बड़वानी। सरदार सरोवर बांध को इस साल 138 मीटर तक भरे जाने को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन (नबआं) हरकत में आया है। इस मुद्दे को लेकर शुक्रवार को आंदोलन कार्यालय पर नबआं नेत्री मेधा पाटकर ने प्रेसवार्ता में कहा कि संपूर्ण पुनर्वास तक सरदार सरोवर बांध में पूरा पानी भरने का विरोध करता है।
उन्होंने कहा कि मप्र के निमाड़ के प्रभावित मूल गांवों में आज भी लोग निवासरत हैं। इनका संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ है। ऐसे में इनको सभी लाभ देते हुए बसाए बिना डुबोना असंभव है। उन्होंने कहा कि राजस्व आयुक्त सरदार सरोवर में पानी भरने का निर्णय नहीं ले सकते हैं। चेतावनी दी गई कि यदि पूर्ण क्षमता तक पानी भरा गया तो नबआं बड़ा आदांलन करेगा।
मेधा पाटकर ने कहा कि डुबोने का निर्णय मप्र की सहमति के बिना नहीं लिया जा सकता है। मप्र के बांधों से पानी सरदार सरोवर में देना है। सरदार सरोवर बांध को पूरा भरना है तो मप्र के बांधों से पानी छोड़ना पड़ेगा। शिवराज सरकार बड़ी-बड़ी पाइप लाइन योजनाओं के टेंडर खोलकर गई है। इसमें से एक सेकंड में 15 हजार लीटर पानी निकालकर छह बड़ी नदियों में भरने की बात है। बांध को 138 मीटर तक भरना आज गैर कानूनी व अन्याय पूर्ण होगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के तमाम फै सलों का उल्लंघन होगा।
मप्र सरकार में गुजरात के सामने सवाल खड़े किए हैं, उनका हमने स्वागत किया है। यह सवाल है कि मप्र को जो बिजली मिलनी थी, नहीं मिल रही है। मप्र को जो जंगल डूब में है, उसकी भरपाई नहीं मिली है और पुनर्वास के लिए करोड़ों रुपए मिलना बाकी है। साथ ही 30 हजार परिवारों का पुनर्वास बाकी है। ऐसे में मप्र बांध में पूरा पानी भरने के लिए कै से सहमति दे सकता है।
एक परिवार के दम पर चल रही नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी
नबआं नेत्री ने आरोप लगाए कि इन मुद्दे को लेकर जिस अथॉरिटी ने निर्णय लेना चाहिए उस नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी पर मप्र सरकार ने कड़ा सवाल खड़ा करना चाहिए, क्योंकि नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी आज के वल एक परिवार के दम पर चल रही हैं। वो हैं एमके सिंहा परिवार। एमके सिंहा वहां आज एक्जिक्यूटिव मेंबर हैं और उनकी पत्नी सुमन सिंहा के हाथ में कई पद हैं। इनमें मेंबर पावर, मेंबर सिविल, मेंबर एनवायरमेंटर एंड रिएलेटेशन और एनसीए की सेक्रेटरी भी वहीं हैं।
इतनी बड़ी नर्मदा के पानी का नियोजन, विस्थापितों का पुनर्वास, अंतरराज्यों के विवादों का निपटारा और लाभों व पूंजी निवेश का आवंटन ये सब इस प्रकार से एक परिवार के ऊपर छोड़ सकते हैं क्या? आज की स्थिति में एनसीए कि तना पानी भरना है कि तना छोड़ना है, यह निर्णय ही नहीं ले सकती है। ऐसे में पुनर्वास पूरा होने तक पानी भरने का विरोध करते हैं। वहीं आंदोलन ने इंदौर कमिश्नर आकाश त्रिपाठी के उस बयान पर ऐतराज जताया कि सरदार सरोवर बांध में कहां तक पानी भर सकता है, कानून का पालन करते हुए इस पर निर्णय ले ही नहीं सकते। वे निर्णायक अथॉरिटी नहीं है।
उन्होंने कहा कि मप्र के निमाड़ के प्रभावित मूल गांवों में आज भी लोग निवासरत हैं। इनका संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ है। ऐसे में इनको सभी लाभ देते हुए बसाए बिना डुबोना असंभव है। उन्होंने कहा कि राजस्व आयुक्त सरदार सरोवर में पानी भरने का निर्णय नहीं ले सकते हैं। चेतावनी दी गई कि यदि पूर्ण क्षमता तक पानी भरा गया तो नबआं बड़ा आदांलन करेगा।
मेधा पाटकर ने कहा कि डुबोने का निर्णय मप्र की सहमति के बिना नहीं लिया जा सकता है। मप्र के बांधों से पानी सरदार सरोवर में देना है। सरदार सरोवर बांध को पूरा भरना है तो मप्र के बांधों से पानी छोड़ना पड़ेगा। शिवराज सरकार बड़ी-बड़ी पाइप लाइन योजनाओं के टेंडर खोलकर गई है। इसमें से एक सेकंड में 15 हजार लीटर पानी निकालकर छह बड़ी नदियों में भरने की बात है। बांध को 138 मीटर तक भरना आज गैर कानूनी व अन्याय पूर्ण होगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के तमाम फै सलों का उल्लंघन होगा।
मप्र सरकार में गुजरात के सामने सवाल खड़े किए हैं, उनका हमने स्वागत किया है। यह सवाल है कि मप्र को जो बिजली मिलनी थी, नहीं मिल रही है। मप्र को जो जंगल डूब में है, उसकी भरपाई नहीं मिली है और पुनर्वास के लिए करोड़ों रुपए मिलना बाकी है। साथ ही 30 हजार परिवारों का पुनर्वास बाकी है। ऐसे में मप्र बांध में पूरा पानी भरने के लिए कै से सहमति दे सकता है।
एक परिवार के दम पर चल रही नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी
नबआं नेत्री ने आरोप लगाए कि इन मुद्दे को लेकर जिस अथॉरिटी ने निर्णय लेना चाहिए उस नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी पर मप्र सरकार ने कड़ा सवाल खड़ा करना चाहिए, क्योंकि नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी आज के वल एक परिवार के दम पर चल रही हैं। वो हैं एमके सिंहा परिवार। एमके सिंहा वहां आज एक्जिक्यूटिव मेंबर हैं और उनकी पत्नी सुमन सिंहा के हाथ में कई पद हैं। इनमें मेंबर पावर, मेंबर सिविल, मेंबर एनवायरमेंटर एंड रिएलेटेशन और एनसीए की सेक्रेटरी भी वहीं हैं।
इतनी बड़ी नर्मदा के पानी का नियोजन, विस्थापितों का पुनर्वास, अंतरराज्यों के विवादों का निपटारा और लाभों व पूंजी निवेश का आवंटन ये सब इस प्रकार से एक परिवार के ऊपर छोड़ सकते हैं क्या? आज की स्थिति में एनसीए कि तना पानी भरना है कि तना छोड़ना है, यह निर्णय ही नहीं ले सकती है। ऐसे में पुनर्वास पूरा होने तक पानी भरने का विरोध करते हैं। वहीं आंदोलन ने इंदौर कमिश्नर आकाश त्रिपाठी के उस बयान पर ऐतराज जताया कि सरदार सरोवर बांध में कहां तक पानी भर सकता है, कानून का पालन करते हुए इस पर निर्णय ले ही नहीं सकते। वे निर्णायक अथॉरिटी नहीं है।