वन कर्मचारियों की हिरासत में एक आदिवासी शख्स की मौत हो गई जिसे लेकर आदिवासी समुदाय के सैकड़ों लोगों ने गुंद्रे रेंज वन कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और वन अधिकारियों को निलंबित करने और मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की। यही नहीं, वन अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद ही आदिवासी माने और विरोध वापस लिया गया।
मैसूर कर्नाटक में एक आदिवासी शख्स की कथित तौर पर यातना के चलते, मौत मामले में वन विभाग के 17 कर्मचारियों के खिलाफ हत्या और अन्य गंभीर आरोपों में मामला दर्ज किया है। पुलिस ने कहा कि वन विभाग ने अवैध रूप से शिकार करने और हिरण का मांस रखने के आरोप में सोमवार को होसाहल्ली हादी (कॉलोनी) से एक आदिवासी समुदाय के तीन लोगों को पकड़ा था। लेकिन आरोप है कि पूछताछ के दौरान, हिरासत में लिए गए तीन लोगों ने करियप्पा का नाम बताया, जो कथित तौर पर संरक्षित प्रजातियों के शिकार में शामिल मुख्य अपराधी था। जिसके बाद उसकी गिरफ्तारी हुई। “वन अधिकारियों की हिरासत में रहते हुए करियप्पा ने सीने में दर्द की शिकायत की और उन्हें मैसूर के केआर अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया।” करियप्पा की मंगलवार को मौत हो गई और आदिवासियों ने आरोप लगाया कि उन्हें वन विभाग के कर्मियों ने प्रताड़ित किया।
इसे लेकर आदिवासी समुदाय के सैकड़ों लोगों ने गुंद्रे रेंज वन कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और वन अधिकारियों को निलंबित करने और मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की। वन अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद विरोध वापस ले लिया गया। प्राथमिकी में गुंद्रे वन क्षेत्र आरएफओ एमएन अमृतेश और 15 अन्य पर हत्या और अवैध हिरासत के मामले में नामजद किया गया है।
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, करियप्पा के बेटे सतीश ने बताया कि “वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी सोमवार रात हमारे घर आए, मेरी बहन और मुझे हमारे घर के बाहर घसीटा, गालियाँ दीं और हमें अपने पिता के ठिकाने के बारे में नहीं बताने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी। उन्होंने मुझे और मेरे परिवार को गोली मारने, पेट्रोल डालने और हमारे घर को जलाने की धमकी दी।” उसी दिन दोपहर 2.30 बजे जंगल के अंदर मौजूद करियप्पा को वन कर्मचारी घसीटकर ले गए। सतीश ने कहा, “मंगलवार शाम 6.30 बजे, डिप्टी रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर कार्तिक यादव ने अपने एक रिश्तेदार रवि को बुलाया और उसे करियप्पा को वापस लेने के लिए कहा। जब रवि वन कार्यालय गए तो करियप्पा वन विभाग द्वारा दी गई यातना के कारण गंभीर रूप से बीमार थे।” रवि ने करियप्पा को घर लाने से इनकार कर दिया और तभी वन विभाग के अधिकारियों ने कथित शिकारी को अस्पताल ले जाने का फैसला किया।
हालांकि, आरएफओ अमृतेश ने मृतक करियप्पा को प्रताड़ित करने से इनकार किया और कहा, “करियप्पा हृदय रोगी थे और हो सकता है कि उसी बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई हो। वन अधिकारियों ने उसे बिना देर किए अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया। मामले की जांच कर रहे पुलिस अधीक्षक एम रवि प्रसाद ने कहा कि मृतक के बेटे की शिकायत के बाद मामला दर्ज कर लिया गया है। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सब कुछ पता चल जाएगा।” वहीं एचडी कोटे तालुक के तहसीलदार रत्नाम्बिका ने गुरुवार को कहा, “अगर पोस्टमार्टम जांच में पुष्टि होती है कि करियप्पा की मौत हमले के कारण हुई है, तो दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी।”
उधर, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राज्य आदिवासी संघ के महासचिव मुथैया ने कहा, “करियप्पा की मौत वन अधिकारियों के हमले के कारण हुई। जंगल और पुलिस द्वारा अत्याचार अब आम हो गए हैं और ऐसे कई मामले हैं जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। मैं राज्य सरकार से उच्च स्तरीय जांच की मांग करता हूं और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। मैं मांग करता हूं कि परिवार को 50 लाख का मुआवजा दिया जाए।”
खास है कि, 49 वर्षीय करियप्पा को वन अधिकारियों ने हिरण का मांस रखने के आरोप में हिरासत में लिया था। पीड़ित के परिवार के सदस्यों और गांव के निवासियों ने आरोप लगाया कि करियप्पा को वन कर्मचारियों ने प्रताड़ित किया जिससे उसकी मौत हो गई लेकिन वन अधिकारियों ने दावा किया है कि करियप्पा गंभीर रूप से बीमार थे और उन्होंने उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। करियप्पा को शिकार और हिरण का मांस रखने के मामले में 10 अक्टूबर को हिरासत में लिया गया था और उन्हें अवैध शिकार विरोधी शिविर में रखा गया था। बुधवार को उन्हें बेचैनी की शिकायत के बाद केआर अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
इस पर करियप्पा के परिवार के एक सदस्य ने कहा, “उनके शरीर पर चोट के निशान साबित करते हैं कि उन्हें प्रताड़ित किया गया था।” करियप्पा की एक अन्य रिश्तेदार रम्या ने कहा कि उसने अपने घर के पास पांच फॉरेस्ट गार्ड को आते देखा और करियप्पा को चुन लिया जो उस समय उसके घर के पास था। उन्होंने कहा कि अब हमें अचानक सूचित किया जाता है कि वह नहीं है। यह घटना कुछ समय पहले मैसूरु ज़िले के बाइलाकुप्पे के निकट एक गांव में वन कर्मचारियों द्वारा कथित तौर पर एक अन्य आदिवासी व्यक्ति को गोली मारने के बाद हुई है।
कोई भी जानवर मरे, हमें ही अरेस्ट किया जाता है
दैनिक भास्कर की एक खबर के अनुसार, ब्रह्मगिरी आदिवासी बस्ती के रहने वाले ने सुरेश ने कहा कि जब भी वन विभाग के अधिकारी किसी जंगली जानवर के शव को देखते हैं, हमें अरेस्ट कर लेते हैं। भले ही जानवर की नेचुरल डेथ रही हो। इतना ही नहीं अधिकारी हमें कुछ मामलों में केस दर्ज करने की धमकी देते हैं और प्रताड़ित करते हैं। मैं सीएम बोम्मई से मांग करता हूं कि मामले की निष्पक्ष जांच हो।
इन पर हुई एफआईआर
गुंद्रे रिजर्व फॉरेस्ट के रिजर्व फॉरेस्ट कंजर्वेटर अमृतेश, डिप्टी रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर (DRFO) कार्तिक यादव, कर्मचारी आनंद, बाहुबली, रामू, शकैया, सदाशिव, मंजू, उमेश, संजय, राजा नाइक, सुषमा, महादेवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अंतरसंथे थाने में अयप्पा, सोमशेखर, तंगमणि और सिद्दीकी पाशा शामिल है।
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इसे लेकर आदिवासी समुदाय के सैकड़ों लोगों ने गुंद्रे रेंज वन कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और वन अधिकारियों को निलंबित करने और मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की। वन अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद विरोध वापस ले लिया गया। प्राथमिकी में गुंद्रे वन क्षेत्र आरएफओ एमएन अमृतेश और 15 अन्य पर हत्या और अवैध हिरासत के मामले में नामजद किया गया है।
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, करियप्पा के बेटे सतीश ने बताया कि “वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी सोमवार रात हमारे घर आए, मेरी बहन और मुझे हमारे घर के बाहर घसीटा, गालियाँ दीं और हमें अपने पिता के ठिकाने के बारे में नहीं बताने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी। उन्होंने मुझे और मेरे परिवार को गोली मारने, पेट्रोल डालने और हमारे घर को जलाने की धमकी दी।” उसी दिन दोपहर 2.30 बजे जंगल के अंदर मौजूद करियप्पा को वन कर्मचारी घसीटकर ले गए। सतीश ने कहा, “मंगलवार शाम 6.30 बजे, डिप्टी रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर कार्तिक यादव ने अपने एक रिश्तेदार रवि को बुलाया और उसे करियप्पा को वापस लेने के लिए कहा। जब रवि वन कार्यालय गए तो करियप्पा वन विभाग द्वारा दी गई यातना के कारण गंभीर रूप से बीमार थे।” रवि ने करियप्पा को घर लाने से इनकार कर दिया और तभी वन विभाग के अधिकारियों ने कथित शिकारी को अस्पताल ले जाने का फैसला किया।
हालांकि, आरएफओ अमृतेश ने मृतक करियप्पा को प्रताड़ित करने से इनकार किया और कहा, “करियप्पा हृदय रोगी थे और हो सकता है कि उसी बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई हो। वन अधिकारियों ने उसे बिना देर किए अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया। मामले की जांच कर रहे पुलिस अधीक्षक एम रवि प्रसाद ने कहा कि मृतक के बेटे की शिकायत के बाद मामला दर्ज कर लिया गया है। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सब कुछ पता चल जाएगा।” वहीं एचडी कोटे तालुक के तहसीलदार रत्नाम्बिका ने गुरुवार को कहा, “अगर पोस्टमार्टम जांच में पुष्टि होती है कि करियप्पा की मौत हमले के कारण हुई है, तो दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी।”
उधर, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राज्य आदिवासी संघ के महासचिव मुथैया ने कहा, “करियप्पा की मौत वन अधिकारियों के हमले के कारण हुई। जंगल और पुलिस द्वारा अत्याचार अब आम हो गए हैं और ऐसे कई मामले हैं जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। मैं राज्य सरकार से उच्च स्तरीय जांच की मांग करता हूं और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। मैं मांग करता हूं कि परिवार को 50 लाख का मुआवजा दिया जाए।”
खास है कि, 49 वर्षीय करियप्पा को वन अधिकारियों ने हिरण का मांस रखने के आरोप में हिरासत में लिया था। पीड़ित के परिवार के सदस्यों और गांव के निवासियों ने आरोप लगाया कि करियप्पा को वन कर्मचारियों ने प्रताड़ित किया जिससे उसकी मौत हो गई लेकिन वन अधिकारियों ने दावा किया है कि करियप्पा गंभीर रूप से बीमार थे और उन्होंने उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। करियप्पा को शिकार और हिरण का मांस रखने के मामले में 10 अक्टूबर को हिरासत में लिया गया था और उन्हें अवैध शिकार विरोधी शिविर में रखा गया था। बुधवार को उन्हें बेचैनी की शिकायत के बाद केआर अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
इस पर करियप्पा के परिवार के एक सदस्य ने कहा, “उनके शरीर पर चोट के निशान साबित करते हैं कि उन्हें प्रताड़ित किया गया था।” करियप्पा की एक अन्य रिश्तेदार रम्या ने कहा कि उसने अपने घर के पास पांच फॉरेस्ट गार्ड को आते देखा और करियप्पा को चुन लिया जो उस समय उसके घर के पास था। उन्होंने कहा कि अब हमें अचानक सूचित किया जाता है कि वह नहीं है। यह घटना कुछ समय पहले मैसूरु ज़िले के बाइलाकुप्पे के निकट एक गांव में वन कर्मचारियों द्वारा कथित तौर पर एक अन्य आदिवासी व्यक्ति को गोली मारने के बाद हुई है।
कोई भी जानवर मरे, हमें ही अरेस्ट किया जाता है
दैनिक भास्कर की एक खबर के अनुसार, ब्रह्मगिरी आदिवासी बस्ती के रहने वाले ने सुरेश ने कहा कि जब भी वन विभाग के अधिकारी किसी जंगली जानवर के शव को देखते हैं, हमें अरेस्ट कर लेते हैं। भले ही जानवर की नेचुरल डेथ रही हो। इतना ही नहीं अधिकारी हमें कुछ मामलों में केस दर्ज करने की धमकी देते हैं और प्रताड़ित करते हैं। मैं सीएम बोम्मई से मांग करता हूं कि मामले की निष्पक्ष जांच हो।
इन पर हुई एफआईआर
गुंद्रे रिजर्व फॉरेस्ट के रिजर्व फॉरेस्ट कंजर्वेटर अमृतेश, डिप्टी रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर (DRFO) कार्तिक यादव, कर्मचारी आनंद, बाहुबली, रामू, शकैया, सदाशिव, मंजू, उमेश, संजय, राजा नाइक, सुषमा, महादेवी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अंतरसंथे थाने में अयप्पा, सोमशेखर, तंगमणि और सिद्दीकी पाशा शामिल है।
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