सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है घृणास्पद प्रचार!
कौतूहल पैदा करने वाला एक भ्रामक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है जिसका शीर्षक है “लेबनान बनने की राह पर भारत- जनसांख्यिकीय और जनसंख्या विस्फोट का खेल।” यह वीडियो अनंत सरगा प्रोडक्शंस द्वारा बनाई गई है, जिसे सह-संस्थापक वरुण कुलकर्णी द्वारा एंकर किया गया है और अपने यूट्यूब चैनल “ब्रीदिंग हिस्ट्री” पर अपलोड किया गया है। यह वीडियो इस निष्कर्ष के साथ शुरू होता है कि “जो लेबनान में हुआ वही भारत में होगा”। इस सब को एंकर, भारत के रूप में ऐसे संदर्भित करता है, जैसे कि अधिकांश हिंदुत्व समूह करते हैं।
“यदि हम अब भी नहीं जागते हैं तो भारत को एक और लेबनान बनने से कोई रोक नहीं सकता है।” वे “समझाते हुए” कहते हैं कि कैसे 50 के दशक में वहां (लेबनान में) मैरोनाइट ईसाई बहुमत में होते थे। तब, उस समय क्षेत्र में इज़राइल और लेबनान दो ही लोकतंत्र होते थे। यही नहीं, वो जोर देते हुए कहते हैं कि ये दोनों ही देश “गैर-मुस्लिम देश” थे, “इससे आप जो भी निष्कर्ष निकालना चाहते हैं, निकाल सकते हैं।”
वह तथ्यों का हवाले से बताते हैं कि लेबनान में ईसाइयों और मुसलमानों सहित सभी “शरणार्थी” है। एक नाटकीय आवाज (धुन) में वह अपने दावों का समर्थन करता है कि कैसे “पीएलओ जैसे आतंकवादी संगठन” एक “वामपंथी बैनर के तले” राजनीति कर रहे थे और खुद को एक “पीड़ित” के तौर पर पेश कर रहे थे। वह आगे कहते हैं, “मुझे आशा है कि आप इस डरावनी समानता को देख सकते हो” और दावा कर सकते हो कि मुस्लिम आबादी में वृद्धि का कारण “आंतरिक जनसंख्या विस्फोट” और “शरणार्थी” ही हैं।
वह दावा करता है कि “भारत भी लेबनान बनने की राह पर अग्रसर है।” कहा जिस तरह “शरणार्थियों को भारत आने दिया जा रहा है”, और महज लंगर चखने (साझा करने की नैतिकता यानी सदाचार) के रूप में इसकी बहुत ही सरल ‘व्याख्या’ कर दी जा रही है लेकिन इसने जनसांख्यिकी को बदल दिया है और “हमले” शुरू हो गए हैं। दावा किया कि यह भारत में हो रहा है और “असम की आबादी” इसका एक उदाहरण है। यही नहीं, दावा किया कि कैसे ‘भारत के 8 राज्यों’ में अब “हिंदू बहुसंख्यक नहीं रहे हैं।” वह कहते हैं कि भारत इस “जनसांख्यिकी के खेल को नहीं समझ पाया है” और भारतीय हिंदू भी “सांस्कृतिक अस्तित्व के मुद्दों” पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और आसानी से अपना मत बदल लेते हैं।
वह दावा करता है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान “अवैध शरणार्थियों” का समर्थन कर रहे हैं। अपने इस सांप्रदायिक एकालाप को वह, उन हिंदुत्व समूहों जो यह कहते हुए कि “हमें यह मत सिखाइये कि हमें अपने त्योहारों को कैसे मनाना है” आदि तर्कों व बातों से जागृति (जनजागरण) करने का काम कर रहे हैं, की सराहना करते हुए समापन करता है। शायद उसका इशारा दिवाली मनाने को लेकर उठाई गई प्रदूषण आदि से संबंधित चिंताओं की ओर था। “इसे समझने के लिए यह वीडियो देखें और महसूस करें कि, अगला लेबनान भारत बनने वाला है, अपने आप में कितना डरावना हो सकता है। अन्य यूरोपीय देश भी इस समस्या से घिरते जा रहे हैं। “इसके बाद विस्तारपूर्वक वह, एक (अलारमिस्ट) डराने वाले लहजे में (कॉल टू एक्शन) ‘कुछ करने का’ आह्वान करते हुए कहता हैं, कि “समय आ गया है जागिये और कुछ करिये।
हालांकि, उसके नफरत भरे दावों और अफवाहों का स्वत: ही भंडाफोड़ हो जाता है क्योंकि जमीनी हकीकत एकदम अलग कहानी कह रही है। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस वेबसाइट के अनुसार, 1926 से लेबनान के संविधान में कई बार 1929, 1943, 1947 और 1990 में संशोधन किया गया। “हालिया 1990 का संविधान (अंग्रेजी, अरबी और फ्रेंच में उपलब्ध) ईसाइयों और मुसलमानों को मंत्रिमंडल और संसद दोनों में समान प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।” संविधान “राष्ट्रपति या संसद के अनुरोध पर ही संशोधित किया जा सकता है। यही नहीं, संशोधन प्रक्रियाओं (अनुच्छेद 76 और 77) को शुरू करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। साथ ही यह “2008 दोहा समझौते से भी जुड़ा (बंधा) है, जिसने 18 महीने के राजनीतिक गतिरोध को खत्म किया और अंततः पश्चिमी व सऊदी समर्थित बहुमत तथा सीरिया समर्थक विपक्ष के बीच हिंसक टकराव को समाप्त किया।
इतिहासकार और कानूनी विशेषज्ञ इस तरह के प्रचार चैनलों द्वारा किए गए दावों का भंडाफोड़ कर सकते हैं, जिसका उद्देश्य सांप्रदायिक नैरेटिव बनाना है। यह भी चिंता का विषय है कि ऐसे चैनलों को YouTube द्वारा अनियंत्रित तरीके से प्रसारित करने की अनुमति है। इसे बहुत से समूहों द्वारा शेयर किया जा रहा है। अनंत सरगा प्रोडक्शंस की स्थापना इंजीनियर से ‘फ़िल्ममेकर’ बने प्रीतम के तिवारी और वरुण कुलकर्णी ने की है, जो शो के एंकर भी हैं। ब्रीदिंग हिस्ट्री और अनंत सरगा कई विषयों पर हिंदुत्व आख्यानों की शैलीबद्ध प्रस्तुति के विशेषज्ञ हैं। इतिहास, तथ्य और निष्पक्षता ऐसी परियोजनाओं का सबसे पहला शिकार होते हैं।
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“यदि हम अब भी नहीं जागते हैं तो भारत को एक और लेबनान बनने से कोई रोक नहीं सकता है।” वे “समझाते हुए” कहते हैं कि कैसे 50 के दशक में वहां (लेबनान में) मैरोनाइट ईसाई बहुमत में होते थे। तब, उस समय क्षेत्र में इज़राइल और लेबनान दो ही लोकतंत्र होते थे। यही नहीं, वो जोर देते हुए कहते हैं कि ये दोनों ही देश “गैर-मुस्लिम देश” थे, “इससे आप जो भी निष्कर्ष निकालना चाहते हैं, निकाल सकते हैं।”
वह तथ्यों का हवाले से बताते हैं कि लेबनान में ईसाइयों और मुसलमानों सहित सभी “शरणार्थी” है। एक नाटकीय आवाज (धुन) में वह अपने दावों का समर्थन करता है कि कैसे “पीएलओ जैसे आतंकवादी संगठन” एक “वामपंथी बैनर के तले” राजनीति कर रहे थे और खुद को एक “पीड़ित” के तौर पर पेश कर रहे थे। वह आगे कहते हैं, “मुझे आशा है कि आप इस डरावनी समानता को देख सकते हो” और दावा कर सकते हो कि मुस्लिम आबादी में वृद्धि का कारण “आंतरिक जनसंख्या विस्फोट” और “शरणार्थी” ही हैं।
वह दावा करता है कि “भारत भी लेबनान बनने की राह पर अग्रसर है।” कहा जिस तरह “शरणार्थियों को भारत आने दिया जा रहा है”, और महज लंगर चखने (साझा करने की नैतिकता यानी सदाचार) के रूप में इसकी बहुत ही सरल ‘व्याख्या’ कर दी जा रही है लेकिन इसने जनसांख्यिकी को बदल दिया है और “हमले” शुरू हो गए हैं। दावा किया कि यह भारत में हो रहा है और “असम की आबादी” इसका एक उदाहरण है। यही नहीं, दावा किया कि कैसे ‘भारत के 8 राज्यों’ में अब “हिंदू बहुसंख्यक नहीं रहे हैं।” वह कहते हैं कि भारत इस “जनसांख्यिकी के खेल को नहीं समझ पाया है” और भारतीय हिंदू भी “सांस्कृतिक अस्तित्व के मुद्दों” पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और आसानी से अपना मत बदल लेते हैं।
वह दावा करता है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान “अवैध शरणार्थियों” का समर्थन कर रहे हैं। अपने इस सांप्रदायिक एकालाप को वह, उन हिंदुत्व समूहों जो यह कहते हुए कि “हमें यह मत सिखाइये कि हमें अपने त्योहारों को कैसे मनाना है” आदि तर्कों व बातों से जागृति (जनजागरण) करने का काम कर रहे हैं, की सराहना करते हुए समापन करता है। शायद उसका इशारा दिवाली मनाने को लेकर उठाई गई प्रदूषण आदि से संबंधित चिंताओं की ओर था। “इसे समझने के लिए यह वीडियो देखें और महसूस करें कि, अगला लेबनान भारत बनने वाला है, अपने आप में कितना डरावना हो सकता है। अन्य यूरोपीय देश भी इस समस्या से घिरते जा रहे हैं। “इसके बाद विस्तारपूर्वक वह, एक (अलारमिस्ट) डराने वाले लहजे में (कॉल टू एक्शन) ‘कुछ करने का’ आह्वान करते हुए कहता हैं, कि “समय आ गया है जागिये और कुछ करिये।
हालांकि, उसके नफरत भरे दावों और अफवाहों का स्वत: ही भंडाफोड़ हो जाता है क्योंकि जमीनी हकीकत एकदम अलग कहानी कह रही है। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस वेबसाइट के अनुसार, 1926 से लेबनान के संविधान में कई बार 1929, 1943, 1947 और 1990 में संशोधन किया गया। “हालिया 1990 का संविधान (अंग्रेजी, अरबी और फ्रेंच में उपलब्ध) ईसाइयों और मुसलमानों को मंत्रिमंडल और संसद दोनों में समान प्रतिनिधित्व प्रदान करता है।” संविधान “राष्ट्रपति या संसद के अनुरोध पर ही संशोधित किया जा सकता है। यही नहीं, संशोधन प्रक्रियाओं (अनुच्छेद 76 और 77) को शुरू करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। साथ ही यह “2008 दोहा समझौते से भी जुड़ा (बंधा) है, जिसने 18 महीने के राजनीतिक गतिरोध को खत्म किया और अंततः पश्चिमी व सऊदी समर्थित बहुमत तथा सीरिया समर्थक विपक्ष के बीच हिंसक टकराव को समाप्त किया।
इतिहासकार और कानूनी विशेषज्ञ इस तरह के प्रचार चैनलों द्वारा किए गए दावों का भंडाफोड़ कर सकते हैं, जिसका उद्देश्य सांप्रदायिक नैरेटिव बनाना है। यह भी चिंता का विषय है कि ऐसे चैनलों को YouTube द्वारा अनियंत्रित तरीके से प्रसारित करने की अनुमति है। इसे बहुत से समूहों द्वारा शेयर किया जा रहा है। अनंत सरगा प्रोडक्शंस की स्थापना इंजीनियर से ‘फ़िल्ममेकर’ बने प्रीतम के तिवारी और वरुण कुलकर्णी ने की है, जो शो के एंकर भी हैं। ब्रीदिंग हिस्ट्री और अनंत सरगा कई विषयों पर हिंदुत्व आख्यानों की शैलीबद्ध प्रस्तुति के विशेषज्ञ हैं। इतिहास, तथ्य और निष्पक्षता ऐसी परियोजनाओं का सबसे पहला शिकार होते हैं।
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