दलितों को 'अलग कब्रिस्तान' आवंटित कर खुद ही जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दे रही सरकारः मद्रास हाईकोर्ट

Written by sabrang india | Published on: August 27, 2019
दलितों के लिए अलग कब्रिस्तान आवंटित किए जाने की परंपरा की मद्रास हाईकोर्ट ने आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि सरकार खुद ही जाति के आधार पर विभाजन को बढ़ावा दे रही है। कोर्ट ने तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में दलितों के श्मशान घाट जाने वाले मार्ग  को बाधित किए जाने के मामले संज्ञान में लिया। 



बता दें कि श्मशान घाट जाने वाले रास्ते को बाधित किए जाने के चलते समुदाय के सदस्य अपने सगे-संबंधियों के शव को एक नदी पर स्थित पुल से नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उच्च जाति के लोग कथित तौर पर उन्हें श्मशान घाट तक जाने का रास्ता नहीं दे रहे हैं। उस रास्ते पर कथित तौर अतिक्रमण किया गया है।

जस्टिस एस. मणिकुमार और जस्टिस सुब्रहमण्यम प्रसाद की पीठ ने अपनी मौखिक टिप्पणी में इस बात का जिक्र किया कि सभी लोग चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के हों, उन्हें सभी सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश की इजाजत है।

द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक हाईकोर्ट ने कहा कि ‘आदि द्रविड़ों’ (अनुसूचित जाति) को अलग कब्रिस्तान आवंटित कर सरकार खुद ही ऐसी परंपरा को बढ़ावा देती दिख रही है। पीठ ने यह भी पूछा कि क्यों कुछ स्कूलों को आदि द्रविड़ों के लिए अलग स्कूल कहा जाना जारी है, जबकि राज्य सरकार ने सड़कों से जाति के नाम हटा दिए हैं।

इसके बाद अदालत ने वेल्लोर जिला कलेक्टर और वनियाम्बडी तहसीलदार को कब्रिस्तान के आसपास ग्रामीणों द्वारा इस्तेमाल की गई भूमि का ब्योरा सौंपने का निर्देश दिया।

खबरों के मुताबिक, चेन्नई से 213 किमी। पश्चिम की ओर वेल्लोर जिले के वनियाम्बडी कस्बे के पास स्थित नारायणपुरम गांव के दलित समुदाय के लोग अपने सगे-संबंधियों के शवों को नदी पर स्थित पुल से नीचे गिराने के लिए मजबूर हैं क्योंकि नदी तट पर स्थित कब्रिस्तान तक जाने का रास्ता दो लोगों के कथित अतिक्रमण के चलते बाधित हो गया है।

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