केरल उच्च न्यायालय ने लक्षद्वीप के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने वाले आदेश के कार्यान्वयन पर रोक लगाते हुए कहा कि भाषा का गहरा सांस्कृतिक महत्व होता है और इसमें किए गए किसी भी बदलाव के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

साभार : बार एंड बेंच
केरल उच्च न्यायालय ने लक्षद्वीप के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने संबंधी आदेश के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है।
इससे पहले जारी सरकारी आदेश के तहत छात्रों को तीसरी भाषा के रूप में अरबी या महल भाषा का चयन करने की अनुमति नहीं थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और जस्टिस बसंत बालाजी की पीठ ने सोमवार 9 जून को कहा, 'एक भाषा का गहरा सांस्कृतिक महत्व होता है और इसमें किसी भी प्रकार के बदलाव के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।'"
कोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासन से पूछा था कि क्या भाषा बदलने की आवश्यकता और उसके प्रभावों पर कोई अध्ययन किया गया है, जिसके जवाब में प्रशासन के वकील ने कोई उत्तर नहीं दिया।"
वकील द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, आधारभूत चरण के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा 2022 और स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा 2023 के आधार पर आदेश को उचित ठहराए जाने के बाद, उच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय शैक्षिक नीति 2020 केवल इतना ही कहती है कि स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाओं में से दो भारत की मूल भाषाएं होनी चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि केरल शिक्षा नियम, 1959 और केरल पाठ्यक्रम रूपरेखा के अनुसार, अरबी अध्ययन एक अनिवार्य विषय है।"
कोर्ट ने यह टिप्पणी एनएसयूआई के अध्यक्ष अजस अकबर द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई के दौरान की।"
याचिकाकर्ता ने कहा कि लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा 14 मई को जारी किया गया आदेश लगभग 70 वर्षों से चली आ रही स्थिति को बिगाड़ रहा है। उन्होंने स्कूलों के 9 जून 2025 को पुनः खुलने के मद्देनजर आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की थी।
अकबर ने याचिका में कहा था कि लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा पाठ्यक्रम से महल भाषा को हटाना अल्पसंख्यक समुदाय के संवैधानिक अधिकारों को चुनौती देना है, जबकि यह सच्चाई है कि महल भाषा महल द्वीपवासियों की विशिष्ट भाषा है।
अदालत ने आदेश दिया, ‘प्रथमदृष्टया मामले की गंभीरता और तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए, हम निर्देश देते हैं कि 14 मई 2025 के विवादित कार्यालय आदेश का क्रियान्वयन अगले आदेश तक स्थगित रहेगा।
उधर केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि आदेश का क्रियान्वयन 9 जून 2025 से नहीं, बल्कि 1 जुलाई से शुरू होगा, इसलिए फिलहाल अंतरिम आदेश पारित करने की जरूरत नहीं है। मामले की अगली सुनवाई 9 जून तक के लिए स्थगित कर दी गई।
लक्षद्वीप के शिक्षा विभाग ने 14 मई 2025 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (एनसीएफ) के तहत महल और अरबी भाषाओं को हिंदी से बदलने का निर्देश दिया गया था।

साभार : बार एंड बेंच
केरल उच्च न्यायालय ने लक्षद्वीप के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने संबंधी आदेश के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है।
इससे पहले जारी सरकारी आदेश के तहत छात्रों को तीसरी भाषा के रूप में अरबी या महल भाषा का चयन करने की अनुमति नहीं थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और जस्टिस बसंत बालाजी की पीठ ने सोमवार 9 जून को कहा, 'एक भाषा का गहरा सांस्कृतिक महत्व होता है और इसमें किसी भी प्रकार के बदलाव के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।'"
कोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासन से पूछा था कि क्या भाषा बदलने की आवश्यकता और उसके प्रभावों पर कोई अध्ययन किया गया है, जिसके जवाब में प्रशासन के वकील ने कोई उत्तर नहीं दिया।"
वकील द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, आधारभूत चरण के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा 2022 और स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा 2023 के आधार पर आदेश को उचित ठहराए जाने के बाद, उच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय शैक्षिक नीति 2020 केवल इतना ही कहती है कि स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली तीन भाषाओं में से दो भारत की मूल भाषाएं होनी चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि केरल शिक्षा नियम, 1959 और केरल पाठ्यक्रम रूपरेखा के अनुसार, अरबी अध्ययन एक अनिवार्य विषय है।"
कोर्ट ने यह टिप्पणी एनएसयूआई के अध्यक्ष अजस अकबर द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई के दौरान की।"
याचिकाकर्ता ने कहा कि लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा 14 मई को जारी किया गया आदेश लगभग 70 वर्षों से चली आ रही स्थिति को बिगाड़ रहा है। उन्होंने स्कूलों के 9 जून 2025 को पुनः खुलने के मद्देनजर आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की थी।
अकबर ने याचिका में कहा था कि लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा पाठ्यक्रम से महल भाषा को हटाना अल्पसंख्यक समुदाय के संवैधानिक अधिकारों को चुनौती देना है, जबकि यह सच्चाई है कि महल भाषा महल द्वीपवासियों की विशिष्ट भाषा है।
अदालत ने आदेश दिया, ‘प्रथमदृष्टया मामले की गंभीरता और तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए, हम निर्देश देते हैं कि 14 मई 2025 के विवादित कार्यालय आदेश का क्रियान्वयन अगले आदेश तक स्थगित रहेगा।
उधर केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि आदेश का क्रियान्वयन 9 जून 2025 से नहीं, बल्कि 1 जुलाई से शुरू होगा, इसलिए फिलहाल अंतरिम आदेश पारित करने की जरूरत नहीं है। मामले की अगली सुनवाई 9 जून तक के लिए स्थगित कर दी गई।
लक्षद्वीप के शिक्षा विभाग ने 14 मई 2025 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (एनसीएफ) के तहत महल और अरबी भाषाओं को हिंदी से बदलने का निर्देश दिया गया था।