बूचड़खानों पर शिकंजे से मुस्लिमों के साथ चमड़ा कारोबार में लगे दलितों की छिनी रोजी

Published on: April 1, 2017
लखनऊ। यूपी का मुख्यमंत्री बनते ही योगी आदित्यनाथ ने जो सबसे पहला काम किया वो था अवैध बूचड़खानों पर शिकंजा कसना। अवैध बूचड़खानों पर शिकंजा कसते ही मीट कारोबार पर इसका खूब असर पड़ रहा है। जहां एक तरफ बूचड़खानों पर शिकंजा कसने के बाद छोटे मांस व्यापारी भुखमरी के कगार पर आ गए हैं वहीं अब इसके शिकंजे में चमड़े का कारोबार करने वाले हिंदू भी आ गये हैं।


 
कानपुर की चमड़ा इंडस्ट्री में कच्चा माल नहीं आने से काम करने वाले लोगों के सामने बड़ी मुश्किलें पैदा हो गयी हैं। चमड़े के कारोबार के लिए मशहूर कानपुर में लाखों लोगों का रोज़गार इसी से चलता है। मालिकों का कहना है कि बूचड़खानों के बंद होने से कच्चे माल में कमी आयी है जिससे उनके कारोबार पर असर पड़ रहा है। यही नहीं, फैक्ट्रियों में काम भी कम रह गया है और इस वजह से मज़दूरों को अपनी रोज़ी रोटी चलाना मुश्किल हो रहा है।
 
आगरा में भी कमोबेश हालात कानपुर जैसे ही है। यहां मुख्य रूप से जूते और बैग्स बनाने का काम होता है। अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई को चमड़े के कारोबारी सही ठहरा रहे हैं लेकिन दूसरी ओर कच्चे माल की कमी और उसकी कीमतों में हुए इज़ाफे से चिंतित भी हैं। हालांकि कारोबारियों का कहना है कि तत्काल तो कोई बड़ा असर नहीं दिख रहा है, लेकिन आने वाले 6 महीने में इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है।

आपको बता दें कि देश भर में चमड़े के कारोबार से 20 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं जिनमें 1.75 लाख लोग जूते बनाने का काम करते हैं। उत्तर प्रदेश में चमड़ा उद्योग में लगभग 10 लाख लोग जुड़े हुए हैं। चमड़ा उद्योग में पूरे देश में कुल निवेश 5,322 करोड़ रुपए का है। साल 2014-15 में चमड़े के सामान का निर्यात 94.20 करोड़ डॉलर हुआ था।
 
बूचड़ख़ानों और चमड़ा उद्योग में मुसलमानों के अलावा दलितों की एक बड़ी आबादी भी शामिल है। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक़ देश के 75 बूचड़ख़ानों में से 38 उत्तर प्रदेश में हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत 18 लाख 50 हजार मीट्रिक टन बीफ का निर्यात करता है। बीफ उत्पादन में भारत दुनिया में पांचवे नंबर पर है, निर्यात में पिछले साल तक दूसरे नंबर पर था।
 
(संपादन- भवेंद्र प्रकाश)

Courtesy: National Dastak
 

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