छत्तीसगढ़ चुनाव में सीटों की बंदरबांट: तुम भी जीतो हम भी न हारें

Written by Anuj Shrivastava | Published on: October 26, 2018
दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने भाषणों में एक वाक्य अक्सर कहते हैं, “ये सब मिले हुए हैं”. छत्तीसगढ़ के परिप्रेक्ष्य में कभी-कभी इस बात पर यकीन करने को जी चाह जाता है. दरअसल छत्तीसगढ़ में अगले महीने हो रहे विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव न सिर्फ़ छत्तीसगढ़ की, बल्कि पूरे देश की राजनीति पर असर डालेंगे. लेकिन यहां के सभी विपक्षी दलों के रवैय्ये से ऐसा लगता नहीं है कि उन्हें इसकी कुछ पड़ी है. ऐसा लग रहा है कि सभी मिल-बाँट के खाने में मस्त हैं.

Chhattisgarh Election
 
दो चरणों में मतदान

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. यहां दो चरणों में मतदान होना है. प्रथम चरण में नक्सल प्रभावित बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और राजनांदगांव (जो कि मुख्यमंत्री रमनसिंह का गृह ज़िला है) की 18 विधानसभा सीटों के लिए 12 नवम्बर को वोटिंग होगी जबकि दूसरे चरण में शेष 72 सीटों के लिए 20 नवम्बर को वोट डाले जाएंगे. दोनों ही चरणों में पड़े वोटों की गिनती एकसाथ 11 दिसंबर को होगी.
 
बीते 20 वर्षों पर सरसरी निगाह

भाजपा, कांग्रेस, तीसरा मोर्चा (जोगी कांग्रेस, बसपा और सीपीअई गठबन्धन), आप और बाकियों के लिए ये चुनाव बेहद ख़ास क्यों है ये समझने के लिए बीते 20 सालों एक सरसरी निगाह डालनी पड़ेगी.
अविभाजित मध्यप्रदेश में 1998 के विधानसभा चुनावों में कुल 320 सीटों में से 120 पर भाजपा और  164 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री बने दिग्विजय सिंह. सन 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर बने छत्तीसगढ़ राज्य में पहली सरकार कांग्रेस की थी जिसके मुखिया अजीत जोगी थे. राज्य गठन के बाद पहली बार 2003 में यहां चुनाव हुए तब से लगातार तीन चुनाव बीजेपी ने जीते हैं. पिछले 15 वर्षों से राज्य में भाजपा की सरकार है.
 
2003
भाजपा – 50  कांग्रेस – 37   बसपा – 02   एनसीपी - 01
2008
भाजपा – 50  कांग्रेस – 38   बसपा – 02
2013
भाजपा – 49  कांग्रेस – 39   बसपा – 01   अन्य – 01
 
ये शायद तुम भी जीतो और हम भी न हारें वाले ढुलमुल रवैये का ही नतीजा है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को छत्तीसगढ़ में लीडरों के लाले पड़ गए हैं. हालंकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का नेतृत्व कमज़ोर पड़ जाने के पीछे 2013 विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले हुए झीरम घाटी हत्याकांड का ज़िक्र भी ज़रूरी है. 25 मई 2013 झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा समेत 27 लोगों की हत्या कर दी थी.

अब झीराम घाटी हमले का ज़िक्र हुआ है तो बस्तर इलाके के चुनाव परिणामों पर भी एक नज़र डाल ही लेते हैं. बस्तर संभाग में कुल 12 विधानसभा सीटें हैं

अविभाजित बस्तर 1998
भाजपा – 01  कांग्रेस – 11
बस्तर 2003
भाजपा – 09  कांग्रेस – 03
बस्तर 2008
भाजपा – 11  कांग्रेस – 01
बस्तर 2013
भाजपा – 04  कांग्रेस – 08
 
अजीत जोगी पर रमन सिंह से मिलीभगत के आरोप

अजीत जोगी पर रमनसिंह के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस को नुकसान पहुचाने के आरोप लगते रहे हैं. अंतागढ़ टेप मामले में भी उन पर ऐसे आरोप लग चुके हैं. वर्ष 2014 में राज्य की अंतागढ़ सीट से कांग्रेस के मंतुराम पंवार को प्रत्याशी बनाया गया था. किसी को सूचना दिए बगैर ऐन वक्त पर उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया. इसके बाद खरीद-फरोख्त के आरोप लगे और इसका एक ऑडियो टेप भी सामने आया, जिसमें कथित रूप से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, उनके पुत्र अमित जोगी, मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता की आवाजें होने की बात कही गई. इस टेप के जारी होने के बाद सियासी घमासान मच गया, नतीजा, अजीत जोगी ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दिया और अपनी नई पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का गठन किया.

हालांकि जाँच में तो कुछ सामने नहीं आया, पर कांग्रेस के पीएल पूनियाझीरम कांड में मारे गए कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा (जो तब कांग्रेस की तरफ़ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी समझे जाते थे) के बेटे छविन्द्र कर्मा आदि झीरम घाटी हमले में अजीत जोगी का हाथ होने के आरोप लगा चुके हैं. दो चुनावों में लगातार हारने वाली कांग्रेस ने इस घटना के बाद बस्तर की 12 में से 8 सीटें जीतीं, लोगों ने कहा ये सिम्पेथी वोट का कमाल है. अब ये चाल थी या किसी की चाल उल्टी पड़ गई , ये कोई नहीं जानता. पर ये सारी बातें सिर्फ़ आरोप हैं कभी कुछ साबित नहीं हुआ इसलिए हर कोई सिर्फ़ आरोपी है दोषी नहीं. हालांकि साबित तो गोधरा में भी कुछ नहीं हुआ था. बड़े-बुज़ुर्ग कहते हैं कि ज़िन्दगी जो दिखा दे सो कम, मैं कहता हूं राजनीति जो करा दे सो कम.
 
सीटों की बंदरबांट

भाजपा 77 प्रत्याशियों की अपनी पहली सूची जारी कर चुकी है. बसपा, जोगी कांग्रेस और सिपीअई ने 6 सूचियों में नाम जरी किए हैं, अभी कुछ और नाम जरी किये जाएंगे. आम आदमी पार्टी ने भी लगभग 80 प्रत्याशितों की सूची जारी की है जिसमे फेरबदल अब भी जारी है. प्रत्याशियों की संभावित सूची कुछ इस तरह है-
 
अब तक घोषित प्रत्याशियों की संभावित सूची
           
क्र. सीट भाजपा कांग्रेस जोगी कांग्रेस गठबंधन आप
1. भरतपुर - सोनहत चम्पादेवी पावले गुलाब कमरो   सुखवन्ती सिंह
2. मनेन्द्रगढ श्यामबिहारी जायसवाल     मनसूर मेमन
3. बैंकुठपुर भैयालाल रजवाड़े अम्बिका सिंह देव   सुनील सिंह
4. प्रेमनगर   खेलसाय   मालती रजवाड़े
5. भटगांव रजनी त्रिपाठी     दिनेश सोनी
6. प्रतापपुर रामसेवक पैकरा     छोटे लाल तिर्की
7. रामानुजगंज   बृहस्पतिसिंह   सुग्रीव राम
8. सामरी सिद्धनाथ पैकरा     डॉ सोहनलाल कंवर
9. लुण्ड्रा विजयनाथ सिंह प्रीतम राय   प्रदीप बैरवा
10. अम्बिकापुर अनुराग सिंहदेव      
11. सीतापुर रामगोपाल भगत अमरजीत भगत मुन्ना टोप्पो अशोक कुमार तिर्की
12. जशपुर गोविन्दराम     रोहित लाकड़ा
13. कुनकुरी भारत साय     असुन देवी साय पैकरा
14. पत्थलगांव शिवशंकर पैकरा     मीरा तिर्की
15. लैलुंगा   सुरेन्द्र सिंह हृदयराम राठिया कुंती सिदार
16. रायगढ़ रोशनलाल अग्रवाल     राजेश त्रिपाठी
17. सारंगढ केरबाई मनहर   अरविन्द खटकर सुभाष चौहान
18. खरसिया ओमप्रकाश चौधरी उमेश पटेल   अमर अग्रवाल
19. धर्मजयगढ लीनफ़ राठिया लालजीत राठिया नवल राठिया प्रेम सिंह राठिया
20. रामपुर ननकी राम कंवर   फूलसिंह राठिया  
21. कोरबा विकास महतो जयसिंह अग्रवाल   अनूप अग्रवाल
22. कटघोरा लाखन देवांगन पुरुषोत्तम कंवर गोविन्द सिंह राजपूत मिलन दास दीवान
23. पाली - तानाखार रामदयाल उइके भारत सिंह   सुखनंदन सिंह
24. मरवाही अर्चना पोर्ते गुलाब सिंह राज    
25. कोंटा धनीराम बारसे कवासी लखमा   रामदेव बघेल
26. लोरमी तोखन साहू     महेंद्र सिंह ठाकुर
27. मुंगेली पुन्नुलाल मोहले राकेश पात्रे   रामकुमार गन्धर्व
28. तखतपुर हर्षिता पांडेय रश्मि सिंह   अनिल बघेल
29. बिल्हा धरमलाल कौशिक     जसबीर सिंह
30. बिलासपुर अमर अग्रवाल शैलेश पाण्डेय ब्रिजेश साहू डॉ. शैलेश आहूजा
31. बेलतरा रजनीश सिंह अटल श्रीवास्तव अनिल टाह अरविन्द पाण्डेय
32. मस्तुरी कृष्णमूर्ति बंधी दिलीप लहरिया   लक्ष्मी प्रसाद टंडन
33. अकलतरा सौरभ सिंह     चंद्रहास देवांगन
34. जांजगीर-चाम्पा नारायण चंदेल मोतीलाल देवांगन   संजय कुमार शर्मा
35. सक्ती मेघराम साहू चरणदास महंत    
36. चन्द्रपुर संयोगिता सिंह जूदेव कुलिक्षा सिंह गीतांजलि पटेल भानुप्रकाश चंद्रा
37. जैजेपुर       दादूराम मनहर
38. पामगढ अम्बेश जांगडे गोरेलाल बर्मन   डा. चैतराम देव खटकर
39. सराईपाली     छबिलाल रात्रे प्रभाकर ग्वाल
40. बसना     त्रिलोचन नायक संकल्प दास
41. खल्लारी मोनिका साहू     संतोष चंद्राकर
42. महासमुंद       संजय यादव
43. बिलाईगढ़ डॉ.सनम जांगड़े चंद्रदेव राय श्याम टंडन जगन्नाथ महिलांग
44. कसडोल गौरीशंकर अग्रवाल   रामेश्वर कैवर्त पुरषोतम सोनवानी
45. बलौदाबाजार     प्रमोद शर्मा मनहरणलाल वर्मा
46. भाटापारा शिवरतन शर्मा सुनील महेश्वारी   कात्यायनी वर्मा
47. धरसींवा देवजीभाई पटेल   विधान मिश्रा संतोष दूबे
48. रायपुर ग्रामीण   सत्यनारायण शर्मा   डॉ संकेत ठाकूर
49. रायपुर नगर पश्चिम राजेश मूणत विकास उपाध्याय भोजराम गौरखेडे उत्तम जयसवाल
50. रायपुर नगर उत्तर अभी घोषणा नहीं     योगेन्द्र सेन
51. रायपुर नगर दक्षिण बृजमोहन अग्रवाल रुचिर गर्ग   मुन्ना बिसेन
52. आरंग संजय ढीढी सुरेन्द्र सिंह संजय चेलक डागेश्वर भारती
53. अभनपुर चंद्रशेखर साहू धनेन्द्र साहू दयाराम निषाद संजय राय
54. राजिम संतोष उपाध्याय अमितेश शुक्ला रोहित साहू  
55. बिन्द्रा नवागढ डमरूधर पुजारी      
56. सिहावा पिंकी शिवराज शाह      
57. कुरूद अजय चंद्राकर   कन्हैयालाल साहू तेजेन्द्र कुमार तोड़ेकर
58. धमतरी रंजना साहू गुरमुख सिंह होरा    शत्रुघ्न साहू
59. संजारी बालोद       मधुसुदन साहू
60. डौण्डीलोहारा       युगल रात्रे
61. गुण्डरदेही       नम्रता सोनी
62. पाटन मोतीराम साहू भूपेश बघेल   दुर्गा झा
63. दुर्ग ग्रामीण जागेश्वर साहू प्रतिमा चंद्राकर    
64. दुर्ग शहरी चन्द्रिका चंद्राकर अरुण वोरा प्रताप मध्यानी डॉ.एस.के. अग्रवाल
65. भिलाई नगर प्रेमप्रकाश पाण्डेय देवेंन्द्र यादव दीनानाथ प्रसाद रजा सिद्दीकी
66. वैशाली नगर राकेश पाण्डेय     श्रीमती अंजुला भार्गव
67. अहिवारा सांवलाराम डहरे      
68. साजा लाभचंद बाफ़ना      
69. बेमेतरा अवधेश चंदेल   योगेश तिवारी  
70. नवागढ़ दयालदास बघेल   हरिकिशन कुर्रे अंजोर दास
71. पंडरिया मोतीलाल चंद्रवंशी योगेश्वर राज सिंह चैतराम राज  
72. कवर्धा अशोक साहू मो.अकबर    
73. खैरागढ कोमल जंघेल   देवव्रत सिंह मनोज गुप्ता
74. डोंगरगढ़ सरोजनी बंजारे   मिश्री मारकंडे इशू चांदने
75. राजनांदगांव डॉ.रमन सिंह करुणा शुक्ला अजीत जोगी डॉ. सौरभ निर्वाणी
76. डोंगरगांव माधुसूदन यादव   अशोक वर्मा चन्द्रमणी वर्मा
77. खुज्जी हिरेन्द्र सिंह   सरदार जनरल सिंह भाटिया रमेश कुमार यादव
78. मोहला - मानपुर कन्चमाला भूआर्य      
79. अंतागढ् विक्रम उसेंडी अनूप नाग हेमंत पोयम सन्तराम सलाम
80. भानुप्रतापपुर देवलाल दुग्गा मानोज सिंह मंडावी   कोमल हुपेंडी
81. कांकेर हीरा मरकाम शिशुपाल सोरी ब्रह्मानंद ठाकुर  
82. केशकाल हरिशंकर नेताम संतराम नेतराम जुगल किशोर  
83. कोण्डागांव लता उसेंडी मोहनलाल मरकाम नरेन्द्र नेताम  
84. नारायणपुर केदार कश्यप चंदन कश्यप    
85. बस्तर सुभाऊ कश्यप कखेश्वर बघेल   जगमोहन बघेल
86. जगदलपुर संतोष बाफ़ना रेखचंद जैन अमित पांडे रोहित सिंह आर्या
87. चित्रकोट लच्छुराम कश्यप दीपक बैज टंकेश्वर भरद्वाज दंती पोयाम
88. दन्तेवाडा भीमा मांडवी देवती कर्मा   बल्लू राम भवानी
89. बीजापुर महेश गागड़ा विक्रम शाह मंडावी    
90. कोन्टा धनीराम बारसे कवासी लखमा   रामदेव बघेल
 

टिकट देने का अजीब समीकरण

इन प्रतिद्वंदियों का हल्का मुआयना करें तो छत्तीसगढ़ में एक अलग ही समीकरण दिखाई देता है. मुख्यमंत्री रमन सिंह राजनांदगांव सीट से चुनाव लड़ते हैं, पिछले 15 सालों में हुई उनकी किरकिरी के बाद अजीत जोगी उनके सामने तगड़े प्रत्याशी होते, जनता कांग्रेस की लिस्ट में भी अजीत जोगी का नाम राजनंदगांव सीट से ही दिया गया था पर अब जनता कांग्रेस की तरफ़ से दीपक यादव चुनाव लड़ेंगे, दीपक यादव पार्षद हैं. अब ख़बर ये भी आ रही है कि अजीत जोगी चुनाव ही नहीं लड़ेंगे, वो सिर्फ़ स्टार प्रचारक की भूमिका में रहेंगे. कांग्रेस की तरफ़ से रमन सिंह के ख़िलाफ़ करुणा शुक्ला को टिकट दिया गया है.

करुणा शुक्ला के चयन के पीछे उनका पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपाई की रिश्तेदार होना एकमात्र कारण नज़र आता है. मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ खड़े किसी प्रत्याशी के लिए ये योग्यता पर्याप्त नहीं पड़ेगी. करुणा शुक्ला भाजपा की टिकट में कोरबा से सांसद और बलौदा बाज़ार से विधायक रह चुकी हैं. करुणा शुक्ल 31 साल तक भाजपा में रहने के बाद 2014 में कांग्रेस में आईं. तब कांग्रेस ने उन्हें बीजेपी की मज़बूत सीट बिलासपुर से टिकट दिया और वो हार गईं.

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर एक अहम सीट है जहां भाजपा के मंत्री अमर अग्रवाल 18 वर्षों से काबिज़ हैं. भ्रष्टाचार के ढेरों मामलों में जनता इन्हें दोषी कहती है, पार्टी कार्यकर्ताओं के आलावा हर कोई इनके हारने की आरज़ू लिए बैठा है. कांग्रेस की तरफ़ से जिस प्रत्याशी को इनके साम, दाम, दण्ड, भेड से भिड़ने लायाक समझा जा रहा था, अब ख़बर है कि उसकी जगह कोटा विधानसभा छेत्र के प्रत्याशी शैलेश पाण्डेय को बुलाया जा रहा है जबकि उनकी पकड़ बिलासपुर में ज़रा भी नहीं है. हालांकि कांग्रेस ने अभी अपनी फ़ाइनल लिस्ट जररी नहीं की है. परन्तु ये कोई पहला चुनाव नहीं है जहां कांग्रेस भाजपा एक दुसरे का ख़याल रखते नज़र आ रहे हैं.

छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार पर पिछले 15 वर्षों में भ्रष्टाचार, घोटाले, कार्पोरेट लूट, व हिंसा को बढ़ावा देने के लिए लगे गंभीर आरोपों के बाद विपक्ष के लिए उसे घेरना बहुत मुश्किल नहीं होना चाहिए था. देशभर में मिली हार के बाद कांग्रेस का जहां चौकस और आक्रामक हो जाना बनता था वहां वो  समझौता-समझौता खेलती दिख रही है. क्या है इस नरमी का कारण?
 
 
वर्तमान सरकार की नाज़ुक स्थिति

भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ़ छत्तीसगढ़ में तेज़ी से गिरा है. हालांकि रमन सिंह कुछ न कुछ बांटने की योजना लाकर लोकप्रीय बने रहने की पूरी कोशिश करते हैं, कभी चावल, कभी साइकल, कभी लैपटॉप और अभी हाल ही में उन्होंने मोबाईल बांटा है. पर वो भी क्या करें, योजनाओं की कलाई खुल जाती है और लोकप्रियता का ग्राफ़ नीचे खिसक जाता है. राज्य सरकार को कृषि के लिए आधा दर्जन से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार न जाने किस कारण दिए गए हैं, जबकि क़र्ज़ में दबे किसानों की आत्महत्या के सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं. सरकार कहती है लोगों की आय बढ़ गई है पर वो ये नहीं देखती कि मंहगाई भी तो बढ़ गई है. ग़रीब जहां के तहां हैं. धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ का किसान अब हाथ में कटोरा लिए घूम रहा है और सरकार टीवी पर उनसे कहलवाती है कि आमदनी बढ़ गई है.

कांकेर ज़िले के कान्हापुरी गांव की चंद्रमणि कौशिक के मामले को ही देख लीजिये, न्यूज़ प्रोग्राम मास्टर स्ट्रोक में सरकार की इस लफ्फाजी का पोस्टमार्टम किया गया था. जिसे विपक्ष के आलावा सबने देखा. डिजिटल इण्डिया बनाने के लिए छत्तीसगढ़ के गांवों में 50 लाख 4G मोबाईल फ़ोन बांटे गए हैं. पर क्या डिजिटल इण्डिया में अच्छी सड़कें, शुद्ध पेयजल, बेहतर स्वस्थ्य व्यवस्था, अच्छे स्कूल और रोज़गार के पर्याप्त अवसर नहीं होने चाहिए ? सिर्फ़ मोबाईल और मोबाईल टावर से दूर हो जाएंगी सब समस्याएं? इन सभी प्रश्नों पर छत्तीसगढ़ की सभी विपक्षी पार्टियां मुह में दही जमाए बैठी हैं.

जोगी बसपा गठबंधन के आलावा इस बार आम आदमी पार्टी भी लगभग सभी 90 सीटों पर चुनावी मैदान में है. कुशासन और भ्रष्टाचार से त्रस्त छत्तीसगढ़ की जनता के बीच आम आदमी पार्टी अपनी दमदार धमक दे सकती थी यदि सीमित लेकिन अच्छे प्रत्याशियों का चयन किया जाता.

“वक्त है बदलाव का”, ये छत्तीसगढ़ कांग्रेस का नारा है. प्रदेश में बदलाव मात्र एक ही सूरत में हो सकता है. और वो तब, जब भाजपा से त्रस्त जनता किसी भी ऐरे-गैर को जिता दे. इस बार का चुनाव राजनीतिक दलों के बीच नहीं, जनता और सरकार के बीच होगा. किसने कितना घोटाला किया ये हर कोई चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है. जनता के लिए कुछ करने का तो झूठ भी अब सुनाई नहीं देता. एग्ज़िट पोल तो अपना अनुमान लगाएंगे ही, पर इस बार प्रदेश चुनाव का परिणाम किसके पाले में जाएगा ये बताना बहुत मुश्किल है.

लोकतंत्र में चुनाव एक अहम और ज़रूरी प्रक्रिया है, लिहाज़ा हर बार ही ये ख़ास होता है. राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से ये अपेक्षा लाज़मी है कि वे इसकी गंभीरता को बनाए रखेंगे. पर उम्मीद पर जो खरे उतर जाएं तो फिर नेता किस बात के, जो लोकतंत्र को दो-चार कोड़े न लगाए तो मुख्य राजनीतिक दल किस बात का, और जो सत्ता के पालतू की तरह न मिमियाए तो फिर विपक्ष की बात का.

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