नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा सवर्ण आरक्षण लागू करने और यूनिवर्सिटी में SC, ST, OBC आरक्षण को 13 प्वाइंट रोस्टर द्वारा निष्क्रिय करने के खिलाफ बहुजन संगठनों में गुस्से का माहौल नजर आ रहा है। 13 प्वाइंट रोस्टर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से दलित स्कॉलर्स का गुस्सा चरम पर है।
विभिन्न संगठनों की मांग है कि मोदी सरकार 200 प्वाइंट रोस्टर को अध्यादेश लाकर बहाल करे। विभिन्न संगठनों द्वारा 13 प्वाइंट रोस्टर औऱ सवर्ण आरक्षण के विरोध में एक बार फिर से भारत बंद का आह्वान किया है। कई संगठनों ने 5 मार्च को भारत बंद का आह्वान किया है। सपा और बसपा यूनिवर्सिटी आरक्षण पर सवर्ण नाराज़गी के डर से कुछ नहीं बोल पाईं। वहीं, कांग्रेस ने आगे बढ़कर मोदी सरकार से माँग कर दी है कि तत्काल कानून या अध्यादेश लाकर एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण को बचाए।
दरअसल मोदी सरकार ने संविधान के विरुद्ध जाकर कथित आर्थिक पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया है। जिन सवर्णों की वार्षिक इनकम 8 लाख से कम है वे आर्थिक विपन्न माने गए हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालयों में 13 प्वाइंट रोस्टर लागू किए जाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को जारी रखने की मंजूरी दे दी है। इससे दलित, पिछड़ों को विश्वविद्यालयों में नौकरी के चांस करीब खत्म ही हो जाएंगे। अभी तक 200 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली थी अब नए फैसले से विभाग को इकाई माना जाएगा।
इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने आशंका जताई है....
सवर्ण आरक्षण पर सपा-बसपा के ढीला पड़ने के बाद यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में रिजर्वेशन खत्म होना ही था. देश का लगभग सारा खेल यूपी में हो रहा है. सपा-बसपा ने अब भी चुप्पी साध रखी है. आप सब अब इन चीजों का इंतजार कीजिए. ये सब अगले तीन महीने में हो सकता है.
1. एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लगेगा
2. सबसे ज्यादा नौकरियों वाले डिपार्टमेंट - रेलवे का निजीकरण
3. राममंदिर निर्माण की घोषणा
4. अखिलेश यादव के खिलाफ रिवर फ्रंट मामले में मुकदमा
5. बहनजी के भाई आनंद के खिलाफ ईडी की कार्रवाई
6. ओबीसी का ऐसा बंटवारा, जिसमें यादवों की राजनीति खत्म करने की कोशिश होगी
7. यूनिवर्सिटी में नए सिस्टम से इतने सवर्ण चुनाव से पहले भर दिए जाएंगे, कि अगले 12-15 साल तक कोई नई नौकरी नहीं होगी.
आप डरकर बच नहीं पाएंगे. भि़ड़ेंगे तो कम से कम लालू प्रसाद की तरह राजनीति बच जाएगी. कांग्रेस ने भी भिड़ने का रास्ता चुना है. चिदंबरम का बेटा जेल खट आया है. राहुल और सोनिया पर मुकदमा है. वाड्रा पर केस है. लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस ने अपनी राजनीति बचा ली है और बीजेपी विरोध की वो चैंपियन नजर आने लगी है.
राफेल पर राहुल गरजते हैं. इस मुद्दे पर अखिलेश या बहनजी के मुंह से आवाज नहीं निकलती.
वैसे भी सपा और बसपा को तो अब एक तरफ से बीेजेपी और दूसरी तरफ से कांग्रेस निचोड़ेगी.
समाज का दैनिक डायरी लेखक होने के नाते मैं ये सब खबरें समय समय पर आपको देता रहूंगा. मुद्दों और विचारों के अलावा "न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर."
दिल्ली विवि में शिक्षक लक्ष्मण यादव ने 13 प्वाइंट रोस्टर को इस तरह समझाया है...
सुप्रीम कोर्ट ने 200 प्वाइंट रोस्टर पर MHRD और UGC द्वारा दायर SLP को 22 जनवरी को खारिज कर दिया। इससे यह बात स्पष्ट हो गई है कि 5 मार्च 2018 का लेटर लागू हो गया है और 13 प्वाइंट रोस्टर लागू हो गया है। बस एक नोटिस आने की देर है कि अब 19 जुलाई 2018 का वह लेटर ‘नल-एंड-वाइड’ हो रहा है। अब नियुक्तियाँ 13 प्वाइंट रोस्टर पर शुरू की जाएँ।
मनुवादी रोस्टर लागू होने पर मीडिया का रुख देखने लायक है। वे इसे राहत की तरह पेश कर रहे हैं जबकि इससे बहुजन समाज को ऐसा नुकसान होने जा रहा है जिसकी कोई मिसाल नहीं है। जितनी “राहत” मीडिया में बैठे मनुवादी महसूस कर रहे हैं, उससे कई गुना ज्यादा “राहत” विश्वविद्यालयों में बैठे मनुवादियों को मिली है। अपने स्टाफ रूम से लेकर कैंपस के किसी भी प्रोफेसर से बात कीजिएगा, तो जाति पूछने की ज़रूरत न होगी। रोस्टर पर उसका स्टैंड चीखकर कहेगा कि वह कौन है।
वैसे, मनुवादी मीडिया जिस तरह पूरे मसले को पेश कर रहा है, उससे मुल्क के दलित, पिछड़े, आदिवासी तबके के “सोए” हुए लोगों को जाग ही जाना चाहिए। माना कि हमारी लड़ाई बहुत बड़ी है और हमारे अपने ही लोग सोए और बिखरे हैं, फिर भी हम लड़ेंगे। हम देश भर के विश्वविद्यालयों में ‘ज़िंदा’ लोगों को साथ जोड़ेंगे, लड़ेंगे और जीतेंगे।
उच्च शिक्षा में आरक्षण के नाम पर हुए नाटक का सिलसिला कुछ यूँ बनता है-
1950 में SC-ST को मिला आरक्षण उच्च शिक्षा में औने-पौने तरीके से लागू हो पाया 1997 में।
1993 में OBC को मिला आरक्षण उच्च शिक्षा में, औने-पौने तरीके से लागू हो पाया 2007 में।
आरक्षण लागू न हो सके, इसके लिए दर्जनों कोर्ट केस। फिर भी लागू करना पड़ा तो रोस्टर गलत।
किसी तरह गलत तरीके से 200 प्वाइंट रोस्टर लागू हो सका, लेकिन शॉर्टफॉल बैकलाग खत्म।
5 मार्च 2018 को 200 प्वाइंट रोस्टर हटाकर विभागवार यानी 13 प्वाइंट रोस्टर कोर्ट के ज़रिए लागू हुआ।
सड़क से संसद तक भारी विरोध के चलते 19 जुलाई को नियुक्तियों पर रोक, सरकार द्वारा दो SLP दायर।
सरकार और यूजीसी की SLP पर सुनवाई टलती रही। मीडिया व संसद में मंत्री ने अध्यादेश की बात की।
22 जनवरी 2019 को दोनों SLP ख़ारिज। संसद के आख़िरी सत्र तक कोई अध्यादेश नहीं।
10% सवर्ण आरक्षण चंद घंटों में पास होकर चंद दिनों में ही लागू हो गया।
अब आप समझ गए होंगे कि मैं क्यों कहता हूँ उच्च शिक्षा संस्थान सामाजिक न्याय की कब्रगाह बन चुके हैं।
सरकार अध्यादेश लाने की बात कहकर धोखा दे चुकी है और कोर्ट ने खिलाफ़ फैसला सुना दिया है। लंबे संघर्ष के बाद उच्च शिक्षा में हासिल संवैधानिक आरक्षण कमोबेश खत्म कर दिया गया है। अब एक ही रास्ता बचा है कि हम सब सड़क पर उतरकर पूरी ताक़त से आंदोलन करें जिससे सरकार पर दबाव बने और सरकार अध्यादेश ले आए। वरना उच्च शिक्षा के दरवाजे अब मुल्क की बहुसंख्यक बहुजन आबादी के लिए बंद हो चुके हैं।
Tejashwi Yadav ने रोस्टर मामले पर समर्थन दिया है। मुल्क के बाकी नेताओं को जाने कब चेतना आएगी। हम दिल्ली विश्वविद्यालय में एक बड़ा सामाजिक न्याय सम्मेलन करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें तेजस्वी यादव समेत कई नेताओं के आने की बात चल रही है।
मुल्क के हर विश्वविद्यालय में आंदोलन तेज़ करना होगा। सड़कें जाम करनी होंगी। यही अंतिम मौक़ा है। अभी नहीं तो कभी नहीं।
विभिन्न संगठनों की मांग है कि मोदी सरकार 200 प्वाइंट रोस्टर को अध्यादेश लाकर बहाल करे। विभिन्न संगठनों द्वारा 13 प्वाइंट रोस्टर औऱ सवर्ण आरक्षण के विरोध में एक बार फिर से भारत बंद का आह्वान किया है। कई संगठनों ने 5 मार्च को भारत बंद का आह्वान किया है। सपा और बसपा यूनिवर्सिटी आरक्षण पर सवर्ण नाराज़गी के डर से कुछ नहीं बोल पाईं। वहीं, कांग्रेस ने आगे बढ़कर मोदी सरकार से माँग कर दी है कि तत्काल कानून या अध्यादेश लाकर एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण को बचाए।
दरअसल मोदी सरकार ने संविधान के विरुद्ध जाकर कथित आर्थिक पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया है। जिन सवर्णों की वार्षिक इनकम 8 लाख से कम है वे आर्थिक विपन्न माने गए हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालयों में 13 प्वाइंट रोस्टर लागू किए जाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को जारी रखने की मंजूरी दे दी है। इससे दलित, पिछड़ों को विश्वविद्यालयों में नौकरी के चांस करीब खत्म ही हो जाएंगे। अभी तक 200 प्वाइंट रोस्टर प्रणाली थी अब नए फैसले से विभाग को इकाई माना जाएगा।
इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने आशंका जताई है....
सवर्ण आरक्षण पर सपा-बसपा के ढीला पड़ने के बाद यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में रिजर्वेशन खत्म होना ही था. देश का लगभग सारा खेल यूपी में हो रहा है. सपा-बसपा ने अब भी चुप्पी साध रखी है. आप सब अब इन चीजों का इंतजार कीजिए. ये सब अगले तीन महीने में हो सकता है.
1. एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लगेगा
2. सबसे ज्यादा नौकरियों वाले डिपार्टमेंट - रेलवे का निजीकरण
3. राममंदिर निर्माण की घोषणा
4. अखिलेश यादव के खिलाफ रिवर फ्रंट मामले में मुकदमा
5. बहनजी के भाई आनंद के खिलाफ ईडी की कार्रवाई
6. ओबीसी का ऐसा बंटवारा, जिसमें यादवों की राजनीति खत्म करने की कोशिश होगी
7. यूनिवर्सिटी में नए सिस्टम से इतने सवर्ण चुनाव से पहले भर दिए जाएंगे, कि अगले 12-15 साल तक कोई नई नौकरी नहीं होगी.
आप डरकर बच नहीं पाएंगे. भि़ड़ेंगे तो कम से कम लालू प्रसाद की तरह राजनीति बच जाएगी. कांग्रेस ने भी भिड़ने का रास्ता चुना है. चिदंबरम का बेटा जेल खट आया है. राहुल और सोनिया पर मुकदमा है. वाड्रा पर केस है. लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस ने अपनी राजनीति बचा ली है और बीजेपी विरोध की वो चैंपियन नजर आने लगी है.
राफेल पर राहुल गरजते हैं. इस मुद्दे पर अखिलेश या बहनजी के मुंह से आवाज नहीं निकलती.
वैसे भी सपा और बसपा को तो अब एक तरफ से बीेजेपी और दूसरी तरफ से कांग्रेस निचोड़ेगी.
समाज का दैनिक डायरी लेखक होने के नाते मैं ये सब खबरें समय समय पर आपको देता रहूंगा. मुद्दों और विचारों के अलावा "न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर."
दिल्ली विवि में शिक्षक लक्ष्मण यादव ने 13 प्वाइंट रोस्टर को इस तरह समझाया है...
सुप्रीम कोर्ट ने 200 प्वाइंट रोस्टर पर MHRD और UGC द्वारा दायर SLP को 22 जनवरी को खारिज कर दिया। इससे यह बात स्पष्ट हो गई है कि 5 मार्च 2018 का लेटर लागू हो गया है और 13 प्वाइंट रोस्टर लागू हो गया है। बस एक नोटिस आने की देर है कि अब 19 जुलाई 2018 का वह लेटर ‘नल-एंड-वाइड’ हो रहा है। अब नियुक्तियाँ 13 प्वाइंट रोस्टर पर शुरू की जाएँ।
मनुवादी रोस्टर लागू होने पर मीडिया का रुख देखने लायक है। वे इसे राहत की तरह पेश कर रहे हैं जबकि इससे बहुजन समाज को ऐसा नुकसान होने जा रहा है जिसकी कोई मिसाल नहीं है। जितनी “राहत” मीडिया में बैठे मनुवादी महसूस कर रहे हैं, उससे कई गुना ज्यादा “राहत” विश्वविद्यालयों में बैठे मनुवादियों को मिली है। अपने स्टाफ रूम से लेकर कैंपस के किसी भी प्रोफेसर से बात कीजिएगा, तो जाति पूछने की ज़रूरत न होगी। रोस्टर पर उसका स्टैंड चीखकर कहेगा कि वह कौन है।
वैसे, मनुवादी मीडिया जिस तरह पूरे मसले को पेश कर रहा है, उससे मुल्क के दलित, पिछड़े, आदिवासी तबके के “सोए” हुए लोगों को जाग ही जाना चाहिए। माना कि हमारी लड़ाई बहुत बड़ी है और हमारे अपने ही लोग सोए और बिखरे हैं, फिर भी हम लड़ेंगे। हम देश भर के विश्वविद्यालयों में ‘ज़िंदा’ लोगों को साथ जोड़ेंगे, लड़ेंगे और जीतेंगे।
उच्च शिक्षा में आरक्षण के नाम पर हुए नाटक का सिलसिला कुछ यूँ बनता है-
1950 में SC-ST को मिला आरक्षण उच्च शिक्षा में औने-पौने तरीके से लागू हो पाया 1997 में।
1993 में OBC को मिला आरक्षण उच्च शिक्षा में, औने-पौने तरीके से लागू हो पाया 2007 में।
आरक्षण लागू न हो सके, इसके लिए दर्जनों कोर्ट केस। फिर भी लागू करना पड़ा तो रोस्टर गलत।
किसी तरह गलत तरीके से 200 प्वाइंट रोस्टर लागू हो सका, लेकिन शॉर्टफॉल बैकलाग खत्म।
5 मार्च 2018 को 200 प्वाइंट रोस्टर हटाकर विभागवार यानी 13 प्वाइंट रोस्टर कोर्ट के ज़रिए लागू हुआ।
सड़क से संसद तक भारी विरोध के चलते 19 जुलाई को नियुक्तियों पर रोक, सरकार द्वारा दो SLP दायर।
सरकार और यूजीसी की SLP पर सुनवाई टलती रही। मीडिया व संसद में मंत्री ने अध्यादेश की बात की।
22 जनवरी 2019 को दोनों SLP ख़ारिज। संसद के आख़िरी सत्र तक कोई अध्यादेश नहीं।
10% सवर्ण आरक्षण चंद घंटों में पास होकर चंद दिनों में ही लागू हो गया।
अब आप समझ गए होंगे कि मैं क्यों कहता हूँ उच्च शिक्षा संस्थान सामाजिक न्याय की कब्रगाह बन चुके हैं।
सरकार अध्यादेश लाने की बात कहकर धोखा दे चुकी है और कोर्ट ने खिलाफ़ फैसला सुना दिया है। लंबे संघर्ष के बाद उच्च शिक्षा में हासिल संवैधानिक आरक्षण कमोबेश खत्म कर दिया गया है। अब एक ही रास्ता बचा है कि हम सब सड़क पर उतरकर पूरी ताक़त से आंदोलन करें जिससे सरकार पर दबाव बने और सरकार अध्यादेश ले आए। वरना उच्च शिक्षा के दरवाजे अब मुल्क की बहुसंख्यक बहुजन आबादी के लिए बंद हो चुके हैं।
Tejashwi Yadav ने रोस्टर मामले पर समर्थन दिया है। मुल्क के बाकी नेताओं को जाने कब चेतना आएगी। हम दिल्ली विश्वविद्यालय में एक बड़ा सामाजिक न्याय सम्मेलन करने की योजना बना रहे हैं, जिसमें तेजस्वी यादव समेत कई नेताओं के आने की बात चल रही है।
मुल्क के हर विश्वविद्यालय में आंदोलन तेज़ करना होगा। सड़कें जाम करनी होंगी। यही अंतिम मौक़ा है। अभी नहीं तो कभी नहीं।