बॉम्बे हाईकोर्ट ने ‘गद्दार’ वाली टिप्पणी को लेकर एफआईआर में कुणाल कामरा को गिरफ्तारी से स्थायी संरक्षण दिया

Written by sabrang india | Published on: April 26, 2025
कॉमेडियन को एफआईआर रद्द करने की याचिका के लंबित रहने तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। अदालत ने मुंबई पुलिस को निर्देश दिया कि वह केवल चेन्नई में ही उनसे पूछताछ करे और यदि चार्जशीट दाखिल की जाती है तो मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए।



बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 अप्रैल, 2025 को स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा को गिरफ्तारी से संरक्षण दिया, जो उनके कॉमेडी शो नया भारत के दौरान की गई टिप्पणियों को लेकर मुंबई पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले में है जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को गद्दार कहा था। जस्टिस सारंग कोतवाल और एसएम मोदक की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि एफआईआर रद्द करने की मांग वाली उनकी याचिका के हाईकोर्ट में लंबित रहने तक कामरा को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

हालांकि कोर्ट ने जांच पर रोक नहीं लगाई, लेकिन उसने पुलिस को निर्देश दिया कि अगर वे कामरा से पूछताछ करना चाहते हैं, तो उन्हें चेन्नई में ऐसा करना चाहिए, जहां कामरा रहते हैं। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कामरा की रद्द करने याचिका के लंबित रहने के दौरान आरोप-पत्र दाखिल किया जाता है, तो उच्च न्यायालय द्वारा मामले का निर्णय किए जाने तक निचली अदालत उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं करेगी। इस आदेश ने 16 अप्रैल को कामरा को दी गई अंतरिम सुरक्षा को स्थायी कर दिया।

सुनवाई के दौरान, कामरा की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज सीरवई ने तर्क दिया कि एफआईआर संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटीकृत हास्य अभिनेता के संवैधानिक अधिकार पर सीधा हमला है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि आपत्तिजनक टिप्पणी एक बड़े राजनीतिक व्यंग्य का हिस्सा थी, एक प्रकार की टिप्पणी जिसे लोकतांत्रिक समाजों में लंबे समय से संरक्षित किया गया है। सीरवई के अनुसार, गद्दार शब्द का इस्तेमाल शिवसेना में 2022 के विभाजन के संदर्भ में किया गया था, जब एकनाथ शिंदे और विधायकों का एक समूह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट से अलग हो गया और गठबंधन कर लिया।

न्यायालय के अहम निर्णय और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय

● कामरा को उनकी याचिका के लंबित रहने के दौरान एफआईआर के संबंध में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

● मुंबई पुलिस को जांच जारी रखने की अनुमति है, लेकिन उसे कामरा से केवल चेन्नई में ही पूछताछ करनी होगी, जो कि उनका वर्तमान निवास स्थान है।

● यदि पुलिस आरोपपत्र दाखिल करती है तो निचली अदालत को कामरा के खिलाफ तब तक कार्यवाही शुरू नहीं करनी चाहिए, जब तक कि उच्च न्यायालय रद्द करने वाली याचिका पर निर्णय नहीं दे देता।

● पुलिस का नोटिस भारतीय न्याय संहिता (बीएनएसएस) की धारा 35(3) के तहत जारी किया गया था, जिसके तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने अपने आदेश में गिरफ्तारी न करने के इस इरादे को दर्ज किया।

● यदि कोई नई कंटेंट सामने आती है, तो पुलिस आगे के निर्देशों के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती है।

कामरा के वकील द्वारा पेश किया गया तर्क

1. अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

कामरा का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज सीरवई ने कहा कि कामरा के हास्य अभिनय का कंटेंट संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत संरक्षित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आती है। उन्होंने कहा कि यह पर्फोर्मेंस व्यंग्यात्मक प्रकृति का था, सार्वजनिक राजनीतिक घटनाओं से संबंधित था और अनुच्छेद 19(2) के तहत अनुमेय प्रतिबंधों के अंतर्गत नहीं आता है।

लाइव लॉ के अनुसार, इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य सहित सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए सीरवई ने तर्क दिया कि कलाकारों के खिलाफ सेंसरशिप की कार्रवाई डराने वाले प्रभाव डालती है और अभियोजन के डर से फ्री स्पीच को दबाती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह मामला राज्य द्वारा कानूनी प्रक्रियाओं के दुरुपयोग का प्रतीक है, जो कथित रूप से एक राजनीतिक दल के इशारे पर एक कॉमेडियन को डराने और असहमति जताने वाले कलाकारों को एक व्यापक संदेश देने के लिए किया गया है।

2. पुलिस तंत्र का दुरुपयोग और प्रक्रियात्मक खामियां

सीरवई ने एफआईआर दर्ज करने की जल्दबाजी पर सवाल उठाया। उन्होंने बताया कि शिकायतकर्ता, शिवसेना विधायक मुरजी पटेल ने कथित तौर पर 23 मार्च को रात 9:30 बजे क्लिप देखी, रात 10:45 बजे शिकायत दर्ज की और उसी रात 11:52 बजे एफआईआर दर्ज की गई। अगले दिन समन जारी किए गए। बार एंड बेंच के अनुसार, सीरवाई ने तर्क दिया कि एफआईआर प्रक्रिया को बिना सोचे-समझे महज़ औपचारिक रूप से पूरी की गई थी।

इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 356 (2), जो मानहानि से संबंधित है, को गलत तरीके से लागू किया गया था क्योंकि कथित रूप से बदनाम व्यक्ति एकनाथ शिंदे ने खुद शिकायत दर्ज नहीं की थी।

3. धारा 353 (1) (बी) बीएनएस के लिए आधारों का अभाव

धारा 353(1)(b) बीएनएस के तहत लगाए गए आरोप को भी चुनौती दी गई, जो ऐसे प्रयासों से संबंधित है जिनका उद्देश्य राज्य के खिलाफ अपराध या सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए भय या आतंक पैदा करना होता है। सीरवई ने कहा कि कामरा का कृत्य महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रमों, विशेष रूप से शिवसेना में 2022 के विभाजन और उसके बाद सरकार में बदलाव का एक तथ्यात्मक और व्यंग्यात्मक विवरण था। उन्होंने तर्क दिया कि व्यंग्य को फेस वैल्यू पर नहीं आंका जाना चाहिए और इसे एक तर्कसंगत, मजबूत दिमाग वाले पर्यवेक्षक के दृष्टिकोण से आंका जाना चाहिए।

4. मौत की धमकियां और डराना-धमकाना

राजनीतिक कार्यकर्ताओं से कामरा को मिली धमकियों का जिक्र करते हुए सीरवई ने पुलिस पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सहयोग करने की इच्छा के बावजूद कामरा की मौजूदगी पर जोर देकर उत्पीड़न का आरोप लगाया। उन्होंने पुलिस के दृष्टिकोण को "विच हंट" के रूप में बताया, जिसमें कहा गया कि दर्शकों और शो की प्रोडक्शन टीम को 60 से ज्यादा बार पूछताछ के लिए बुलाया गया था।

राज्य सरकार की दलीलें

1. हास्य व दुर्भावनापूर्ण निशाना बनाने के बीच अंतर

राज्य के वकील ने तर्क दिया कि कामरा की टिप्पणी अनुच्छेद 19(1)(ए) द्वारा संरक्षित नहीं थी क्योंकि वे एक संज्ञेय अपराध थे। राज्य के अनुसार, कामरा के कृत्य के कंटेंट व्यंग्यात्मक आलोचना से लेकर किसी व्यक्ति को “दुर्भावनापूर्ण निशाना बनाने” तक की सीमा पार कर गई। वकील ने तर्क दिया कि सार्वजनिक हस्तियों को भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान का अधिकार है, और कामरा के प्रदर्शन ने उपमुख्यमंत्री शिंदे की गरिमा को ठेस पहुंचाई, क्योंकि उसमें उनके व्यक्तित्व और राजनीतिक आचरण को निशाना बनाया गया।

राज्य ने समान भाषा का इस्तेमाल करने वाले राजनेताओं से तुलना को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि पूर्व अभियोजन की अनुपस्थिति कामरा के मामले में वैध कार्रवाई को रोकती नहीं है।

2. धारा 353(2) और राजनीतिक समुदाय

राज्य ने यह भी तर्क दिया कि कामरा की क्लिप ने धारा 353(2) बीएनएस के तहत खुलेआम शरारत को बढ़ावा दिया। वकील ने आरोप लगाया कि इसमें गलत जानकारी थी और दुर्भावना को बढ़ावा दिया। उल्लेखनीय रूप से, राज्य ने "समुदाय" की व्याख्या बड़ी संख्या में अनुयायियों और समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के रूप में की जिसका मतलब था कि कामरा की टिप्पणी राजनीतिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दे सकती है।

3. धमकियों और पुलिस के आचरण

हालांकि राज्य ने कामरा की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली, उसने बताया कि कामरा ने धमकियों के बारे में कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की थी। हालांकि, उच्च न्यायालय ने कामरा की सुरक्षा को लेकर व्यक्त की गई आशंका संबंधी कम्युनिकेशन को स्वीकार किया और पुलिस से पूछा कि क्या उनका बयान चेन्नई में स्थानीय पुलिस की सहायता से दर्ज किया जा सकता है।

जब राज्य ने भविष्य में नई कंटेंट सामने आने पर गिरफ्तारी की स्वतंत्रता के लिए तर्क दिया तो अदालत ने जवाब दिया कि धारा 35 (3) बीएनएसएस के तहत नोटिस में पहले से ही पुलिस की गिरफ्तारी न करने की वर्तमान मंशा दर्ज है और राज्य अब इस स्थिति से इनकार नहीं कर सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

कुणाल कामरा वर्तमान में तमिलनाडु में रह रहे हैं। उन्होंने पहले मद्रास उच्च न्यायालय से अंतरिम अग्रिम जमानत ली थी, जिसे 17 अप्रैल तक बढ़ा दिया गया था। यह मामला शिवसेना विधायक मुरजी पटेल के कहने पर बीएनएस की धारा 353 (1) (बी), 353 (2), और 356 (2) के तहत शुरू में दर्ज एक जीरो एफआईआर से उपजा है, जिन्होंने दावा किया था कि कामरा द्वारा “गद्दार” का संदर्भ एकनाथ शिंदे के लिए किया गया था। हालांकि शो में शिंदे का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया गया था, लेकिन विधायक ने आरोप लगाया कि टिप्पणी स्पष्ट रूप से शिवसेना विभाजन के संदर्भ में उनके खिलाफ थी।

नया भारत नामक के शो में कथित तौर पर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों की एक श्रृंखला को शामिल किया गया था, जिसमें राजनीतिक अवसरवाद, भारत के अरबपति वर्ग की शक्ति और लैंगिक असमानता पर टिप्पणी शामिल थी। विवाद के बाद, शिवसेना कार्यकर्ताओं ने मुंबई के हैबिटेट स्टूडियो में तोड़फोड़ की, जहां कामरा ने शो किया था। हिंसा के सिलसिले में बारह लोगों को गिरफ्तार किया गया और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। कामरा का कहना है कि इस शो के बाद से उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं।

इसके बाद कामरा को कई धमकियां मिलीं और उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय का रुख किया। चूंकि वे फिलहाल तमिलनाडु में रह रहे हैं इसलिए उन्होंने अंतरिम अग्रिम जमानत की मांग की। 7 अप्रैल, 2025 को मद्रास उच्च न्यायालय ने उनकी गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा 17 अप्रैल तक बढ़ा दी। इसके बाद कामरा ने एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय का रुख किया।

Related

कुणाल कामरा की गिरफ्तारी नहीं’, बॉम्बे हाईकोर्ट ने ‘गद्दार’ टिप्पणी मामले में अंतरिम संरक्षण दिया

बाकी ख़बरें