बीते कुछ वर्षों से या यूँ कहें कि पिछले 6 साल में भारत की अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है जो कोरोना महामारी और देशबंदी (लॉकडाउन) की वजह से और भी बदतर हालत में पहुच गयी है. जीडीपी (GDP) के आंकड़े जनता के लिए अहम् हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानि आईएमएफ का यह अनुमान सामने आया है कि इस साल भारत की जीडीपी (GDP) -10.3 प्रतिशत तक जा सकती है साथ ही ग्रोथ के मामले में बंगलादेश भी भारत को पीछे छोड़ सकता है, इस खबर भविष्य को लेकर देश में हडकंप की स्थिति है.
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क्या होती है जीडीपी (GDP)?
जीडीपी (GDP) किसी भी देश की आर्थिक हालात को मापने का पैमाना होता है. किसी खास अवधि के दौरान जीडीपी (GDP) वस्तु और सेवाओं की कुल कीमत होता है बशर्ते यह उत्पादन व् सेवा देश के भीतर ही हो रही हो. ये आंकड़ा देश की तरक्की का संकेत देता है जिसे भारत सरकार द्वारा भी तीन महीने पर जारी किया जाता रहा है. अगर जीडीपी (GDP) का आकड़ा बढ़ता है तो देश की आर्थिक विकास दर बढ़ता है और अगर यह घटती है तो देश की माली हालत में गिरावट का रुख होता है.
आसन शब्दों में कहें तो ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं का कुल मूल्य होता है. रिसर्च और फर्म केयर रेटिंग्स के अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े का कहना है कि जीडीपी (GDP) ठीक वैसी ही है जैसे किसी छात्र की मार्कशीट होती है. जिस तरह मार्कशीट से पता चलता है साल भर में छात्र ने कैसा प्रदर्शन किया है और किन विषयों पर उसकी पकड़ मजबूत या कमजोर रही है उसी तरह जीडीपी (GDP) आर्थिक अतिविधियों के स्तर को दिखाता है और इससे पता चलता है कि देश के अर्थवयवस्था की माली हालत क्या है किस क्षेत्र में तेजी या गिरावट का प्रदर्शन हो रहा है. भारत में central Statistics Office (CSO) द्वारा साल में चार बार जीडीपी (GDP) का आकलन किया जाता है जो हर तिमाही पर यह जीडीपी (GDP) के आंकड़े को जारी करता है. भारत जैसे विकासशील देश के लिए जहाँ कम आय और बढती आबादी है, देश की आबादी के जरूरतों को पूरा करने के लिए साल दर साल जीडीपी (GDP) ग्रोथ को हासिल करना जरुरी है ताकि देश की अर्थवयवस्था मंदी का शिकार न हो जाए लेकिन IMF के हाल में आए आंकड़े डराने वाले हैं.
कैसे किया जाता है जीडीपी (GDP) के आंकड़ों का आंकलन?
भारत में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा जीडीपी (GDP) के सांकेतिक और वास्तविक दोनों ही आकलन किए जाते हैं. सभी वस्तुओं और सेवाओं का एक साल में उत्पादित मूल्य ही सांकेतिक जीडीपी (GDP) होती है और इस आंकड़े को ही किसी आधार वर्ष के सन्दर्भ में महंगाई के सापेक्ष देखने पर वास्तविक जीडीपी (GDP) का पता चलता है. जीडीपी (GDP) के आकड़ों को चार अहम् घटकों के द्वारा आकलन किया जाता है.
कंजम्पशन एक्सपेंडिचर, गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर, इनवेस्टमेंट एक्सपेंडिचर और नेट एक्सपोर्ट्स.
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा जीडीपी के आकलन के लिए देश के आठ क्षेत्रों से आंकड़ों को इक्कठा करते हैं, इन क्षेत्रों में कृषि, रियल एस्टेट, मैन्युफैक्चरिंग, विद्युत, गैस सप्लाई, माइनिंग, वानिकी और मत्स्य, क्वैरीइंग, होटल, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड और कम्युनिकेशन, फाइनेंसिंग और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज और कम्युनिटी के अलावा सोशल व सार्वजनिक सेवाएं शामिल है.
आम जनता पर प्रभाव:
भारत पहले से ही आर्थिक मंदी की चपेट में था उसके बाद कोरोना महामारी की मार, सरकारी कुप्रबंधन और अब IMF द्वारा जारी किए गए आंकड़े डराने वाले हैं. देश की जीडीपी (GDP) के बढ़ने और घटने का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सम्बन्ध देश की आम जनता के साथ होता है. अगर जीडीपी (GDP) बढ़ रही है या स्थिर अवस्था में है तो इसका मतलब है देश की आर्थिक माली हालत सामान्य अवस्था में है और अगर जीडीपी (GDP) सुस्त है या यूँ कहें कि लगातार गिरावट की तरफ हो तो वह अर्थव्यवस्था के बर्बादी का संकेत देता है और किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था से उस देश की जनता का वास्ता सीधे तौर पर होता है.
आर्थिक विकास पहले से ही तेज़ी से घट रहा था, वर्तमान में बेरोज़गारी अभूतपूर्व स्तर पर व्याप्त है, हर दिन बढती गरीबी जनता कमर तोड़ रही है. एकमात्र महत्वपूर्ण कारक जो इस स्थिति को और अधिक बिगड़ने से बचा सकता था वह सरकारी ख़र्च व् संस्थान था लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इसका आकार घटाया जा रहा है यह अंतिम कारक दर्शाता है कि मोदी सरकार निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी ख़र्च में कटौती करने की बदनाम नव-उदारवादी नीति की चपेट में है. ग़लत तरीके से उन्होंने सोचा कि निजी निवेश नई उत्पादक क्षमताओं का निर्माण करके अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाएगा, अधिक रोज़गार पैदा करेगा और इस प्रकार अधिक मांग पैदा करेगा. सितंबर 2019 में कॉर्पोरेट करों में मोदी सरकार की भारी कटौती, या निर्माण/ रीयल स्टेट क्षेत्र में मदद के लिए धन इकट्ठा करने के बावजूद पिछले कई महीनों में कुछ भी नहीं हुआ. अर्थव्यवस्था के स्थिर रहने और अच्छे प्रदर्शन के बाद ही किसी देश में कारोबारी और निवेशक पैसा निवेश करते हैं और उत्पादन को बढ़ाते हैं जिससे रोजगार की संभावनाएं बनी रहती है लेकिन भारत की वर्तमान आर्थिक नीति व् IMF का अनुमान इस तरह की किसी भी संभावनाओं की तरफ बिलकुल भी इशारा नहीं करता है. भारत वर्तमान में ग्लोबल कोरोना महामारी चरम अवस्था में पहुच गया है. इस महामारी से और भी गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं महामारी सहित गलत सरकारी नीतियों की वजह से आज देश की अर्थ व्यवस्था बर्बादी की कगार पर पहुच चुकी है जिसे ठीक करने में वर्षों लग जाएँगे. जीडीपी का गिरना सीधे तौर पर जनता की बर्बादी का अलार्म होता है जिसे अगर वक्त रहते नहीं संभाला गया तो देश अराजकता की तरफ भी बढ़ सकता है.
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क्या होती है जीडीपी (GDP)?
जीडीपी (GDP) किसी भी देश की आर्थिक हालात को मापने का पैमाना होता है. किसी खास अवधि के दौरान जीडीपी (GDP) वस्तु और सेवाओं की कुल कीमत होता है बशर्ते यह उत्पादन व् सेवा देश के भीतर ही हो रही हो. ये आंकड़ा देश की तरक्की का संकेत देता है जिसे भारत सरकार द्वारा भी तीन महीने पर जारी किया जाता रहा है. अगर जीडीपी (GDP) का आकड़ा बढ़ता है तो देश की आर्थिक विकास दर बढ़ता है और अगर यह घटती है तो देश की माली हालत में गिरावट का रुख होता है.
आसन शब्दों में कहें तो ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं का कुल मूल्य होता है. रिसर्च और फर्म केयर रेटिंग्स के अर्थशास्त्री सुशांत हेगड़े का कहना है कि जीडीपी (GDP) ठीक वैसी ही है जैसे किसी छात्र की मार्कशीट होती है. जिस तरह मार्कशीट से पता चलता है साल भर में छात्र ने कैसा प्रदर्शन किया है और किन विषयों पर उसकी पकड़ मजबूत या कमजोर रही है उसी तरह जीडीपी (GDP) आर्थिक अतिविधियों के स्तर को दिखाता है और इससे पता चलता है कि देश के अर्थवयवस्था की माली हालत क्या है किस क्षेत्र में तेजी या गिरावट का प्रदर्शन हो रहा है. भारत में central Statistics Office (CSO) द्वारा साल में चार बार जीडीपी (GDP) का आकलन किया जाता है जो हर तिमाही पर यह जीडीपी (GDP) के आंकड़े को जारी करता है. भारत जैसे विकासशील देश के लिए जहाँ कम आय और बढती आबादी है, देश की आबादी के जरूरतों को पूरा करने के लिए साल दर साल जीडीपी (GDP) ग्रोथ को हासिल करना जरुरी है ताकि देश की अर्थवयवस्था मंदी का शिकार न हो जाए लेकिन IMF के हाल में आए आंकड़े डराने वाले हैं.
कैसे किया जाता है जीडीपी (GDP) के आंकड़ों का आंकलन?
भारत में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा जीडीपी (GDP) के सांकेतिक और वास्तविक दोनों ही आकलन किए जाते हैं. सभी वस्तुओं और सेवाओं का एक साल में उत्पादित मूल्य ही सांकेतिक जीडीपी (GDP) होती है और इस आंकड़े को ही किसी आधार वर्ष के सन्दर्भ में महंगाई के सापेक्ष देखने पर वास्तविक जीडीपी (GDP) का पता चलता है. जीडीपी (GDP) के आकड़ों को चार अहम् घटकों के द्वारा आकलन किया जाता है.
कंजम्पशन एक्सपेंडिचर, गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर, इनवेस्टमेंट एक्सपेंडिचर और नेट एक्सपोर्ट्स.
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) द्वारा जीडीपी के आकलन के लिए देश के आठ क्षेत्रों से आंकड़ों को इक्कठा करते हैं, इन क्षेत्रों में कृषि, रियल एस्टेट, मैन्युफैक्चरिंग, विद्युत, गैस सप्लाई, माइनिंग, वानिकी और मत्स्य, क्वैरीइंग, होटल, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड और कम्युनिकेशन, फाइनेंसिंग और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज और कम्युनिटी के अलावा सोशल व सार्वजनिक सेवाएं शामिल है.
आम जनता पर प्रभाव:
भारत पहले से ही आर्थिक मंदी की चपेट में था उसके बाद कोरोना महामारी की मार, सरकारी कुप्रबंधन और अब IMF द्वारा जारी किए गए आंकड़े डराने वाले हैं. देश की जीडीपी (GDP) के बढ़ने और घटने का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सम्बन्ध देश की आम जनता के साथ होता है. अगर जीडीपी (GDP) बढ़ रही है या स्थिर अवस्था में है तो इसका मतलब है देश की आर्थिक माली हालत सामान्य अवस्था में है और अगर जीडीपी (GDP) सुस्त है या यूँ कहें कि लगातार गिरावट की तरफ हो तो वह अर्थव्यवस्था के बर्बादी का संकेत देता है और किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था से उस देश की जनता का वास्ता सीधे तौर पर होता है.
आर्थिक विकास पहले से ही तेज़ी से घट रहा था, वर्तमान में बेरोज़गारी अभूतपूर्व स्तर पर व्याप्त है, हर दिन बढती गरीबी जनता कमर तोड़ रही है. एकमात्र महत्वपूर्ण कारक जो इस स्थिति को और अधिक बिगड़ने से बचा सकता था वह सरकारी ख़र्च व् संस्थान था लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इसका आकार घटाया जा रहा है यह अंतिम कारक दर्शाता है कि मोदी सरकार निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी ख़र्च में कटौती करने की बदनाम नव-उदारवादी नीति की चपेट में है. ग़लत तरीके से उन्होंने सोचा कि निजी निवेश नई उत्पादक क्षमताओं का निर्माण करके अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाएगा, अधिक रोज़गार पैदा करेगा और इस प्रकार अधिक मांग पैदा करेगा. सितंबर 2019 में कॉर्पोरेट करों में मोदी सरकार की भारी कटौती, या निर्माण/ रीयल स्टेट क्षेत्र में मदद के लिए धन इकट्ठा करने के बावजूद पिछले कई महीनों में कुछ भी नहीं हुआ. अर्थव्यवस्था के स्थिर रहने और अच्छे प्रदर्शन के बाद ही किसी देश में कारोबारी और निवेशक पैसा निवेश करते हैं और उत्पादन को बढ़ाते हैं जिससे रोजगार की संभावनाएं बनी रहती है लेकिन भारत की वर्तमान आर्थिक नीति व् IMF का अनुमान इस तरह की किसी भी संभावनाओं की तरफ बिलकुल भी इशारा नहीं करता है. भारत वर्तमान में ग्लोबल कोरोना महामारी चरम अवस्था में पहुच गया है. इस महामारी से और भी गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं महामारी सहित गलत सरकारी नीतियों की वजह से आज देश की अर्थ व्यवस्था बर्बादी की कगार पर पहुच चुकी है जिसे ठीक करने में वर्षों लग जाएँगे. जीडीपी का गिरना सीधे तौर पर जनता की बर्बादी का अलार्म होता है जिसे अगर वक्त रहते नहीं संभाला गया तो देश अराजकता की तरफ भी बढ़ सकता है.