कृषि बजट का फंड बढ़ाए और मंत्रालय का नाम बदले सरकार : संसदीय समिति ने सिफारिश में कहा

Written by sabrang india | Published on: March 15, 2025
कृषि श्रमिकों के महत्व को दर्शाने के उद्देश्य से केंद्रीय कृषि मंत्रालय का नाम बदलकर कृषि पर संसद की स्थायी समिति ने ‘कृषि, किसान एवं खेतिहर मजदूर कल्याण विभाग’ करने की सिफ़ारिश की।


प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार: iStock 

कृषि पर संसद की स्थायी समिति ने किसानों और कृषि श्रमिकों के महत्व को दर्शाने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय का नाम बदलने की सिफारिश की है। ये सिफारिश पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता वाली ने की है।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, 12 मार्च को संसद में पेश की गई रिपोर्ट में समिति ने छोटे किसानों के लिए फसल बीमा योजना को लेकर भी मांग की है।

समिति ने कहा कि ‘कृषि एवं किसान कल्याण विभाग’ का नाम बदलकर ‘कृषि, किसान एवं खेतिहर मजदूर कल्याण विभाग’ किया जा सकता है। इसने कहा कि नाम बदलने से कई संभावित लाभ होंगे क्योंकि इससे कृषि क्षेत्र में खेतिहर मजदूरों की अहम भूमिका को मान्यता मिलेगी।

समिति ने आगे कहा कि, ‘कृषि श्रमिक ज्यादातर हाशिए पर पड़े समुदायों से होते हैं। वे कृषि कार्यबल का एक अहम हिस्सा हैं, लेकिन नीतिगत चर्चाओं और कल्याणकारी योजनाओं में अक्सर उनकी अनदेखी की जाती है।’

समिति ने वेतन असमानताओं को दूर करने और जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए ‘कृषि मजदूरों के लिए न्यूनतम जीवन मजदूरी’ को लेकर एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की भी सिफारिश की है।

पैनल ने मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वह नियमित अंतराल पर बजट फंड के इस्तेमाल की निगरानी करने व आवंटित राशि के संपूर्ण व्यय में बाधा बनने वाले मुद्दों का समाधान करने के लिए आवश्यक प्रक्रियाएं और व्यवस्था स्थापित करे।

समिति के अनुसार, वर्ष 2021-22, 2022-23, 2023-24, 2024-25 और 2025-26 के लिए कुल केंद्रीय परिव्यय के प्रतिशत के रूप में मंत्रालय को किए गए बजटीय आवंटन का अनुपात क्रमशः 3.53%, 3.14%, 2.57%, 2.54% और 2.51% था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘यह केंद्रीय योजना परिव्यय के अनुपात के रूप में विभाग को आवंटन में निरंतर गिरावट को दर्शाता है। समिति, इस तथ्य के मद्देनजर कि 50% से ज्यादा लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं, मंत्रालय से इस गिरावट की प्रवृत्ति को रोकने की इच्छा रखती है।’

समिति ने पारंपरिक फसल पर घोषित एमएसपी के अलावा सभी जैविक फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की भी सिफारिश की है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार पैनल ने कहा, ‘हालांकि, जैविक उत्पादों पर एमएसपी की मांग स्वामीनाथन फॉर्मूले पर आधारित व्यापक एमएसपी मांग को कम नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, जैविक उत्पादों को शामिल करने के लिए कानूनी एमएसपी ढांचे का विस्तार किया जाना चाहिए। यह किसानों को जैविक खेती में बदलाव के लिए प्रोत्साहित करेगा। भले ही शुरुआती वर्षों में कम पैदावार की चुनौतियों का सामना करना पड़े। इसके साथ ही जैविक उत्पादों के लिए एमएसपी पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक निर्धारित किया जाना चाहिए ताकि उपज में गिरावट और जैविक खेती में बदलाव से जुड़ी लागतों की भरपाई की जा सके।’

समिति ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की तर्ज पर दो हेक्टेयर तक की भूमि वाले छोटे किसानों के लिए ‘निशुल्क व अनिवार्य’ फसल बीमा योजना शुरू करे। इस तरह के कदम से छोटे किसानों की वित्तीय स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि इससे उन्हें फसल के नुकसान के खिलाफ सुरक्षा कवच मिलेगा और बेहतर कृषि पद्धतियों में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

रिपोर्ट में आगे उल्लेख किया गया है कि यह पहल किसानों को कर्ज के चक्रव्यूह से बचने और यह सुनिश्चित करने में मददगार साबित होगी, जिससे वे आगामी फसल चक्र में पुनः निवेश कर सकेंगे। इसके अलावा, समय पर फसल बीमा मुआवजा प्रदान करके सरकार किसानों को शोषक ऋणदाताओं से सुरक्षित रख सकती है। इससे छोटे किसानों की अनौपचारिक स्रोतों से उच्च ब्याज वाले ऋणों पर निर्भरता घटेगी।

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