रोहित वेमुला की बरसी पर विशेष: एक पत्र जिसने दुनिया को झकझोर दिया

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 17, 2024
17 जनवरी 2022 को पहली बार प्रकाशित


हैदराबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या को आज सात साल हो गए हैं। 26 वर्षीय दलित छात्र रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को युनिवर्सिटी के होस्टल के एक कमरे में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी। उनकी आत्महत्या का मामला आज भी सुर्खियों में है। रोहित युनिवर्सिटी में अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए) से जुड़े थे। उसकी लिखी आखिरी चिट्ठी समाज में फैले जातिवाद के मुंह पर एक करारा तमाचा है। रोहित के लिखे सुसाइड नोट ने दुनिया के संवेदनशील व्यक्तियों को झकझोर दिया है। भारतीय समाज में एक दलित के साथ होने वाला पक्षपातपूर्ण रवैया किस हद तक किसी को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर सकता है, वह वजह वेमुला की खुदकुशी से सामने आती है। चिट्ठी में रोहित ने लिखा ‘एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है। एक वोट तक। आदमी महज़ एक आंकड़ा बन कर रह गया है। अब आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका जाता।’ 



‘साइंस फिक्शन’ लिखने की चाहत रखने वाला छात्र जब अपने सुसाइड नोट में हिला देने वाली पंक्तियां लिख जाता है तो लगता है कि शायद हमने एक अच्छे इंसान के साथ-साथ भविष्य के एक युवा क्रांतिकारी लेखक को भी खो दिया। क्या विडंबना है कि सामजिक अध्ययन में पीएचडी कर रहा रोहित वेमुला जाते-जाते सिद्ध कर गया कि एक समाज के रूप में हम बुरी तरह फेल हो गए हैं।

17 जनवरी, 2016 को सुसाइड करने वाले वेमुला ने ‘एएसए’ (अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन) का वही, बैनर फांसी के फंदे के रूप में इस्तेमाल किया जिसका वह सदस्य था और जिसके चक्कर में उसे कॉलेज हॉस्टल से निकाला गया था।

जानिए इस पूरे विवाद को
सबसे पहले रोहित व उसके ‘एएसए’ के साथियों का ‘एबीवीपी’ (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के साथ विवाद हुआ। ‘एबीवीपी’ के एक सदस्य ‘एएसए’ के सदस्यों पर पिटाई के आरोप लगाते हुए हॉस्पिटल में भर्ती हो गए। हालांकि बाद में पता चला कि मामला फर्जी था और उनके शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं हैं, जिनसे सिद्ध हो सके कि उनकी पिटाई हुई है। इस सबके चलते रोहित सहित ‘एएसए’ के 5 लोगों को हॉस्टल से बाहर निकाल दिया, लेकिन दूसरी तरफ ‘एबीवीपी’ के सदस्यों को वार्निंग देकर छोड़ दिया गया। इन 5 लोगों को न केवल हॉस्टल से निकाला बल्कि लाइब्रेरी, मेस जैसी कॉमन जगहों पर भी इन पांचों के आने-जाने पर प्रतिबंध लग गया। कुछ दिनों तक इन पांचों ने हॉस्टल कैंपस के भीतर भूख हड़ताल की और इसी बीच रोहित ने आत्महत्या कर ली। इसके बाद देश भर में रोहित वेमुला का सुसाइड नोट वायरल हो गया और विरोध प्रदर्शन होने लगे।

रोहित वेमुला द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट ने जहां दुनियाभर के संवेदनशील व्यक्तियों को झकझोर कर रख दिया वहीं रोहित अपने शब्दों के जरिए अमर हो गया। तब रोहित की मौत से क्षुब्ध और स्तब्ध छात्रों ने धरना और विरोध प्रदर्शन को जारी रखने का संकल्प लिया। पहला सहज और गुस्से से भरा विरोध प्रदर्शन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में हुआ था। रविवार 17 जनवरी 2016 को ही देर रात, करीब 9.30 बजे जेएनयू में प्रदर्शन हुआ। अगला विरोध प्रदर्शन 18 जनवरी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और उसकी मंत्री स्मृति ईरानी के दफ्तर के बाहर दोपहर 2 बजे हुआ। विरोध करने वाले छात्रों के अनुसार, ईरानी ने और सत्ताधारी पार्टी के एक सांसद द्वारा लिखे गए एक पत्र के अनुसार ही मामले में दखल दिया मामले में दखल दिया और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्रों का ही पक्ष लिया।  

अंबेडकर छात्र संघ (एएसए) से संबंधित छात्र, जिसमें रोहित वेमुला भी शामिल थे, सांप्रदायिकता सहित सामाजिक न्याय से संबंधित मुद्दों पर प्रभावी बहस को आगे बढ़ा रहे थे कि यह अभिव्यक्ति की आजादी की लड़ाई है। अंबेडकर छात्र संघ (एएसए) ने एक साल पहले (2015में) परिसर में 'मुजफ्फरनगर बाकी है' को प्रदर्शित करने का निर्णय लिया। एबीवीपी ने स्क्रीनिंग को बाधित करने की असफल कोशिश की। भगवा संगठन ने फेसबुक और सोशल मीडिया पर एएसए से जुड़े छात्रों को गाली देना शुरू कर दिया। नफरती प्रचार और व्यापक विरोध ने छात्रों को लिखित माफी मांगने के लिए मजबूर किया। स्थानीय भाजपा व आरएसएस समर्थक एबीवीपी के साथ जुड़ गए और वीसी को मनगढ़ंत आरोपों पर एएसए नेताओं को निष्कासित करने के लिए मजबूर किया, हालांकि, वीसी द्वारा नियुक्त एक समिति ने पहले ही एएसए या उससे जुड़े छात्रों में कोई गलती नहीं पाते हुए एक अनुकूल रिपोर्ट दी थी।

मंत्री ईरानी के कथित हस्तक्षेप का पता सिकंदराबाद के भाजपा सांसद और श्रम और रोजगार राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) को लिखे गए एक पत्र से लगाया जा सकता है, जिसमें एएसए को "जातिवादी, चरमपंथी और राष्ट्र-विरोधी" संगठन कहा गया।

यही नहीं, उन्होंने पत्र में संस्था में बेहतर बदलाव लाने, खासकर संघ परिवार की वैचारिक दृष्टि को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के नेतृत्व की तारीफ की जिसमें विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आरबी सरना के पहले के फैसले को खारिज करना था, जिन्होंने प्रॉक्टोरियल बोर्ड द्वारा (अगस्त-सितंबर 2015) में लिए गए निर्णय को सही नहीं पाते हुए, कुछ छात्रों के पहले के निलंबन को रद्द कर दिया था। सरना जल्द ही सेवानिवृत्त हो गए, जिसके बाद नवनियुक्त वीसी व भाजपा-संघ के करीबी, अप्पा राव ने मंत्री ईरानी के अनुरूप ही निर्णय लिए।

अपने स्वयं के पांच पीएचडी छात्रों में से एक की मौत से दुखी और अवैध रूप से निलंबित किए गए, एएसए और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) सहित अन्य छात्र संगठनों के छात्रों ने सबरंग इंडिया को बताया कि घटना से वो सभी बहुत दुखी हैं, लेकिन विरोध जारी रखने को लेकर वो दृढ़ संकल्पित हैं।

वेमुला रोहित, उन पांच पीएचडी छात्रों में से एक थे, जिन्हें निष्कासित कर दिया गया था, जो अधिकारियों की मनमानी के विरोध में 4 जनवरी, 2016 की रात से खुले में सो रहे थे। उनके कमरों के दरवाजे अवैध रूप से बंद कर दिए गए थे। सबरंगइंडिया ने 12 जनवरी को भी विरोध पर स्टोरी प्रकाशित की थी। 

आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले का रहने वाला 26 वर्षीय रोहित, पीएचडी द्वितीय वर्ष का छात्र था और कैंपस में दलित छात्रों के अधिकार और न्याय के लिए भी लड़ता रहा था। आत्महत्या से पहले रोहित वेमुला ने एक मार्मिक पत्र छोड़ा था जिसने सभी को झकझोर कर रख दिया।

उनका पत्र इस प्रकार है...

गुड मॉर्निंग,

आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा। मुझ पर नाराज़ मत होना। मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख्याल भी रखा। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। मुझे हमेशा से ख़ुद से ही समस्या रही है। मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं। मैं एक दानव बन गया हूं।

मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था। विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह। लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं।

मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से प्यार था, प्रकृति से प्यार था... लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया और ये नहीं जान पाया कि वो कब के प्रकृति को तलाक़ दे चुके हैं।

हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं। हमारा प्रेम बनावटी है। हमारी मान्यताएं झूठी हैं। हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के ज़रिए। यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों।

एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है। एक वोट तक। आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है। एक वस्तु मात्र। कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया। एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी। हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में।

मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं। पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं। मुझे माफ़ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो। हो सकता है कि मैं ग़लत हूं अब तक दुनिया को समझने में। प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में। ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी। लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था। बेचैन था एक जीवन शुरू करने के लिए।

इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा। मेरा जन्म एक भयंकर हादसा था। मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया। बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला। इस क्षण मैं आहत नहीं हूं। मैं दुखी नहीं हूं। मैं बस ख़ाली हूं। मुझे अपनी भी चिंता नहीं है। ये दयनीय है और यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं। लोग मुझे कायर क़रार देंगे। स्वार्थी भी, मूर्ख भी, जब मैं चला जाऊंगा। मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे।

मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यक़ीन नहीं करता। अगर किसी चीज़ पर मेरा यक़ीन है तो वो ये कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है।

आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फ़ेलोशिप मिलनी बाक़ी है। एक लाख 75 हज़ार रुपए। कृपया ये सुनिश्चित कर दें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए। मुझे राम जी को 40 हज़ार रुपए देने थे। उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे। लेकिन प्लीज़ फ़ेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें।

मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो। लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया। मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं। आप जान जाएं कि मैं मर कर ख़ुश हूं जीने से अधिक।

'छाया से सितारों तक'

उमा अन्ना, ये काम आपके कमरे में करने के लिए माफ़ी चाहता हूं।

आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी। आप सबने मुझे बहुत प्यार किया। सबको भविष्य के लिए शुभकामना।

आख़िरी बार

जय भीम


मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया। ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है। किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से। ये मेरा फ़ैसला है और मैं इसके लिए ज़िम्मेदार हूं। मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए।
 
खास यह भी है कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंबेडकर छात्र संघ (एएसए) के पांच दलित छात्र नेताओं के छात्रावास से यह निष्कासन इस बात का उदाहरण है कि राजनीतिक वैचारिक विचारों और सरकारी अधिकार का दुरुपयोग किस तरह से अन्य सभी दृष्टिकोणों को दबाने के लिए किया जा रहा है। निष्कासन का एक अन्य कारण यह दावा था कि उन्होंने याकूब मेमन को मौत की सजा का विरोध किया था!

इसके बाद विश्वविद्यालय के कई छात्र समूहों ने भी कानूनी लड़ाई शुरू की। उन्होंने एक छात्र और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक सदस्य पर कथित रूप से हमला करने के आरोप में पांच दलित स्कॉलर्स को निष्कासित करने के हैदराबाद विश्वविद्यालय (यूओएच) के फैसले को चुनौती दी। निलंबित छात्रों ने न्याय की मांग करते हुए 18 दिसंबर को हैदराबाद उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी। यह घटनाक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आदेश जारी करने, दलित छात्रों को छात्रावास से प्रतिबंधित करने, सामूहिक स्थानों पर उनके प्रवेश पर रोक लगाने, प्रशासन भवन बनाने और छात्र संघ चुनाव में उनकी भागीदारी को दंड के रूप में प्रतिबंधित करने के मद्देनजर आया है।

रिसर्च स्कॉलर के अनूठे, खुले में सोने (स्लीप आउट), विरोध को कैंपस में 10 छात्र संगठनों का समर्थन प्राप्त था जो स्लीप आउट विरोध प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे थे। सरकार की अत्यधिक असहिष्णुता और सत्तावाद के खिलाफ इन सभी विरोध प्रदर्शनों का एक ही मकसद था और है कि रोहित वेमुला की मृत्यु व्यर्थ नहीं जानी चाहिए।

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