आज लाखो करोड़ो सिर्फ कपड़ो पर खर्च कर देने वाले प्रधानमंत्री, जो अपना उतारा हुआ सूट दुबारा भी नही पहनते ऐसे मोदी जी आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति का अनावरण कर रहे है ऐसे अवसर पर सरदार पटेल का एक संस्मरण याद आया.
महान स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी ने अपनी पुस्तक में सरदार पटेल का एक संस्मरण लिखा है जो हर भारतीय के पढ़ने योग्य है......
'एक बार मणिबेन कुछ दवाई पिला रही थी. मेरे ( महावीर भाई ) के आने-जाने पर तो कोई रोक-टोक थी नहीं, मैंने कमरे में दाखिल होते ही देखा कि मणिबेन की साड़ी में एक बहुत बड़ी थेगली (पैवंद) लगी है.
मैंने जोर से कहा, 'मणिबेन, तुम तो अपने आप को बहुत बड़ा आदमी मानती हो, तुम एक ऐसे बाप की बेटी हो कि जिसने साल-भर में इतना बड़ा चक्रवर्ती अखंड राज्य स्थापित कर दिया है कि जितना न रामचंद्र का था, न कृष्ण का, न अशोक का था, न अकबर का और अंगरेज का. ऐसे बड़े राजों-महाराजों के सरदार की बेटी होकर तुम्हें शर्म नहीं आती?
बहुत मुंह बना कर और बिगड़ कर मणि ने कहा, 'शर्म आये उनको, जो झूठ बोलते और बेईमानी करते हैं, हमको क्यों शर्म आये?'
मैंने कहा, 'हमारे देहरादून शहर में निकल जाओ, तो लोग तुम्हारे हाथ में दो पैसे या इकन्नी रख देंगे, यह समझ कर कि यह एक भिखारिन जा रही है. तुम्हें शर्म नहीं आती कि थेगली लगी धोती पहनती हो!'......मैं तो हंसी कर रहा था.
सरदार भी खूब हंसे और कहा, 'बाजार में तो बहुत लोग फिरते हैं. एक-एक आना करके भी शाम तक बहुत रुपया इकट्ठा कर लेगी.
पर मैं तो शर्म से डूब मरा जब सुशीला नायर ने कहा, 'त्यागी जी, किससे बात कर रहे हो? मणिबेन दिन-भर सरदार साहब की खड़ी सेवा करती है. फिर डायरी लिखती है और फिर नियम से चरखा कातती है. जो सूत बनता है, उसी से सरदार के कुर्ते-धोती बनते हैं. आपकी तरह सरदार साहब कपड़ा खद्दर भंडार से थोड़े ही खरीदते हैं. जब सरदार साहब के धोती-कुर्ते फट जाते हैं, तब उन्हीं को काट-सीकर मणिबेन अपनी साड़ी-कुर्ती बनाती हैं.'
'मैं उस देवी के सामने अवाक खड़ा रह गया. कितनी पवित्रा आत्मा है, मणिबेन. उनके पैर छूने से हम जैसे पापी पवित्र हो सकते हैं.
फिर सरदार बोल उठे, 'गरीब आदमी की लड़की है, अच्छे कपड़े कहां से लाये? उसका बाप कुछ कमाता थोड़े ही है. सरदार ने अपने चश्मे का केस दिखाया. शायद बीस बरस पुराना था. इसी तरह तीसियों बरस पुरानी घड़ी और कमानी का चश्मा देखा, जिसके दूसरी ओर धागा बंधा था. कैसी पवित्र आत्मा थी! कैसा नेता था! उसकी त्याग-तपस्या की कमाई खा रहे हैं, हम सब नयी-नयी घड़ियां बांधनेवाला देशभक्त!
महावीर त्यागी आखिर में लिखते है ....'आज की राजनीति में हम इन अभूतपूर्व सात्विक व ईमानदार गुणों से संपन्न सरदार पटेल को याद करें. महज रस्म के तौर पर नहीं. उनके गुणों को जीवन में उतारें, तो देश का भला होगा'
ऐसे व्यक्ति की सच्ची श्रद्धांजलि कम से कम प्रतिमा बनाकर तो नही दी जा सकती.
पुनश्च: 'है बहारें बाग रोज दुनिया चंद' सरदार पटेल को यह गीत बहुत पसंद था, एकांत समय मे यह गीत सुना करते थे.
महान स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी ने अपनी पुस्तक में सरदार पटेल का एक संस्मरण लिखा है जो हर भारतीय के पढ़ने योग्य है......
'एक बार मणिबेन कुछ दवाई पिला रही थी. मेरे ( महावीर भाई ) के आने-जाने पर तो कोई रोक-टोक थी नहीं, मैंने कमरे में दाखिल होते ही देखा कि मणिबेन की साड़ी में एक बहुत बड़ी थेगली (पैवंद) लगी है.
मैंने जोर से कहा, 'मणिबेन, तुम तो अपने आप को बहुत बड़ा आदमी मानती हो, तुम एक ऐसे बाप की बेटी हो कि जिसने साल-भर में इतना बड़ा चक्रवर्ती अखंड राज्य स्थापित कर दिया है कि जितना न रामचंद्र का था, न कृष्ण का, न अशोक का था, न अकबर का और अंगरेज का. ऐसे बड़े राजों-महाराजों के सरदार की बेटी होकर तुम्हें शर्म नहीं आती?
बहुत मुंह बना कर और बिगड़ कर मणि ने कहा, 'शर्म आये उनको, जो झूठ बोलते और बेईमानी करते हैं, हमको क्यों शर्म आये?'
मैंने कहा, 'हमारे देहरादून शहर में निकल जाओ, तो लोग तुम्हारे हाथ में दो पैसे या इकन्नी रख देंगे, यह समझ कर कि यह एक भिखारिन जा रही है. तुम्हें शर्म नहीं आती कि थेगली लगी धोती पहनती हो!'......मैं तो हंसी कर रहा था.
सरदार भी खूब हंसे और कहा, 'बाजार में तो बहुत लोग फिरते हैं. एक-एक आना करके भी शाम तक बहुत रुपया इकट्ठा कर लेगी.
पर मैं तो शर्म से डूब मरा जब सुशीला नायर ने कहा, 'त्यागी जी, किससे बात कर रहे हो? मणिबेन दिन-भर सरदार साहब की खड़ी सेवा करती है. फिर डायरी लिखती है और फिर नियम से चरखा कातती है. जो सूत बनता है, उसी से सरदार के कुर्ते-धोती बनते हैं. आपकी तरह सरदार साहब कपड़ा खद्दर भंडार से थोड़े ही खरीदते हैं. जब सरदार साहब के धोती-कुर्ते फट जाते हैं, तब उन्हीं को काट-सीकर मणिबेन अपनी साड़ी-कुर्ती बनाती हैं.'
'मैं उस देवी के सामने अवाक खड़ा रह गया. कितनी पवित्रा आत्मा है, मणिबेन. उनके पैर छूने से हम जैसे पापी पवित्र हो सकते हैं.
फिर सरदार बोल उठे, 'गरीब आदमी की लड़की है, अच्छे कपड़े कहां से लाये? उसका बाप कुछ कमाता थोड़े ही है. सरदार ने अपने चश्मे का केस दिखाया. शायद बीस बरस पुराना था. इसी तरह तीसियों बरस पुरानी घड़ी और कमानी का चश्मा देखा, जिसके दूसरी ओर धागा बंधा था. कैसी पवित्र आत्मा थी! कैसा नेता था! उसकी त्याग-तपस्या की कमाई खा रहे हैं, हम सब नयी-नयी घड़ियां बांधनेवाला देशभक्त!
महावीर त्यागी आखिर में लिखते है ....'आज की राजनीति में हम इन अभूतपूर्व सात्विक व ईमानदार गुणों से संपन्न सरदार पटेल को याद करें. महज रस्म के तौर पर नहीं. उनके गुणों को जीवन में उतारें, तो देश का भला होगा'
ऐसे व्यक्ति की सच्ची श्रद्धांजलि कम से कम प्रतिमा बनाकर तो नही दी जा सकती.
पुनश्च: 'है बहारें बाग रोज दुनिया चंद' सरदार पटेल को यह गीत बहुत पसंद था, एकांत समय मे यह गीत सुना करते थे.