4 महीने से धरनारत DU की पूर्व प्रोफेसर डॉ. रितु सिंह को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया

Written by sabrang india | Published on: January 10, 2024
डीयू की पूर्व प्रोफेसर ऋतु सिंह को पुलिस ने मंगलवार शाम हिरासत में लिया है, वे 135 दिनों से डीयू में धरना दे रही थीं। उन्होंने डीयू पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया है।



नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी की पूर्व प्रोफेसर डॉ. ऋतु सिंह को पुलिस ने हिरासत में लिया है। वो पिछले कई दिनों से डीयू में धरना दे रही थीं। दिल्ली पुलिस ने ऋतु के सहयोगियों को भी हिरासत में लिया है। बताया जा रहा है कि पूर्व प्रोफेसर कुछ मांगो को लेकर धरना दे रही थीं। वो वीसी ऑफिस के ताले को खोलने के लिए प्रदर्शन कर रही हैं।  

डॉ. रितु सिंह ने सोशल मीडिया पर एक लाइव वीडियो में रोते हुए पुलिस की कार्रवाइयों की जानकारी दी, वहीं दावा किया कि उन्होंने न केवल निजी सामान जब्त कर लिया, बल्कि बाबा साहब अंबेडकर की तस्वीर भी फाड़ दी। इसके अलावा, आरोप लगाया कि कुछ प्रदर्शनकारियों को पुलिस अज्ञात स्थान पर ले गई। घटना मंगलवार सुबह सात बजे की है, जब रितु फ्रेश होने के लिए पास के एक प्रोफेसर के घर गई थीं। जब वह वापस लौटी तो देखा कि प्रोटेस्ट साइट पर तोड़फोड़ की गई थी और उनका सामान गैरकानूनी तरीके से जब्त कर ले जाया गया था।

सोशल मीडिया पर अपील में डॉ. रितु सिंह ने बहुजन समुदाय से एकजुट होने और डीयू कला संकाय गेट नंबर चार पर प्रदर्शन स्थल पर आने का आह्वान किया



द मूकनायक की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने प्रोटेस्ट साइट से सामान की जब्ती कर वहां पर धारा 144 लागू होने का बैनर लगा दिया। वहीं धरनास्थल व आस-पास माइक से धारा लागू होने व पांच से अधिक व्यक्तियों के एकत्र नहीं होने की माइक से घोषणा की। बैनर में 23 दिसंबर से 23 फरवरी तक क्षेत्र में धारा लागू होने की समयावधि लिखी गई है। इस संबंध में द मूकनायक ने संबंधित थाना प्रभारी से सम्पर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मामले में टिप्पणी करने से मना कर दिया।

कौन है डॉ. रितु सिंह?

डॉ. रितु सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलतराम कॉलेज में अस्सिटेंट प्रोफेसर थीं। उन्होंने प्रिंसिपल सविता रॉय के विरुद्ध आवाज बुलंद की, जिन पर अनुसूचित जाति के प्रोफेसरों और प्रशासनिक कर्मचारियों के प्रति जातिवादी व्यवहार करने का आरोप है। डॉ. रितु सिंह 2019 में एससी वर्ग के तहत रिक्ति निकलने पर मनोविज्ञान विभाग में अस्थायी प्रोफेसर बनी थीं। अनुबंध समाप्त होने से पहले उन्होंने एक साल तक कॉलेज में पढ़ाया। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जाति-आधारित भेदभाव के कई उदाहरणों का अनुभव किया है और आरोप लगाया कि पद से उनकी बर्खास्तगी प्रिंसिपल के जातीय भेदभाव के रवैये से प्रभावित थी। 2020 से वह एक लंबे कानूनी संघर्ष में जुटी हुई है और कई प्रदर्शनों के समन्वय में सक्रिय रूप से भाग लिया है।

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