असम: CJP की बड़ी जीत, डिटेंशन कैंप से तीन और बंगाली हिंदू कैदियों को रिहा कराया

Written by Sabrangindia Staff | Published on: May 13, 2020
CJP द्वारा रिहा कराए गए तीनों हिंदू कैदी बेहद गरीब परिवार के हैं. इनमें से एक के पास कोई घर भी नहीं है.



पिछले साल (2019) मई और इस साल (2020) अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने दो फैसले सुनाए थे. शीर्ष अदालत के इन फैसलों से असम के डिटेंशन कैंपों में डाले गए लोगों की सशर्त रिहाई का रास्ता साफ हुआ है. CJP इन लोगों की रिहाई की लगातार कोशिश में लगा है. CJP की कोशिश की बदौलत अब तक इन कैंपों से 21 लोग बाहर आ चुके हैं. 11 मई को इनमें तीन नाम और जुड़ गए. इस तरह CJP की लगातार कोशिश से अब तक 24 लोग डिटेंशन कैंपों से रिहा हो चुके हैं. 

11 मई (मंगलवार) को जो तीन लोग रिहा हुए, वे हैं- सुनील चंद्र विश्वास, मनोरंजन सरकार और साधना सरकार. आइए देखते हैं कि उनके मामले क्या थे. इन मामलों की पेचीदगियां क्या थीं, और उनकी रिहाई के लिए CJP को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा. 



सुनील चंद्र विश्वास 
सत्तर साल के सुनील चंद्र विश्वास (पिता का नाम– धरणी विश्वास) चिरांग जिले में बिजनी थाने के तहत पड़ने वाले गांव दिमाजहोरा के रहने वाले हैं. उन्हें बॉर्डर पुलिस ने गिरफ्तार किया था. इसके बाद वे ग्वालपाड़ा के एक डिटेंशन कैंप में ले जा कर बंद कर दिए गए. वहां वे, 4 नवंबर, 2015 से कैद में थे. मंगलवार (11 मई) को रिहा होने तक वे इस डिटेंशन कैंप में साढ़े चार साल और 7 दिन बिता चुके थे. विश्वास की इतनी लंबी कैद के पीछे एक वजह यह भी थी कि उनका कोई जीवित रिश्तेदार नहीं था. लिहाजा उनकी रिहाई के लिए किसी ने आवेदन तक नहीं किया था.

डिटेंशन सेंटर से बाहर निकलने पर विश्वास अचरज में थे. उन्होंने कहा, “डिटेंशन सेंटर में कैद लोगों से उनके रिश्तेदार अक्सर मिलने आया करते थे. मुझसे कोई मिलने नहीं आता था. इसलिए मैं अपने साथी कैदियों को ही अपना परिवार मानने लगा.”

रिहा होने के थोड़ी देर बाद विश्वास ने कहा, “मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि मुझे कोई रिहा कराने में मदद करेगा”. विश्वास के परिवार ने 1961 में अपनी सारी जमीन बेच दी थी. अपने पिता की मौत के बाद वे लोगों के घरों में काम करके अपना गुजारा कर रहे थे. उन्हीं के घर में वे रहते भी थे. 

लोअर असम में सीजेपी के वॉलंटियर मोटिवेटर नंद घोष, विश्वास की रिहाई की कोशिश में लगे थे. उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से पहले उन्हें संदिग्ध नागरिक समझ लिया गया. फिर फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ने अनपढ़, नियमों से अनजान और गरीब सुनील विश्वास को विदेशी नागरिक करार दे दिया.”

सीजेपी के वॉलंटियर घोष कहते हैं, “उनका सही पता हासिल करना हमारे लिए बड़ा मुश्किल हो गया. क्योंकि डिटेंशन कैंप के रिकार्ड्स में उनका पता बांग्लादेश के मैमनसिंह जिले का था. इस पर हम बॉर्डर पुलिस के दफ्तर गए. वहां पाया कि विश्वास का एक पता दिमाजहोरा का है. जब वे दिमाजहोरा पहुंचे तो 65 और उससे ऊपर के बुजुर्गों ने बताया कि विश्वास का जन्म इसी गांव में हुआ था. यहीं वे पले-बढ़े. उनके गांव के कई लोगों ने कहा कि विश्वास जैसे सीधे-सरल और विनम्र व्यक्ति को छोड़ दिया जाना चाहिए. यहां तक कि हमारी कोशिशों से ग्वालपाड़ा डिटेंशन सेंटर से छुड़ाए गए लोगों ने भी रिहाई के वक्त हमसे अनुरोध किया कि विश्वास को वहां से निकालने की कोशिश करें.”

लेकिन हमारे सामने एक और बाधा थी. वह यह, कि विश्वास की जमानत के लिए मुचलका कौन भरेगा. क्योंकि पिछले नौ साल से उन्होंने मालगुजारी नहीं दी थी. इसलिए सीजेपी ने पहले यह रकम चुकाई और टैक्स क्लियरेंस सर्टिफिकेट हासिल किया. इससे हमें आगे की कार्यवाही करने में मदद मिली. 

लेकिन हमें पता था कि विश्वास को केवल रिहा करा लेने से ही उनकी दिक्कतें दूर नहीं हो जाएंगीं. क्योंकि इस गरीब शख्स के लिए रहने-खाने का कोई ठिकाना नहीं है. इसे देखते हुए सीजेपी के असम स्टेट को-ऑर्डिनेटर जमसेर अली ने कुछ लोगों से बात की और जगदीश तापदार की मदद ली. तापदार ने ही विश्वास की रिहाई के लिए मुचलका भरा था. तापदार, चिरांग जिले में बिजनी थाने के तहत आने वाले गांव पुराडिया के रहने वाले हैं. वही मुश्किल के वक्त विश्वास के अभिभावक के तौर पर खड़े हुए. दरअसल विश्वास एक वक्त तापदार के ही यहां काम करते थे और उनके साथ ही रहते थे. उसी दौरान विश्वास को गिरफ्तार किया गया था. सीजेपी अब विश्वास के लिए एक गाय खरीदने की तैयारी कर रही है, ताकि इस उम्र में वे थोड़ी राहत की जिंदगी जी सकें. 

तापदार ने कहा, “मैं सीजेपी की इस कोशिश का आभारी हूं. इस संगठन ने सभी कैदियों के गारंटर की तलाश के लिए काफी मेहनत की है. सीजेपी ने सभी कैदियों के लिए सही दस्तावेज के इंतजाम करने में भी बड़ी मेहनत की है. संगठन ने लोगों को सही सलाह दी. उनके प्रति इस करुणा और मदद के लिए सीजेपी की जितनी तारीफ की जाए, कम है”. 

विश्वास ने सीजेपी से कहा, “भगवान हैं इसलिए मैं रिहा हुआ. आप लोग भगवान के रूप में मेरे लिए आए हैं”.

मनोरंजन सरकार
मनोरंजन सरकार बूढ़े हो चले हैं. 60 साल के मनोरंजन काफी कमजोर हैं. कुंजमोहन सरकार के बेटे मनोरंजन, चिरांग जिले में बिजनी थाने के मोनस्वारी गांव के रहने वाले हैं. बॉर्डर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर चिरांग ग्वालपाड़ा डिटेंशन कैंप में रखा था. यहां वे 1 अगस्त, 2017 से बंद थे. यहां से रिहा होने से पहले वे डिटेंशन कैंप में दो साल दो महीने और नौ दिन गुजार चुके थे. 

मनोरंजन सरकार का केस काफी जटिल था. जमसेर अली ने बताया कि बचपन में ही वे संन्यासी बन कर घर से भाग गए थे. इसलिए उनके पास कोई दस्तावेज नहीं था. गांव में उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार नहीं था. आम गृहस्थ जीवन शुरू करने से पहले मनोरंजन कई साल तक मंदिर में रहते आए थे. गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने से पहले उन्होंने शादी की.
 
उन्होंने बताया,  “मनोरंजन के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी है जो नौवीं क्लास में पढ़ती है. मनोरंजन का बेटा कमल, राजमिस्त्री का काम करता है. वह अक्सर हमें फोन करता था. फोन करते वक्त वह रो पड़ता था.”

इस बीच, सीजेपी के वॉलंटियर मोटिवेटर प्रणय तरफदार और पापिया दास अक्सर मनोरंजन के घर जाकर उनके परिवार वालों को भावनात्मक सहारा देते थे. उनके घर की स्थिति काफी खराब थी. इसे देखते हुए सीजेपी ने मनोरंजन के परिवार वालों को अनाज भी दिया. 

जमसेर अली ने बताया कि फॉरनर्स ट्रिब्यूनल में मनोरंजन से कहा गया था कि वे जिस मंदिर में रहते थे उसमें से किसी ने उन्हें पहचाना और गवाही दे दी कि वे वहीं रहते थे, तब तो उन्हें डिटेंशन कैंप नहीं भेजा जाएगा. लेकिन तब तक सरकार को जानने वाले मंदिर के प्रमुख महंत गुजर चुके थे. वही एक अकेले शख्स थे जो मनोरंज को जानने थे. और इस तरह मनोरंजन को डिटेंशन कैंप जाना पड़ा. 
इसके पहले उनकी पत्नी सांधा को कोकराझार में 89 दिनों तक डिटेंशन कैंप में रहना पड़ा था. इसके बाद उनकी पहचान हुई और उन्हें छोड़ा गया. परिवार के संसाधन अब खत्म हो चुके थे और उन्हें मनोरंजन की रिहाई की उम्मीद छोड़ दी थी. सांधा ने सीजेपी से कहा, “अगर आप लोग नहीं होते तो मेरे पति कभी भी रिहा नहीं होते.” अब मैं आंसू नहीं बहाऊंगी.

मनोरंजन की जमानत करवाना आसान काम नहीं था. क्योंकि उनकी गारंटी लेने वाले व्यक्ति को उसी राजस्व ग्राम का होना चाहिए था, जिसके मनोरंजन हैं. सीजेपी को मनोरंजन के लिए गारंटर तलाशने में चार महीने लग गए. लोग आसानी से गारंटर बनने के लिए तैयार नहीं थे. 

अपने पिता के रिहा होने के बाद कमल के चेहरे पर पहली बार मुस्कुराहट आई है. कमल ने कहा, “उनके रिहा होने से मैं बहुत बड़ी राहत महसूस कर रहा हूं. इससे पहले मैं बिल्कुल लाचार महसूस करता था, लेकिन सीजेपी ने आकर हमारी हर चीज का ध्यान रखा. अपने पिता को पाकर मैं बहुत खुश हूं”.

मनोरंजन की बेटी पूर्णिमा ने कहा, पिता के डिटेंशन सेंटर में होने की वजह से मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पा रही थी. लेकिन सीजेपी का शुक्रिया कि मेरे पिता अब घर पर हैं. मुझे पक्का विश्वास है कि अगले साल मैं मैट्रिक की परीक्षा दे पाऊंगी.”

साधना सरकार 
55 साल की साधना सरकार सुरेश चंद्र सरकार की बेटी हैं. वे चिरांग जिले में पानबाड़ी पुलिस थाने के तहत आने वाले गांव अगरंग की रहने वाली हैं. उन्हें 5 मई, 2018 से कोकराझार डिटेंशन कैंप में रखा गया था. उनके लिए वे भयावह दिन थे. वे कहती हैं, “मुझे हर वक्त घर की चिंता सताती रहती थी. मुझे अपनी पोती की याद आती थी और लगता था कि मैं अब कभी उसे देख पाऊंगी कि नहीं? मुझे लगता था कि डिटेंशन सेंटर में ही मेरी मौत हो जाएगी. मैं यहां से निकल नहीं पाऊंगी.”

साधना पूरी तरह शाकाहारी हैं. डिटेंशन कैंप में उन्हें बहुत दिक्कत हुई. वे कहती हैं, “मैं मांस-मछली तो दूर प्याज-लहसुन भी नहीं खाती. मैं ही जानती हूं कि डिटेंशन सेंटर में कैसे जिंदा रही.” साधना को कमर दर्द भी रहता है इसलिए उनके लिए चलना भी मुश्किल है.”

लेकिन सीजेपी ने बेहद तेजी दिखाई. सीजेपी की कोशिश की वजह से साधना कैंप में दो साल पूरे करने के छह दिन पहले ही छूट गईं.
जमसेर अली ने कहा, “हमारे कम्यूनिटी वॉलंटियर्स मोहनबाशी राय, बिपुल सरकार और राजबर्मन जैसे कार्यकर्ता समेत पूरी सीजेपी टीम ने साधना के मामले में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और सारे दस्तावेज पहले से तैयार कर लिए. इस मामले में जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता सुजन मंडल ने भी पूरी मदद की.”

अली ने कहा कि अब वे और उनकी टीम डिटेंशन कैंप से रिहा हुए सभी लोगों के पुनर्वास के लिए एक व्यापक पैकेज का प्रबंध करने में लगे हैं.
 
सीजेपी ने अपने इस पूरे अभियान के लिए चार वाहन किराये पर लिए थे. इसके लिए परमिशन की भी व्यवस्था की गई थी. सीजेपी के वॉलंटियर्स मोटिवेटर नंद घोष, प्रणय तरफदार, फारुक अहमद, अबुल कलाम आजाद और पापिया दास ने इन सभी लोगों के मामले में सीजेपी के असम स्टेट को-ऑर्डिनेटर जमसेर अली के निर्देश के मुताबिक काम किया. 

एडवोकेट दीवान अब्दुर्रहीम, उन्हें मदद करने वाली एडवोकेट जाहिरा खातून और एडवोकेट प्रीति कर्मकार भी इस टीम की अहम सदस्य हैं. इस टीम में सैकड़ों कम्यूनिटी वॉलंटियर्स, पैरालीगल कार्यकर्ता, असिस्टेंट और ड्राइवर हैं. 

हम अपने अभियान में मददगार पीयूष चक्रवर्ती, विपुल सरकार, मोहनबाशी राय, राजीव बर्मन, अमीनुल इस्लाम, सबीन मल्लिक, नारायण सरकार, ब्रज गोपाल सरकार, रतन गोस्वामी, मनोज साहा, जगदीश तापदार, भूपेश चंद्र दास, संजय महानायक, समीरन सरकार, मृणाल कांति साहा, कार्तिक देबनाथ, बिमल दास, सुजन मंडल, अभिराम महानायक, अनिर्बाण सेन, स्वप्न साहा, बादल मंडल, राजू साहा मंडल और सजल दास को खास तौर पर शुक्रिया कहना चाहते हैं.

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