अयोध्या: राम मंदिर के मेगा इवेंट की तैयारी, मस्जिद का नामो-निशान नहीं

Written by Abdul Alim Jafri | Published on: January 20, 2024
धन्नीपुर गांव के ग्रामीण उस स्थान पर अस्पताल, कॉलेज और सामुदायिक रसोई के वादे का इंतजार कर रहे हैं जिसका वादा किया गया था। हालांकि, इसमें देरी की वजह फंड की कमी और एनओसी का न मिलना बताया जा रहा है।



धन्नीपुर (अयोध्या): सुबह के साढ़े दस बजे रहे थे। धन्नीपुर गांव में प्रस्तावित मस्जिद मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह में घना कोहरा छाया हुआ था। पहली नज़र में गांव में खाली पड़े भूखंड पर बकरियां व अन्य पशु चरते दिखाई दे रहे थे।

कंपकंपा देने वाली ठंड की सुबह को नजरअंदाज करते हुए, बच्चों को उस जमीन पर क्रिकेट खेलते देखा जा सकता है। वे इस तथ्य से अनजान हैं कि यह वह भूखंड है जिसे चार साल पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां मिली थीं जब इसे आधिकारिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के निर्माण के लिए आवंटित किया था।

भूमि का यह वैकल्पिक टुकड़ा, धन्नीपुर गांव में है और विवादित 2.77 एकड़ भूमि से बमुश्किल 20 किमी दूर है जहां 6 दिसंबर 1992 को ध्वस्त होने से पहले ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद खड़ी थी।

गांव वाले अभी भी 'भव्य मस्जिद' परियोजना, एक लॉ कॉलेज, 500 बिस्तरों वाला कैंसर अस्पताल, एक सामुदायिक रसोईघर जो प्रतिदिन लगभग 1,000 गरीब लोगों को मुफ्त में खाना खिलाएगा और अन्य सुविधाओं के लिए खाली भूखंड पर कुछ गतिविधि होने का इंतज़ार कर रहे हैं।

हालांकि मुस्लिम बहुल गांव धन्नीपुर और रौनाही के स्थानीय निवासियों के पास एक 'भव्य मस्जिद' के अलावा अन्य योजनाएं हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें एक 'भव्य मस्जिद' से ज्यादा एक अस्पताल, एक सरकारी कॉलेज और अन्य सरकारी संस्थानों की तत्काल जरूरत है।

"जब से इस जमीन को मस्जिद बनाने के लिए आवंटित किया गया है तब से हर दिन, देश भर से राजनेताओं, धार्मिक विद्वानों और पत्रकारों सहित चार-पांच लोग धन्नीपुर आते हैं। हर कोई वादा करता है कि एक 'भव्य मस्जिद' के साथ एक अस्पताल, एक कॉलेज और सामुदायिक रसोई बनाई जाएगी।" गांव वाले खुश थे कि इलाके की किस्मत बदल जाएगी। लेकिन चार साल से अधिक समय बीत गया है लेकिन यहां एक भी ईंट नहीं रखी गई है। खुदा ही जानता है कि यह सब कब सच होगा, "मोहम्मद साजिद खान, जिनकी बकरियां प्रस्तावित मस्जिद के परिसर में चर रही थीं ने उक्त बातें न्यूज़क्लिक को बताई।



12वीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले खान को इस बात का मलाल है कि वह उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सके क्योंकि इलाके में कोई सरकारी कॉलेज नहीं था।

साजिद ने निराश होते हुए कहा कि, "हमें मस्जिद से ज्यादा एक सरकारी अस्पताल और डिग्री कॉलेज की तत्काल जरूरत है। धन्नीपुर और रौनाही गांवों में पहले से ही 20 मस्जिदें हैं। अस्पताल के अभाव में हमें इलाज के लिए लखनऊ या फैजाबाद जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।"

लंबे समय तक चले बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि टाइटल मुकदमे के बाद, शीर्ष अदालत ने अपने 1,045 पन्नों के फैसले में नवंबर 2019 में राज्य सरकार को प्रस्तावित निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन आवंटित करने का आदेश दिया था। मस्जिद, मस्जिद-ए-अयोध्या, जिसे अब वैकल्पिक भूमि पर मस्जिद मोहम्मद बिन अब्दुल्ला कहा जाता है। यह अब इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (आईआईसीएफ) की देखरेख में है – जो वक्फ बोर्ड द्वारा स्थापित एक ट्रस्ट है।

"बाबरी मस्जिद के फैसले में यह कभी नहीं कहा गया कि मस्जिद से पहले वहां कोई हिंदू मंदिर मौजूद था। उन्होंने सिर्फ वह जमीन दी क्योंकि कार्यपालिका, न्यायपालिका, कानून सभी पर बहुमत का वर्चस्व है। अगर तटस्थ अदालतें होतीं तो जमीन मुआवज़े के साथ मुसलमानों को दे दी जाती और अपराधियों को जेल भेज दिया गया होता।" सोहेल इस्माइली ने न्यूज़क्लिक को बताया जो इस बात से निराश हैं कि उनके गांव में कभी भी एक भव्य मस्जिद का निर्माण नहीं किया जाएगा।

एक धार्मिक स्कॉलर इस्माइली ने तर्क दिया कि जब आपने "बाबरी मस्जिद पर कब्जा कर लिया है" तो दान में जमीन लेने का कोई मतलब नहीं बनता है।

उसी जिले में 20 किमी की दूरी पर एक भव्य मंदिर बनाया जा रहा है जबकि यहां चार वर्षों में एक भी ईंट की नींव नहीं रखी गई है। क्या हमारे ही देश में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक नहीं माना जा रहा है। हमें किसी भी संस्थान से कोई उम्मीद नहीं है,'' इस्माली ने कहा, जो रौनाही गांव में प्रस्तावित मस्जिद स्थल के सामने खुद को गर्म करने के लिए अलाव के पास अपने दोस्तों के साथ बैठे थे।

रौनाही और धन्नीपुर गांव आमने-सामने हैं। महज 20 फीट सड़क की दूरी है।दोनों गांवों में मुस्लिम बहुल आबादी है। निकटवर्ती गांव चिर्रा और मगली भी मुस्लिम बहुल हैं। इन सभी गांवों में एक बात समान है, वह है शिक्षा, बुनियादी ढांचे की कमी तथा बेरोजगारी।

‘आखरी उम्मीद’

धन्नीपुर से बमुश्किल 20 किमी दूर, 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के बहुप्रतीक्षित अभिषेक की तैयारियां जोरों पर हैं। साथ ही, इन गांवों में मस्जिद, कैंसर अस्पताल, कॉलेज और सामुदायिक रसोई के निर्माण की एक खोई हुई उम्मीद भी व्याप्त है।

माजिद खान (24 वर्ष), जिन्होंने हाल ही में राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या से मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की है और कैट परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। मस्जिद इलाके से 100 मीटर की दूरी पर रहते हैं।

"मस्जिद के अलावा, हर समुदाय के लाभ के लिए एक अस्पताल, एक कॉलेज और रसोई का प्रस्ताव रखा गया था। सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए एक बड़ी राशि दी है, इसे एक अंतरराष्ट्रीय मंच देने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि जल्द ही पर्यटक आएंगे।" भीड़ उमड़ेगी और इससे राजस्व पैदा होगा। अगर सरकार ने हमारे गांव के लिए कुछ धन आवंटित किया होता, तो कम से कम एक अस्पताल और कॉलेज बनाया जा सकता था। माजिद ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हम (मुसलमान) सरकार की प्राथमिकता में नहीं हैं।''

एक अन्य ग्रामीण, शिव नारायण मौर्य, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कट्टर समर्थक हैं, 22 जनवरी को अपने घर पर भगवान राम का स्वागत करने को पूरी तरह तैयार दिखे। हालांकि वह एक दशक की न्यायिक कार्यवाही के बाद बहुत खुश थे कि वह अयोध्या में एक कार्यक्रम देखने जा सके। राम की मूर्ति की झलक दिखाते हुए उन्होंने कहा कि भगवा सरकार को मथुरा और काशी को घसीटने से बचना चाहिए। क्योंकि राज्य की 'गंगा-जमुनी तहजीब' खत्म नहीं होनी चाहिए। मौर्य ने यह भी कहा कि वह इस बात से 'निराश' हैं कि चार साल बाद भी मस्जिद के लिए आवंटित जमीन अभी भी वीरान नजर आ रही है।

उन्होंने कहा कि, “मैं मस्जिद निर्माण के पीछे देरी का कारण नहीं जानता लेकिन चार साल में कुछ ठोस काम किया जाना चाहिए था। हम लंबे समय से अस्पताल और सामुदायिक रसोई का इंतजार कर रहे थे।”

थोड़ी दूरी पर, एक चाय की दुकान पर गांव वाले को इसी विषय पर चर्चा करते हुए सुना जा सकता है - मस्जिद में देरी क्यों हो रही है। उन्हें लगा कि ऐसा फंड की कमी के कारण हुआ है।

एक ग्रामीण ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “कई बूढ़े लोग धन्नीपुर में एक ‘भव्य मस्जिद’ देखने का सपना देखते हुए मर गए। हम सुन रहे हैं कि समिति के पास मस्जिद के लिए धन नहीं है।”

स्थानीय पत्रकार सोहराब खान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "मस्जिद मोहम्मद बिन अब्दुल्ला 'दवा-दुआ' का केंद्र होगा। क्योंकि यह न केवल लोगों को नमाज अदा करने की इजाजत देगा बल्कि 500 बिस्तरों वाला कैंसर अस्पताल भी होगा जिससे लोगों को फायदा होगा। यूपी से कोई भी व्यक्ति कैंसर के इलाज के लिए दिल्ली या लखनऊ नहीं जाएगा। हमारा गांव ध्यान आकर्षित को बेताब है। पर किसे परवाह है…। आज के राजनीतिक परिदृश्य में (धार्मिक) पहचान मायने रखती है।”

समिति को धन की कमी का सामना करना पड़ रहा है

2019 में, सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का आदेश देने के बाद, इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन का गठन किया गया था। पिछले साल के सर्किल रेट के मुताबिक 3 करोड़ रुपये की जरूरत थी जो अयोध्या विकास प्राधिकरण (एडीए) को देना था, लेकिन फंड की कमी के कारण भुगतान नहीं हो सका। इसी तरह, नागरिक अधिकारियों, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अग्निशमन सेवाओं से भवन मानचित्र और एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) की मंजूरी के लिए भी बड़ी राशि का भुगतान करना है।

“पांच एकड़ में सामुदायिक रसोई, कैंसर अस्पताल और डिग्री कॉलेज के साथ एक भव्य मस्जिद का निर्माण संभव नहीं है। इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन किसानों से छह एकड़ अतिरिक्त जमीन खरीदने की तैयारी में है। इसके लिए बड़ी रकम की जरूरत है। पत्रकार ने कहा कि, अगर समिति विज्ञापन देगी तो लोग दान देंगे जैसा कि मंदिर समिति ने सरकार की मदद से किया था।''

उन्होंने कहा कि, ''एक तरफ 20 साल से ज्यादा समय से लोग मंदिर निर्माण के लिए दान दे रहे हैं और सरकार भी मदद कर रही है, दूसरी तरफ इंडो इस्लामिक कमेटी के गठन को अभी तीन साल ही हुए हैं, लेकिन कोई पैसा नहीं मिला है। इतना पैसा कहां से आएगा? लोगों को यह भी पता नहीं है कि दान कैसे करना है।”

न्यूज़क्लिक ने इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन से भी बात की। उन्होंने कहा कि, “9 नवंबर, 2019 को फैसला आया था। यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किया गया न्यायसंगत मुकदमा था कि बाबरी मस्जिद का तत्कालीन परिसर उस ट्रस्ट को दिया जाएगा जो राम मंदिर का निर्माण करेगा। जमीन पर मुस्लिम पक्षकारों का दावा खारिज कर दिया गया था उस फैसले के भीतर, सर्वोच्च न्यायालय ने मस्जिद के निर्माण के लिए यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दी थी। वक्फ बोर्ड ने इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन का गठन किया, जिसे सितंबर 2020 में अयोध्या के जिला प्रशासन ने जमीन का कब्जा दे दिया था। जमीन का कब्जा मिले तीन साल हो गए हैं। उसके बाद हम धन्नीपुर और रौनाही में इस विचार-विमर्श के लिए गए कि हमारे पास किस तरह की परियोजना होगी क्योंकि गांवों में पहले से ही 14 मस्जिदें मौजूद हैं। समुदाय से प्रतिक्रिया यह मिली कि मस्जिद के अलावा, सामुदायिक सेवा भी होनी चाहिए, जिसमें एक अस्पताल और एक सामुदायिक रसोई शामिल हो जो मुफ्त भोजन खिलाएगी। हमने घोषणा की कि हमारे पास सामुदायिक रसोई वाला अस्पताल होगा।



अवध इलाके के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए, अतहर ने आगे बताया कि, “प्रस्तावित भूमि अवध इलाके में है जहां अयोध्या स्थित है। 1857 में यह जिला ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रमुख युद्धक्षेत्र था, जहां हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर लड़ाई लड़ी थी। अवध में हिंदू-मुस्लिम एकता की साझा विरासत है। इसलिए हम इस प्रोजेक्ट से एकता का संदेश देना चाहते हैं। आखिरकार, जब आप किसी प्रोजेक्ट की घोषणा करते हैं, तो बात पर भी अमल करना पड़ता है। पिछले अक्टूबर में, फाउंडेशन के प्रमुख ने कुछ प्रयास किए और वित्तीय राजधानी मुंबई गए। उन्होंने व्यवसायियों से मुलाकात कर चंदा मांगा। निश्चित रूप से यह परियोजना सिरे चढ़ेगी, लेकिन हम समय और तारीख नहीं बता सकते।

गौरतलब है कि अयोध्या विकास प्राधिकरण से नक्शा पास कराने के लिए 2020 में फायर ब्रिगेड, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और निकाय विभाग समेत आठ विभागों से एनओसी मांगी गई थी। अभी तक किसी भी विभाग ने एनओसी नहीं दी है। जब फायर ब्रिगेड जमीन की जांच के लिए मौके पर पहुंची तो पता चला कि जहां मस्जिद का निर्माण होना है, वहां तक पहुंचने वाली सड़क की चौड़ाई बहुत कम है। वर्तमान में एप्रोच रोड की चौड़ाई मात्र 6 मीटर है, जबकि 12 मीटर होनी चाहिए। एक समिति सदस्य ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, ऐसी स्थिति में, फायर ब्रिगेड ने एनओसी देने से इनकार कर दिया है।

अनुवाद- महेश कुमार

साभार- न्यूजक्लिक

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