ये संशोधन राज्यों में भेदभावपूर्ण जेल मैनुअल प्रावधानों के संबंध में द वायर की सुकन्या शांता द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुआ है।
परिप्लब चक्रवर्ती
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जाति के आधार पर जेल में कैदियों के साथ भेदभाव, वर्गीकरण और अलगाव की जांच करने के लिए जेल मैनुअल नियमों में संशोधन किया है। 30 दिसंबर को जारी एक पत्र में गृह मंत्रालय ने कहा, "यह सख्ती से सुनिश्चित किया जाएगा कि कैदियों के साथ उनकी जाति के आधार पर कोई भेदभाव/वर्गीकरण/अलगाव न हो।"
पत्र में यह भी कहा गया है कि जेल कैदियों को उनकी जाति के आधार पर किसी भी ड्यूटि/कार्य के आवंटन में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
यह संशोधन कैदियों के जाति आधारित भेदभाव के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 3 अक्टूबर, 2024 के फैसले के मद्देनजर आया है। अदालत द वायर की पत्रकार सुकन्या शांता द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में जेल मैनुअल में जातिगत असमानताओं को वैध ठहराने वाले प्रावधानों के बारे में बताया गया था। उनकी 2020 की रिपोर्ट ‘फ्रॉम सेग्रीगेशन टू लेबर, मनुज कास्ट लॉ गवर्न्स द इंडियन प्रिजन सिस्टम’ (From Segregation to Labour, Manu’s Caste Law Governs the Indian Prison System) याचिका का आधार बनी।
वरिष्ठ वकील एस मुरलीधर, एडवोकेट दिशा वाडेकर और एस प्रसन्ना सहित कई वकीलों ने इस केस के लड़ने के लिए कोई राशि नहीं ली। शीर्ष अदालत ने कहा कि जेल मैनुअल में इस तरह के जाति-आधारित प्रावधान असंवैधानिक हैं, और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने जेल मैनुअल को संशोधित करने का निर्देश दिया।
मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 के ‘विविध’ नामक अध्याय में ‘जेलों और सुधार गृहों में जाति-आधारित भेदभाव का निषेध’ शीर्षक के तहत धारा 55 (ए) के रूप में बदलाव किए गए हैं।
शोषण के बारे में इस पत्र में यह भी कहा गया है कि ‘मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में काम का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के प्रावधानों का जेलों और सुधार गृहों में भी बाध्यकारी प्रभाव होगा। इसमें कहा गया है, “जेल के अंदर हाथ से मैला ढोने या सीवर या सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई की अनुमति नहीं दी जाएगी।”
हालांकि कानून के तहत मैनुअल स्कैवेंजिंग प्रतिबंधित है, लेकिन जैसा कि द वायर की पड़ताल में पाया गया है, भारत की जेलों में इसका चलन अभी भी जारी है। मॉडल जेल मैनुअल अब तक इसके अस्तित्व पर मौन था।
इसके अलावा मंत्रालय ने हैबिचुअल ऑफेंडर्स को कैजुअल प्रिजनर्स से अलग करने के न्यायालय के आदेश के बाद मैनुअल में हैबिचुअल ऑफेंडर्स की परिभाषा को संशोधित किया है। नई परिभाषा इस तरह है, “हैबिचुअल ऑफेंडर्स का मतलब है वह व्यक्ति जिसे लगातार पांच साल की अवधि के दौरान, अलग-अलग मौकों पर किए गए किसी एक या ज्यादा अपराधों के कारण दो से अधिक मौकों पर दोषी ठहराया गया हो और जेल की सजा सुनाई गई हो और वह एक ही मामले का हिस्सा न हो, ऐसी सजा को अपील या समीक्षा में पलटा न गया हो।”
यह निर्णय शायद सुप्रीम कोर्ट का पहला फैसला है जो भारत में निरस्त (denotified) और घुमंतु (nomadic) समुदायों के गैरकानूनी होने पर प्रकाश डालता है।
"हैबिचुअल ऑफेंडर्स" शब्द में काफी पूर्वाग्रह होते हैं और इसे अक्सर निरस्त (denotified) और घुमंतु (nomadic) जनजातियों का वर्णन करने के लिए एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है। कई राज्य जेल मैनुअल में कई प्रावधान स्पष्ट रूप से "वांडरिंग ट्राइब्स" और "क्रिमिनल ट्राइब्स" को ऐसे समुदायों के रूप में अलग थलग करते हैं जिनके साथ भेदभाव किया जाना चाहिए और उन्हें अन्य समुदायों के लिए उपलब्ध विशेष प्रावधानों से वंचित किया जाना चाहिए।
परिप्लब चक्रवर्ती
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जाति के आधार पर जेल में कैदियों के साथ भेदभाव, वर्गीकरण और अलगाव की जांच करने के लिए जेल मैनुअल नियमों में संशोधन किया है। 30 दिसंबर को जारी एक पत्र में गृह मंत्रालय ने कहा, "यह सख्ती से सुनिश्चित किया जाएगा कि कैदियों के साथ उनकी जाति के आधार पर कोई भेदभाव/वर्गीकरण/अलगाव न हो।"
पत्र में यह भी कहा गया है कि जेल कैदियों को उनकी जाति के आधार पर किसी भी ड्यूटि/कार्य के आवंटन में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
यह संशोधन कैदियों के जाति आधारित भेदभाव के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 3 अक्टूबर, 2024 के फैसले के मद्देनजर आया है। अदालत द वायर की पत्रकार सुकन्या शांता द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में जेल मैनुअल में जातिगत असमानताओं को वैध ठहराने वाले प्रावधानों के बारे में बताया गया था। उनकी 2020 की रिपोर्ट ‘फ्रॉम सेग्रीगेशन टू लेबर, मनुज कास्ट लॉ गवर्न्स द इंडियन प्रिजन सिस्टम’ (From Segregation to Labour, Manu’s Caste Law Governs the Indian Prison System) याचिका का आधार बनी।
वरिष्ठ वकील एस मुरलीधर, एडवोकेट दिशा वाडेकर और एस प्रसन्ना सहित कई वकीलों ने इस केस के लड़ने के लिए कोई राशि नहीं ली। शीर्ष अदालत ने कहा कि जेल मैनुअल में इस तरह के जाति-आधारित प्रावधान असंवैधानिक हैं, और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने जेल मैनुअल को संशोधित करने का निर्देश दिया।
मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 के ‘विविध’ नामक अध्याय में ‘जेलों और सुधार गृहों में जाति-आधारित भेदभाव का निषेध’ शीर्षक के तहत धारा 55 (ए) के रूप में बदलाव किए गए हैं।
शोषण के बारे में इस पत्र में यह भी कहा गया है कि ‘मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में काम का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के प्रावधानों का जेलों और सुधार गृहों में भी बाध्यकारी प्रभाव होगा। इसमें कहा गया है, “जेल के अंदर हाथ से मैला ढोने या सीवर या सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई की अनुमति नहीं दी जाएगी।”
हालांकि कानून के तहत मैनुअल स्कैवेंजिंग प्रतिबंधित है, लेकिन जैसा कि द वायर की पड़ताल में पाया गया है, भारत की जेलों में इसका चलन अभी भी जारी है। मॉडल जेल मैनुअल अब तक इसके अस्तित्व पर मौन था।
इसके अलावा मंत्रालय ने हैबिचुअल ऑफेंडर्स को कैजुअल प्रिजनर्स से अलग करने के न्यायालय के आदेश के बाद मैनुअल में हैबिचुअल ऑफेंडर्स की परिभाषा को संशोधित किया है। नई परिभाषा इस तरह है, “हैबिचुअल ऑफेंडर्स का मतलब है वह व्यक्ति जिसे लगातार पांच साल की अवधि के दौरान, अलग-अलग मौकों पर किए गए किसी एक या ज्यादा अपराधों के कारण दो से अधिक मौकों पर दोषी ठहराया गया हो और जेल की सजा सुनाई गई हो और वह एक ही मामले का हिस्सा न हो, ऐसी सजा को अपील या समीक्षा में पलटा न गया हो।”
यह निर्णय शायद सुप्रीम कोर्ट का पहला फैसला है जो भारत में निरस्त (denotified) और घुमंतु (nomadic) समुदायों के गैरकानूनी होने पर प्रकाश डालता है।
"हैबिचुअल ऑफेंडर्स" शब्द में काफी पूर्वाग्रह होते हैं और इसे अक्सर निरस्त (denotified) और घुमंतु (nomadic) जनजातियों का वर्णन करने के लिए एक दूसरे के स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है। कई राज्य जेल मैनुअल में कई प्रावधान स्पष्ट रूप से "वांडरिंग ट्राइब्स" और "क्रिमिनल ट्राइब्स" को ऐसे समुदायों के रूप में अलग थलग करते हैं जिनके साथ भेदभाव किया जाना चाहिए और उन्हें अन्य समुदायों के लिए उपलब्ध विशेष प्रावधानों से वंचित किया जाना चाहिए।