चंदौली ज़िले के चकिया रेंज की केवलाखंड (बहेलियापुर बंधी) में, वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले किसानों को उनकी पुश्तैनी ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है। उनकी ज़मीनों पर जबरन गड्ढे खुदवाएं जा रहे हैं और फ़सलें रौंदी जा रही हैं।
किसानों की जमीन पर बुल्डोजर लेकर पहुंचे पुलिस और प्रशासनिक अफसर
देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सिंह के पैतृक गांव भभौरा (चंदौली) के उन तमाम किसानों की फसलों पर बुलडोज़र चलवा दिया गया जिनकी ज़मीन को दशकों पहले सिंचाई विभाग ने खेती करने के लिए पट्टे पर दिया था। वन विभाग की टीम ने कुछ रोज़ पहले पुलिस फोर्स की मदद से केवलाखंड इलाके में करीब दो सौ बीघे ज़मीन पर कब्ज़ा लेने के लिए किसानों की फसलें जेसीबी लगाकर रौंद दी। आरोप है कि खेतों के बीच में गहरी खाई खोदकर विवादित ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की जा रही है। ख़ास बात यह है कि वन विभाग जिस ज़मीन को अपना बता रहा है, उस ज़मीन को सिंचाई विभाग अपना बता रहा है। वन विभाग की कार्रवाई के खिलाफ अखिल भारतीय खेत मज़दूर सभा ने बीते रविवार को प्रतिरोध मार्च निकाला और सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध किया।
फसल रौंदती जेसीबी
केवलाखंड इलाका विंध्य पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा है। यहां से कुछ फर्लांग की दूरी पर है देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का पैतृक गांव-भभौरा। इस गांव में न सिर्फ उनका जन्म हुआ, बल्कि यहीं उनकी पढ़ाई-लिखाई भी हुई। केवलाखंड में जिन किसानों के खिलाफ वन विभाग ने दमन की कार्रवाई की, उनमें ज़्यादातर भभौरा क्षेत्र के हैं जो दशकों से सिंचाई विभाग से पट्टा लेकर खेती-किसानी करते आ रहे थे। चंदौली जिले के चकिया और नौगढ़ प्रखंड में प्रखंड विंध्य की पहाड़ियों में खरवार, अगरिया, चेरो, गोंड, बैगा, उरांव और कोरबा जनजाति के आदिवासियों के घर हैं, जहां वो खेती-मजूरी कर अपना जीवनयापन करते हैं। इनके अलावा पिछड़ी जातियों के लोग भी वन भूमि पर दशकों से खेती-किसानी करते आ रहे हैं। चकिया और नौगढ़ इलाके के करीब 14 हज़ार किसानों ने साल 2011-12 में ज़मीन के पट्टों के लिए अर्ज़ी दी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
आदिवासियों की अर्जियों पर कार्रवाई नहीं
वन विभाग के कब्ज़े पर विवाद
इस बीच आरोप है कि वन विभाग ने अपनी लापता ज़मीनों को ढूंढने के नाम पर अब आदिवासियों और पिछड़ी जातियों के लोगों के खेतों पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया है। बेदखली की कार्रवाई से किसानों के मन में विद्रोह के स्वर उठ रहें हैं। आदिवासियों और वनवासियों की फसलों को जेसीबी से रौंदे जाने और उनकी झोपड़ियों को नेस्तनाबूत किए जाने के विरोध में 05 फरवरी को अखिल भारतीय खेत मज़दूर सभा ने प्रतिरोध मार्च निकाला। इस दौरान वन विभाग की कार्रवाई को दमनकारी बताते हुए निर्वासित लोगों को ज़मीन पर पट्टा दिलाने की मांग की गई। इस दौरान वन विभाग की बेदखली की एकतरफा कार्रवाई की सख्त आलोचना करते हुए किसानों ने अपने हक-हकूक के लिए आंदोलन तेज़ करने का अल्टीमेटम दिया। मज़दूर सभा ने चेतावनी दी कि जब तक उनकी मांगों पर विचार नहीं किया जाएगा, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
प्रतिरोध मार्च निकलती किसान मजदूर सभा
केवलाखंड में अर्जुन यादव के पास करीब दस बीघे ज़मीन हैं। जिस समय चंदौली जिले का चकिया इलाका स्टेट हुआ करता था उस समय सिंचाई विभाग ने खेती करने के लिए उनके कुनबे को ज़मीन आवंटित की थी। सिंचाई विभाग की ओर से साल 1932 में काटी गई रसीद को दिखाते हुए अर्जुन कहते हैं, ''कोई हमें हमारा कुसूर बताए। हम शांतिपूर्वक जी रहे थे। वन विभाग ने बगैर किसी सूचना या नोटिस के हमारी फसलों पर बुलडोज़र चलवा दिया। हमारी हज़ारों रुपये की फसलें बर्बाद हो गई। हम गुहार लगाते रहे कि हमें फसल पकने तक का मौका दे दिया जाए, लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी।''
भभौरा निवासी अमरनाथ की करीब तीस बीघा लहलहाती फसल तहस-नहस कर दी गई। इनके पास करीब चालीस बीघा ज़मीन है। वो कहते हैं, ''जेसीबी से हमारी वे फसलें रौंद दी गईं, जिन पर हम करीब 40 बरस से जी रहे थे। हमें कोई सूचना नहीं दी गई। हमारी मड़ई भी तोड़ दी गई। अगर हमारी ज़मीने छीन ली गईं तो हम भूमिहीन हो जाएंगें। हमारे परिवार के सामने भूके मरने की नौबत आ जाएगी।'' कुछ इसी तरह का दर्द नारायण दास, रामचेत, पारस यादव, राम सिंह, सुकालु यादव और रामचरित्र वनवासी का भी है।
चंदौली में 1.79 वर्ग किमी जंगल लापता
यूपी के चंदौली जिले में वन विभाग के अधिकारी, आदिवासियों और जंगलों में खेती-किसानी करने वालों की ज़मीनों को इसलिए घेर रहे हैं, क्योंकि उनका एक बड़ा वनक्षेत्र लापता हो गया है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से 14 जनवरी 2022 को भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमें इस बात का खुलासा किया गया है कि चंदौली में 1.79 वर्ग किमी जंगल कम हो गया है। यूपी में सर्वाधिक जंगल सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के चकिया-नौगढ़ प्रखंड में हैं। इन्हीं जंगलों की बदौलत पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के लोग सांस लेते हैं।
चंद्रप्रभा वन्य अभ्यारण में रहने वाले जमसोती के राम विलास और उनकी पत्नी जगवंती कहती हैं, ''जंगलों में यहां पहले बाघ, चीते, लोमड़ी, भालू, सियार और न जाने कितने जीव-जंतु हमारे साथ रहा करते थे। हमें बाघ और चीतों से ज़्यादा वन विभाग के लोगों से डर है। वो हमें हमारे वनाधिकारों से वंचित करना चाहते हैं। योजनाबद्ध ढंग से हमें बेदखल करने की साज़िश रची जा रही है। पहले हमारे सामने आर्थिक तंगी नहीं थी। नया वन कानून लागू होने के बाद वनक्षेत्र में तमाम प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। तेंदू पत्ता, महुआ, पियार आदि को चुनकर आदिवासी बेचते थे और यही हमारी आजीविका थी जिस पर अब रोक लगा दी गई है। काशी वन्य जीव प्रभाग के वन भीषणपुर, ढोढ़नपुर, छीतमपुर, पोखरियाडीह, मूसाखांड़,विजयपुरवा, भादरखड़ा, मुजफ्फरपुर, नेवाजगंज, शिकारगंज, पुरानाडीह, बोदलपुर चिल्लाह, लेहरा, जमसोती, गोडटुटवा, मुबारकपुर, परना, शिंकारे और भभौरा समेत तमाम इलाकों में वन विभाग की कार्रवाई से आदिवासियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।''
चकिया प्रखंड के केवलाखंड में करीब दौ सौ बीघा ज़मीन में भभौरा और आसापास के लोग कई दशकों से खेती-किसानी करते आ रहे हैं। भभौरा, मुसाहिदपुर, रामपुर, गरला आदि गांवों के सैकड़ों किसान कई सालों से केवलाखंड और भोका बंधी इलाके में अरहर और सरसो की खेती करते आ रहे हैं। खेतों में किसानों की मड़इयां भी हैं, जहां उनके मवेशी भी पलते हैं।
सिंचाई व वन विभाग में ठनी
जनवरी 2023 के आखिरी हफ्ते में चकिया के रेंजर योगेश कुमार सिंह भारी पुलिस फोर्स के साथ केवलाखंड पहुंचे और अरहर व सरसों की फसलों को जेसीबी से कुचलना शुरू कर दिया। मौके पर जुटे किसान रोते-बिलखते रहे लेकिन वनाधिकारियों ने उनकी एक नहीं सुनी। किसानों की मड़इयां तोड़ दी गईं और उनकी फसलों को तहस-नहस कर दिया गया। वन विभाग के रेंजर योगेश कुमार सिंह ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, ''हमनें सिर्फ उन्हीं ज़मीनों पर कब्ज़ा किया जो वन विभाग की थीं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार उन ज़मीनों को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता है। एक्शन सिर्फ उन्हीं लोगों के खिलाफ लिया गया है जो वास्तव में अतिक्रमणकारी थे। पिछले 25 सालों से कई लोग वन भूमि पर कब्ज़ा करके रह रहे थे। हमनें मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में वन विभाग की ज़मीन खाली कराई है। कब्ज़े की कार्रवाई में कुछ फसलों को नुकसान हुआ होगा, लेकिन हमारी मंशा फसलों को रौंदने की नहीं थी। फिलहाल केवलाखंड में 50 हेक्टेयर वन भूमि खाली करा ली गई गई है। यहां करीब सौ हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण के दायरे में है। भोका बंधी में भी वन भूमि पर कब्ज़े किए गए हैं, जिसे जल्द ही मुक्त कराया जाएगा।''
रेंजर योगेश के मुताबिक, ''केवलाखंड में करीब 25 बरस पहले घना जंगल हुआ करता था। बारी-बारी से लोगों ने वहां ज़मीनें कब्ज़ा करनी शुरू की, जिसे अब छुड़ाया जा रहा है। बारिश के सीज़न में खाली कराई गई ज़मीनों पर पौधा रोपण कराया जाएगा। वन विभाग ने किसी की भूमिधर ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया है। जिन लोगों ने स्टे ले रखा है उसे खारिज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। वन भूमि पर ज़्यादातर कब्ज़े सपा के शासन में हुए हैं।''
जमीन का स्टे, फिर भी फसल पर चलवा दिया गया बुल्डोजर
जिस ज़मीन को वन विभाग अपना बता रहा है, सिंचाई विभाग उस पर अपना दावा कर रहा है। सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता सर्वेश चंद्र सिन्हा ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, ''वन विभाग जिस ज़मीन को अपना बता रहा है वह ज़मीन सिंचाई विभाग की है। भोका बंधी भी हमारी है। इस बंधी में मछली मारने के लिए 14 लाख रुपये का ठेका भी दिया गया है। सिंचाई विभाग की ज़मीन को वन विभाग भला कैसे ले सकता है? हम चाहते हैं कि पहले हमारी ज़मीनों की नपाई कराई जाए। वन विभाग किसी भी ज़मीन को अपना नहीं बता सकता। उसे साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे।''
साल 1932 से था पट्टा
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) की राज्य कार्यसमिति के सदस्य अजय राय कहते हैं, ''केवलाखंड में जिन किसानों की अरहर और सरसों की फसलें रौंदी गई हैं उन पर वो साल 1932 से खेती करते आ रहे हैं। सिंचाई विभाग ने खुद किसानों को खेती करने के लिए ज़मीनों का पट्टा आवंटित किया था। इसी आधार पर सिंचाई विभाग ने वन विभाग को अपनी कार्रवाई रोकने का निर्देश दिया है। सिंचाई विभाग ने किसानों की ज़मीनों के पट्टे का नवीनीकरण नहीं किया है, लेकिन उन्हें बेदखली का नोटिस भी नहीं दिया है। वन विभाग ने उन फसलों पर भी बुलडोज़र चलवा दिया, जिस पर हाईकोर्ट और चंदौली के सीजेएम कोर्ट ने साल 2016 में स्थगनादेश दिया था। वन विभाग ने जिन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है उनमें ज़्यादातर मुसहर, दलित और यादव समुदाय के लोग हैं। चंदौली जिले में वन विभाग के कई सर्वेयर और वॉचर जंगल की ज़मीनों पर अवैध रूप से काबिज़ हैं। वन विभाग से रिटायर होकर वे और उनका परिवार जंगल की ज़मीनों पर कब्ज़ा करे हुए हैं, लेकिन महकमे के अधिकारी आंख बंद किए हुए हैं। रसिया गांव में वन कर्मियों के अवैध कब्जों की शिकायतें कई बार की गईं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।''
अजय राय यह भी कहते हैं, "केवलाखंड में वन विभाग की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध है। बुलडोज़र चलाने से पहले किसानों को न तो नोटिस तामीन कराई गई और न ही उन्हें अपनी फसलें काटने का मौका दिया गया। जिन ज़मीनों से लोगों को बेदखल किया गया है, उनका दावा उन 14 हज़ार लोगों में शामिल है जो साल 2011-12 से विचाराधीन हैं। इसके अलावा छह हज़ार नए दावे हैं, जिनका निस्तारण किया जाना बाकी है। आईपीएफ से जुड़ी आदिवासी वनवासी महासभा ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका संख्या 56003/2017 दायर की थी, जिस पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने 24नवंबर 2017 को वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले अनुसूचित जनजातियों और परंपरागत वन निवासियों के उत्पीड़न पर रोक लगा रखी है।
दशहत का माहौल
हाईकोर्ट ने साल 2018के आदेश में सभी दावेदारों को उचित समय देने और समय सीमा के अंदर उनके मामलों का निस्तारण करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद चंदौली जिले के चकिया रेंज की केवलाखंड (बहेलियापुर बंधी) में, वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले किसानों को उनकी पुश्तैनी ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है। उनकी ज़मीनों पर जबरन गड्ढे खुदवाएं जा रहे हैं और फसलें रौंदी जा रही हैं। किसानों की लहलहाती फसलों को जोत दिया गया। लगातार उत्पीड़न की कार्रवाई से इलाके में दहशत का माहौल है।
मज़दूर किसान मंच के जिला संयोजक रामेश्वर प्रसाद और जिला संयोजक अखिलेश दूबे बताते हैं, ''वन अधिकार कानून के तहत तहसील स्तरीय खंड समिति ने वनवासियों के 9362 दावों को खारिज कर दिया। अगर साक्ष्य के अभाव में वो दावों को खारिज भी करती हैं तो उस वन में खेती करने वाले किसानों को लिखित जानकारी देनी चाहिए, ताकि वो जिला स्तर की वनाधिकार कमेटी मे अपील दर्ज करा सकें, तब तक उत्पीड़न की कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, लेकिन हो रहा है इसके बिल्कुल उल्टा। किसानों की फसलों को बर्बाद किया जा रहा हैं। वन विभाग की इस कार्रवाई से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के भभौरा गांव के उन किसानों में जबर्दस्त आक्रोश हैं, जो केवलाखंड में कई दशकों से खेती-किसानी कर अपनी आजीविका चला रहे थे।''
वन विभाग की कार्रवाई रोकने के लिए आईपीएफ ने काशी वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी से मिलकर शिकायत दर्ज कराई है। केवलाखंड़ में जिस ज़मीन पर वन विभाग अपनी दावेदारी पेश कर रहा है उस ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। वन विभाग जिसे जंगल की ज़मीन बता रहा है, उस पर सिंचाई विभाग अपनी दावेदारी पेश कर रहा है। किसानों का कहना है कि वन विभाग जिन ज़मीनों को अपनी बता रहा है उन पर उनकी कई पुश्तें खेती-किसानी करती आ रही हैं। ऐसे में उनकी फसलें कैसे उजाड़ी जा सकती हैं और ज़मीनों से उन्हें बेदखल कैसे किया जा सकता है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
Courtesy: Newsclick
किसानों की जमीन पर बुल्डोजर लेकर पहुंचे पुलिस और प्रशासनिक अफसर
देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सिंह के पैतृक गांव भभौरा (चंदौली) के उन तमाम किसानों की फसलों पर बुलडोज़र चलवा दिया गया जिनकी ज़मीन को दशकों पहले सिंचाई विभाग ने खेती करने के लिए पट्टे पर दिया था। वन विभाग की टीम ने कुछ रोज़ पहले पुलिस फोर्स की मदद से केवलाखंड इलाके में करीब दो सौ बीघे ज़मीन पर कब्ज़ा लेने के लिए किसानों की फसलें जेसीबी लगाकर रौंद दी। आरोप है कि खेतों के बीच में गहरी खाई खोदकर विवादित ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की जा रही है। ख़ास बात यह है कि वन विभाग जिस ज़मीन को अपना बता रहा है, उस ज़मीन को सिंचाई विभाग अपना बता रहा है। वन विभाग की कार्रवाई के खिलाफ अखिल भारतीय खेत मज़दूर सभा ने बीते रविवार को प्रतिरोध मार्च निकाला और सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध किया।
फसल रौंदती जेसीबी
केवलाखंड इलाका विंध्य पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा है। यहां से कुछ फर्लांग की दूरी पर है देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का पैतृक गांव-भभौरा। इस गांव में न सिर्फ उनका जन्म हुआ, बल्कि यहीं उनकी पढ़ाई-लिखाई भी हुई। केवलाखंड में जिन किसानों के खिलाफ वन विभाग ने दमन की कार्रवाई की, उनमें ज़्यादातर भभौरा क्षेत्र के हैं जो दशकों से सिंचाई विभाग से पट्टा लेकर खेती-किसानी करते आ रहे थे। चंदौली जिले के चकिया और नौगढ़ प्रखंड में प्रखंड विंध्य की पहाड़ियों में खरवार, अगरिया, चेरो, गोंड, बैगा, उरांव और कोरबा जनजाति के आदिवासियों के घर हैं, जहां वो खेती-मजूरी कर अपना जीवनयापन करते हैं। इनके अलावा पिछड़ी जातियों के लोग भी वन भूमि पर दशकों से खेती-किसानी करते आ रहे हैं। चकिया और नौगढ़ इलाके के करीब 14 हज़ार किसानों ने साल 2011-12 में ज़मीन के पट्टों के लिए अर्ज़ी दी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
आदिवासियों की अर्जियों पर कार्रवाई नहीं
वन विभाग के कब्ज़े पर विवाद
इस बीच आरोप है कि वन विभाग ने अपनी लापता ज़मीनों को ढूंढने के नाम पर अब आदिवासियों और पिछड़ी जातियों के लोगों के खेतों पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया है। बेदखली की कार्रवाई से किसानों के मन में विद्रोह के स्वर उठ रहें हैं। आदिवासियों और वनवासियों की फसलों को जेसीबी से रौंदे जाने और उनकी झोपड़ियों को नेस्तनाबूत किए जाने के विरोध में 05 फरवरी को अखिल भारतीय खेत मज़दूर सभा ने प्रतिरोध मार्च निकाला। इस दौरान वन विभाग की कार्रवाई को दमनकारी बताते हुए निर्वासित लोगों को ज़मीन पर पट्टा दिलाने की मांग की गई। इस दौरान वन विभाग की बेदखली की एकतरफा कार्रवाई की सख्त आलोचना करते हुए किसानों ने अपने हक-हकूक के लिए आंदोलन तेज़ करने का अल्टीमेटम दिया। मज़दूर सभा ने चेतावनी दी कि जब तक उनकी मांगों पर विचार नहीं किया जाएगा, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
प्रतिरोध मार्च निकलती किसान मजदूर सभा
केवलाखंड में अर्जुन यादव के पास करीब दस बीघे ज़मीन हैं। जिस समय चंदौली जिले का चकिया इलाका स्टेट हुआ करता था उस समय सिंचाई विभाग ने खेती करने के लिए उनके कुनबे को ज़मीन आवंटित की थी। सिंचाई विभाग की ओर से साल 1932 में काटी गई रसीद को दिखाते हुए अर्जुन कहते हैं, ''कोई हमें हमारा कुसूर बताए। हम शांतिपूर्वक जी रहे थे। वन विभाग ने बगैर किसी सूचना या नोटिस के हमारी फसलों पर बुलडोज़र चलवा दिया। हमारी हज़ारों रुपये की फसलें बर्बाद हो गई। हम गुहार लगाते रहे कि हमें फसल पकने तक का मौका दे दिया जाए, लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी।''
भभौरा निवासी अमरनाथ की करीब तीस बीघा लहलहाती फसल तहस-नहस कर दी गई। इनके पास करीब चालीस बीघा ज़मीन है। वो कहते हैं, ''जेसीबी से हमारी वे फसलें रौंद दी गईं, जिन पर हम करीब 40 बरस से जी रहे थे। हमें कोई सूचना नहीं दी गई। हमारी मड़ई भी तोड़ दी गई। अगर हमारी ज़मीने छीन ली गईं तो हम भूमिहीन हो जाएंगें। हमारे परिवार के सामने भूके मरने की नौबत आ जाएगी।'' कुछ इसी तरह का दर्द नारायण दास, रामचेत, पारस यादव, राम सिंह, सुकालु यादव और रामचरित्र वनवासी का भी है।
चंदौली में 1.79 वर्ग किमी जंगल लापता
यूपी के चंदौली जिले में वन विभाग के अधिकारी, आदिवासियों और जंगलों में खेती-किसानी करने वालों की ज़मीनों को इसलिए घेर रहे हैं, क्योंकि उनका एक बड़ा वनक्षेत्र लापता हो गया है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से 14 जनवरी 2022 को भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमें इस बात का खुलासा किया गया है कि चंदौली में 1.79 वर्ग किमी जंगल कम हो गया है। यूपी में सर्वाधिक जंगल सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के चकिया-नौगढ़ प्रखंड में हैं। इन्हीं जंगलों की बदौलत पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के लोग सांस लेते हैं।
चंद्रप्रभा वन्य अभ्यारण में रहने वाले जमसोती के राम विलास और उनकी पत्नी जगवंती कहती हैं, ''जंगलों में यहां पहले बाघ, चीते, लोमड़ी, भालू, सियार और न जाने कितने जीव-जंतु हमारे साथ रहा करते थे। हमें बाघ और चीतों से ज़्यादा वन विभाग के लोगों से डर है। वो हमें हमारे वनाधिकारों से वंचित करना चाहते हैं। योजनाबद्ध ढंग से हमें बेदखल करने की साज़िश रची जा रही है। पहले हमारे सामने आर्थिक तंगी नहीं थी। नया वन कानून लागू होने के बाद वनक्षेत्र में तमाम प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। तेंदू पत्ता, महुआ, पियार आदि को चुनकर आदिवासी बेचते थे और यही हमारी आजीविका थी जिस पर अब रोक लगा दी गई है। काशी वन्य जीव प्रभाग के वन भीषणपुर, ढोढ़नपुर, छीतमपुर, पोखरियाडीह, मूसाखांड़,विजयपुरवा, भादरखड़ा, मुजफ्फरपुर, नेवाजगंज, शिकारगंज, पुरानाडीह, बोदलपुर चिल्लाह, लेहरा, जमसोती, गोडटुटवा, मुबारकपुर, परना, शिंकारे और भभौरा समेत तमाम इलाकों में वन विभाग की कार्रवाई से आदिवासियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।''
चकिया प्रखंड के केवलाखंड में करीब दौ सौ बीघा ज़मीन में भभौरा और आसापास के लोग कई दशकों से खेती-किसानी करते आ रहे हैं। भभौरा, मुसाहिदपुर, रामपुर, गरला आदि गांवों के सैकड़ों किसान कई सालों से केवलाखंड और भोका बंधी इलाके में अरहर और सरसो की खेती करते आ रहे हैं। खेतों में किसानों की मड़इयां भी हैं, जहां उनके मवेशी भी पलते हैं।
सिंचाई व वन विभाग में ठनी
जनवरी 2023 के आखिरी हफ्ते में चकिया के रेंजर योगेश कुमार सिंह भारी पुलिस फोर्स के साथ केवलाखंड पहुंचे और अरहर व सरसों की फसलों को जेसीबी से कुचलना शुरू कर दिया। मौके पर जुटे किसान रोते-बिलखते रहे लेकिन वनाधिकारियों ने उनकी एक नहीं सुनी। किसानों की मड़इयां तोड़ दी गईं और उनकी फसलों को तहस-नहस कर दिया गया। वन विभाग के रेंजर योगेश कुमार सिंह ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, ''हमनें सिर्फ उन्हीं ज़मीनों पर कब्ज़ा किया जो वन विभाग की थीं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार उन ज़मीनों को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता है। एक्शन सिर्फ उन्हीं लोगों के खिलाफ लिया गया है जो वास्तव में अतिक्रमणकारी थे। पिछले 25 सालों से कई लोग वन भूमि पर कब्ज़ा करके रह रहे थे। हमनें मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में वन विभाग की ज़मीन खाली कराई है। कब्ज़े की कार्रवाई में कुछ फसलों को नुकसान हुआ होगा, लेकिन हमारी मंशा फसलों को रौंदने की नहीं थी। फिलहाल केवलाखंड में 50 हेक्टेयर वन भूमि खाली करा ली गई गई है। यहां करीब सौ हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमण के दायरे में है। भोका बंधी में भी वन भूमि पर कब्ज़े किए गए हैं, जिसे जल्द ही मुक्त कराया जाएगा।''
रेंजर योगेश के मुताबिक, ''केवलाखंड में करीब 25 बरस पहले घना जंगल हुआ करता था। बारी-बारी से लोगों ने वहां ज़मीनें कब्ज़ा करनी शुरू की, जिसे अब छुड़ाया जा रहा है। बारिश के सीज़न में खाली कराई गई ज़मीनों पर पौधा रोपण कराया जाएगा। वन विभाग ने किसी की भूमिधर ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया है। जिन लोगों ने स्टे ले रखा है उसे खारिज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। वन भूमि पर ज़्यादातर कब्ज़े सपा के शासन में हुए हैं।''
जमीन का स्टे, फिर भी फसल पर चलवा दिया गया बुल्डोजर
जिस ज़मीन को वन विभाग अपना बता रहा है, सिंचाई विभाग उस पर अपना दावा कर रहा है। सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता सर्वेश चंद्र सिन्हा ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, ''वन विभाग जिस ज़मीन को अपना बता रहा है वह ज़मीन सिंचाई विभाग की है। भोका बंधी भी हमारी है। इस बंधी में मछली मारने के लिए 14 लाख रुपये का ठेका भी दिया गया है। सिंचाई विभाग की ज़मीन को वन विभाग भला कैसे ले सकता है? हम चाहते हैं कि पहले हमारी ज़मीनों की नपाई कराई जाए। वन विभाग किसी भी ज़मीन को अपना नहीं बता सकता। उसे साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे।''
साल 1932 से था पट्टा
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) की राज्य कार्यसमिति के सदस्य अजय राय कहते हैं, ''केवलाखंड में जिन किसानों की अरहर और सरसों की फसलें रौंदी गई हैं उन पर वो साल 1932 से खेती करते आ रहे हैं। सिंचाई विभाग ने खुद किसानों को खेती करने के लिए ज़मीनों का पट्टा आवंटित किया था। इसी आधार पर सिंचाई विभाग ने वन विभाग को अपनी कार्रवाई रोकने का निर्देश दिया है। सिंचाई विभाग ने किसानों की ज़मीनों के पट्टे का नवीनीकरण नहीं किया है, लेकिन उन्हें बेदखली का नोटिस भी नहीं दिया है। वन विभाग ने उन फसलों पर भी बुलडोज़र चलवा दिया, जिस पर हाईकोर्ट और चंदौली के सीजेएम कोर्ट ने साल 2016 में स्थगनादेश दिया था। वन विभाग ने जिन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है उनमें ज़्यादातर मुसहर, दलित और यादव समुदाय के लोग हैं। चंदौली जिले में वन विभाग के कई सर्वेयर और वॉचर जंगल की ज़मीनों पर अवैध रूप से काबिज़ हैं। वन विभाग से रिटायर होकर वे और उनका परिवार जंगल की ज़मीनों पर कब्ज़ा करे हुए हैं, लेकिन महकमे के अधिकारी आंख बंद किए हुए हैं। रसिया गांव में वन कर्मियों के अवैध कब्जों की शिकायतें कई बार की गईं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।''
अजय राय यह भी कहते हैं, "केवलाखंड में वन विभाग की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध है। बुलडोज़र चलाने से पहले किसानों को न तो नोटिस तामीन कराई गई और न ही उन्हें अपनी फसलें काटने का मौका दिया गया। जिन ज़मीनों से लोगों को बेदखल किया गया है, उनका दावा उन 14 हज़ार लोगों में शामिल है जो साल 2011-12 से विचाराधीन हैं। इसके अलावा छह हज़ार नए दावे हैं, जिनका निस्तारण किया जाना बाकी है। आईपीएफ से जुड़ी आदिवासी वनवासी महासभा ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका संख्या 56003/2017 दायर की थी, जिस पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने 24नवंबर 2017 को वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले अनुसूचित जनजातियों और परंपरागत वन निवासियों के उत्पीड़न पर रोक लगा रखी है।
दशहत का माहौल
हाईकोर्ट ने साल 2018के आदेश में सभी दावेदारों को उचित समय देने और समय सीमा के अंदर उनके मामलों का निस्तारण करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद चंदौली जिले के चकिया रेंज की केवलाखंड (बहेलियापुर बंधी) में, वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले किसानों को उनकी पुश्तैनी ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है। उनकी ज़मीनों पर जबरन गड्ढे खुदवाएं जा रहे हैं और फसलें रौंदी जा रही हैं। किसानों की लहलहाती फसलों को जोत दिया गया। लगातार उत्पीड़न की कार्रवाई से इलाके में दहशत का माहौल है।
मज़दूर किसान मंच के जिला संयोजक रामेश्वर प्रसाद और जिला संयोजक अखिलेश दूबे बताते हैं, ''वन अधिकार कानून के तहत तहसील स्तरीय खंड समिति ने वनवासियों के 9362 दावों को खारिज कर दिया। अगर साक्ष्य के अभाव में वो दावों को खारिज भी करती हैं तो उस वन में खेती करने वाले किसानों को लिखित जानकारी देनी चाहिए, ताकि वो जिला स्तर की वनाधिकार कमेटी मे अपील दर्ज करा सकें, तब तक उत्पीड़न की कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, लेकिन हो रहा है इसके बिल्कुल उल्टा। किसानों की फसलों को बर्बाद किया जा रहा हैं। वन विभाग की इस कार्रवाई से रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के भभौरा गांव के उन किसानों में जबर्दस्त आक्रोश हैं, जो केवलाखंड में कई दशकों से खेती-किसानी कर अपनी आजीविका चला रहे थे।''
वन विभाग की कार्रवाई रोकने के लिए आईपीएफ ने काशी वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी से मिलकर शिकायत दर्ज कराई है। केवलाखंड़ में जिस ज़मीन पर वन विभाग अपनी दावेदारी पेश कर रहा है उस ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। वन विभाग जिसे जंगल की ज़मीन बता रहा है, उस पर सिंचाई विभाग अपनी दावेदारी पेश कर रहा है। किसानों का कहना है कि वन विभाग जिन ज़मीनों को अपनी बता रहा है उन पर उनकी कई पुश्तें खेती-किसानी करती आ रही हैं। ऐसे में उनकी फसलें कैसे उजाड़ी जा सकती हैं और ज़मीनों से उन्हें बेदखल कैसे किया जा सकता है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
Courtesy: Newsclick