मध्य प्रदेश: टाइगर रिजर्व और आसपास के 52 गांवों ने "वन अधिकार अधिनियम के उल्लंघन" का आरोप लगाया

Written by sabrang india | Published on: January 7, 2025
मध्य प्रदेश में रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व और उसके आसपास के दमोह, नरसिंहपुर और सागर की 52 ग्राम सभाओं ने आरोप लगाया है कि सितंबर 2023 में रिजर्व को अधिसूचित किए जाने के बाद उनके वन अधिकार दावों को अस्वीकार किए गए और ग्रामीणों को जबरन वहां से हटने के लिए मजबूर किया गया।


प्रतीकात्मक तस्वीर ; इंडियन एक्स्प्रेस

मध्य प्रदेश में रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व और उसके आसपास के इलाकों में वन अधिकारों को मान्यता न दिए जाने तथा जबरन बेदखली की कोशिशों से संबंधित 52 गांवों की याचिकाओं और शिकायतों का संज्ञान लेते हुए जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) ने मध्य प्रदेश सरकार को मामले की जांच करने तथा राज्य के वन विभागों और संबंधित जिला कलेक्टरों के परामर्श से इसका समाधान करने का निर्देश दिया है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने दमोह, नरसिंहपुर और सागर जिलों की 52 ग्राम सभाओं से ज्ञापन मिलने के बाद 23 दिसंबर को मध्य प्रदेश आदिवासी कल्याण विभाग को पत्र लिखा। ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि सितंबर 2023 में वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व को अधिसूचित किए जाने के बाद वन अधिकार दावों को अस्वीकार कर दिया गया और ग्रामीणों को वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (डब्ल्यूएलपीए), 2006 का उल्लंघन करते हुए जबरन रिजर्व से बाहर जाने के लिए मजबूर किया गया।

इसके अलावा, ऐसा आरोप लगाया गया है कि ग्रामीणों को वन संसाधनों, वन उपज और खेतों तक पहुंचने से रोका गया है। मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर ने मध्य प्रदेश सरकार को लिखे अपने पत्र में कहा, “यह ध्यान दिया जा सकता है कि समुदायों को एफआरए, 2006 के तहत निर्धारित अपने अधिकारों का प्रयोग करने से अलग करना अधिनियम का उल्लंघन है। चूंकि राज्य सरकारें एफआरए कार्यान्वयन प्राधिकरण हैं, इसलिए यह सलाह दी जाती है कि राज्य वन विभागों, संबंधित जिला कलेक्टरों और डीएफओ के परामर्श से मामलों की जांच और समाधान किया जा सकता है।”

2,339 वर्ग किलोमीटर में फैला रानी दुर्गावती मध्य प्रदेश का सबसे नया बाघ अभयारण्य है। इसे रानी दुर्गावती और नौरादेही वन्यजीव अभयारण्यों के क्षेत्रों को जोड़कर बनाया गया था। दरअसल, इसे केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के कारण पन्ना बाघ अभयारण्य में डूब जाने वाले 100 वर्ग किलोमीटर के प्रमुख जंगल की भरपाई के लिए बनाया गया था।

पत्र को आवश्यक कार्रवाई के लिए मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर के अनुसूचित जनजाति प्रभाग के राष्ट्रीय आयोग और दमोह, सागर और नरसिंहपुर जिला कलेक्टरों को भी भेजा गया था। इसके अलावा, इसे कार्रवाई के लिए और वन्यजीव वार्डनों को उचित निर्देश जारी करने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भी भेजा गया ताकि समुदायों के हितों की रक्षा की जा सके।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम वन विभागों को बाघ संरक्षण के लिए 'अछूते' क्षेत्र बनाने का अधिकार देता है जो इंसानी बस्तियों से मुक्त हों। हालांकि, ऐसे अछूते क्षेत्र डब्ल्यूएलपीए और एफआरए के प्रावधानों के अनुसार आदिवासी और वनवासी समुदायों के अधिकारों को मान्यता दिए जाने और उन्हें बसाए जाने के बाद ही बनाए जाने हैं। अधिकारों की मान्यता के बाद, ग्रामीणों को केवल तभी स्थानांतरित और पुनर्वासित किया जा सकता है, जब वे कानून के अनुसार स्वेच्छा से ऐसा करना चाहते हैं।

मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर ने अपने पत्र में कहा, "विशेष रूप से महत्वपूर्ण वन्यजीव आवासों के लिए यह एफआरए और डब्ल्यूएलपीए में भी निर्धारित किया गया है कि राज्य सरकार द्वारा किसी भी वन क्षेत्र में पुनर्वास शुरू करने से पहले ग्राम सभा की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति और निर्णयों में प्रभावित समुदाय की भागीदारी जैसी कुछ शर्तें पूरी होनी चाहिए।"

अधिकारों की गैर-मान्यता को लेकर आरोपों के बारे में पूछे जाने पर नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य के प्रभागीय वन अधिकारी अब्दुल अलीम अंसारी ने इन आरोपों को नकार दिया।

अंसारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "हम किसी भी परिवार को जबरन बेदखल नहीं कर रहे हैं। हमने पात्र परिवारों और गांवों को उस पैकेज के बारे में सूचित कर दिया है जो हम दे सकते हैं। बाघ अभयारण्य के अंदर कुल 93 गांव हैं, जिनमें से 40 को 2014 से स्थानांतरित किया गया है, जो मूल रूप से नौरादेही अभयारण्य क्षेत्र से हैं। हम आठ गांवों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में हैं और बाकी को फिलहाल स्थानांतरित नहीं किया जा रहा है क्योंकि हमारे पास उनके लिए बजट नहीं है।"

अंसारी ने कहा, "सबसे ज्यादा गांव दमोह जिले में हैं, उसके बाद सागर और नरसिंहपुर हैं।"

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