अनापेक्षित निर्णय!
लगता है अभी भी समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक नही है।नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष श्री शिवपाल सिंह यादव जी ने समाजवादी पार्टी की पूरी युवा टीम को दल से निष्कासित कर दिया है।ये सभी युवा नेता,एमएलसी,युवा शाखाओं के अध्यक्ष मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी के खासमखास माने जाते हैं।इनका निष्कासन शीत युद्ध की समाप्ति नही वरन उसके और तीब्र होने के संकेत दे रहे हैं।
ये निष्कासन समाजवादी पार्टी की अंदरुनी लड़ाई में क्या गुल खिलाएंगे,सह-मात के खेल में क्या होगा यह अलग सवाल है लेकिन इतना तय है कि खांटी समाजवादियों के लिए ये सारी घटनाएं दुखद हैं।
हम लोहियावाद और समता-समानता के सिद्धांतो के लिए प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं।मुझे समाजवादी लेखक स्मृतिशेष श्री मस्तराम कपूर जी की चिट्ठी के वे वाक्य समाजवादी पार्टी से बांधे हुए हैं जिसमे उन्होंने कहा था कि कुछ भी हो समाजवादी पार्टी ही एक ऐसी पार्टी है जो लोहिया का नाम तो लेती है। ऐसे लोग जो लोहिया के विचार को लेकर समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए हैं वे फिलवक्त बड़ी त्रासदी में हैं।
मेरा मानना है कि अखिलेश जी और शिवपाल जी के मध्य जो विवाद था उसमे दोनों लोगों के समर्थकों को सड़क पर उतरकर प्रदर्शन नही करना चाहिए था। दोनों लोगो के समर्थकों ने सड़क पर लखनऊ या इटावा, मैनपुरी, एटा आदि जगहों पर जो प्रदर्शन व नारेबाजी की वह उचित नही कही जा सकती लेकिन उनके बिरुद्ध चुनाव के ऐन मौके पर इतनी सख्त कार्यवाही की बजाय उनका सख्त क्लास लिया जाना चाहिए था।
(लेखक यादव शक्ति पत्रिका के संपादक हैं)
लगता है अभी भी समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक नही है।नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष श्री शिवपाल सिंह यादव जी ने समाजवादी पार्टी की पूरी युवा टीम को दल से निष्कासित कर दिया है।ये सभी युवा नेता,एमएलसी,युवा शाखाओं के अध्यक्ष मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी के खासमखास माने जाते हैं।इनका निष्कासन शीत युद्ध की समाप्ति नही वरन उसके और तीब्र होने के संकेत दे रहे हैं।
ये निष्कासन समाजवादी पार्टी की अंदरुनी लड़ाई में क्या गुल खिलाएंगे,सह-मात के खेल में क्या होगा यह अलग सवाल है लेकिन इतना तय है कि खांटी समाजवादियों के लिए ये सारी घटनाएं दुखद हैं।
हम लोहियावाद और समता-समानता के सिद्धांतो के लिए प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं।मुझे समाजवादी लेखक स्मृतिशेष श्री मस्तराम कपूर जी की चिट्ठी के वे वाक्य समाजवादी पार्टी से बांधे हुए हैं जिसमे उन्होंने कहा था कि कुछ भी हो समाजवादी पार्टी ही एक ऐसी पार्टी है जो लोहिया का नाम तो लेती है। ऐसे लोग जो लोहिया के विचार को लेकर समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए हैं वे फिलवक्त बड़ी त्रासदी में हैं।
मेरा मानना है कि अखिलेश जी और शिवपाल जी के मध्य जो विवाद था उसमे दोनों लोगों के समर्थकों को सड़क पर उतरकर प्रदर्शन नही करना चाहिए था। दोनों लोगो के समर्थकों ने सड़क पर लखनऊ या इटावा, मैनपुरी, एटा आदि जगहों पर जो प्रदर्शन व नारेबाजी की वह उचित नही कही जा सकती लेकिन उनके बिरुद्ध चुनाव के ऐन मौके पर इतनी सख्त कार्यवाही की बजाय उनका सख्त क्लास लिया जाना चाहिए था।
(लेखक यादव शक्ति पत्रिका के संपादक हैं)