किसान मुद्दे: पंजाब में आंदोलन से झुकी AAP सरकार, यूपी में तकरार

Written by Navnish Kumar | Published on: May 18, 2022
गेहूं की कम पैदावार के चलते बोनस, बिजली व डीजल सब्सिडी, एमएसपी और भुगतान जैसे मुद्दों को लेकर पंजाब में मोहाली बॉर्डर पर किसानों ने दिल्ली की तरह आंदोलन शुरू कर दिया है लेकिन उत्तर प्रदेश में आम किसान, नेताओं का मुंह ताक रहे हैं। और किसान नेता हैं कि असली और नकली यूनियन की तकरार में उलझकर अपनी रही सही ताकत को भी गंवा रहे हैं। हालांकि पंजाब सरकार ने किसानों की 13 में से 12 मांगें स्वीकार कर ली हैं।  



खास है कि भाकियू टिकैत से किसान नेताओं का एक गुट अलग हो गया है और उन्होंने भाकियू अराजनैतिक नाम से नई यूनियन बनाई है। इस गुट में कई प्रमुख चेहरे शामिल हैं। खबर आई थी कि भाकियू अराजनैतिक ने नरेश और राकेश टिकैत को यूनियन से बाहर का रास्ता दिखा दिया है जबकि राकेश टिकैत का कहना है कि वो ही असली भारतीय किसान यूनियन है जिसके एक धड़े ने टूटकर भाकियू अराजनैतिक नाम से नई यूनियन बनाई है। बहरहाल कागजों में कौन असली कौन नकली है लेकिन आम किसानों का कहना है कि जो किसान के मुद्दों पर सड़कों पर लड़ेगा, उन्हें न्याय दिलाएगा उनके लिए तो वही असली यूनियन होगी। दरअसल यूपी में किसान बढ़ती मंहगाई का सामना नही कर पा रहा है। ऊपर से गन्ना भुगतान न होने व भूमि अधिग्रहण के नाम पर हो रही लूट जैसे मुद्दे भी कम नहीं है।

खैर, पंजाब में किसानों ने भगवंत मान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। 23 किसान संगठनों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर पर राज्य सरकार के खिलाफ धरना शुरू कर दिया है। किसान दिल्ली की तरह अपने साथ धरना स्थल पर ट्रैक्टर-ट्रॉली में राशन, बिस्तर, पंखे, कूलर और रसोई गैस सिलेंडर और अन्य आवश्यक सामान लेकर आए हैं। जानकारी के मुताबिक पुलिस ने किसानों को चंडीगढ़ में प्रवेश करने के दौरान चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर ही रोक दिया है जिसके बाद किसानों ने धरना शुरू कर दिया। इस दौरान एक किसान ने कहा कि उनकी 11 मांगें पूरी होने तक विरोध जारी रहेगा।

प्रदर्शनकारी किसानों की कई मांगों में एक में समय से पहले गर्मी के कारण गेहूं की फसल की बर्बादी झेलने वाले किसानों को 500 रुपये प्रति क्विंटल बोनस (मुआवजा) व 10 जून से पहले धान की बुआई की अनुमति दिए जाने की भी शामिल हैं। पंजाब में किसान संगठनों का कहना था कि राज्य की आम आदमी पार्टी की सरकार ने वादा किया था कि गेहूं के लिए 500 रुपए बोनस दिए जाएंगे, खुद मुख्यमंत्री ने इस पर सहमति जताई थी, लेकिन उसकी अधिसूचना अभी तक जारी नहीं की। इससे राज्य की आम आदमी पार्टी की सरकार मुश्किल में घिरती दिख रही है। अन्य मांगों में चंडीगढ़ मार्च कर रहे किसानों ने कहा कि “मक्का, बासमती, मूंग पर एमएसपी के लिए अधिसूचना जारी की जाए। बिजली के प्रीपेड मीटर नहीं लगाए जाएं।” उन्होंने चेतावनी दी कि मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे चंडीगढ़ में दिल्ली जैसा किसान आंदोलन शुरू करेंगे। केंद्र सरकार के गेहूं निर्यात पर रोक लगाने से विदेशों में तो हड़कंप मचा ही हुआ है, देश के अंदर भी इसका विरोध शुरू हो गया है। पंजाब के किसानों का कहना है कि सूखे की वजह से उनका काफी नुकसान हुआ है। लेकिन इसकी भरपाई को उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला है। इससे वे नाराज हैं और अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन की चेतावनी दी है।

उधर, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसानों को संयम बरतने को कहा है। उन्होंने कहा कि किसानों के आंदोलन गैरजरूरी बताते हुए धरना खत्म करने की अपील की है। मान ने कहा धान की बुवाई कार्यक्रम से किसानों के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि यह कोशिश राज्य के गिरते जलस्तर को बचाने में मददगार साबित हो सकती है। किसानों ने गेहूं निर्यात पर बैन हटाने, धान की बोआई कार्यक्रम रद्द करने, निर्बाध बिजली आपूर्ति, न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत कुछ अन्य मांगें भी सीएम भगवंत मान से की थीं।

बात उत्तर प्रदेश की ही करें तो यूपी सहित कई राज्यों में चलने वाला भारतीय किसान यूनियन संगठन लगातार अलग-अलग हिस्सों में बंटता जा रहा है। जिसके चलते पहले भारतीय किसान यूनियन (तोमर) फिर भारतीय किसान यूनियन (भानू) उसके बाद किसान यूनियन और अब भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के नाम से एक नए संगठन का गठन हुआ है। वहीं भाकियू अराजनैतिक संगठन के संरक्षक/ चेयरमैन राजेंद्र सिंह मलिक ने आरोप लगाते हुए कहा कि भारतीय किसान यूनियन कभी भी सरकार पर दबाव नहीं बना सकती है क्योंकि वह खुद सरकार से बिजली, मिट्टी व रेत खनन ओर सड़क आदि का ठेका लेती है। उन्होंने आरोप लगाया कि जो संगठन सरकार से ठेका लेकर चलता है वह कभी भी किसानों के हित के लिए कार्य नहीं कर सकता और ना ही सरकार पर दबाव बना सकता है। दावा किया कि गौरव टिकैत के पास किसानों के यहां मीटर लगाने वाले व खनन आदि का ठेका रहा है।

3 दिन पहले भारतीय किसान यूनियन एक बार फिर दो फाड़ हुआ और एक नए संगठन भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) का गठन हुआ है। इस संगठन का उद्देश्य किसानों के हितों की लड़ाई को लड़ना है। जब मीडिया ने नए संगठन भाकियू अराजनैतिक के चेयरमैन/संरक्षक राजेंद्र सिंह मलिक से बात की तो मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने कहा कि जो लोग बिजली के मीटर, मिट्टी खनन, रेत खनन और सड़क आदि का ठेका लेते है। वह किसानों के हितों के लिए सरकार पर कभी दबाव नहीं बना सकते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय किसान यूनियन का टिकैत परिवार सरकार का ठेकेदार है क्योंकि बिजली के मीटर लगाने का मामला हो या फिर खनन या सड़क निर्माण का मामला हो उसमें गौरव के पास खुद ठेका रहा है। अब ऐसे में जब किसानों की बात करने वाले लोग सरकार से ठेका लेंगे तो वह सरकार पर दबाव कैसे बना सकते हैं इसलिए भारतीय किसान यूनियन संगठन से अलग होकर किसानों की आवाज उठाने और मुद्दों को कामयाबी तक पहुंचाने के लिए भाकियू अराजनैतिक संगठन का गठन किया गया है।

भाकियू अराजनैतिक के चेयरमैन/ संरक्षक ने कहा कि सरकार किसी की भी हो हम अपने इस संगठन में राजनीति नहीं करेंगे केवल किसानों के मुद्दों की लड़ाई लड़ेंगे। वहीं, भारतीय किसान यूनियन के पूर्व जिलाध्यक्ष जावेद तोमर ने भी भाकियू पर निशाना साधते हुए कहा कि अब किसानों के हितों की लड़ाई के लिए धरना प्रदर्शन होगा, भूख हड़ताल होगी और आंदोलन भी होगा। वहीं किसानों के हित के लिए अगर जान भी देनी पड़े तो उससे भी पीछे नहीं हटेंगे लेकिन भाकियू की तरह से तयशुदा धरना प्रदर्शन व आंदोलन नहीं होगा, कोई समय रखकर आंदोलन नहीं किया जाएगा। हमारा संगठन किसानों के हितों की लड़ाई को लगातार जारी रखेगा।

हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब किसान यूनियन में टूट हुई हो बल्कि 35 साल के इतिहास में संगठन में कई बार बगावत हो चुकी है। भारतीय किसान यूनियन से नाराज नेता भाकियू के नाम से या मिलते-जुलते नाम से अपना अलग संगठन बना चुके हैं। भारतीय किसान यूनियन से अलग होकर राज किशोर पिन्ना ने भी भारतीय किसान यूनियन (सर्वे) का गठन किया था। मुजफ्फरनगर के ठाकुर किसान नेता पूरण सिंह भी अलग होकर भारतीय किसान संगठन नाम से अपना संगठन चला रहे है। रविवार (15 मई) को चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि पर लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में एक बार फिर BKU दो भाग में बंट गई। नए संगठन के चीफ राजेश चौहान ने टिकैत बंधुओं पर आरोप लगाया है कि किसान आंदोलन के बाद संगठन किसानों के मुद्दों से भटक गई और राजनीतिक मुद्दों की ओर जाने लगी।

1987 में हुआ था भाकियू का गठन: 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1 मार्च 1987 को किसानों के मुददे को लेकर महेंद्र सिंह टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन का गठन किया था। इसी दिन शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर संगठन ने पहला धरना शुरू किया था। 17 मार्च 1987 को भाकियू की पहली बैठक हुई और फैसला लिया गया कि भाकियू एक गैर-राजनीतिक दल के रूप में किसानों की लड़ाई लड़ेगा। महेंद्र सिंह टिकैत को बालियान खाप से लेकर गठवाला खाप मुस्लिम किसान का पूरा समर्थन मिला और वो एक बड़े किसान नेता के रूप में सामने आए। टिकैत बंधुओं ने कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी मांगों के आगे झुकाया। जून 1987 में महेंद्र सिंह टिकैत का चौधरी सुखबीर सिंह से विवाद हुआ और उन्होंने खुद को BKU से अलग कर लिया था। अक्टूबर 1988 में जब महेंद्र सिंह टिकैत ने दिल्ली के बोट क्लब पर धरना खत्म किया उसके बाद कई नेताओं ने संगठन से अलग राह पकड़ ली। महेंद्र सिंह टिकैत के भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के दौरान उत्तर प्रदेश में संगठन की कमान भानु प्रताप सिंह के हाथों में हुआ करती थी। 

चौ महेंद्र सिंह टिकैत ने जब किसान कामगार नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई तो उसकी कमान भानु प्रताप सिंह को सौंपी। लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी की कमान चौधरी अजित सिंह को सौंप दी जिसकी वजह से भानु प्रताप नाराज हो गए। साल 2006 में महेंद्र टिकैत ने उन्हें दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाया। 2008 में राकेश टिकैत ने इलाहाबाद की बैठक में भानु प्रताप पर आरोप लगाया, जिसके बाद उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) नाम से अलग संगठन बना लिया। हरियाणा भाकियू के अध्यक्ष रह चुके ऋषिपाल अंबावता ने भी भाकियू अंबावता के नाम से अलग संगठन बनाया था। भाकियू (तोमर) संगठन भी किसान यूनियन से निकली है। चौधरी हरिकिशन मलिक ने भी BKU से अलग होकर राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन का गठन किया था।

वहीं, बुधवार को हरियाणा में करनाल के सौकडा गांव में आयोजित किसान अधिवेशन में पहुंचे राकेश टिकैत ने सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा है कि किसानों ने पंजाब में दोबारा आंदोलन शुरू किया है। केंद्र और राज्य सरकारों के हालात और नीयत ठीक नहीं है। ऐसे में जगह-जगह आंदोलन शुरू होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। कहा, पंजाब में किसान आंदोलन पर बैठ गए हैं। सरकार के हालात खराब हैं। अब तो जगह-जगह आंदोलन होंगे। केंद्र सरकार ठीक नहीं कर रही है। पॉलिसी ठीक नहीं होगी तो ऐसा करना पड़ेगा। सूचना मिलते ही किसान इकट्‌ठे हो जाते हैं। इससे पता चलता है कि वे आंदोलन के मूड में हैं। सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है। इस बंधन से छोटे व्यापारी मरेंगे। इस बार इंटरनेशनल मार्केट में ठीक भाव मिल रहा था। दो पैसे का किसान को भी फायदा होता। हमारे पास अनाज की कमी नहीं है। मोटा अनाज तो हमारे पास बहुत ज्यादा है। भाव ठीक मिलेगा तो किसान अगले साल ज्यादा मात्रा में उस फसल को पैदा कर देंगे। जब इंटरनेशनल मार्केट से गेहूं की बिक्री से फायदा हो रहा है तो उसका लाभ उठाना चाहिए।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार टिकैत ने कहा सरकार लगातार वादाखिलाफी कर रही है। बोलती कुछ है, करती कुछ है। घोषणा पत्र में जो होता है, उस पर काम नहीं करती। जैसे उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कहा था कि बिजली फ्री देंगे, लेकिन फ्री नहीं की, रेट आधे कर दिए और मीटर बाहर लगाए जा रहे हैं। इसलिए दोबारा व्यापक स्तर पर किसान आंदोलन शुरू किया जाना है। फिलहाल इसकी रूपरेखा बनाई जा रही है। इसकी पूरी रणनीति हरिद्वार में होने वाले किसान सम्मेलन में तय की जाएगी। सम्मेलन अगले माह आयोजित किया जाएगा। इसमें तय होगा कि दोबारा किसान आंदोलन कब से शुरू किया जाए।

हालांकि पंजाब के किसानों का आंदोलन समाप्‍त हो गया है। मुख्‍यमंत्री भगवंत मान और आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता में सरकार और किसानों के बीच सहमति बन गई है और अब किसान चंडीगढ़ - मोहाली बार्डर पर चल रहा अपना मोर्चा समाप्‍त कर देंगे। 

किसानों की 13 में से 12 मांगें सरकार ने स्‍वीकार की
हालांकि पंजाब सरकार ने किसानों की 13 में से 12 मांगें स्वीकार कर ली हैं। इससे पहले किसानों से मंगलवार को दिल्‍ली बार्डर जैसा मोर्चा चंडीगढ़- मोहाली बार्डर पर शुरू कर दिया था। किसान चंडीगढ़ - मोहाली बार्डर पर स्‍थायी मोर्चा लगाकर बैठे हुए हैं। दूसरी ओर, पंजाब के मुख्‍यमंत्री भगवंत मान ने किसान नेताओं से वार्ता की। भगवंत मान वार्ता के लिए चंडीगढ़ के पंजाब भवन पहुंचे। किसानों के साथ सीएम की बैठक में सहमति बन गई। बताया जाता है कि इसके बाद किसान संगठन चंडीगढ़- मोहाली बार्डर से अपना मोर्चा समाप्‍त कर देंगे।

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