छद्म हिंदुत्व की असलियत सामने आने के डर की वजह से की गई गोविंद पानसरे की हत्या
हिंदू राष्ट्र नहीं चाहते थे शिवाजी महाराज- गोविंद पानसरे
धार्मिक कट्टरतावाद के खिलाफ निडर होकर तार्किकता पूर्ण लड़ाई लड़ने वाले गोविन्द पानसरे को 85 साल की उम्र में 20 फरवरी 2015 को सनातनी हिंदुवादियों द्वारा गोली मार दी गयी. अपनी पत्नी के साथ सुबह की सैर करके लौट रहे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के वरिष्ठ नेता, प्रखर वक्ता, लेखक, विचारक व् एक समाज सेवी वकील की हत्या कर दी गयी. फासीवादियों का चरित्र हिंसक होता है और वे अपने विरोधियों को हमेशा के लिए खामोश कर देने में विश्वास रखते हैं. दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी, व् गौरी लंकेश की हत्या धार्मिक रूढ़िवादिता का विचारशील वैज्ञानिक, तार्किक सोच से उपजे डर को दिखाती है.
सवाल ये उठता है कि गोविन्द पानसरे जैसे उम्रदराज व्यक्ति के किस कार्य की वजह से इनकी हत्या कर दी गयी? इत्तेफाक ही है कि 19 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्मदिन आता है जिसे पूरे महारष्ट्र में शिव जयंती के नाम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. और 20 फरवरी को गोविन्द पानसरे की हत्या कर दी जाती है जिन्होंने इस सच को समाज में स्थापित किया कि शिवाजी महाराज जनता के राजा थे न की किसी एक धर्म के राजा थे. जनता के राजा शिवाजी महाराज के धर्मनिरपेक्ष, महिला हितैषी, दूरदर्शी, जाति विरोधी, समानता पसंद वाले असली रूप को देश के सामने लाने के कारण गोविन्द पानसरे की हत्या कर दी जाती है. जननेता शिवाजी महाराज की सच्ची तस्वीर दुनिया को बताने की कीमत कामरेड गोविंद पानसरे ने अपनी जान देकर चुकाई है.
महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के पूर्व का काल और शिवाजी महाराज के बाद के काल में भारत का इतिहास विभाजित है. उनके शासनकाल को शिव काल भी कहा जाता है कुछ लोग शिवाजी महाराज को महाराज कम और भगवान ज्यादा देखते हैं. शिवाजी महाराज के लिए जो भावना लोगों के दिल में है वह आदत से शुरू होती है और भक्ति पर खत्म होती है. और इसीलिए शिवाजी का नाम जप कर बहुत सारे लोगों ने, बहुत सारे नेताओं ने राजनीति में अपना कद बनाया है. अपना नाम बनाया है. इसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन उनके नाम का इस्तेमाल कर उनके मूल स्वरुप को ही बदल कर उन्हें हिन्दू राजा घोषित करने की पुरजोर कोशिश रही है जिसमें गोविन्द पानसरे लिखित किताब ‘शिवाजी कोण होता?’ सबसे बड़ी बाधा है. इस किताब में स्वराज्य के राजा शिवाजी महाराज के असली स्वरुप को सबूतों के साथ दिखाया गया है जो तमाम कट्टरवादियों को खामोश होने पर मजबूर करती है.
महाराष्ट्र के हिंदू मराठा समाज में शिवाजी महाराज को केवल हिंदुओं का राजा घोषित करने की पुरजोर कोशिश की है. बरसों से यह बताने की कोशिश हो रही है कि निरीह हिंदुओं को आक्रांता मुसलमानों से शिवाजी महाराज ने बचाया था. शिवाजी महाराज ने हिंदू समाज को बचा लिया वरना जबरन मुसलमान सम्राट द्वारा सभी लोगों को मुसलमान बनाया जा चुका होता. जबकि न ही इसके कोई प्रमाण हैं और न ही कहीं लिखित विवरण.
शिवाजी महाराज का असली रूप हमें “शिवाजी कोण होता?” पुस्तक से प्राप्त होता है जो कम्युनिस्ट नेता पानसरे के द्वारा लिखी गई है और यह बात हिंदुत्व की राजनीति करने वाले लोगों को सबसे अधिक खटकती रही है. एक जनता के राजा के असल चरित्र को जो हिंदुत्व वादियों की वजह से खतरे में पड़ी हुई थी उसकी असली छवि एक वामपंथी नेता के द्वारा बाहर लाया गया. गोविन्द पानसरे ने कई सारे जमीनी आंदोलन चलाए और समाज सुधार की कोशिश की. जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी, अंधविश्वास से लड़ने के लिए अंधश्रद्धा निर्मूलन एक्ट को बनवाने में भूमिका निभाई. 11 मई 1987 को कोल्हापुर में गोविन्द पानसरे ने एक भाषण दिया था जिसमें शिवाजी महाराज को एक ऐसा राजा बताया गया था जिसका चरित्र धर्मनिरपेक्ष था, वे दूरदर्शी राजा था,जो समाज का राजा था और उस भाषण को ही लोगों ने उसे किताब लिखने की सलाह दी तभी सामने आयी किताब “शिवाजी कौन थे”.
गोविंद पानसरे की यह किताब ये साबित करती है कि शिवाजी महाराज एक धर्म के राजा नहीं थे जनता के राजा थे और जनता में हिंदू मुसलमान सिख धर्म आते हैं.
शिवाजी महाराज के राज्य में भी वर्ण व्यवस्था थी, राज्य में मजदूरी करने वालों की हालत सबसे ज्यादा खराब थी. जिसे बचाने के लिए शिवाजी ने कई काम किए थे .वह गुलामी प्रथा को खत्म किए.
इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि शिवाजी हिंदू राजा रहे हैं और उन्होंने हिंदुओं को मुसलमानों से बचाया है. यह किताब इस बात को बताती है कि मुसलमानों को लेकर शिवाजी महाराज के मन में कभी कोई दुर्भावना नहीं रही है. उनके बहुत करीबी साथियों और संरक्षकों में कई सारे मुसलमान रहे हैं.
एक सामंती राजा की स्तुति करने वाला कम्युनिस्ट नेता थे. यह विरोधाभास तब स्पष्ट हो जाता है जब वे विस्तार से बताते हैं कि शिवाजी ने अपनी रैयत (मेहनती) के कल्याण की देखभाल कैसे की? और उन पर कर का बोझ कम किया. पानसरे की व्याख्या में शिवाजी का महिलाओं के प्रति सम्मान प्रमुखता से सामने आता है. उन्होंने कल्याण की मुस्लिम बहू को वापस कैसे भेजा, जिसे लूट के हिस्से के रूप में लाया गया था, यह महाराष्ट्र में एक तरह की किंवदंती है. संयोग से, हिंदुत्व के विचारक वी.डी. सावरकर ने शिवाजी की इस मुस्लिम महिला को "छोड़ देने" के लिए आलोचना की और इस तरह मुस्लिम राजाओं के हाथों हिंदू महिलाओं के अपमान का बदला लेने का मौका गंवा दिया.
अपने पूरे जीवन में, पानसरे ने रूढ़िवादी वर्गों, विशेष रूप से हिंदुत्व की ताकतों के गलत इरादों को कुचल दिया उन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रवादी के रूप में महिमामंडित करने का विरोध किया था. उन्होंने दर्शकों को याद दिलाया कि गोडसे आरएसएस का हिस्सा था. उन्होंने ठाणे और गोवा में हुए विस्फोटों के लिए जांच के दायरे में आने वाली संस्था सनातन संस्था के क्रोध को आमंत्रित किया था. संगठन ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दर्ज कराया था. ये वही सनातन संस्था है जिसका नाम पानसरे की हत्या में शामिल बताया जाता है. सनातन संस्था के मुखपत्र सनातन प्रभात का कहना है कि वे प्रगतिशील शोध का सफाया करना चाहते हैं और देश में एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना चाहते हैं. यह निश्चित तौर पर असंवैधानिक रवैया है जो लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती है.
महाराष्ट्र ने सामजिक सुधार आन्दोलन, शिवाजी महाराज की समृद्ध इतिहास के साथ साथ राज्य को नवउदारवाद और धार्मिक रूढ़ीवाद के गिरफ्त में जाते देखा है. गोविन्द पानसरे नें मार्क्सवादी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महाराष्ट्र के स्वदेशी संस्कृति, समेत शिवाजी महाराज के इतिहास को बताया है. पिछले सात सालों में देश भर में अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले तेज हो चुके हैं. पत्रकारों, विद्याथियों कलाकारों,बुद्धिजीवियों व् किसानो को पर हमले करवाए जा रहे हैं. समाज के हर वर्ग के लोग त्रस्त हो चुके हैं और लगभग हर संस्थान पर सत्ता में बैठे इन तानशाहों की नजर पड़ चुकी है. देश की सार्वजानिक संस्थाओं को बर्बाद कर नव उदारवाद को पोषित करने वाली यह पहली सरकार है. लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के बात यह सरकार तानाशाही पर उतारू हो चुकी है. ऐसे हालत में आज भी गोविन्द पानसरे के परिजन न्याय के इन्तजार में हैं और देश न्यायपालिका की तरफ टकटकी लगाए उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है.
हिंदू राष्ट्र नहीं चाहते थे शिवाजी महाराज- गोविंद पानसरे
धार्मिक कट्टरतावाद के खिलाफ निडर होकर तार्किकता पूर्ण लड़ाई लड़ने वाले गोविन्द पानसरे को 85 साल की उम्र में 20 फरवरी 2015 को सनातनी हिंदुवादियों द्वारा गोली मार दी गयी. अपनी पत्नी के साथ सुबह की सैर करके लौट रहे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के वरिष्ठ नेता, प्रखर वक्ता, लेखक, विचारक व् एक समाज सेवी वकील की हत्या कर दी गयी. फासीवादियों का चरित्र हिंसक होता है और वे अपने विरोधियों को हमेशा के लिए खामोश कर देने में विश्वास रखते हैं. दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी, व् गौरी लंकेश की हत्या धार्मिक रूढ़िवादिता का विचारशील वैज्ञानिक, तार्किक सोच से उपजे डर को दिखाती है.
सवाल ये उठता है कि गोविन्द पानसरे जैसे उम्रदराज व्यक्ति के किस कार्य की वजह से इनकी हत्या कर दी गयी? इत्तेफाक ही है कि 19 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्मदिन आता है जिसे पूरे महारष्ट्र में शिव जयंती के नाम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. और 20 फरवरी को गोविन्द पानसरे की हत्या कर दी जाती है जिन्होंने इस सच को समाज में स्थापित किया कि शिवाजी महाराज जनता के राजा थे न की किसी एक धर्म के राजा थे. जनता के राजा शिवाजी महाराज के धर्मनिरपेक्ष, महिला हितैषी, दूरदर्शी, जाति विरोधी, समानता पसंद वाले असली रूप को देश के सामने लाने के कारण गोविन्द पानसरे की हत्या कर दी जाती है. जननेता शिवाजी महाराज की सच्ची तस्वीर दुनिया को बताने की कीमत कामरेड गोविंद पानसरे ने अपनी जान देकर चुकाई है.
महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के पूर्व का काल और शिवाजी महाराज के बाद के काल में भारत का इतिहास विभाजित है. उनके शासनकाल को शिव काल भी कहा जाता है कुछ लोग शिवाजी महाराज को महाराज कम और भगवान ज्यादा देखते हैं. शिवाजी महाराज के लिए जो भावना लोगों के दिल में है वह आदत से शुरू होती है और भक्ति पर खत्म होती है. और इसीलिए शिवाजी का नाम जप कर बहुत सारे लोगों ने, बहुत सारे नेताओं ने राजनीति में अपना कद बनाया है. अपना नाम बनाया है. इसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन उनके नाम का इस्तेमाल कर उनके मूल स्वरुप को ही बदल कर उन्हें हिन्दू राजा घोषित करने की पुरजोर कोशिश रही है जिसमें गोविन्द पानसरे लिखित किताब ‘शिवाजी कोण होता?’ सबसे बड़ी बाधा है. इस किताब में स्वराज्य के राजा शिवाजी महाराज के असली स्वरुप को सबूतों के साथ दिखाया गया है जो तमाम कट्टरवादियों को खामोश होने पर मजबूर करती है.
महाराष्ट्र के हिंदू मराठा समाज में शिवाजी महाराज को केवल हिंदुओं का राजा घोषित करने की पुरजोर कोशिश की है. बरसों से यह बताने की कोशिश हो रही है कि निरीह हिंदुओं को आक्रांता मुसलमानों से शिवाजी महाराज ने बचाया था. शिवाजी महाराज ने हिंदू समाज को बचा लिया वरना जबरन मुसलमान सम्राट द्वारा सभी लोगों को मुसलमान बनाया जा चुका होता. जबकि न ही इसके कोई प्रमाण हैं और न ही कहीं लिखित विवरण.
शिवाजी महाराज का असली रूप हमें “शिवाजी कोण होता?” पुस्तक से प्राप्त होता है जो कम्युनिस्ट नेता पानसरे के द्वारा लिखी गई है और यह बात हिंदुत्व की राजनीति करने वाले लोगों को सबसे अधिक खटकती रही है. एक जनता के राजा के असल चरित्र को जो हिंदुत्व वादियों की वजह से खतरे में पड़ी हुई थी उसकी असली छवि एक वामपंथी नेता के द्वारा बाहर लाया गया. गोविन्द पानसरे ने कई सारे जमीनी आंदोलन चलाए और समाज सुधार की कोशिश की. जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी, अंधविश्वास से लड़ने के लिए अंधश्रद्धा निर्मूलन एक्ट को बनवाने में भूमिका निभाई. 11 मई 1987 को कोल्हापुर में गोविन्द पानसरे ने एक भाषण दिया था जिसमें शिवाजी महाराज को एक ऐसा राजा बताया गया था जिसका चरित्र धर्मनिरपेक्ष था, वे दूरदर्शी राजा था,जो समाज का राजा था और उस भाषण को ही लोगों ने उसे किताब लिखने की सलाह दी तभी सामने आयी किताब “शिवाजी कौन थे”.
गोविंद पानसरे की यह किताब ये साबित करती है कि शिवाजी महाराज एक धर्म के राजा नहीं थे जनता के राजा थे और जनता में हिंदू मुसलमान सिख धर्म आते हैं.
शिवाजी महाराज के राज्य में भी वर्ण व्यवस्था थी, राज्य में मजदूरी करने वालों की हालत सबसे ज्यादा खराब थी. जिसे बचाने के लिए शिवाजी ने कई काम किए थे .वह गुलामी प्रथा को खत्म किए.
इस बात पर भी जोर दिया जाता है कि शिवाजी हिंदू राजा रहे हैं और उन्होंने हिंदुओं को मुसलमानों से बचाया है. यह किताब इस बात को बताती है कि मुसलमानों को लेकर शिवाजी महाराज के मन में कभी कोई दुर्भावना नहीं रही है. उनके बहुत करीबी साथियों और संरक्षकों में कई सारे मुसलमान रहे हैं.
एक सामंती राजा की स्तुति करने वाला कम्युनिस्ट नेता थे. यह विरोधाभास तब स्पष्ट हो जाता है जब वे विस्तार से बताते हैं कि शिवाजी ने अपनी रैयत (मेहनती) के कल्याण की देखभाल कैसे की? और उन पर कर का बोझ कम किया. पानसरे की व्याख्या में शिवाजी का महिलाओं के प्रति सम्मान प्रमुखता से सामने आता है. उन्होंने कल्याण की मुस्लिम बहू को वापस कैसे भेजा, जिसे लूट के हिस्से के रूप में लाया गया था, यह महाराष्ट्र में एक तरह की किंवदंती है. संयोग से, हिंदुत्व के विचारक वी.डी. सावरकर ने शिवाजी की इस मुस्लिम महिला को "छोड़ देने" के लिए आलोचना की और इस तरह मुस्लिम राजाओं के हाथों हिंदू महिलाओं के अपमान का बदला लेने का मौका गंवा दिया.
अपने पूरे जीवन में, पानसरे ने रूढ़िवादी वर्गों, विशेष रूप से हिंदुत्व की ताकतों के गलत इरादों को कुचल दिया उन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रवादी के रूप में महिमामंडित करने का विरोध किया था. उन्होंने दर्शकों को याद दिलाया कि गोडसे आरएसएस का हिस्सा था. उन्होंने ठाणे और गोवा में हुए विस्फोटों के लिए जांच के दायरे में आने वाली संस्था सनातन संस्था के क्रोध को आमंत्रित किया था. संगठन ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दर्ज कराया था. ये वही सनातन संस्था है जिसका नाम पानसरे की हत्या में शामिल बताया जाता है. सनातन संस्था के मुखपत्र सनातन प्रभात का कहना है कि वे प्रगतिशील शोध का सफाया करना चाहते हैं और देश में एक हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना चाहते हैं. यह निश्चित तौर पर असंवैधानिक रवैया है जो लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती है.
महाराष्ट्र ने सामजिक सुधार आन्दोलन, शिवाजी महाराज की समृद्ध इतिहास के साथ साथ राज्य को नवउदारवाद और धार्मिक रूढ़ीवाद के गिरफ्त में जाते देखा है. गोविन्द पानसरे नें मार्क्सवादी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महाराष्ट्र के स्वदेशी संस्कृति, समेत शिवाजी महाराज के इतिहास को बताया है. पिछले सात सालों में देश भर में अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले तेज हो चुके हैं. पत्रकारों, विद्याथियों कलाकारों,बुद्धिजीवियों व् किसानो को पर हमले करवाए जा रहे हैं. समाज के हर वर्ग के लोग त्रस्त हो चुके हैं और लगभग हर संस्थान पर सत्ता में बैठे इन तानशाहों की नजर पड़ चुकी है. देश की सार्वजानिक संस्थाओं को बर्बाद कर नव उदारवाद को पोषित करने वाली यह पहली सरकार है. लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के बात यह सरकार तानाशाही पर उतारू हो चुकी है. ऐसे हालत में आज भी गोविन्द पानसरे के परिजन न्याय के इन्तजार में हैं और देश न्यायपालिका की तरफ टकटकी लगाए उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है.