एक वक्त हुआ करता था जब अखबार पत्र पत्रिकाएं लोगों को शिक्षित करने का काम किया करते थे. मुझे याद है डंकल समझौता, गेट समझौते पेटेंट कानून पर लम्बी बहस चलती थी. लगभग सभी लोग इन विषयों के पक्ष विपक्ष में पत्र पत्रिकाओं में अपनी राय रखते थे. अखबार के बीच वाले पन्ने इस तरह के विषयों की जानकारी से भरे रहते थे. लेकिन आज जिस तरह से मीडिया राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को एक विशेष राजनीतिक दल के चश्मे से दिखा रहा है. उससे ओर सब कुछ हो सकता है लेकिन स्वतंत्र चेतना का विकास नही हो सकता.
किसी विषय का आलोचनात्मक परीक्षण हमे सोचने को प्रेरित करता है, कि क्या सच है क्या झूठ , सत्ताधारी दल द्वारा वित्त पोषित मीडिया एक तरफा विश्लेषण इसलिए प्रस्तुत करता है ताकि पढे लिखे युवाओं को भेड़ो के रेवड़ के मानिंद एक तरफा धकेला जा सके.
सोशल मीडिया में वस्तुतः किसी भी विषय के संबंध में पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के विचार आने चाहिए लेकिन आप देखेंगे कि उस पर केवल भावनात्मक मुद्दे ही उछाले जाते हैं और उसी विषय पर नफरत फैलाने वाले लोग अपना काम बखूबी करते हैं और सही बात करने वालो की कोई पूछ परख नही होती, ट्रोल द्वारा उनका मजाक उड़ाया जाता है जो अपनी स्वतंत्र राय रखता है.
खास तौर व्हाट्सएप का इस्तेमाल इसमे किया जाता है व्हाट्सएप दरअसल एक तरफा संवाद का माध्यम है उसे इसी तरह से डिजाइन किया गया हैं. इसलिए यह विभाजनकारी शक्तियों का यह पसंदीदा माध्यम है, हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की टेक्निक का सबसे बढ़िया इस्तेमाल इसी प्लेटफार्म पर किया जा सकता है. इसलिए व्हाट्सएप के बनाए गए पर्सनल ग्रुप पर इस तरह की जहर बुझी बनी बनाई पोस्ट को ठेला जाता है और जिसे उस विषय की कोई जानकारी नही होती वह आसानी से उनका शिकार बनता है. वह उसे हर ग्रुप में फारवर्ड करता जाता है यह एक चेन रिएक्शन जैसी बात है.
आपको याद होगा कि व्हाट्सएप की शुरुआत में इस तरह के मेसेज ठेले गये जिसमे कहा गया कि इस मैसेज को आप 15 लोगो या ग्रुप तक पुहचाओगे तो आप पर विशेष कृपा होगी लोगो ने वैसा किया भी यह उन सोशल मीडिया मैनेज करने वाली कम्पनियों के लिए लिटमस टेस्ट जैसा था. आज इसका परिणाम हमे देखने को मिल रहा है भड़काऊ वीडियो डाले जा रहे हैं. कम पढ़े लिखे लोग इन्हें देखकर एक भीड़ के रूप में संगठित होकर हत्याएं तक कर रहे हैं. फ्री के डेटा से अब बेहद खतरनाक परिस्थितिया पैदा हो रही है जो सभ्य समाज के लिए बहुत घातक है.
इसलिए कृपया सब तरफ के विचारों को अपनी विचार प्रक्रिया का हिस्सा बनने दीजिए, नही तो आप भी इस आवारा भीड़ का हिस्सा बन जाएंगे.
किसी विषय का आलोचनात्मक परीक्षण हमे सोचने को प्रेरित करता है, कि क्या सच है क्या झूठ , सत्ताधारी दल द्वारा वित्त पोषित मीडिया एक तरफा विश्लेषण इसलिए प्रस्तुत करता है ताकि पढे लिखे युवाओं को भेड़ो के रेवड़ के मानिंद एक तरफा धकेला जा सके.
सोशल मीडिया में वस्तुतः किसी भी विषय के संबंध में पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ के विचार आने चाहिए लेकिन आप देखेंगे कि उस पर केवल भावनात्मक मुद्दे ही उछाले जाते हैं और उसी विषय पर नफरत फैलाने वाले लोग अपना काम बखूबी करते हैं और सही बात करने वालो की कोई पूछ परख नही होती, ट्रोल द्वारा उनका मजाक उड़ाया जाता है जो अपनी स्वतंत्र राय रखता है.
खास तौर व्हाट्सएप का इस्तेमाल इसमे किया जाता है व्हाट्सएप दरअसल एक तरफा संवाद का माध्यम है उसे इसी तरह से डिजाइन किया गया हैं. इसलिए यह विभाजनकारी शक्तियों का यह पसंदीदा माध्यम है, हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की टेक्निक का सबसे बढ़िया इस्तेमाल इसी प्लेटफार्म पर किया जा सकता है. इसलिए व्हाट्सएप के बनाए गए पर्सनल ग्रुप पर इस तरह की जहर बुझी बनी बनाई पोस्ट को ठेला जाता है और जिसे उस विषय की कोई जानकारी नही होती वह आसानी से उनका शिकार बनता है. वह उसे हर ग्रुप में फारवर्ड करता जाता है यह एक चेन रिएक्शन जैसी बात है.
आपको याद होगा कि व्हाट्सएप की शुरुआत में इस तरह के मेसेज ठेले गये जिसमे कहा गया कि इस मैसेज को आप 15 लोगो या ग्रुप तक पुहचाओगे तो आप पर विशेष कृपा होगी लोगो ने वैसा किया भी यह उन सोशल मीडिया मैनेज करने वाली कम्पनियों के लिए लिटमस टेस्ट जैसा था. आज इसका परिणाम हमे देखने को मिल रहा है भड़काऊ वीडियो डाले जा रहे हैं. कम पढ़े लिखे लोग इन्हें देखकर एक भीड़ के रूप में संगठित होकर हत्याएं तक कर रहे हैं. फ्री के डेटा से अब बेहद खतरनाक परिस्थितिया पैदा हो रही है जो सभ्य समाज के लिए बहुत घातक है.
इसलिए कृपया सब तरफ के विचारों को अपनी विचार प्रक्रिया का हिस्सा बनने दीजिए, नही तो आप भी इस आवारा भीड़ का हिस्सा बन जाएंगे.