कल निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी को गिरफ्तार कर लिया गया। एक सज्जन बड़े खुश हो रहे थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि वे खुश क्यों हैं। एक दलित युवा नेता को गिरफ्तार कर लेने से किसी को खुश होने के लिए क्या मसाला मिल गया! नीरव मोदी भाग गया, तमाम तरह के बैंक घोटाले सामने आ रहे हैं इन सब बातों का उन्हें फर्क नहीं पड़ा पर जिग्नेश की गिरफ्तारी उन्हें खुशी दे गयी। मैंने पूछा- भाई, जिग्नेश को गिरफ्तार कर लिया गया, इसमें खुशी की क्या बात है ? देश की जनता को खुशी तो तब मिलती जब नीरव या माल्या गिरफ्तार होते ?
वे बिदक गए। कहने लगे- अभी क्या देख रहे हो। अभी मजा नहीं आया। जब साथ में हार्दिक और कन्हैया को भी गिरफ्तार करते तब मजा आता। मैं समझ गया कि ये बहुत बड़े भक्त हैं। इनसे उलझना ठीक नहीं। ये बस मजे लेने में विश्वास रखते हैं। जबतक अपने तक आंच न पहुंचे तबतक मजे लेने में।
इससे एक बात समझ में आ गयी। इस समय लोग मजे लेने के इतने शौक़ीन हो गए हैं की उन्हें हर बात पर मजा चाहिए। जहाँ मजा नहीं मिला या कम मिला वहां बोल उठते हैं, "यार मजा नहीं आया।"
चाहे मजे की बात हो या गंभीरता की बात, मजे लेने वाले को बस मजा चाहिये। मजे लेने वाले को क्या फर्क पड़ता है की बात गंभीरता से सोचने की है या मजे लेने की, उसे तो फर्क तब पड़ता है जब उसे मजा नहीं आता। इख़लाक़ वाला मामला हो या jnu वाला या फिर रोहित का ही ले लीजिये, मजे लेने वाले इस संवेदनशील मुद्दों पर भी मजे ले रहे थे। समाज इतना सड़ चुका है कि लोग बलात्कार जैसे मामलों वाली खबर भी मजे लेकर पढ़ते हैं।
व्यंग करना अलग बात है और मजे लेना अलग बात।व्यंग में हंसी से ज्यादा तड़प होती है। व्यंग आपको झकझोरता है और सोचने पर विवश कर देता है। मजे वाले इस बात को कहाँ समझते हैं।
मध्यम जाति के एक सज्जन थे। उनकी बेटी का प्रेम उनसे थोड़ी नीची जाति वाले लड़के से था। दोनों बालिग थे। लड़का जॉब पर था और लड़की भी जॉब की तलाश में थी। वे दोनों जानते थे की घर वाले बड़े जातिवादी हैं। शादी नहीं होने देंगे। दोनों ने भागकर कोर्ट में शादी कर ली।
कहते हैं जोड़ियां ऊपरवाला बनाता है। किसी धूर्त ने जाति बनाकर ईश्वर को चुनौती दी और जोड़ियां बिखरने लगीं। ईश्वर परेशान है।
हाँ तो भाई, उन दोनों ने भागकर कोर्ट में शादी कर कर ली। उनके अगल-बगल वालों को खूब मजा आया। दोनों के पड़ोसियों ने खूब मजे लिए। ऐसी खबरें मुहल्ले में मनोरंजन का काम करती हैं। मोहल्ले में एक चाचा थे ..उन्हें मजा नहीं आया..एक ने पुछा -चाचा काहें मजा नहीं आया..?
चाचा बोले- यार उस बिज़नस वाले के साथ गयी है, सेटल हो जायेगी, उसका फ्यूचर खराब नहीं होगा इसलिए मजा नहीं आया। उस निठल्ले बेरोजगार जितेंदरवा के साथ गयी होती तो मजा आ जाता।
इस भागने भगाने में नाक भी कटती है..हालाँकि भागते तो लड़का-लड़की दोनों हैं मगर नाक सिर्फ लड़की के बाप की कटती है..क्योंकि उसकी नाक बहुत सॉफ्ट होती है। अब लड़की का बाप अपनी कटी नाक लेकर सर झुका के चलता है, नहीं तो चाचा जैसे लोग उस कटी नाक पर निम्बू मिर्ची लगी बात रगड़ देंगे। लड़की का बाप सर झुका के सालों साल चलता रहा और अपनी नाक के ऊंचे होने का इंतजार करता रहा।
एक दिन उन्हें खबर मिली की चाचा की नातिन किसी के साथ पकड़ ली गयी। मुहल्ले वालों ने दोनों को पीट दिया है। मामला पुलिस तक पहुँच गया है। ये नाक झुकाये बैठे थे। खबर सुनते ही इनकी नाक ऊंची हो गयी। इतना सुनते ही उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया। अब ये सर उठा के चलते हैं और चाचा की नाक कटने से इनकी कटी नाक जुड़ गयी। अब इन्हें मजा आता है क्योंकि मामला जो भी हो अपने ऊपर विपत्ति न हो तो मजा बहुत आता है।
पाकिस्तानी सैनिक हमारे जवानों के दो सिर काट लेते हैं तो हमें बड़ा दुःख होता है। फिर हमारे जवान उनके चार सिर काट लाते हैं। हमें मजा आ जाता है। कोई कहता है- यार चार, लाशें देखकर मजा नहीं आया। कम से कम दस लाशें गिरनी चाहिए। लोग इस मजे लेने के चक्कर मे ये नहीं सोच पाते कि जो मरते हैं वे भी किसी के बेटे, भाई या पति होते हैं। एक इंसान होते हैं। चाहे इस देश के हों या उस देश के। राजनीति के शिकार हुए निर्दोषों की लाश पर तो कोई मूर्ख ही मजे ले सकता है।
एक शादी में खाना खाने के बाद दूल्हा और हम सब इकट्टा होकर बातचीत कर रहे थे। दूल्हे ने गाँव के ही एक दोस्त से पुछा -क्यों भाई ,खाने में मजा आया..?वह बोला ,'खाना तो ठीक था मगर सलाद नहीं मिला इसलिए मजा नहीं आया।
बातें होती रहीं ..एक ने कहा -यार डांस करने में मजा आ गया। किसी ने कहा- यार व्यवस्था बढ़िया किया है तुम्हारे ससुराल वालों ने, मजा आ गया। वह बीच में ही बोल पड़ा, "क्या ख़ाक मजा आ गया,,? खाने में मुझे सलाद तो मिला ही नहीं !" वह मेरी तरफ देखा और सोच रहा था की मैं भी उसके सलाद न मिलने के दुःख में शामिल हो जाऊँ और कहूँ -क्या ख़ाक व्यवस्था बढियां थी, सलाद तक तो मिला नहीं। मगर मैंने ऐसा नहीं किया। वह और दुखी हो गया। वापसी में रास्ते भर मुझसे कहता रहा ,"यार मजा नहीं आया,यार मजा नहीं आया, स्साला खाना भी भरपेट नहीं खाया, सलाद के बगैर खाना जमा नहीं।"
एक दिन किसी कारण से मैं उसके घर गया था। देखा तो द्वार पर खटिया पर बैठकर वह चटनी भात खा रहा था। मैंने कहा- क्यों भाई चटनी भात..?
घर में से उसकी माँ ने कहा- बेटा प्याज खत्म हो गयी थी। दो दिन से इसे कह रही हूँ प्याज ला दे, ये नहीं लाया तो आज सब्जी नहीं बनाई।
"दिल में तो आया की कह दूं की भाई सलाद काट ले, नहीं तो मजा कैसे आएगा..? मगर मैंने नहीं कहा और बिना काम हुए मन ही मन मजे लेते हुए लौट लिया।"
वे बिदक गए। कहने लगे- अभी क्या देख रहे हो। अभी मजा नहीं आया। जब साथ में हार्दिक और कन्हैया को भी गिरफ्तार करते तब मजा आता। मैं समझ गया कि ये बहुत बड़े भक्त हैं। इनसे उलझना ठीक नहीं। ये बस मजे लेने में विश्वास रखते हैं। जबतक अपने तक आंच न पहुंचे तबतक मजे लेने में।
इससे एक बात समझ में आ गयी। इस समय लोग मजे लेने के इतने शौक़ीन हो गए हैं की उन्हें हर बात पर मजा चाहिए। जहाँ मजा नहीं मिला या कम मिला वहां बोल उठते हैं, "यार मजा नहीं आया।"
चाहे मजे की बात हो या गंभीरता की बात, मजे लेने वाले को बस मजा चाहिये। मजे लेने वाले को क्या फर्क पड़ता है की बात गंभीरता से सोचने की है या मजे लेने की, उसे तो फर्क तब पड़ता है जब उसे मजा नहीं आता। इख़लाक़ वाला मामला हो या jnu वाला या फिर रोहित का ही ले लीजिये, मजे लेने वाले इस संवेदनशील मुद्दों पर भी मजे ले रहे थे। समाज इतना सड़ चुका है कि लोग बलात्कार जैसे मामलों वाली खबर भी मजे लेकर पढ़ते हैं।
व्यंग करना अलग बात है और मजे लेना अलग बात।व्यंग में हंसी से ज्यादा तड़प होती है। व्यंग आपको झकझोरता है और सोचने पर विवश कर देता है। मजे वाले इस बात को कहाँ समझते हैं।
मध्यम जाति के एक सज्जन थे। उनकी बेटी का प्रेम उनसे थोड़ी नीची जाति वाले लड़के से था। दोनों बालिग थे। लड़का जॉब पर था और लड़की भी जॉब की तलाश में थी। वे दोनों जानते थे की घर वाले बड़े जातिवादी हैं। शादी नहीं होने देंगे। दोनों ने भागकर कोर्ट में शादी कर ली।
कहते हैं जोड़ियां ऊपरवाला बनाता है। किसी धूर्त ने जाति बनाकर ईश्वर को चुनौती दी और जोड़ियां बिखरने लगीं। ईश्वर परेशान है।
हाँ तो भाई, उन दोनों ने भागकर कोर्ट में शादी कर कर ली। उनके अगल-बगल वालों को खूब मजा आया। दोनों के पड़ोसियों ने खूब मजे लिए। ऐसी खबरें मुहल्ले में मनोरंजन का काम करती हैं। मोहल्ले में एक चाचा थे ..उन्हें मजा नहीं आया..एक ने पुछा -चाचा काहें मजा नहीं आया..?
चाचा बोले- यार उस बिज़नस वाले के साथ गयी है, सेटल हो जायेगी, उसका फ्यूचर खराब नहीं होगा इसलिए मजा नहीं आया। उस निठल्ले बेरोजगार जितेंदरवा के साथ गयी होती तो मजा आ जाता।
इस भागने भगाने में नाक भी कटती है..हालाँकि भागते तो लड़का-लड़की दोनों हैं मगर नाक सिर्फ लड़की के बाप की कटती है..क्योंकि उसकी नाक बहुत सॉफ्ट होती है। अब लड़की का बाप अपनी कटी नाक लेकर सर झुका के चलता है, नहीं तो चाचा जैसे लोग उस कटी नाक पर निम्बू मिर्ची लगी बात रगड़ देंगे। लड़की का बाप सर झुका के सालों साल चलता रहा और अपनी नाक के ऊंचे होने का इंतजार करता रहा।
एक दिन उन्हें खबर मिली की चाचा की नातिन किसी के साथ पकड़ ली गयी। मुहल्ले वालों ने दोनों को पीट दिया है। मामला पुलिस तक पहुँच गया है। ये नाक झुकाये बैठे थे। खबर सुनते ही इनकी नाक ऊंची हो गयी। इतना सुनते ही उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया। अब ये सर उठा के चलते हैं और चाचा की नाक कटने से इनकी कटी नाक जुड़ गयी। अब इन्हें मजा आता है क्योंकि मामला जो भी हो अपने ऊपर विपत्ति न हो तो मजा बहुत आता है।
पाकिस्तानी सैनिक हमारे जवानों के दो सिर काट लेते हैं तो हमें बड़ा दुःख होता है। फिर हमारे जवान उनके चार सिर काट लाते हैं। हमें मजा आ जाता है। कोई कहता है- यार चार, लाशें देखकर मजा नहीं आया। कम से कम दस लाशें गिरनी चाहिए। लोग इस मजे लेने के चक्कर मे ये नहीं सोच पाते कि जो मरते हैं वे भी किसी के बेटे, भाई या पति होते हैं। एक इंसान होते हैं। चाहे इस देश के हों या उस देश के। राजनीति के शिकार हुए निर्दोषों की लाश पर तो कोई मूर्ख ही मजे ले सकता है।
एक शादी में खाना खाने के बाद दूल्हा और हम सब इकट्टा होकर बातचीत कर रहे थे। दूल्हे ने गाँव के ही एक दोस्त से पुछा -क्यों भाई ,खाने में मजा आया..?वह बोला ,'खाना तो ठीक था मगर सलाद नहीं मिला इसलिए मजा नहीं आया।
बातें होती रहीं ..एक ने कहा -यार डांस करने में मजा आ गया। किसी ने कहा- यार व्यवस्था बढ़िया किया है तुम्हारे ससुराल वालों ने, मजा आ गया। वह बीच में ही बोल पड़ा, "क्या ख़ाक मजा आ गया,,? खाने में मुझे सलाद तो मिला ही नहीं !" वह मेरी तरफ देखा और सोच रहा था की मैं भी उसके सलाद न मिलने के दुःख में शामिल हो जाऊँ और कहूँ -क्या ख़ाक व्यवस्था बढियां थी, सलाद तक तो मिला नहीं। मगर मैंने ऐसा नहीं किया। वह और दुखी हो गया। वापसी में रास्ते भर मुझसे कहता रहा ,"यार मजा नहीं आया,यार मजा नहीं आया, स्साला खाना भी भरपेट नहीं खाया, सलाद के बगैर खाना जमा नहीं।"
एक दिन किसी कारण से मैं उसके घर गया था। देखा तो द्वार पर खटिया पर बैठकर वह चटनी भात खा रहा था। मैंने कहा- क्यों भाई चटनी भात..?
घर में से उसकी माँ ने कहा- बेटा प्याज खत्म हो गयी थी। दो दिन से इसे कह रही हूँ प्याज ला दे, ये नहीं लाया तो आज सब्जी नहीं बनाई।
"दिल में तो आया की कह दूं की भाई सलाद काट ले, नहीं तो मजा कैसे आएगा..? मगर मैंने नहीं कहा और बिना काम हुए मन ही मन मजे लेते हुए लौट लिया।"