उत्तर प्रदेश में बेदखली के बीच असम के प्रवासी मजदूरों में भय का माहौल

Written by sabrang india | Published on: December 9, 2025
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 नवंबर को सभी ज़िलाधिकारियों को कथित ‘घुसपैठियों’ की पहचान कर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। इन निर्देशों के बाद अब लखनऊ नगर निगम ने अभियान शुरू कर दिया है, जिससे असम से आकर छोटे-मोटे काम करके गुज़ारा करने वाले लोगों में दहशत का माहौल है।


प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 नवंबर को सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे कथित अवैध प्रवासियों की पहचान करें और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करें। इसके साथ ही प्रत्येक जिले में चिन्हित घुसपैठियों को रखने के लिए अस्थायी डिटेंशन केंद्र स्थापित करने के आदेश भी जारी किए गए।

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, फूलबाग बहादुरपुर की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले 38 वर्षीय इम्तियाज़ अली के लिए 4 दिसंबर की सुबह सामान्य दिनों की तरह ही थी। लेकिन हालात तब बदल गए जब मेयर सुषमा खरख्वाल के नेतृत्व में लखनऊ नगर निगम की एक टीम वहां पहुंची और लोगों को बांग्लादेशी व रोहिंग्या बताकर अवैध निवास की जांच के लिए दस्तावेजों की छानबीन शुरू कर दी।

खरख्वाल का कहना था कि गुदंबा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले इस इलाके में कई निवासी वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए, जिसके आधार पर उन्होंने उन्हें वहां से हटाने की बात कही। नगर निगम अधिकारियों की इस कार्रवाई के कथित वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए।

न्यूज पेपर के अनुसार, असम के बारपेटा के रहने वाले अली ने बताया, "मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकता। मेरे परिवार के लोग रो रहे थे क्योंकि अधिकारी हमारी बात सुनने को तैयार ही नहीं थे। उन्होंने मेरी ठेला-गाड़ी ले ली और हमें 15 दिनों के भीतर झुग्गी खाली करने का आदेश दे दिया। उन्हें पहले हमारे दस्तावेज देखने चाहिए थे, लेकिन वे सीधे हमारे घरों में घुस आए और हमारी रोजी-रोटी छीन ली।"

अली ने बताया कि इस घटना के बाद असम से आकर लखनऊ में कबाड़ बीनकर और उसे निजी व्यापारियों को बेचकर अपना गुज़ारा करने वाले 50 से अधिक परिवार दहशत में हैं। उन्होंने कहा, "हम गरीब लोग हैं और सिर्फ रोजगार की तलाश में लखनऊ आए हैं। महीने भर में हम 8 से 10 हजार रुपये कमाते हैं और निजी जमीन के मालिक को प्रति परिवार 1,000 रुपये किराए के रूप में देते हैं। हम भारतीय नागरिक हैं और हमने कभी कोई गैरकानूनी काम नहीं किया है।"

असम से आए झुग्गी बस्ती के एक अन्य निवासी सुजान अली ने कहा, "हम पिछले 18 सालों से लखनऊ में रह रहे हैं और हमारे पास आधार, पैन कार्ड और वोटर आईडी जैसे सभी वैध दस्तावेज मौजूद हैं। हमारे नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में भी शामिल हैं। यदि कोई व्यक्ति यहां अवैध रूप से रह रहा होगा, तो हम खुद उसे पुलिस के हवाले कर देंगे, लेकिन हमें डराया-धमकाया न जाए। हमारी ठेला-गाड़ियां वापस कीजिए और हमें काम करने दीजिए। 4 दिसंबर के बाद से मैं काम पर नहीं जा पाया हूं।"

विपक्ष ने उठाए सवाल

विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को ‘राज्य की भाजपा सरकार की डराने-धमकाने की नीति’ करार दिया और लोगों के पहचान पत्रों की जांच करने के मेयर के अधिकार पर भी सवाल उठाए।

द वायर ने लिखा, रविवार को कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस झुग्गी बस्ती का दौरा किया और असम से आए प्रवासियों के साथ खड़े रहने का वादा किया। उसने नगर निगम अधिकारियों से कथित ‘उत्पीड़न’ के लिए माफ़ी मांगने की भी मांग की।

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शहनवाज़ आलम ने कहा, ‘हमने झुग्गी बस्ती का दौरा किया और पाया कि उनके पास सभी वैध पहचान पत्र हैं, जो यह साबित करता है कि वे भारतीय नागरिक हैं। वे असम के उन इलाकों से आए हैं जहां अक्सर बाढ़ आती है, इसलिए रोजी-रोटी की तलाश में यहां आए हैं। झुग्गी निजी ज़मीन पर स्थित है, तो फिर नगर निगम उन्हें 15 दिनों में खाली करने को क्यों कह रहा है? उनकी ठेला-गाड़ियां क्यों छीनी गईं? यह गलत है। हम अधिकारियों से माफी की मांग करते हैं। भाषा या क्षेत्र के आधार पर उठाए गए ऐसे कदम देश को विभाजित करेंगे।’

न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को नागरिकों से सतर्क रहने और किसी को काम पर रखने से पहले उसकी पहचान का सत्यापन कराने की अपील की।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में सुरक्षा और सामाजिक संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से अवैध प्रवासियों के खिलाफ कड़ी और ठोस कार्रवाई शुरू की गई है। उनकी यह टिप्पणी राज्यभर में ‘घुसपैठियों’ के खिलाफ चलाए जा रहे उस अभियान के दौरान सामने आई है, जिसे पिछले सप्ताह अधिकारियों को दिए गए निर्देशों के बाद तेज़ किया गया था।

सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में आदित्यनाथ ने लिखा, ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान एक अत्यंत महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि घुसपैठियों के लिए रेड कार्पेट नहीं बिछाया जा सकता. इससे यह स्पष्ट होता है कि घुसपैठिए किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं हैं।’

उन्होंने कहा कि देश के संसाधन उसके नागरिकों के लिए हैं, अवैध प्रवासियों के लिए नहीं। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य में सुरक्षा, सामाजिक संतुलन और मजबूत कानून-व्यवस्था बनाए रखना उनकी सरकार की प्राथमिकता है।

मालूम हो कि 2 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भारत में रह रहे रोहिंग्याओं की कानूनी स्थिति पर कड़ी टिप्पणी की थी। अदालत ने पूछा था कि जब देश के अपने नागरिक ही गरीबी से जूझ रहे हैं, तो ‘घुसपैठियों’ का ‘रेड कार्पेट वेलकम’ किस आधार पर किया जाए। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह टिप्पणी उस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक अधिकार कार्यकर्ता ने दिल्ली में हिरासत से कुछ रोहिंग्याओं के लापता होने का आरोप लगाया था।

यूपी के मुख्यमंत्री ने लोगों से अपील की कि वे सतर्क रहें और किसी को भी काम पर रखने से पहले उसकी पहचान का ठीक से सत्यापन अवश्य करें। उन्होंने कहा, “राज्य की सुरक्षा हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है, क्योंकि सुरक्षा ही समृद्धि की आधारशिला है।”

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ सख्त अभियान चलाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सभी शहरी स्थानीय निकायों को संदिग्ध विदेशी नागरिकों की पहचान करने और उनकी सूची तैयार करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं।

उन्होंने कहा कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वंचितों तक पहुंचने के लिए है और उसे भटकाया नहीं जा सकता।

उन्होंने आगे कहा, ‘इसी उद्देश्य से एक विशेष दस्तावेज सत्यापन अभियान चलाया जा रहा है और घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें आगे की कार्रवाई के लिए निरोध केंद्रों में भेजा जा रहा है।’

उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए प्रत्येक मंडल में डिटेंशन केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।

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