साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित प्रदेश बना लद्दाख, आज भी लोकतंत्र की बहाली और छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा की मांगों के समाधान की राह देख रहा है।

पिछले साल फरवरी में संवैधानिक बदलाव को लेकर किया गया था प्रदर्शन
जब 2019 में लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया, तभी से वहां लोकतंत्र के निलंबन और संवैधानिक अधिकारों की समाप्ति को लेकर गंभीर चिंता बनी हुई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा लद्दाख के लिए लागू की गई नई आरक्षण और डोमिसाइल नीतियां इन चिंताओं को दूर करने में विफल रही हैं।
पिछले दो वर्षों से करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के नेताओं के साथ मिलकर केंद्र से वार्ता का नेतृत्व कर रहे लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के नेता चेरिंग दोरजे ने द वायर से कहा, “हमारे लिए सबसे अहम मुद्दा लद्दाख को राज्य का दर्जा देना और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना है, जो अब तक अधूरा है।”
उन्होंने कहा, “हम इन नए उपायों का स्वागत करते हैं, लेकिन अब सरकार को लद्दाख को राज्य का दर्जा बहाल करने और किसी न किसी रूप में संवैधानिक सुरक्षा देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। जहां तक नौकरी में आरक्षण की बात है, वह एक अपेक्षाकृत छोटा मुद्दा था जिसे बहुत पहले ही सुलझा लिया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने इसे अनावश्यक रूप से लंबित रखा।”
पर्यावरणविद और नवप्रवर्तक सोनम वांगचुक, जो लद्दाख को उसके अधिकारों से वंचित किए जाने के विरोध में लंबे समय से आंदोलनरत हैं, ने कहा कि आरक्षण नीति, एलएबी-केडीए की संयुक्त मांगों में ‘सबसे कम महत्वपूर्ण’ थी।
वांगचुक ने कहा, “जरूरत के लिहाज़ से यह मांग सबसे ज़रूरी थी, लेकिन प्राथमिकता के लिहाज़ से यह सबसे नीचे थी। ऐसा लगता है कि एलएबी-केडीए और केंद्र सरकार ने आपसी सहमति से सबसे आसान मांग को पहले पूरा करने का निर्णय लिया।”
उन्होंने बताया कि एलएबी-केडीए की एक प्रमुख मांग यह थी कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को लद्दाख का डोमिसाइल प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए कम से कम 30 वर्षों का निरंतर निवास आवश्यक हो। हालांकि सरकार ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया।
लद्दाख सिविल सेवा विकेंद्रीकरण और भर्ती (संशोधन) विनियमन, 2025, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 2 और 3 जून को अधिसूचित किया, के अनुसार अब किसी बाहरी व्यक्ति को डोमिसाइल प्रमाणपत्र पाने के लिए 31 अक्टूबर 2019 से कम से कम 15 वर्षों तक लगातार निवास करना आवश्यक होगा।
डोमिसाइल प्रमाणपत्र प्राप्त करने से जुड़े नियम लद्दाख सिविल सेवा डोमिसाइल प्रमाणपत्र नियम, 2025 के तहत निर्धारित किए गए हैं।
लद्दाख से 2024 के लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए मोहम्मद हनीफा जान ने कहा कि जब तक लद्दाख को पुनः राज्य का दर्जा नहीं दिया जाता, तब तक डोमिसाइल नीति का कोई वास्तविक अर्थ नहीं है।
उन्होंने कहा, “सरकार पहले भी डोमिसाइल नीति लागू करने को तैयार थी, इसलिए इसमें कोई नई बात नहीं है—खासकर जब सरकार ने एलएबी और केडीए की 30 साल की निवास शर्त को नहीं माना।”
हालांकि इन नए नियमों से जुड़े विस्तृत दिशानिर्देश अभी जारी होने बाकी हैं, एलएबी प्रमुख दोरजे ने बताया कि लद्दाख आरक्षण (संशोधन) विनियमन, 2025 के तहत अब 95% नौकरियां, जिनमें 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षित हैं, स्थानीय डोमिसाइल धारकों के लिए सुरक्षित कर दी गई हैं। यह अधिसूचना भी मंगलवार को जारी की गई थी।
नए नियमों के अनुसार, लद्दाख में सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाकर 85% कर दी गई है, जिसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अन्य शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग शामिल हैं।
दोरजे ने कहा, “भले ही 2034 के बाद बाहरी लोग लद्दाख के डोमिसाइल बन जाएं, वे केवल 5% नौकरियों के लिए ही प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे, जबकि 95% नौकरियां स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित हैं—जो देश में सबसे अधिक है।”
उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर को 2019 के बाद पूर्व-प्रभावी डोमिसाइल नीति मिली थी, जबकि लद्दाख में यह नीति आगामी प्रभाव से लागू की जा रही है। उन्होंने कहा, “यह नीति लद्दाख के मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य प्रोफेशनल कॉलेजों में दाखिले तक पर लागू होगी।”
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अनुसार, लद्दाख की 83% से अधिक जनसंख्या जनजातीय समुदायों की है। नए नियमों को भाजपा की उस कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें वह 2019 के बाद से लद्दाख की सांस्कृतिक पहचान और नौकरियों पर बाहरी दावेदारों के प्रभाव के कारण उपजे जनाक्रोश को कम करना चाहती है।
हालांकि, हनीफा जान—जो 2023 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित उस उच्च स्तरीय समिति के सदस्य भी हैं जो एलएबी-केडीए गठबंधन की चार सूत्रीय मांगों की समीक्षा कर रही है—ने कहा कि बातचीत का मूल विषय ‘लोकतंत्र की बहाली’ है।
उन्होंने कहा, “देश 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आज़ाद हुआ था, लेकिन लद्दाख को 2019 से एक नई गुलामी में धकेल दिया गया है। हमारी नीतियां बनाने में कोई भागीदारी नहीं है और बाहर से आई नौकरशाही ने लद्दाख को दबा दिया है। अब सरकार को मूल मुद्दों के समाधान पर ध्यान देना चाहिए।”
सोनम वांगचुक, जो 2023 में दो बार भूख हड़ताल कर चुके हैं, ने चेतावनी दी कि डोमिसाइल नीति में 15 साल की निवास शर्त लद्दाख के लोगों को स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने कहा, “लोगों को कम से कम 30 साल के निरंतर निवास की शर्त की उम्मीद थी, इसलिए यह नियम उन्हें संतोषजनक नहीं लगता। फिर भी, यह समस्या हल करना जरूरी था क्योंकि सभी सरकारी पद खाली थे, जिससे शासन व्यवस्था बाधित हो रही थी और लद्दाख के युवा बेरोजगार थे।”
उन्होंने कहा कि आगामी दो बैठकें—जो लद्दाख की सिविल सोसायटी और गृह मंत्रालय के बीच होंगी—आंदोलन की आगे की दिशा तय करेंगी। वांगचुक ने चेतावनी दी कि कई लोग आरक्षण और डोमिसाइल नियमों को ‘समाधान’ के रूप में पेश कर रहे हैं, जबकि यह हकीकत से काफी दूर है।
उन्होंने कहा, “अगर केंद्र सरकार सचमुच छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा और लोकतंत्र की बहाली पर चर्चा करती है, तो लोग संतुष्ट होंगे। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ और केवल हिल काउंसिल के चुनाव करा दिए गए, तो यह पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को प्रभावित करेगा।”
2020 के हिल काउंसिल चुनाव में भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में तीन प्रमुख वादों में से एक लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना था।
घोषणापत्र में कहा गया था कि भाजपा लद्दाख की “जमीन, नौकरी और पर्यावरण” की रक्षा के लिए “छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा” प्रदान करेगी और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए जरूरी कदम उठाएगी।
वांगचुक ने कहा, “यह पूरा चक्र अब फिर से वहीं लौट आया है।” उन्होंने कहा कि यदि भाजपा ने फिर से अपने वादों को पूरा नहीं किया, तो इसका असर आगामी चुनावों में दिखाई देगा—जैसा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में हुआ, जब भाजपा को हार का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने 2019 में छठी अनुसूची का वादा किया था जिसे अब तक पूरा नहीं किया गया है।
उन्होंने आगे कहा, “लोकतंत्र में लोग अपना संदेश मतदान के जरिए देते हैं। यही कुछ सितंबर के अंत में होने वाले हिल काउंसिल चुनावों में फिर से देखने को मिल सकता है।”
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा जारी अन्य अधिसूचनाओं में ‘लद्दाख ऑफिशियल लैंग्वेजेज रेगुलेशन, 2025’ भी शामिल है, जिसमें अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू, भोटी और पुरगी को लद्दाख की आधिकारिक भाषाएं घोषित किया गया है तथा इनके उपयोग से संबंधित सिफारिशें निर्धारित की गई हैं।
साथ ही, ‘लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल (संशोधन) विनियमन, 2025’ के तहत अब लेह और करगिल की हिल काउंसिलों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी।
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पिछले दो वर्षों से करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के नेताओं के साथ मिलकर केंद्र से वार्ता का नेतृत्व कर रहे लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) के नेता चेरिंग दोरजे ने द वायर से कहा, “हमारे लिए सबसे अहम मुद्दा लद्दाख को राज्य का दर्जा देना और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना है, जो अब तक अधूरा है।”
उन्होंने कहा, “हम इन नए उपायों का स्वागत करते हैं, लेकिन अब सरकार को लद्दाख को राज्य का दर्जा बहाल करने और किसी न किसी रूप में संवैधानिक सुरक्षा देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। जहां तक नौकरी में आरक्षण की बात है, वह एक अपेक्षाकृत छोटा मुद्दा था जिसे बहुत पहले ही सुलझा लिया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने इसे अनावश्यक रूप से लंबित रखा।”
पर्यावरणविद और नवप्रवर्तक सोनम वांगचुक, जो लद्दाख को उसके अधिकारों से वंचित किए जाने के विरोध में लंबे समय से आंदोलनरत हैं, ने कहा कि आरक्षण नीति, एलएबी-केडीए की संयुक्त मांगों में ‘सबसे कम महत्वपूर्ण’ थी।
वांगचुक ने कहा, “जरूरत के लिहाज़ से यह मांग सबसे ज़रूरी थी, लेकिन प्राथमिकता के लिहाज़ से यह सबसे नीचे थी। ऐसा लगता है कि एलएबी-केडीए और केंद्र सरकार ने आपसी सहमति से सबसे आसान मांग को पहले पूरा करने का निर्णय लिया।”
उन्होंने बताया कि एलएबी-केडीए की एक प्रमुख मांग यह थी कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को लद्दाख का डोमिसाइल प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए कम से कम 30 वर्षों का निरंतर निवास आवश्यक हो। हालांकि सरकार ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया।
लद्दाख सिविल सेवा विकेंद्रीकरण और भर्ती (संशोधन) विनियमन, 2025, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 2 और 3 जून को अधिसूचित किया, के अनुसार अब किसी बाहरी व्यक्ति को डोमिसाइल प्रमाणपत्र पाने के लिए 31 अक्टूबर 2019 से कम से कम 15 वर्षों तक लगातार निवास करना आवश्यक होगा।
डोमिसाइल प्रमाणपत्र प्राप्त करने से जुड़े नियम लद्दाख सिविल सेवा डोमिसाइल प्रमाणपत्र नियम, 2025 के तहत निर्धारित किए गए हैं।
लद्दाख से 2024 के लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए मोहम्मद हनीफा जान ने कहा कि जब तक लद्दाख को पुनः राज्य का दर्जा नहीं दिया जाता, तब तक डोमिसाइल नीति का कोई वास्तविक अर्थ नहीं है।
उन्होंने कहा, “सरकार पहले भी डोमिसाइल नीति लागू करने को तैयार थी, इसलिए इसमें कोई नई बात नहीं है—खासकर जब सरकार ने एलएबी और केडीए की 30 साल की निवास शर्त को नहीं माना।”
हालांकि इन नए नियमों से जुड़े विस्तृत दिशानिर्देश अभी जारी होने बाकी हैं, एलएबी प्रमुख दोरजे ने बताया कि लद्दाख आरक्षण (संशोधन) विनियमन, 2025 के तहत अब 95% नौकरियां, जिनमें 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षित हैं, स्थानीय डोमिसाइल धारकों के लिए सुरक्षित कर दी गई हैं। यह अधिसूचना भी मंगलवार को जारी की गई थी।
नए नियमों के अनुसार, लद्दाख में सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाकर 85% कर दी गई है, जिसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अन्य शैक्षिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग शामिल हैं।
दोरजे ने कहा, “भले ही 2034 के बाद बाहरी लोग लद्दाख के डोमिसाइल बन जाएं, वे केवल 5% नौकरियों के लिए ही प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे, जबकि 95% नौकरियां स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित हैं—जो देश में सबसे अधिक है।”
उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर को 2019 के बाद पूर्व-प्रभावी डोमिसाइल नीति मिली थी, जबकि लद्दाख में यह नीति आगामी प्रभाव से लागू की जा रही है। उन्होंने कहा, “यह नीति लद्दाख के मेडिकल, इंजीनियरिंग और अन्य प्रोफेशनल कॉलेजों में दाखिले तक पर लागू होगी।”
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अनुसार, लद्दाख की 83% से अधिक जनसंख्या जनजातीय समुदायों की है। नए नियमों को भाजपा की उस कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें वह 2019 के बाद से लद्दाख की सांस्कृतिक पहचान और नौकरियों पर बाहरी दावेदारों के प्रभाव के कारण उपजे जनाक्रोश को कम करना चाहती है।
हालांकि, हनीफा जान—जो 2023 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा गठित उस उच्च स्तरीय समिति के सदस्य भी हैं जो एलएबी-केडीए गठबंधन की चार सूत्रीय मांगों की समीक्षा कर रही है—ने कहा कि बातचीत का मूल विषय ‘लोकतंत्र की बहाली’ है।
उन्होंने कहा, “देश 1947 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आज़ाद हुआ था, लेकिन लद्दाख को 2019 से एक नई गुलामी में धकेल दिया गया है। हमारी नीतियां बनाने में कोई भागीदारी नहीं है और बाहर से आई नौकरशाही ने लद्दाख को दबा दिया है। अब सरकार को मूल मुद्दों के समाधान पर ध्यान देना चाहिए।”
सोनम वांगचुक, जो 2023 में दो बार भूख हड़ताल कर चुके हैं, ने चेतावनी दी कि डोमिसाइल नीति में 15 साल की निवास शर्त लद्दाख के लोगों को स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने कहा, “लोगों को कम से कम 30 साल के निरंतर निवास की शर्त की उम्मीद थी, इसलिए यह नियम उन्हें संतोषजनक नहीं लगता। फिर भी, यह समस्या हल करना जरूरी था क्योंकि सभी सरकारी पद खाली थे, जिससे शासन व्यवस्था बाधित हो रही थी और लद्दाख के युवा बेरोजगार थे।”
उन्होंने कहा कि आगामी दो बैठकें—जो लद्दाख की सिविल सोसायटी और गृह मंत्रालय के बीच होंगी—आंदोलन की आगे की दिशा तय करेंगी। वांगचुक ने चेतावनी दी कि कई लोग आरक्षण और डोमिसाइल नियमों को ‘समाधान’ के रूप में पेश कर रहे हैं, जबकि यह हकीकत से काफी दूर है।
उन्होंने कहा, “अगर केंद्र सरकार सचमुच छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा और लोकतंत्र की बहाली पर चर्चा करती है, तो लोग संतुष्ट होंगे। लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ और केवल हिल काउंसिल के चुनाव करा दिए गए, तो यह पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को प्रभावित करेगा।”
2020 के हिल काउंसिल चुनाव में भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में तीन प्रमुख वादों में से एक लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना था।
घोषणापत्र में कहा गया था कि भाजपा लद्दाख की “जमीन, नौकरी और पर्यावरण” की रक्षा के लिए “छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा” प्रदान करेगी और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए जरूरी कदम उठाएगी।
वांगचुक ने कहा, “यह पूरा चक्र अब फिर से वहीं लौट आया है।” उन्होंने कहा कि यदि भाजपा ने फिर से अपने वादों को पूरा नहीं किया, तो इसका असर आगामी चुनावों में दिखाई देगा—जैसा कि 2024 के लोकसभा चुनावों में हुआ, जब भाजपा को हार का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने 2019 में छठी अनुसूची का वादा किया था जिसे अब तक पूरा नहीं किया गया है।
उन्होंने आगे कहा, “लोकतंत्र में लोग अपना संदेश मतदान के जरिए देते हैं। यही कुछ सितंबर के अंत में होने वाले हिल काउंसिल चुनावों में फिर से देखने को मिल सकता है।”
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा जारी अन्य अधिसूचनाओं में ‘लद्दाख ऑफिशियल लैंग्वेजेज रेगुलेशन, 2025’ भी शामिल है, जिसमें अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू, भोटी और पुरगी को लद्दाख की आधिकारिक भाषाएं घोषित किया गया है तथा इनके उपयोग से संबंधित सिफारिशें निर्धारित की गई हैं।
साथ ही, ‘लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल (संशोधन) विनियमन, 2025’ के तहत अब लेह और करगिल की हिल काउंसिलों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी।
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