कर्ज से परेशान एक और किसान ने छत्तीसगढ़ में आत्महत्या कर ली। ताजा घटना बिलासपुर के पेंड्रा विकासखंड के कुदरी गांव की है।
मरवाही के पिपरिया गांव के सुरेश सिंह मरावी ने 1 लाख 20 हजार रुपए का कर्ज लिया था जो 4 साल में बढ़कर करीब 1 लाख 70 हजार रुपए हो गया था।
पिछले 4 सालों से कम बारिश के कारण उसकी फसल चौपट होती आ रही थी। इस बार भी ऐसा ही हुआ तो सुरेश बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसने अपनी ससुराल कुदरी में आत्महत्या कर ली।
सुरेश की 4 बेटियां हैं जो अब अनाथ हो गई हैं। सुरेश ने किसान सेवा सहकारी समिति लरकेनी से कर्जा लिया था और समिति उस पर कर्जा वापसी के लिए दबाव डाल रही थी। उसके पास लगातार नोटिस आ रहे थे जिसके कारण वह मानसिक तनाव में था। आखिरकार उसने दुनिया छोड़ देने का ही फैसला किया और अपनी ससुराल जाकर फांसी लगाकर जान दे दी।
सुरेश सिंह मरावी को इस बार फसल नुकसान होने पर सूखा राहत राशि का मुआवजा भी मिला था, लेकिन यह मुआवजा इतना कम था कि उसे कोई राहत मिलने वाली नहीं थी।
इतना ही नहीं, मुआवजे के रूप में उसे मिला 13 हजार का चेक बैंक में जमा कराने के बावजूद, कैश नहीं हो पा रहा था। बैंक की भी इस मामले में लापरवाही रही। 15 दिन बाद भी कैश की रकम उसके खाते में नहीं आ पाई थी।
राज्य में किसानों की आत्महत्याओं के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन सरकार के मुखिया रमन सिंह इन मामलों के प्रति संवेदनहीन बने हुए हैं। उनका कहना है कि किसानों की आत्महत्याओं को लेकर जिस तरह की रिपोर्टें आ रही हैं, उनमें अलग-अलग तथ्य रहते हैं और जरूरी नहीं कि
आत्महत्या का कारण कर्ज ही हो।
रमन सिंह सरकार की कोशिश आंकड़ों में हेराफेरी करने की रहती है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो के अनुसार छत्तीसगढ़ में 2006 से 2010 तक हर साल किसानों की आत्महत्याओं के औसतन 1555 मामले दर्ज किए गए यानी हर दिन करीब 4 किसानों ने आत्महत्याएं कीं। 2009 में ये आंकड़ा 5 तक पहुंचा लेकिन उसके बाद सरकार ने आंकड़े छिपाने शुरू कर दिए।
2011 में किसानों की आत्महत्या का एक भी मामला सरकार ने स्वीकार नहीं किया। 2014 में केवल 4 किसानों की आत्महत्याओं को रमन सिंह सरकार ने स्वीकार किया लेकिन 2013 में फिर से ये आंकड़ा शून्य कर दिया गया।
जब सुप्रीम कोर्ट ने देश भर से किसानों की आत्महत्याओं के मामलों की जानकारी मांगी तब छत्तीसगढ़ सरकार को भी विवश होकर ये आंकड़े जारी करने पड़े।
किसानों की आत्महत्याओं का एक बड़ा कारण रमन सिंह सरकार की वादाखिलाफी भी है। चुनावों के समय उन्होंने किसानों से एक-एक दाना खरीदने का वादा किया था, लेकिन चुनाव जीतते ही उन्होंने इसकी सीमा नियत कर दी और पंजीयन से लेकर न जाने कितनी औपचारिकताओं की शर्तें लगा दीं। मजबूर होकर किसानों को अपनी फसल निजी व्यापारियों के हाथों में ही बेचनी पड़ती है।
छत्तीसगढ़ में आत्महत्याओं के मामले लगातार बढ़ रहे हैं जिनमें किसानों की आत्महत्याओं का बड़ा योगदान रहा है।
पिछले साल गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में स्वीकार किया था कि 2015 के बाद से 30 जून 2017 तक राज्य में आत्महत्याओं के कुल 11 हजार 826 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 1271 किसानों की आत्महत्याओं के थे। यही सरकार 2010 के बाद से 2013 और 2014 तक किसानों की आत्महत्याओं के मामले शून्य या दो-चार माना करती थी।
मरवाही के पिपरिया गांव के सुरेश सिंह मरावी ने 1 लाख 20 हजार रुपए का कर्ज लिया था जो 4 साल में बढ़कर करीब 1 लाख 70 हजार रुपए हो गया था।
पिछले 4 सालों से कम बारिश के कारण उसकी फसल चौपट होती आ रही थी। इस बार भी ऐसा ही हुआ तो सुरेश बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसने अपनी ससुराल कुदरी में आत्महत्या कर ली।
सुरेश की 4 बेटियां हैं जो अब अनाथ हो गई हैं। सुरेश ने किसान सेवा सहकारी समिति लरकेनी से कर्जा लिया था और समिति उस पर कर्जा वापसी के लिए दबाव डाल रही थी। उसके पास लगातार नोटिस आ रहे थे जिसके कारण वह मानसिक तनाव में था। आखिरकार उसने दुनिया छोड़ देने का ही फैसला किया और अपनी ससुराल जाकर फांसी लगाकर जान दे दी।
सुरेश सिंह मरावी को इस बार फसल नुकसान होने पर सूखा राहत राशि का मुआवजा भी मिला था, लेकिन यह मुआवजा इतना कम था कि उसे कोई राहत मिलने वाली नहीं थी।
इतना ही नहीं, मुआवजे के रूप में उसे मिला 13 हजार का चेक बैंक में जमा कराने के बावजूद, कैश नहीं हो पा रहा था। बैंक की भी इस मामले में लापरवाही रही। 15 दिन बाद भी कैश की रकम उसके खाते में नहीं आ पाई थी।
राज्य में किसानों की आत्महत्याओं के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन सरकार के मुखिया रमन सिंह इन मामलों के प्रति संवेदनहीन बने हुए हैं। उनका कहना है कि किसानों की आत्महत्याओं को लेकर जिस तरह की रिपोर्टें आ रही हैं, उनमें अलग-अलग तथ्य रहते हैं और जरूरी नहीं कि
आत्महत्या का कारण कर्ज ही हो।
रमन सिंह सरकार की कोशिश आंकड़ों में हेराफेरी करने की रहती है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो के अनुसार छत्तीसगढ़ में 2006 से 2010 तक हर साल किसानों की आत्महत्याओं के औसतन 1555 मामले दर्ज किए गए यानी हर दिन करीब 4 किसानों ने आत्महत्याएं कीं। 2009 में ये आंकड़ा 5 तक पहुंचा लेकिन उसके बाद सरकार ने आंकड़े छिपाने शुरू कर दिए।
2011 में किसानों की आत्महत्या का एक भी मामला सरकार ने स्वीकार नहीं किया। 2014 में केवल 4 किसानों की आत्महत्याओं को रमन सिंह सरकार ने स्वीकार किया लेकिन 2013 में फिर से ये आंकड़ा शून्य कर दिया गया।
जब सुप्रीम कोर्ट ने देश भर से किसानों की आत्महत्याओं के मामलों की जानकारी मांगी तब छत्तीसगढ़ सरकार को भी विवश होकर ये आंकड़े जारी करने पड़े।
किसानों की आत्महत्याओं का एक बड़ा कारण रमन सिंह सरकार की वादाखिलाफी भी है। चुनावों के समय उन्होंने किसानों से एक-एक दाना खरीदने का वादा किया था, लेकिन चुनाव जीतते ही उन्होंने इसकी सीमा नियत कर दी और पंजीयन से लेकर न जाने कितनी औपचारिकताओं की शर्तें लगा दीं। मजबूर होकर किसानों को अपनी फसल निजी व्यापारियों के हाथों में ही बेचनी पड़ती है।
छत्तीसगढ़ में आत्महत्याओं के मामले लगातार बढ़ रहे हैं जिनमें किसानों की आत्महत्याओं का बड़ा योगदान रहा है।
पिछले साल गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में स्वीकार किया था कि 2015 के बाद से 30 जून 2017 तक राज्य में आत्महत्याओं के कुल 11 हजार 826 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 1271 किसानों की आत्महत्याओं के थे। यही सरकार 2010 के बाद से 2013 और 2014 तक किसानों की आत्महत्याओं के मामले शून्य या दो-चार माना करती थी।