कोर्ट ने जिला कमेटी को दो हफ्ते में फैसला लेने का निर्देश दिया
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने जालना में एक मस्जिद निर्माण पर फैसला करने के लिए एक जिला समिति को निर्देश दिया है, जिसे कथित तौर पर बिना उचित अनुमति के बनाया जा रहा है।
आर्य समाज जालना नामक संस्था द्वारा 2018 में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। उक्त याचिका पर मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति रवींद्र वी. घुगे की खंडपीठ ने सुनवाई की।
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वक्फ बोर्ड कार्यालय जालना के जिला वक्फ अधिकारी के कहने पर अधिकारियों की अनुमति के बिना एक मस्जिद का निर्माण किया जा रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता आशीष टी जाधवर ने कहा कि सड़क पर खड़ा निर्माण भारत संघ बनाम गुजरात राज्य में 2009 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करता है। अधिवक्ता जाधवर ने प्रस्तुत किया कि "प्रशासन, दोनों नागरिक और नगरपालिका, उसी (अनधिकृत मस्जिद) को हटाने के लिए कार्रवाई करने में ढिलाई बरत रहे हैं।"
2009 के आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "सार्वजनिक सड़कों, सार्वजनिक पार्कों या अन्य सार्वजनिक स्थानों आदि पर मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारा आदि के नाम पर कोई भी अनधिकृत निर्माण या अनुमति नहीं दी जाएगी।"
तद्नुसार, राज्य सरकार ने 2011 में एक संकल्प जारी किया था, जिसमें जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में एक जिला समिति का गठन किया गया था, जो पहले से ही हो चुके धार्मिक प्रकृति के किसी भी अनधिकृत निर्माण की समीक्षा के लिए थी। इस समिति में पुलिस अधीक्षक, जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, नगर निगम के आयुक्त, नगर परिषद के मुख्य अधिकारी और सचिव के रूप में रेजिडेंट डिप्टी कलेक्टर सहित अन्य इसके सदस्य हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने जिला समिति को 26 जुलाई, 2022 को अदालत के समक्ष अपना निर्णय रखने का निर्देश दिया है, और जिला वक्फ अधिकारी को अगली सुनवाई के लिए उपस्थित होने की चेतावनी दी है अन्यथा अदालत सभी गैर-उपस्थित प्रतिवादियों के खिलाफ कार्यवाही करेगी।
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लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने जालना में एक मस्जिद निर्माण पर फैसला करने के लिए एक जिला समिति को निर्देश दिया है, जिसे कथित तौर पर बिना उचित अनुमति के बनाया जा रहा है।
आर्य समाज जालना नामक संस्था द्वारा 2018 में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। उक्त याचिका पर मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति रवींद्र वी. घुगे की खंडपीठ ने सुनवाई की।
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वक्फ बोर्ड कार्यालय जालना के जिला वक्फ अधिकारी के कहने पर अधिकारियों की अनुमति के बिना एक मस्जिद का निर्माण किया जा रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता आशीष टी जाधवर ने कहा कि सड़क पर खड़ा निर्माण भारत संघ बनाम गुजरात राज्य में 2009 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करता है। अधिवक्ता जाधवर ने प्रस्तुत किया कि "प्रशासन, दोनों नागरिक और नगरपालिका, उसी (अनधिकृत मस्जिद) को हटाने के लिए कार्रवाई करने में ढिलाई बरत रहे हैं।"
2009 के आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "सार्वजनिक सड़कों, सार्वजनिक पार्कों या अन्य सार्वजनिक स्थानों आदि पर मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारा आदि के नाम पर कोई भी अनधिकृत निर्माण या अनुमति नहीं दी जाएगी।"
तद्नुसार, राज्य सरकार ने 2011 में एक संकल्प जारी किया था, जिसमें जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में एक जिला समिति का गठन किया गया था, जो पहले से ही हो चुके धार्मिक प्रकृति के किसी भी अनधिकृत निर्माण की समीक्षा के लिए थी। इस समिति में पुलिस अधीक्षक, जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, नगर निगम के आयुक्त, नगर परिषद के मुख्य अधिकारी और सचिव के रूप में रेजिडेंट डिप्टी कलेक्टर सहित अन्य इसके सदस्य हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने जिला समिति को 26 जुलाई, 2022 को अदालत के समक्ष अपना निर्णय रखने का निर्देश दिया है, और जिला वक्फ अधिकारी को अगली सुनवाई के लिए उपस्थित होने की चेतावनी दी है अन्यथा अदालत सभी गैर-उपस्थित प्रतिवादियों के खिलाफ कार्यवाही करेगी।
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