अपने देश में एक विधवा 'प्रधानमंत्री' बनी थीं. वे थीं इंदिरा गांधी जिन्होंने दुनिया के नक़्शे पर एक नया देश बना दिया था. पकिस्तान को विभाजित कर दिया था. वे आजादी के आंदोलन से निकली और प्रधामंत्री रहते हुए अलगाववादियों की गोली का शिकार हो गईं. बैंकों का राष्ट्रीकरण हो या राजा महाराजाओं के प्रिवी पर्स बंद करने जैसा साहसिक फैसला, उन्होंने ही किया और वर्ष 1971 का युद्ध जिसमे पकिस्तान बुरी तरह हारा था उन्हीं के राजनैतिक नेतृत्व में हुआ. एक वे प्रधानमंत्री थीं जो विधवा थीं और एक ये प्रधानमंत्री हैं जो 'विधवा विलाप' कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान की एक चुनावी सभा में कहा, कांग्रेस की कौन सी विधवा थी, जिसके खाते में पैसा जाता था. 'इतनी शर्मनाक टिप्पणी क्या कभी किसी प्रधानमंत्री ने की थी. ये तो हर विधवा औरत का अपमान है.
यह टिप्पणी उन्होंने किसके लिए की यह हर कोई समझ रहा है. वे जिस विधवा की खिल्ली उड़ा रहे हैं उसके पति ने देश के लिए जान दी थी और विधवा महिलाओं ने कैसे राजकाज किया है यह ऊपर लिखा ही है. इंदिरा गांधी से आज का कौन नेता मुकाबला कर सकता है और कांग्रेस की जिस विधवा पर मोदी निशाना साध रहे हैं उसने मरणासन्न कांग्रेस में जान फूंककर फिर खड़ा कर दिया. अटल बिहारी वाजपेयी के इंडिया शाइनिंग पर भारी पड़ गई थी कांग्रेस की यह विधवा.
प्रधानमंत्री का पद खुद छोड़ा और अपने परिवार में भी किसी को नहीं दिया. एक सिख को प्रधानमंत्री बनाया और भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए कितने नेताओं को पार्टी के ओल्ड एज होम यानी मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया यह किसी से छुपा नहीं है. भाजपा के लौह पुरुष को लकड़ी का बजूका बना कर किसने रख दिया है यह कौन नहीं जानता. बुजुर्ग नेताओं को हाशिये पर पहुंचाना और फिर 'विधवा' महिला की खिल्ली उडाना किसी प्रधानमंत्री के लिए शोभा देता है क्या? क्या उन्हें याद नहीं कांग्रेस के एक नेता संजय गांधी की विधवा उन्ही की पार्टी में है.
मोदी चुनावी सभा में जिस तरह निजी हमले करते रहे हैं वह कोई नई बात नहीं है. मुलायम सिंह यादव जो पहलवानी से राजनीति में आए वे उन्हीं का सीना नापने लगे थे. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता ने तभी पलटवार करते हुए कहा था, खुद रायपुर का एकात्म परिसर हादसा क्या भूल गए ? जब नेता विरोधी दल के चयन के दौरान भाजपा नेता बृज मोहन अग्रवाल के युवा समर्थकों ने पार्टी मुख्यालय पर हल्ला बोल दिया था. मोदी तब पर्यवेक्षक के रूप में आए थे और हल्ला मचा तो वे कहां छुप गए थे, यह रायपुर का मीडिया जानता है, भले बोले न.
बोलना भी नहीं चाहिए. हर बात बोल ही दी जाए यह जरुरी नहीं. मोदी को भी कम से कम इस शालीनता का ख्याल रखना चाहिए. वे जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं उससे वे काफी नीचे आ चुके हैं. किसी भी प्रधानमंत्री से इस तरह के 'विधवा विलाप' की उम्मीद कोई नहीं करता है. चुनाव तो आते जाते रहते हैं पर भाषा को लोग नही भूल पाते जो नेहरु से मुकाबला करना चाहते हैं वे इस भाषा से तो कभी न कर पाएंगे. आप नृत्य वाले अंदाज में भाषण करे. खुद बार बार ताली बजाएं पर भाषा की मर्यादा तो बनाए रखे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और शुक्रवार मैग्जीन के संपादक हैं। यह आर्टिकल उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया गया है।)
यह टिप्पणी उन्होंने किसके लिए की यह हर कोई समझ रहा है. वे जिस विधवा की खिल्ली उड़ा रहे हैं उसके पति ने देश के लिए जान दी थी और विधवा महिलाओं ने कैसे राजकाज किया है यह ऊपर लिखा ही है. इंदिरा गांधी से आज का कौन नेता मुकाबला कर सकता है और कांग्रेस की जिस विधवा पर मोदी निशाना साध रहे हैं उसने मरणासन्न कांग्रेस में जान फूंककर फिर खड़ा कर दिया. अटल बिहारी वाजपेयी के इंडिया शाइनिंग पर भारी पड़ गई थी कांग्रेस की यह विधवा.
प्रधानमंत्री का पद खुद छोड़ा और अपने परिवार में भी किसी को नहीं दिया. एक सिख को प्रधानमंत्री बनाया और भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए कितने नेताओं को पार्टी के ओल्ड एज होम यानी मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया यह किसी से छुपा नहीं है. भाजपा के लौह पुरुष को लकड़ी का बजूका बना कर किसने रख दिया है यह कौन नहीं जानता. बुजुर्ग नेताओं को हाशिये पर पहुंचाना और फिर 'विधवा' महिला की खिल्ली उडाना किसी प्रधानमंत्री के लिए शोभा देता है क्या? क्या उन्हें याद नहीं कांग्रेस के एक नेता संजय गांधी की विधवा उन्ही की पार्टी में है.
मोदी चुनावी सभा में जिस तरह निजी हमले करते रहे हैं वह कोई नई बात नहीं है. मुलायम सिंह यादव जो पहलवानी से राजनीति में आए वे उन्हीं का सीना नापने लगे थे. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता ने तभी पलटवार करते हुए कहा था, खुद रायपुर का एकात्म परिसर हादसा क्या भूल गए ? जब नेता विरोधी दल के चयन के दौरान भाजपा नेता बृज मोहन अग्रवाल के युवा समर्थकों ने पार्टी मुख्यालय पर हल्ला बोल दिया था. मोदी तब पर्यवेक्षक के रूप में आए थे और हल्ला मचा तो वे कहां छुप गए थे, यह रायपुर का मीडिया जानता है, भले बोले न.
बोलना भी नहीं चाहिए. हर बात बोल ही दी जाए यह जरुरी नहीं. मोदी को भी कम से कम इस शालीनता का ख्याल रखना चाहिए. वे जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं उससे वे काफी नीचे आ चुके हैं. किसी भी प्रधानमंत्री से इस तरह के 'विधवा विलाप' की उम्मीद कोई नहीं करता है. चुनाव तो आते जाते रहते हैं पर भाषा को लोग नही भूल पाते जो नेहरु से मुकाबला करना चाहते हैं वे इस भाषा से तो कभी न कर पाएंगे. आप नृत्य वाले अंदाज में भाषण करे. खुद बार बार ताली बजाएं पर भाषा की मर्यादा तो बनाए रखे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और शुक्रवार मैग्जीन के संपादक हैं। यह आर्टिकल उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया गया है।)