भारत में नफरत भरे भाषणों में भारी वृद्धि: 2024 में 1,165 मामले दर्ज किए गए, जो 2023 से 74.4% ज्यादा है

Written by sabrang india | Published on: February 14, 2025
भाजपा और हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा आयोजित राजनीतिक रैलियों से लेकर धार्मिक जुलूसों तक और अनियंत्रित सोशल मीडिया के जरिए साल 2024 में नफरत फैलाने वाले भाषणों में 74.4% की वृद्धि हुई।



साल 2024 में पूरे भारत में नफरत फैलाने वाले भाषणों में एक परेशान करने वाली और अभूतपूर्व वृद्धि हुई, जिसने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की गहराई और राजनीतिक तथा धार्मिक नेताओं द्वारा विभाजनकारी बयानबाजी के सुनियोजित इस्तेमाल को उजागर किया। इंडिया हेट लैब (आईएचएल) की 2024 की रिपोर्ट ने इस वृद्धि को बहुत सावधानी से रिकॉर्ड किया है, जिसमें व्यक्तिगत रूप से नफरती भाषण के मामलों के 1,165 उदाहरण सामने आए हैं, जो 2023 में दर्ज 668 घटनाओं से 74.4% की वृद्धि को दर्शाता है। सांप्रदायिक नफरत के अलग-थलग या स्वभाविक वृद्धि के बजय, ये भाषण एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा थे, जो बड़े पैमाने पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा संचालित थे।

दो प्रमुख कारकों ने 2024 में अभद्र भाषा की दिशा को आकार दिया: अप्रैल और जून के बीच हुए आम चुनाव और साल के अंत में महाराष्ट्र और झारखंड में राज्य चुनाव। चुनावी मौसम ने भाजपा और उसके वैचारिक सहयोगियों को मतदाताओं को लामबंद करने के एक सामरिक साधन के रूप में अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने का अवसर दिया, जिसमें धार्मिक आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए सांप्रदायिक बयानबाजी का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा, अगस्त 2024 में बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन और उसके बाद उस देश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को हिंदू राष्ट्रवादी समूहों द्वारा भारत में मुस्लिम विरोधी भावना को सही ठहराने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया और हथियार बनाया गया। इन घटनाओं के कारण नफरत फैलाने वाले भाषणों में दूसरी बड़ी उछाल आई, क्योंकि भाजपा नेताओं और दक्षिणपंथी संगठनों ने बांग्लादेशी हिंदुओं को लेकर चिंताओं का फायदा उठाकर भारतीय मुसलमानों को अस्तित्व के लिए खतरा बताकर बदनाम किया।

यह रिपोर्ट केवल संख्याओं का दस्तावेज तैयार नहीं करती है; बल्कि यह नफरत फैलाने वाले भाषणों की वृद्धि के पीछे जानबूझकर की गई रणनीतियों, प्रमुख व्यक्तियों और वैचारिक प्रेरणाओं को उजागर करती है। नफरत फैलाने वाले भाषणों की घटनाओं के कंटेंट और संदर्भ दोनों का विश्लेषण करके, यह इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे सांप्रदायिक नफरत भारतीय राजनीतिक जीवन की एक संगठित और संस्थागत विशेषता बन गई है।

नफरत फैलाने वाले भाषणों को संगठित करने में भाजपा और हिंदू राष्ट्रवादी समूहों की भूमिका

2024 में नफरत फैलाने वाले भाषणों के पैटर्न का सबसे खास पहलू भाजपा और उसके वैचारिक सहयोगियों की प्रत्यक्ष भागीदारी थी। पिछले वर्षों के विपरीत, जहां नफरत फैलाने वाले भाषण मुख्य रूप से राज्य स्तर के भाजपा नेताओं और धार्मिक चरमपंथियों द्वारा दिए जाते थे, वहीं 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित राजनीतिक नेतृत्व के बड़े नेताओं ने दिया है। इन नेताओं ने न केवल नफरत फैलाने वाले भाषणों को बर्दाश्त किया या अनदेखा किया बल्कि वे इसमें सक्रिय रूप से शामिल हो गए, साथ ही अपने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मंचों का इस्तेमाल विभाजनकारी नैरेटिव फैलाने, मुसलमानों और ईसाइयों को अमानवीय बनाने और सांप्रदायिक तनाव को भड़काने के लिए किया।

भाजपा नफरत फैलाने वाले भाषण देने वाली सबसे बड़ी संगठन के रूप में उभरी, जिसने प्रत्यक्ष तौर पर 340 सभाएं आयोजित कीं जो दस्वाेज तैयार किए सभी मामलों का 29.2% है। यह 2023 की तुलना में 580% की भारी वृद्धि थी, जब पार्टी केवल 50 ऐसे आयोजनों के लिए जिम्मेदार थी। पार्टी के नेतृत्व ने चुनावी हथियार के रूप में नफरत फैलाने वाले भाषणों को रणनीतिक रूप से हथियार बनाया, खास तौर पर आम चुनावों के दौरान, जहां भाजपा द्वारा आयोजित नफरत फैलाने वाले भाषणों की 76.7% घटनाएं हुईं।

भाजपा के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद (VHP) और इसके उग्रवादी युवा विंग, बजरंग दल सहित इसके वैचारिक सहयोगियों ने भी नफरत फैलाने में अहम भूमिका निभाई। इन समूहों ने 279 नफरत फैलाने वाले भाषणों के कार्यक्रम आयोजित किए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 29.1% अधिक है। हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों का महाराष्ट्र-आधारित गठबंधन सकल हिंदू समाज (SHS) 56 नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिए जिम्मेदार था, जिसमें सुरेश चव्हाणके, काजल हिंदुस्तानी और भाजपा विधायक टी. राजा सिंह और नीतीश राणे जैसे चरमपंथी वक्ता शामिल थे।

धनंजय देसाई के नेतृत्व वाली हिंदू राष्ट्र सेना (HRS) ने भी अपने संचालन का विस्तार किया और 19 नफरत फैलाने वाले भाषणों के कार्यक्रमों के लिए जिम्मेदार है। यह 2014 में एक मुस्लिम टेक्निकल प्रोफेशनल की हत्या में आरोपी है। हिंदू जनजागृति समिति (HJS), राष्ट्रीय हिंदू शेर सेना, शिव शक्ति अखाड़ा और श्री राम सेना जैसे छोटे समूहों ने भी मुस्लिम विरोधी और ईसाई विरोधी प्रोपेगेंडा में अहम भूमिका निभाई।

ये निष्कर्ष बताते हैं कि भारत में नफरत फैलाने वाला भाषण केवल व्यक्तिगत कट्टरता का काम नहीं है बल्कि यह एक संगठित, बेहतर वित्त पोषित और राजनीतिक रूप से स्वीकृत प्रोजेक्ट है, जिसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए डर और बहिष्कार का माहौल बनाने के लिए रणनीतिक रूप से तैयार किया गया है।

चुनावी मौसम: राजनीतिक प्रचार के लिए नफरत फैलाने वाली भाषा का एक टूल के रूप में इस्तेमाल

2024 के आम चुनाव और उसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव अभद्र भाषा के प्रसार में अहम मोड़ साबित हुए। चुनाव के दौरान, अभद्र भाषा के 373 मामले दर्ज किए गए, जिनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और झारखंड सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नफ़रत फैलाने वाली भाषा के सबसे सक्रिय प्रचारक के रूप में सामने आए, खासकर 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में उनकी चुनावी रैली के बाद जहां उन्होंने मुसलमानों पर “घुसपैठिए” होने का आरोप लगाया, जो हिंदुओं की संपत्ति और संसाधनों को छीन लेंगे। इस भाषण ने देशभर में नफरत फैलाने वाली भाषा की घटनाओं में जबरदस्त बढ़ोतरी कर दी और कई बीजेपी नेता उनके भाषण की नकल करके इसे और बढ़ावा देने लगे।

गृह मंत्री अमित शाह ने भी 58 नफरती भाषा वाले भाषण देकर अहम भूमिका निभाई, जिसमें अक्सर मुस्लिम “वोट जिहाद” और “भूमि जिहाद” की धमकी दी गई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 86 नफरत भरे भाषणों के साथ इस मामले में सबसे आगे रहे, यानी हर चार दिन में औसतन एक नफरती बयान दिया। हिमंत बिस्वा सरमा, टी. राजा सिंह, नितीश राणे और पुष्कर सिंह धामी सहित अन्य भाजपा नेताओं ने भी मुसलमानों और ईसाइयों को सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया।

भाजपा की चुनावी रणनीति डर और सांप्रदायिक नाराजगी पैदा करने पर बहुत ज्यादा निर्भर थी। एक आम नैरेटिव यह थी कि विपक्षी दल, खास तौर पर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन, हिंदुओं के अधिकारों को छीनने और संसाधनों को मुसलमानों में फिर से बांटने के लिए काम कर रहे थे। मोदी, आदित्यनाथ और शाह ने बार-बार दावा किया कि विपक्ष हिंदुओं की संपत्ति छीनकर उसे “बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या शरणार्थियों” को दे देगा।

इस तरह की नकारात्मक बयानबाजी के आम होने से वास्तव गंभीर परिणाम हुए। नफरत भरी बातें सिर्फ शब्द नहीं हैं; यह राजनीतिक हिंसा का एक रूप है - भीड़ के हमलों, सांप्रदायिक दंगों और सुनियोजित भेदभाव का अगुवा है। नफरत भरी बातों को मुख्यधारा के चुनावी विमर्श में शामिल करके, भाजपा और उसके सहयोगियों ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को प्रभावी ढंग से वैध बना दिया, जिससे यह शासन और राज्य की नीति का एक स्वीकार्य हिस्सा बन गया।

नफरत को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया की भूमिका

2024 में नफरत फैलाने वाले भाषण सिर्फ सार्वजनिक सभाओं तक सीमित नहीं थे। सोशल मीडिया ने नफरत फैलाने वाले भाषण को बढ़ावा देने और मुख्यधारा में लाने में अहम भूमिका निभाई, जिससे यह कुछ सेकंड के भीतर लाखों लोगों तक पहुंच गया। आईएचएल रिपोर्ट ने फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सएप और टेलीग्राम पर उनके मूल स्रोतों से निजी तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषणों के 995 वीडियो को ट्रैक किया।

केवल फेसबुक पर 495 नफरत फैलाने वाले भाषण थे जबकि 211 यूट्यूब पर पाए गए। इसके अलावा, भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए 266 अल्पसंख्यक विरोधी नफरत भरे भाषणों को एक साथ कई प्लेटफार्मों पर लाइव-स्ट्रीम किया गया। यह दर्शाता है कि कैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ अपनी घोषित नीतियों के बावजूद, सांप्रदायिक प्रोपेगेंडा के प्रमुख सहायक के रूप में काम करते हैं।

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नफरत फैलाने वाले भाषणों की वायरलिटी ने कट्टरपंथ के चक्र को बढ़ा दिया, जिसमें एल्गोरिदम-संचालित प्रवर्धन ने सबसे चरमपंथी आवाजों को प्राथमिकता दी। सांप्रदायिक उकसावे को रोकने के बजाय, फेसबुक और यूट्यूब ने भड़काऊ कंटेंट को अनियंत्रित रूप से फैलने दिया, जिससे हिंदू राष्ट्रवादी उग्रवाद के प्रसार में प्रभावी रूप से भागीदार बन गए।

मुस्लिम विरोधी नफरती भाषण: अमानवीयकरण से लेकर हिंसा के आह्वान तक

आईएचएल रिपोर्ट से पता चलता है कि 1,165 नफरती भाषणों में से 1,147 घटनाओं में मुसलमानों को निशाना बनाया गया, जो दर्शाता है कि मुस्लिम विरोधी बयानबाजी हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति की बुनियाद बनी हुई है।

अमानवीयकरण और षड्यंत्र के सिद्धांत- रिपोर्ट में मुसलमानों को हिंदुओं के लिए अस्तित्व के खतरे के रूप में दर्शाने के लिए षड्यंत्र के सिद्धांतों के इस्तेमाल में खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई है। इनमें शामिल हैं:

● “लव जिहाद” – यह झूठा दावा कि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को बहकाकर उन्हें इस्लाम में परिवर्तित कर रहे हैं और हिंदू संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं।

● “भूमि जिहाद” – ये बेबुनियाद आरोप कि मुसलमान व्यवस्थित रूप से हिंदू भूमि पर कब्जा कर रहे हैं।

● “वोट जिहाद” – यह दावा, जिसे मोदी ने खुद फैलाया, कि हिंदू राजनीतिक शक्ति को कमजोर करने के लिए मुसलमान एक गुट के रूप में वोट करते हैं।

● “जनसंख्या जिहाद” – यह झूठा सिद्धांत कि मुसलमान जानबूझकर अपनी जनसंख्या बढ़ा रहे हैं ताकि हिंदुओं को संख्या में पीछे छोड़ दें।

● “थूक जिहाद” – यह निराधार षड्यंत्र कि मुसलमान खाने पीने की चीजों को दूषित करने के लिए उस पर थूकते हैं।

● “आर्थिक जिहाद” – यह दावा कि मुस्लिम व्यवसाय हिंदुओं को अपने अधीन करने के लिए अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार करने का प्रयास कर रहे हैं।

पीएम मोदी, सीएम आदित्यनाथ और अन्य भाजपा नेताओं ने चुनावी भाषणों में इन बयानों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया, जिससे मुसलमानों के खिलाफ नफरती अपराधों और हिंसा को बढ़ावा मिला।

हिंसा और सामाजिक बहिष्कार के लिए प्रत्यक्ष आह्वान- रिपोर्ट में 259 नफरत भरे भाषणों को रिकॉर्ड किया गया है, जिनमें स्पष्ट रूप से मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का आह्वान किया गया है। इसमें शामिल हैं:

● “घुसपैठियों को खत्म करने” का आह्वान, मुसलमानों के सफाए के लिए एक संकेत था।

● मुस्लिम व्यवसायों के आर्थिक बहिष्कार की वकालत करने वाले 111 भाषण।

● मस्जिदों और मुस्लिम घरों को नष्ट करने का आह्वान करने वाले 274 भाषण।

● 123 भाषणों में हिंदुओं से मुसलमानों के खिलाफ खुद को हथियारबंद करने का आग्रह किया गया।

उत्तराखंड में वीएचपी के शस्त्र पूजा कार्यक्रम में सबसे जघन्य घटनाओं में से एक घटना में एक वक्ता ने खुले तौर पर घोषणा की कि “गैर-हिंदुओं को मारने से मोक्ष मिलेगा”।

राजनीतिक नेतृत्व के उच्चतम स्तरों पर नफरत भरे भाषणों का समर्थन करके, भाजपा ने ऐसा माहौल बनाया है, जहां मुसलमानों के खिलाफ राज्य समर्थित भेदभाव और हिंसा आम बात हो गई है।

ईसाई विरोधी नफरत भरे भाषण: उत्पीड़न में वृद्धि

हालांकि मुस्लिम विरोधी नफरत भरे भाषण हावी रहे, वहीं 2024 में ईसाई विरोधी बयानबाजी में भी तेज वृद्धि देखी गई। रिपोर्ट में ईसाइयों को निशाना बनाकर की गई 115 नफरत फैलाने वाली घटनाओं का जिक्र किया गया है, यह संख्या सीधे तौर पर चर्चों और ईसाई संस्थानों पर हमलों में वृद्धि से जुड़े है।

धार्मिक उत्पीड़न और जबरन धर्मांतरण- हिंदू राष्ट्रवादी समूहों, विशेष रूप से वीएचपी, बजरंग दल और राष्ट्रीय बजरंग दल (आरबीडी) ने इस बयान को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया है कि ईसाई मिशनरी बड़े पैमाने पर धर्मांतरण में लगे हुए हैं।

24 नवंबर को पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में वीएचपी के एक कार्यक्रम में एक वक्ता ने कार्यकर्ताओं से ईसाई पादरियों को गांवों में प्रवेश करने से रोकने के लिए "यदि आवश्यक हो तो हिंसा का सहारा लेने" का आग्रह किया।

ईसाई संस्थानों को निशाना बनाना- ईसाई स्कूलों और चर्चों पर लगातार हमले हुए हैं। मार्च 2024 में, असम में हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने ईसाई संचालित स्कूलों में धमकियां दीं, जिसमें क्रॉस और धार्मिक प्रतीकों को हटाने की मांग की गई।

दिसंबर 2024 में, राजस्थान में एक हिंदू संत ने "10-15 चर्चों" को बंद करने और 80 ईसाई पादरियों को जेल में डालने का दावा किया।

उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय बजरंग दल के एक कार्यक्रम में नेताओं ने कैथोलिक स्कूलों पर हमले करने का आह्वान किया और उन्हें “धर्मांतरण का केंद्र” करार दिया।

ईसाई विरोधी नफरती भाषणों में वृद्धि के कारण पूरे भारत में भीड़ द्वारा हमले, जबरन “पुनः धर्मांतरण” की घटनाओं और चर्चों को अपवित्र करने की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है।

निष्कर्ष: नफरत भरे भाषण एक आम राजनीतिक रणनीति के रूप में

इंडिया हेट लैब 2024 की रिपोर्ट के निष्कर्ष एक भयावह वास्तविकता की ओर इशारा करते हैं: नफरत भरे भाषण भारत की राजनीतिक मुख्यधारा में पूरी तरह से शामिल हो चुका है। भाजपा ने अपने शीर्ष नेतृत्व और अपने सहयोगी संगठनों के जरिए सांप्रदायिक बयानबाजी को अपने शासन और चुनाव रणनीति का एक केंद्रीय हिस्सा बना लिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नफरत भरे कंटेंट के प्रसार को रोकने में विफल रहे हैं, जिससे एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बना है जहां हिंसक बयानबाजी बिना किसी दंड के पनपती है।

नफरती भाषणों का यह सामान्यीकरण केवल बढ़ती असहिष्णुता का लक्षण नहीं है बल्कि यह एक जानबूझकर और सुनियोजित राजनीतिक कार्य है, जिसे मुसलमानों और ईसाइयों को हाशिए पर धकेलने, हिंदू राष्ट्रवादी शक्ति को मजबूत करने और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने के लिए तैयार किया गया है। राज्य द्वारा स्वीकृत इस नफरत के परिणाम आने वाले कई वर्षों तक जारी रहेंगे।

पूरी रिपोर्ट यहां देखी जा सकती है।



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