अदालत ने जिनके खिलाफ आरोप तय किया है उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, विहिप नेता साध्वी प्राची, पूर्व भाजपा सांसद भारतेंदु सिंह, डासना के महंत यति नरसिंहानंद, उप्र सरकार के व्यावसायिक शिक्षा व कौशल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कपिल देव अग्रवाल, उप्र सरकार के पूर्व मंत्री सुरेश राणा और अशोक कटारिया, पूर्व भाजपा विधायक अशोक कंसल व उमेश मलिक, सपा सांसद हरेंद्र मलिक आदि शामिल हैं।
साभार : हिंदुस्तान टाइम्स
"यूपी के मुजफ्फरनगर की विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगा मामले में 11 साल बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, विश्व हिंदू परिषद की नेता साध्वी प्राची, डासना के महंत यति नरसिंहानंद और अन्य बीजेपी नेताओं समेत 19 लोगों के खिलाफ आरोप तय कर दिए। भाजपा नेताओं के खिलाफ निषेधाज्ञा उल्लंघन और सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप हैं।"
अभियोजन अधिकारी नीरज सिंह के अनुसार, विशेष सांसद-विधायक अदालत के न्यायाधीश देवेंद्र सिंह फौजदार ने मामले में 19 आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा), 341 (किसी को गलत तरीके से रोकना), 153, 353 (ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के साथ-साथ आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप तय किए हैं। अदालत ने जिनके खिलाफ आरोप तय किया है उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, विहिप नेता साध्वी प्राची, पूर्व भाजपा सांसद भारतेंदु सिंह, डासना के महंत यति नरसिंहानंद, उप्र सरकार के व्यावसायिक शिक्षा व कौशल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कपिल देव अग्रवाल, उप्र सरकार के पूर्व मंत्री सुरेश राणा और अशोक कटारिया, पूर्व भाजपा विधायक अशोक कंसल व उमेश मलिक, सपा सांसद हरेंद्र मलिक आदि शामिल हैं। इनके खिलाफ निषेधाज्ञा उल्लंघन और सांप्रदायिक तनाव भड़काने मामले में आरोप तय किए। सुनवाई के दौरान सभी आरोपी अदालत में मौजूद थे। सिंह ने बताया कि अगली सुनवाई 30 जनवरी को होगी।
मामले में क्या हैं आरोप?
इनमें अधिकतर के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने, सरकारी आदेश की अवहेलना करने, सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने आदि आरोप शामिल हैं। खास यह भी कि मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में अब तक करीब 70 मुकदमों को वापस लेने की अनुमति उत्तर प्रदेश सरकार दे चुकी है।
2013 अगस्त-सितंबर में मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में हुई सांप्रदायिक झड़पों में 60 से ज्यादा लोग मारे गए थे। दिल्ली से सटे मुजफ्फरनगर जिले में हुए इस भयावह दंगे के एक मुकदमे में आरोप तय होने में 11 साल से अधिक लग गए। सुनवाई की यह स्थिति तब है जब उत्तर प्रदेश की मौजूदा भाजपा सरकार ने करीब 70 मुकदमे शासनादेशों के जरिए वापस ले लिए हैं। तब की समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुए इस दंगे में एक पत्रकार समेत 60 लोगों की मौत हुई थी, 200 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे। और करीब 40 हजार से ज्यादा मुस्लिम आबादी के लोगों को शिविरों में शरण लेनी पड़ी थी। यह ऐसा दंगा था, जो गांवों में हुआ-फैला और जिसे काबू करने को सेना बुलानी पड़ी थी।
दंगे की पृष्ठभूमि और राजनीतिक असर
एक साथ मिलकर- एकजुट रहने वाले जाट और मुस्लिम समुदाय को इस दंगे ने अलग कर दिया। दंगे में पहली बार फर्जी वीडियो मुसलमानों के खिलाफ वाट्सऐप तक के जरिए फैलाए गए, जिससे हिंसा भड़की।
जनचौक में वरिष्ठ पत्रकार रामजन्म पाठक आदि विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच 27 अगस्त को यह दंगा कवाल गांव में कथित तौर पर छेड़खानी के एक मामले के साथ शुरू हुआ। पीड़ित मलकपुरा गांव की लड़की द्वारा जानसठ पुलिस को शिकायत की गई, लेकिन मामले में पुलिस द्वारा कोई मदद नहीं की गई। इस पर जाट समाज के लड़की के भाइयों ने आरोपी शाहनवाज की उसी के गांव में जाकर हत्या कर दी। बदले में गांव वालों ने घेर कर जाट समुदाय के इन दोनों युवकों की हत्या कर दी। इससे जाटों में बेचैनी बढ़ी तो दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने खालापार में जुम्मे की नमाज के बाद जनसभा में भड़काऊ भाषण जाटों के खिलाफ दिए। इसके बाद, 31 अगस्त, 2013 को जाट समुदाय ने नगला में महापंचायत बुलाई। इसमें कहा गया कि बेटियों के सम्मान में बुलाई गई पंचायत से लौटते हुए जौली नहर पर पुरबालियान के मुस्लिम समाज द्वारा चार पांच लोगों को जान से मार दिया गया है। इस पंचायत में उन्मादी भाषण दिए गए। उसके बाद मुजफ्फगनगर का ग्रामीण इलाका हिंसा की चपेट में आ गया था। पुलिस थानों से भाग गई थी। यह इतिहास का पहला दंगा था जो गांवों में भयानक रूप ले चुका था। इस दंगे में जाट बहुल गांवों में रहने वाली गरीब मुस्लिम जातियों (लुहार, बढ़ई, धोबी) आदि के लोगों ने भारी दंश झेला। बड़ी संख्या में जिले के गांव हिंसा की चपेट में आ गए। तत्कालीन सपा सरकार को सेना बुलानी पड़ी। इसके बाद लाखों की संख्या में मुस्लिम शरणार्थी शिविरों में रहने को विवश हुए। कुटबा, कुटबी, फुगाना पुरबालियान जौली अनेकों गांवों में जीवन संघर्ष हुआ। मुस्लिम बाहुल्य गांवों से दलित समाज और जाट बहुल इलाकों से मुस्लिम भारी संख्या में पलायन किए थे
मामले के राजनीतिक असर की बात करें तो जो जाट समाज चौ चरण सिंह और बाद में उनके पुत्र अजित सिंह की पार्टी का समर्थक था, दंगे के बाद वह रातोंरात भाजपा की तरफ चला गया। नतीजा रहा कि जाट समर्थित राष्ट्रीय लोकदल पार्टी चुनाव हार गई और भाजपा के तमाम प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे थे।
साभार : हिंदुस्तान टाइम्स
"यूपी के मुजफ्फरनगर की विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगा मामले में 11 साल बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, विश्व हिंदू परिषद की नेता साध्वी प्राची, डासना के महंत यति नरसिंहानंद और अन्य बीजेपी नेताओं समेत 19 लोगों के खिलाफ आरोप तय कर दिए। भाजपा नेताओं के खिलाफ निषेधाज्ञा उल्लंघन और सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप हैं।"
अभियोजन अधिकारी नीरज सिंह के अनुसार, विशेष सांसद-विधायक अदालत के न्यायाधीश देवेंद्र सिंह फौजदार ने मामले में 19 आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा), 341 (किसी को गलत तरीके से रोकना), 153, 353 (ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के साथ-साथ आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप तय किए हैं। अदालत ने जिनके खिलाफ आरोप तय किया है उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, विहिप नेता साध्वी प्राची, पूर्व भाजपा सांसद भारतेंदु सिंह, डासना के महंत यति नरसिंहानंद, उप्र सरकार के व्यावसायिक शिक्षा व कौशल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कपिल देव अग्रवाल, उप्र सरकार के पूर्व मंत्री सुरेश राणा और अशोक कटारिया, पूर्व भाजपा विधायक अशोक कंसल व उमेश मलिक, सपा सांसद हरेंद्र मलिक आदि शामिल हैं। इनके खिलाफ निषेधाज्ञा उल्लंघन और सांप्रदायिक तनाव भड़काने मामले में आरोप तय किए। सुनवाई के दौरान सभी आरोपी अदालत में मौजूद थे। सिंह ने बताया कि अगली सुनवाई 30 जनवरी को होगी।
मामले में क्या हैं आरोप?
इनमें अधिकतर के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने, सरकारी आदेश की अवहेलना करने, सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने आदि आरोप शामिल हैं। खास यह भी कि मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में अब तक करीब 70 मुकदमों को वापस लेने की अनुमति उत्तर प्रदेश सरकार दे चुकी है।
2013 अगस्त-सितंबर में मुजफ्फरनगर और आसपास के इलाकों में हुई सांप्रदायिक झड़पों में 60 से ज्यादा लोग मारे गए थे। दिल्ली से सटे मुजफ्फरनगर जिले में हुए इस भयावह दंगे के एक मुकदमे में आरोप तय होने में 11 साल से अधिक लग गए। सुनवाई की यह स्थिति तब है जब उत्तर प्रदेश की मौजूदा भाजपा सरकार ने करीब 70 मुकदमे शासनादेशों के जरिए वापस ले लिए हैं। तब की समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुए इस दंगे में एक पत्रकार समेत 60 लोगों की मौत हुई थी, 200 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे। और करीब 40 हजार से ज्यादा मुस्लिम आबादी के लोगों को शिविरों में शरण लेनी पड़ी थी। यह ऐसा दंगा था, जो गांवों में हुआ-फैला और जिसे काबू करने को सेना बुलानी पड़ी थी।
दंगे की पृष्ठभूमि और राजनीतिक असर
एक साथ मिलकर- एकजुट रहने वाले जाट और मुस्लिम समुदाय को इस दंगे ने अलग कर दिया। दंगे में पहली बार फर्जी वीडियो मुसलमानों के खिलाफ वाट्सऐप तक के जरिए फैलाए गए, जिससे हिंसा भड़की।
जनचौक में वरिष्ठ पत्रकार रामजन्म पाठक आदि विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच 27 अगस्त को यह दंगा कवाल गांव में कथित तौर पर छेड़खानी के एक मामले के साथ शुरू हुआ। पीड़ित मलकपुरा गांव की लड़की द्वारा जानसठ पुलिस को शिकायत की गई, लेकिन मामले में पुलिस द्वारा कोई मदद नहीं की गई। इस पर जाट समाज के लड़की के भाइयों ने आरोपी शाहनवाज की उसी के गांव में जाकर हत्या कर दी। बदले में गांव वालों ने घेर कर जाट समुदाय के इन दोनों युवकों की हत्या कर दी। इससे जाटों में बेचैनी बढ़ी तो दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने खालापार में जुम्मे की नमाज के बाद जनसभा में भड़काऊ भाषण जाटों के खिलाफ दिए। इसके बाद, 31 अगस्त, 2013 को जाट समुदाय ने नगला में महापंचायत बुलाई। इसमें कहा गया कि बेटियों के सम्मान में बुलाई गई पंचायत से लौटते हुए जौली नहर पर पुरबालियान के मुस्लिम समाज द्वारा चार पांच लोगों को जान से मार दिया गया है। इस पंचायत में उन्मादी भाषण दिए गए। उसके बाद मुजफ्फगनगर का ग्रामीण इलाका हिंसा की चपेट में आ गया था। पुलिस थानों से भाग गई थी। यह इतिहास का पहला दंगा था जो गांवों में भयानक रूप ले चुका था। इस दंगे में जाट बहुल गांवों में रहने वाली गरीब मुस्लिम जातियों (लुहार, बढ़ई, धोबी) आदि के लोगों ने भारी दंश झेला। बड़ी संख्या में जिले के गांव हिंसा की चपेट में आ गए। तत्कालीन सपा सरकार को सेना बुलानी पड़ी। इसके बाद लाखों की संख्या में मुस्लिम शरणार्थी शिविरों में रहने को विवश हुए। कुटबा, कुटबी, फुगाना पुरबालियान जौली अनेकों गांवों में जीवन संघर्ष हुआ। मुस्लिम बाहुल्य गांवों से दलित समाज और जाट बहुल इलाकों से मुस्लिम भारी संख्या में पलायन किए थे
मामले के राजनीतिक असर की बात करें तो जो जाट समाज चौ चरण सिंह और बाद में उनके पुत्र अजित सिंह की पार्टी का समर्थक था, दंगे के बाद वह रातोंरात भाजपा की तरफ चला गया। नतीजा रहा कि जाट समर्थित राष्ट्रीय लोकदल पार्टी चुनाव हार गई और भाजपा के तमाम प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे थे।