदिवासियों ने नरेंद्र मोदी का विरोध करने के लिए अपने खून से लिखकर ‘गो बैक’ के नारे लगाए।

हद तो तब हो गयी जब शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे आदिवासियों को गिरफ्तार किया गया। अभी भी उन्हें गिरफ्तार करने का सिलसिला जारी है।

ऐसा नहीं है कि अनावरण वाले दिन आदिवासियों के विरोध से पुलिस प्रशासन अंजान था। यही वजह रही कि अनावरण वाले दिन भारी संख्या में पुलिस सुरक्षा बल तैनात की गयी थी और पूरे इलाके को सेना छावनी में तब्दील कर दिया गया था। पुलिस प्रशासन को संभवत: इस बात का खौफ था कि कहीं आदिवासियों का विरोध प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में खलल न पैदा कर दे। आदिवासी संगठनों द्वारा 29 अक्टूबर को ही विरोध किये जाने के बाबत सूचना स्थानीय अधिकारियों को दे दी थी। वे अपने मुआवजे की गुहार लगा रहे थे लेकिन प्रशासन विशालकाय प्रतिमा के अनावरण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगवानी में जुटा रहा।



आदिवासियों की मांगों के लिए संघर्ष कर रहे तुषार परमार के मुताबिक “अत्याधुनिक हथियारों से लैस सुरक्षाकर्मियों के आगे निहत्थे आदिवासी प्रदर्शन करने के लिए दृढ़ थे। सौ से भी ज्यादा संगठनों की अगुवाई में किए जा रहे विरोध की तैयारियों को देखते हुए सरकार को मूर्ति अनावरण के 10 दस दिन पहले से ही राजपिपला और नर्मदा जिलों में धारा 144 लागू करनी पड़ी। इस दौरान आदिवासियों से सभा और रैली करने जैसे अधिकार भी छीन लिए गए। 30 अक्टूबर की रात को तो किसी भी आशंका और विरोध से बचने के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा सरदार पटेल की प्रतिमा स्थल की तरफ जाने वाले हर रास्ते को न केवल ब्लॉक कर दिया गया, बल्कि बड़ी संख्या में आदिवासियों सामाजिक कार्यकर्ताओं—नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। यह दौर अभी भी जारी है। मगर इस खबर को किसी मीडिया संस्थान ने खबर नहीं समझा। ये गिरफ्तारियां इसलिए की गईं ताकि सरकार आदिवासियों को भ्रमित और हतोत्साहित कर सके। मगर इसमें वह सफल नहीं हो पाई।”

साभार- फॉरवर्ड प्रेस

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