किसान आंदोलन के 10 माह पूरे, 'भारत बंद' से पहले सहमे योगी ने चला गन्ना मूल्य में बढ़ोत्तरी का दांव

Written by Navnish Kumar | Published on: September 27, 2021
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के 10 माह पूरे होने पर किसानों ने आज 27 सितंबर को 'भारत बंद' बुलाया है। किसान, मजदूर संगठनों, युवाओं, महिलाओं, वकीलों, ट्रांसपोर्टरों के साथ विपक्षी पार्टियों के समर्थन से यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ सहम उठे और उन्होंने किसानों को भरमाने को "बंद" से एक दिन पहले गन्ने के दाम में बढ़ोतरी के ऐलान का दांव चला है। लेकिन दाम में मामूली इजाफे से यह दांव उल्टा पड़ता दिख रहा है। योगी ने मायावती और अखिलेश के कार्यकाल से भी कम दाम बढ़ाया है जिसने किसानों की नाराजगी को और बढ़ा दिया है। 



किसानों के 'भारत बंद' के ऐलान के ठीक एक दिन पूर्व 26 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ना मूल्य में 25 रुपये बढ़ोत्तरी का ऐलान किया। योगी के अपने आखिरी साल में भी गन्ना मूल्य में आंशिक बढोतरी ने किसानों की नाराजगी का पारा, और चढ़ा दिया है। दरअसल बिजली, डीजल आदि के रेट में भारी उछाल से भड़की महंगाई से परेशान, किसानों को गन्ना मूल्य में बड़ी बढोत्तरी की उम्मीद थी। लेकिन हुआ उल्टा। योगी सरकार ने अखिलेश यादव व मायावती सरकार के जितना भी गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाया। पूर्ववर्ती सरकारों में देखें तो बसपा सरकार के 5 साल में रिकॉर्ड 115 रुपये कुंतल की वृद्धि की थी। अखिलेश यादव की सपा सरकार ने 5 साल में 65 रुपये बढ़ाए थे। मुख्यमंत्री मायावती ने अपने कार्यकाल में कीमतों में 92% तो सपा सरकार ने 27% गन्ना मूल्य बढ़ाया जबकि योगी सरकार ने दो बार में कुल 35 रुपये की ही बढोतरी की है, जो तकरीबन 10% मात्र है। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने के रेट में 25 रुपए प्रति कुंटल की बढ़ोत्तरी के बाद, अब गन्ना किसानों को ए-ग्रेड गन्ने के लिए 350 रुपए प्रति कुंतल का भुगतान होगा। सामान्य गन्ने का जो 315 रुपए का भाव था उसमें भी 25 रुपए कुंटल की बढ़ोत्तरी होगी और 340 का रेट मिलेगा। इसके अलावा जो अनुपयुक्त गन्ना है, जो मुश्किल से 1% बचा है उसके रेट में 25 रुपए कुंतल की बढ़ोत्तरी होगी। लखनऊ किसान मोर्चा सम्मेलन में सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसकी घोषणा की। सरकार ने अपने बयान में कहा कि प्रदेश सरकार गन्ना किसानों के जीवन में मिठास घोल रही है। गन्ना मूल्य में वृद्धि से किसानों की आय में करीब 8 फीसदी की वृद्धि होगी।

उत्तर प्रदेश में गन्ने के राज्य समर्थित परामर्श मूल्य (SAP) को लेकर लंबे समय से अटकलें लगाई जा रही थीं। 25 अगस्त को गन्ने की एफआरपी 290 रुपये घोषित होने के बाद गन्ना किसान अपनी अपनी सरकारों की तरफ देख रहे थे। यूपी से पहले पंजाब और हरियाणा सरकार ने अपने एसएपी घोषित किए। रविवार को किसानों को संबोधित करते हुए सीएम योगी ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील में चीनी उद्योग ठप हो गया था। महाराष्ट्र में आधे से ज्यादा चीनी मिलें बंद थीं, कर्नाटक में भी कुछ मिलें बंद हो गई थीं लेकिन यूपी सरकार ने अपनी सभी 119 मिलें चालू रखी थीं। इस दौरान उन्होंने अपनी पूर्ववर्ती सरकारों पर भी हमला बोला और गन्ना किसानों की अनदेखी का आरोप लगाया। सीएम ने कहा कि बसपा शासनकाल में 21 चीनी मिलें बंद की गईं और समाजवादी पार्टी के शासन के दौरान 11 चीनी मिलें बंद कर दी गईं। जब हम (भाजपा) सत्ता में आए, हमने बंद मिल को फिर से शुरू किया और गन्ना किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए हैं। वहीं किसान नेताओं ने 25 रुपए कुंतल बढ़ोतरी को नाकाफी बताया है। 



योगी सरकार की गन्ना मूल्य घोषणा के विपरीत भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि गन्ने का मूल्य ₹425 से एक रुपये कम भी मंजूर नहीं होगा। कहा केंद्र से काले कानूनों और एमएसपी की गारंटी के लिए चल रही लड़ाई के साथ भारतीय किसान यूनियन सूबे की सरकार की भी मोर्चेबंदी करेगी। कहा यूपी सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। यह सालाना करीब 179 मिलियन टन यानी देश के 44.75 फीसदी गन्ना उत्पादित करता है, लेकिन यहां पिछले 3 साल से इसके रेट में एक रुपये की वृद्धि नहीं की गई, जबकि इस दौरान बिजली का बिल कई गुना बढ़ा दिया गया। डीजल का रेट 60 रुपये प्रति लीटर था जो अब 91 रुपये हो चुका है। खाद और कीटनाशक के दाम में डेढ़ गुना वृद्धि हो चुकी है, जिससे उत्तर प्रदेश में करीब 48 लाख किसान गन्ने की खेती प्रभावित हो रही है। किसानों का मानना है कि तीन साल में गन्ने की खेती करना लगभग 35 फीसदी महंगा हो गया है। यूपी में योगी ने सत्ता में आने के बाद 2017-18 में 10 रुपये कुंतल की वृद्धि करके इसका दाम 325 रुपये किया गया था, जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सरकार बनने पर 370 रूपये गन्ने का मूल्य करने का एलान किया था। लेकिन 4 साल बाद भी रेट 350 ही घोषित किया है। टिकैत ने कहा, "उत्तर प्रदेश के बराबर के राज्य (हरियाणा) में गन्ना मूल्य 362 रुपए है। बिजली दरें भी कम हैं। यही नहीं, उत्तर प्रदेश की गन्ना मूल्य परामर्शदात्री समिति द्वारा गन्ना उत्पादन लागत ही 350 रुपए बताई गई थी। 

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के मुताबिक भी, उत्तर प्रदेश में 2015-16 में गन्ने की उत्पादन लागत 176.3 रुपये प्रति कुंतल थी, जो 17-18 में बढ़कर 199.1 रुपये हो गई थी। उसके बाद की उत्पादन लागत नहीं बताई गई है। किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं, "अगर हम एसी में बैठकर दाम तय करने वाले सरकारी बाबुओं की बात छोड़कर धरातल की बात करें तो पिछले 3 साल में लागत काफी तेजी से बढ़ी है, इसलिए गन्ने का सरकारी दाम 400 रुपये कुंतल से अधिक होने पर ही किसानों को लाभ होगा। खास है कि यूपी से सटे बीजेपी शासित हरियाणा में दाम 362 रुपये है तो पंजाब सरकार ने गन्ने का रेट 360 रुपये प्रति कुंतल घोषित किया है। जबकि इन राज्यों में चीनी रिकवरी भी यूपी से कम है। 



गन्ना मूल्य बढ़ोतरी को विपक्ष ने भी नाकाफी बताया है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा, "भाजपा ने उप्र के गन्ना किसानों के साथ बड़ा धोखा किया है। 4.5 सालों में 35 रुपये की मामूली बढ़ोत्तरी कर, 350 रुपये कुंतल रेट की घोषणा की है। कहा लागत बढ़ोतरी को देखते हुए, गन्ना मूल्य 400 रुपये कुंतल से एक रुपया भी कम नहीं चाहिए। कांग्रेस ने अपने सभी कार्यकर्ताओं, प्रदेश इकाई प्रमुखों और पार्टी से जुड़े संगठनों के प्रमुखों को कृषि कानूनों के विरोध में किसान यूनियन द्वारा 27 सितंबर को आहूत ‘भारत बंद’ में भाग लेने के लिए कहा है। कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने कहा कि कांग्रेस और उसके कार्यकर्ता सोमवार को किसान यूनियन द्वारा आहूत किये गए शांतिपूर्ण ‘भारत बंद’ को अपना पूरा समर्थन देंगे।

भाजपा सांसद वरुण गांधी ने भी गन्ना मूल्य 400 रुपए कुंतल किये जाने की मांग करते हुए सरकार को पत्र लिखा था।" कहा था "किसान पहले से ही कह रहे है कि भाजपा कॉरपोरेट की सरकार है किसान हितों से इसका कोई वास्ता नही है। साढ़े चार साल पहले अपने चुनावी घोषणा पत्र में गन्ने का रेट 370 और 14 दिन में गन्ने का भुगतान कराने का वादा भी जुमला साबित हुआ है और केवल बरगलाकर किसानों का वोट लेकर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया। कहा देश में किसान आंदोलन की भी परवाह न कर बीजेपी सरकार ने किसानों के पेट पर लात मारी है इसका जवाब किसान व मजदूर बिरादरी चुनाव में जरूर देगी।" राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन में जनपद खीरी में आईटीसेल के अध्यक्ष अंजनी कुमार दीक्षित ने कहा, "3 वर्ष बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने मात्र 25 रुपए बढ़ाकर चुनावी वर्ष में साबित कर दिया है कि सरकार चीनी मिल मालिकों की गोद में बैठी है। डीजल के दाम अत्यधिक महंगे हुए हैं मजदूरी कीटनाशक खाद के दाम भी बढ़े हैं। उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को घोर निराशा हुई है। सरकार को गन्ना रेट घोषित करने में पुनः विचार करना चाहिए।" 2007 में बसपा सरकार ने अपने कार्यकाल में सबसे अधिक गन्ने के रेट में कुल मिलाकर 115 रुपये का इजाफा किया था। अखिलेश यादव की सरकार में गन्ने का रेट 65 रुपये बढ़ा था। योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2017 में 10 रुपए की बढ़ोतरी की थी, जिसके बाद से किसानों को रेट बढ़ाने का इंतजार था।  



उधर, ऐतिहासिक किसान आंदोलन के 10 माह पूरे होने पर 27 सितंबर को बुलाए गए देशव्यापी 'भारत बंद' को किसान व मजदूर संगठनों के साथ  राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिला है जिससे किसानों के हौंसले बुलंद हैं। हालांकि संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने साफ किया कि वे दिल्ली में घुसकर विरोध प्रदर्शन नहीं करेंगे बल्कि दिल्ली आने वाली सड़कों को ब्लॉक कर विरोध करते रहेंगे। किसान नेता हन्नान मौला ने कहा कि 27 सितंबर के भारत बंद को 100 के करीब किसान संगठनों, राजनीतिक दलों, ट्रेड यूनियनों, युवाओं, शिक्षकों, स्टूडेंट्स, महिलाओं व मजदूर संघों का व्यापक समर्थन है। उन्होंने बताया कि भारत बंद स्वैच्छिक आए शांतिपूर्ण तरीके से होगा। परीक्षा व अस्पताल -मेडिकल आदि आवश्यक सेवाओं को बंद से छूट रहेगी। लेकिन रेल व बस सेवा प्रभावित रहेंगी। 

उन्होंने कहा सपा, बसपा, आरजेडी, कांग्रेस व वाम दलों सहित तमाम राजनीतिक पार्टियों ने ''बंद'' के समर्थन का ऐलान किया है, पर उनकी नीति राजनीतिक दलों के नेताओ के साथ मंच साझा नहीं करने की ही है। 

केरल की सत्ताधारी एलडीएफ ने 27 सितंबर को हड़ताल का समर्थन किया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा, तेलुगु देशम पार्टी, डीएमके आदि दलों ने भी अपना समर्थन दिया है। झारखंड में श्रमिक संघों ने भारत बंद के दिन कोयला परिवहन को पूरी तरह से बंद करने का आह्वान किया है। यही नहीं, फेडरेशन ऑफ प्राइवेट स्कूल्स एंड एसोसिएशन ऑफ पंजाब के साथ-साथ हरियाणा प्राइवेट स्कूल्स संघ ने घोषणा की है कि, भारत बंद के दिन निजी स्कूल बंद रहेंगे। कई जगह बार एसोसिएशन ने भी काम बंद करने की घोषणा की हैं। अखिल भारतीय बैंक व अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) ने भी किसान बंद का समर्थन किया है। एआईबीओसी ने किसानों की मांगों को उचित ठहराते हुए सरकार से संयुक्त मोर्चा के साथ फिर से बातचीत की अपील करते हुए, केंद्र से तीनों कृषि कानून रद्द करने की मांग की है।

'भारत बंद' को देंखे सिर्फ पंजाब में ही खुफिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि, तीन सौ बीस से अधिक स्थानों पर चक्का जाम की योजना है और लगभग एक दर्जन स्थानों पर रेल रोकों की योजना है। भारत बंद को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि 'बंद' की योजना में श्रमिक संघों, ट्रेड यूनियनों, कर्मचारियों और छात्र संघों, महिला संगठनों और ट्रांसपोर्टरों के संघों को इसमें शामिल किया जा रहा है। वहीं “भारत बंद” को लेकर किसान महापंचायतों का भी आयोजन किया जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने बताया कि इस मौके पर साइकिल और मोटरसाइकिल रैलियों का भी आयोजन होगा। इस बंद के दौरान देश में कई सेवाओं के बाधित रहने की संभावनाएं हैं। जिसमें यातायात भी प्रभावित हो सकता है। यूपी में भी जगह जगह तमाम हाइवे के जाम होने से प्रशासन ने सभी जिलों में रूट डायवर्ट कर दिए हैं और सफर कर रहे लोगों के लिए विशेष एडवाइजरी जारी की है। 

किसान संगठन 'भारत बंद' के जरिए केंद्र सरकार पर अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाना चाहते हैं। पिछले हफ्ते भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा था कि जब तक सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है, तब तक उनका आंदोलन चलता रहेगा। इसके अलावा हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के गुरनाम सिंह चंढ़ूनी ने भी इस बात पर जोर देते हुए कहा है कि दिल्ली की सीमा पर बैठे किसान तब तक वहां से नहीं जाएंगे, जब तक केंद्र के तीनों विवादित कृषि कानून रद्द नहीं होते। वाम दलों ने भी 22 जनवरी के बाद से वार्ता बंद होने को लेकर सरकार पर हठ करने का आरोप लगाया और कहा कि केंद्र संघर्षरत किसानों से बातचीत करने से इनकार कर रहा है। 

यही नहीं, किसान नेताओं ने सितंबर के शुरुआत में जारी एनएसएस के किसान परिवार की कृषि आय की स्थिति की आंकलन 2018-19 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि यह इंगित करता है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का सरकार का लक्ष्य, दूर का सपना लगता है। प्रति परिवार का औसत बकाया ऋण 2018 में बढ़कर 74,121 रुपये हो गया, जो वर्ष 2013 में 47,000 रुपये था। कृषि परिवारों की बढ़ती कर्जदारी, गहराते कृषि संकट को दर्शाती है। उधर, श्रमिक संगठनों ने भी आगे बढ़कर बंद को सफल बनाने का आह्वान किया है। मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान का मानना है कि भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा बनाये तीनों कृषि कानून न केवल किसानों को उजाड़ने वाले हैं बल्कि वे मजदूरों के भी खिलाफ हैं। इन कृषि कानूनों के लागू हो जाने से कृषि क्षेत्र पर कारपोरेट का कब्जा हो जाएगा। इन कानूनों में देशी-विदेशी पूंजीपतियों को सरकारी मंडी के बाहर बिना टैक्स व बिना फीस फसलों की खरीद और भंडारण करने की छूट दी गई है। इसका सीधा अर्थ है कि सरकारी मंडियां बंद हो जाएंगी, अनाज भंडार करने वाले एफसीआई जैसे विभाग बंद हो जाएंगे और इससे एक तरफ रोजगार छीना जाएगा और दूसरी तरफ पूंजीपति किसानों से मनमर्जी के दामों पर फसल खरीदेंगें और महंगा बेचेंगे। इससे किसान व आम जन तबाह हो जाएंगे और गरीब जनता के लिए जो खाद्य सुरक्षा है वह भी खत्म हो जाएगी। इसलिए मौजूदा किसान आंदोलन की कामयाबी और 27 सितंबर के ‘भारत बंद’ के सफल होने का सीधा अर्थ शोषण मूलक पूंजीवादी प्रणाली के खिलाफ मजदूर वर्ग की लड़ाई को एक कदम आगे बढ़ाना होगा। इसलिए मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA) समस्त मजदूर कर्मचारी वर्ग से अपील करता है कि वह काले कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का मजबूती से समर्थन करते हुए 27 सितंबर के ‘भारत बंद’ को पूरी तरह सफल करने के लिए पुरजोर कोशिश करें और सक्रिय रूप से बढ़चढ़ कर भाग लें। अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा ने भी कृषि कानूनों को निरस्त करने, सभी फसलों के लिए एमएसपी का कानूनी अधिकार देने, नया विद्युत अधिनियम निरस्त करने, 200 दिन मनरेगा में काम, 500 रुपये मजदूरी व पीडीएस खाद्य पदार्थ बढ़ाने आदि मांगों के साथ, मुट्ठी बांधकर हाथ उठाकर "बंद" को सफल बनाने का आह्वान किया।

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