इस दरिंदगी के बीच जो उन्हें बचाने दौड़े उनके अपने वे भी घायल हुए। गांव की औरतें, बच्चे, बुज़ुर्ग... सब पर नफ़रत के नाम का कहर टूटा। जिला अस्पताल के बिस्तरों पर अब वे सिर्फ जख़्म नहीं, उस समाज का चेहरा भी लिए पड़े हैं, जो धर्म और दल के नाम पर इंसान को न पहचान सका।

उत्तर प्रदेश के चंदौली ज़िले के निगुरा गांव में 17 मई 2025 की शाम इंसानियत का खून हुआ। सूरज तो हर दिन डूबता है, लेकिन उस दिन नेगुरा की मिट्टी पर जो अंधेरा छाया, वह किसी रात की तरह शांत नहीं था, वह चीखता हुआ अंधेरा था। नफ़रत की भीड़ ने एक बेक़सूर बुनकर, एक पिता, एक बेटा बादशाह खान को इस बर्बरता से मारा कि वह फिर कभी उठ न सके। उनके शरीर पर लाठियों-पत्थरों की बौछार थी और आत्मा पर सत्ता और सियासत की चुप्पी का बोझ।
45 वर्षीय बादशाह खान पर हमला तब हुआ जब वह परिवार के एक सदस्य आफ़ताब के साथ पिकअप लेकर बनारस जा रहे थे। गाड़ी को पास नहीं देने पर कुछ लोगों से हल्का-सा विवाद हुआ, लेकिन बात इतनी सी नहीं थी। यह बहाना था उस सुनियोजित हिंसा का जो उनके खून की प्यासी थी। कुछ दबंग जो पहले से लाठी-डंडों के साथ गांव के बाहर नहर की पुलिया पर बैठे थे। उन्होंने उन्हें घेरकर हमला बोल दिया। लाठी, डंडे, पत्थर... और फिर घातक चुप्पी। बीएचयू ट्रॉमा सेंटर ले जाते वक्त रास्ते में ही बादशाह खान की मौत हो गई। आफ़ताब को अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन इस हमले में वो शख्स चला गया जो वह उस भीड़ की नज़र में "दूसरे" समुदाय के लोग थे।
इस दरिंदगी के बीच जो उन्हें बचाने दौड़े उनके अपने वे भी घायल हुए। गांव की औरतें, बच्चे, बुज़ुर्ग... सब पर नफ़रत के नाम का कहर टूटा। जिला अस्पताल के बिस्तरों पर अब वे सिर्फ जख़्म नहीं, उस समाज का चेहरा भी लिए पड़े हैं, जो धर्म और दल के नाम पर इंसान को न पहचान सका।

घटना के दो दिन बाद, 19 मई को, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर एक प्रतिनिधिमंडल निगुरा पहुंचा। उन्होंने पीड़ित परिवार से मिलकर संवेदना व्यक्त की और प्रशासनिक रवैये पर तीखे सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, पूरी मानवता पर है। और सच भी यही है, क्योंकि जो हुआ, वह सिर्फ हत्या नहीं थी। वह चेतावनी थी उन लोगों के लिए जो न्याय की उम्मीद करते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से गांव में ध्रुवीकरण बढ़ा है। कुछ बाहरी और स्थानीय तत्वों ने मुस्लिम समुदाय को टारगेट करना शुरू कर दिया है। गांव की हवा में अब मेल-मिलाप की जगह डर और संदेह की गंध है।
मामूली विवाद ने लिया खूनी संघर्ष का रूप
चंदौली थाना पुलिस में बादशाह खान के पुत्र अशरफ की ओर से दर्ज कराई गई रिपोर्ट के अनुसार शनिवार शाम लगभग 7:30 बजे मामूली विवाद ने हिंसक टकराव का रूप ले लिया। यह घटना गांव स्थित नहर की सड़क पर पुलिया के पास घटित हुई, जहां शराब के नशे में धुत शिफ्फु (पुत्र नवीन सिंह), आदर्श पांडेय, त्रिपुंड पांडेय, हर्ष सिंह (पुत्र अजात), सभी निवासी नेगुरा (थाना व जिला चंदौली) अपने अन्य साथियों कुणाल अग्रहरी (पुत्र अजात, वार्ड संख्या-6, कस्बा चंदौली) एवं कुणाल मिश्रा (निवासी मसौनी) के साथ मोटरसाइकिलों से सड़क पर खड़े थे।
इसी दौरान नेगुरा निवासी आफताब खान ने अपने पिकअप वाहन के लिए रास्ता मांगने हेतु हॉर्न बजाया, जिससे आक्रोशित युवकों ने पहले अभद्र भाषा का प्रयोग किया और फिर अचानक लाठियों से हमला कर दिया। घटना की सूचना आफताब खान ने तत्क्षण फोन पर गुलशाद खान को दी।
इस सूचना के बाद अशरफ खान अपने पिता बादशाह खान, दादा अब्दुल अली, दादा अब्दुल गनी, बुआ फरीदा खातून एवं गांव की रानी आदि के साथ स्थिति स्पष्ट करने और समझाने-बुझाने के उद्देश्य से नवीन सिंह के घर की ओर जा रहे थे। रास्ते में श्याम बिहारी के घर के सामने उन्हें नवीन सिंह (पुत्र भरत सिंह), शिफ्फु, सुशील सिंह (पुत्र ध्रुव सिंह) एवं आदर्श पांडेय (सभी निवासी नेगुरा, चंदौली) मिले। तभी उपरोक्त व्यक्तियों ने पूर्व की रंजिश के तहत एक राय होकर बादशाह और उनके परिवारीजनों पर लाठी-डंडों तथा ईंट-पत्थरों से हमला कर दिया।
इस हमले में बादशाह खान को सिर में गंभीर चोट आई, जबकि अन्य पर भी शारीरिक चोटें आईं। सभी घायलों को प्राथमिक उपचार के लिए पंडित कमलापति त्रिपाठी जिला अस्पताल, चंदौली ले जाया गया, जहां बादशाह खान की स्थिति अत्यंत गंभीर होने के कारण उन्हें बीएचयू ट्रॉमा सेंटर, वाराणसी रेफर किया गया। उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इस संघर्ष में दूसरे पक्ष की 60 वर्षीय महिला कलावती एवं 17 वर्षीय किशोरी निशा भी गंभीर रूप से घायल हो गईं। मुस्लिम पक्ष के अब्दुल अली का उपचार जिला अस्पताल में जारी है।
नेगुरा गांव में उत्पन्न तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए एडीशनल एसपी दिगंबर कुशवाहा के नेतृत्व में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है। सदर क्षेत्राधिकारी राजेश राय के साथ-साथ नौगढ़, चकिया, सैयद राजा एवं शहाबगंज थानों की पुलिस बल भी मौके पर मौजूद है। किसी भी संभावित अप्रिय घटना को रोकने हेतु महिला पुलिस बल को भी सतर्क रूप से तैनात किया गया है। बादशाह खान के अंतिम संस्कार के समय गांव में और दूर-दराज़ से आए रिश्तेदारों की भारी भीड़ उमड़ी। पूरे क्षेत्र में शोक की गहरी छाया व्याप्त रही।
बादशाह की मौत से हालात तनावपूर्ण
चंदौली के डिप्टी एसपी राजेश कुमार राय ने ‘सबरंग इंडिया’ को बताया कि आफताब नहर के रास्ते से पिकअप लेकर जा रहे थे। वहां कुछ लोग पहले से बैठे थे और पास देने को लेकर विवाद हुआ, जो फसाद का कारण बन गया। घटना के तुरंत बाद पुलिस मौके पर पहुंच गई। पीड़ित पक्ष का आरोप है कि हमलावर शराब के नशे में धुत थे। कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है। डिप्टी एसपी ने दावा किया कि स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है और घटना में शामिल लोगों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई की जाएगी।
चंदौली जिला मुख्यालय से सटे नेगुरा गांव की आबादी लगभग पांच हज़ार से अधिक है, जिनमें तीन हज़ार से अधिक मतदाता हैं। यहां की प्रमुख आबादी चौहान (नोनिया) और मुस्लिम समुदाय की है। इनके अतिरिक्त भूमिहार, ब्राह्मण, सोनकर, कन्नौजिया, मौर्य-कुशवाहा, पासवान, कायस्थ, कुर्मी, गोंड और वैश्य जातियों के लोग भी निवास करते हैं। पहले इस गांव में सभी समुदायों के बीच आपसी मेल-मिलाप और सौहार्द बना रहता था। मुस्लिम समुदाय के लोग कहते हैं कि जब से बीजेपी सत्ता में आई है, तभी से यहां सांप्रदायिकता का ज़हर फैलना शुरू हुआ। कुछ दबंगों ने हिन्दू-मुस्लिमों के बीच दूरी बढ़ाने और ज़हर घोलने की कोशिशें तेज कर दीं।

हिंसा में घायल अब्दुल अली खान
इस घटना के नेपथ्य में देखें तो चंदौली थाना पुलिस भी कम दोषी नहीं है। घटना के कुछ ही देर बाद आफताब की मौत हो चुकी थी, लेकिन पुलिस अधिकारी मीडिया के सवालों से बचते रहे। यदि इस घटना की तह में जाकर देखा जाए तो यह वारदात सुनियोजित प्रतीत होती है। मुस्लिम समुदाय पर हमला करने के लिए कई बाहरी लोग नेगुरा गांव में पहुंचे थे, जिनके नाम रिपोर्ट में दर्ज हैं। इनमें कुणाल अग्रहरी (चंदौली बाज़ार) और कुणाल मिश्र (मसोई गांव) के नाम शामिल हैं, जिनका संबंध भारतीय जनता पार्टी से बताया जा रहा है।
दूसरी गंभीर बात यह रही कि शाम लगभग 7:30 बजे घटी इस घटना की रिपोर्ट पुलिस ने अगली सुबह 4:12 बजे दर्ज की। पीड़ित पक्ष का आरोप है कि घटना के बाद चंदौली थाना पुलिस ने पीड़ित के पुत्र तौहीद खान को ज़बरन थाने में बैठा लिया और इस मामले को दबाने में जुट गई। पुलिस लगातार यह कोशिश करती रही कि रिपोर्ट दर्ज न हो और दोनों पक्षों के बीच कोई समझौता करा दिया जाए। इस मामले में पुलिस ने दूसरे पक्ष की रिपोर्ट भी दर्ज की है, जिसमें आधा दर्जन से अधिक लोगों को नामजद किया गया है।
आज निगुरा की गलियों में सन्नाटा पसरा है। जहां पहले बच्चे खेलते थे, वहां अब पुलिस की गाड़ियां दौड़ रही हैं। जवानों के बूटों की धमक हर दरवाज़े पर सुनाई दे रही है। डर गांव के कोने-कोने में समाया है। रविवार की शाम, पुलिस की निगरानी में, कड़ी सुरक्षा के बीच अशरफ के पिता बादशाह खान को दफनाया गया। नेगुरा की मिट्टी एक और इंसान समा गया, जिसे एक नफ़रती भीड़ ने सिर्फ उसकी पहचान के कारण मार दिया।
बादशाह की मौत के बाद परिवार बेहाल
नेगुरा गांव में हुई हिंसा की दर्दनाक घटना के बाद बादशाह खान की मृत्यु ने उनके पूरे परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया है। बादशाह के दो बेटे अशरफ (20) और तौहीद (18) सहित उनकी चार बेटियां इस त्रासदी से पूरी तरह टूट चुकी हैं। अशरफ ने बताया कि उनके पिता बुनकरी का काम करते थे और बनारसी साड़ियां बुनते थे। परिवार के लोगों की आजीविका चलाने वाले वो इकलौता सहारा थे।
इसी बीच, इस हिंसा में घायल हुए अब्दुल अली खान का इलाज चंदौली जिला अस्पताल में चल रहा है। उनके सिर में गंभीर चोटें आई हैं और वे अब भी उपचाराधीन हैं। अब्दुल अली ने घटना का विवरण देते हुए बताया कि जब वह भोजन कर रहे थे, तभी बाहर शोर सुनाई दिया। वे बाहर निकले तो देखा कि गांव के कई लोग इकट्ठा हैं। कुछ लोग हाथ जोड़कर माफी मांग रहे थे, लेकिन माहौल बेहद तनावपूर्ण था।
अब्दुल बताते हैं, "हम नेगुरा गांव के पठान टोली मुहल्ले में रहते हैं। हमारे मुहल्ले के पास एक शिव मंदिर और एक बड़ा तालाब है, जिनके इर्द-गिर्द हमारे बाग-बगीचे भी हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग बचपन से ही मंदिर और तालाब के आसपास बैठते आए हैं। लेकिन कुछ महीने पहले, भूमिहार समुदाय के कुछ लोगों से विवाद उत्पन्न हुआ और तब से प्रयास किए जा रहे हैं कि हमें मंदिर, तालाब और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोका जाए। इस घटना को जानबूझकर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई।"
उन्होंने यह भी कहा कि यह पूरा विवाद आपसी मनमुटाव और गलतफहमी का नतीजा था, लेकिन पुलिस की भूमिका संदिग्ध प्रतीत होती है। पुलिस खुद मारपीट में शामिल नहीं थी, बल्कि जब दूसरे पक्ष ने ईंट-पत्थर और लाठियों से हमला किया, तब पुलिस ने बवाल शांत करने की कोशिश की। इसी दौरान हमलावरों ने अब्दुल अली के सिर पर ईंट-पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। उनका कहना है कि इस झगड़े में उनकी कोई गलती नहीं थी, फिर भी उन पर जानलेवा हमला किया गया।

हिंसा की घटना से आहद मुस्लिम समुदाय के लोग
अब्दुल कहते हैं, " सरेशाम हुई हत्या के इस मामले में पुलिस प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। जिन लोगों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, पुलिस उन्हीं का पक्ष लेती प्रतीत होती है। ऐसे लोग चाहे गोली चलाएं या पत्थर-डंडों से हमला करें, पुलिस की ढाल उन्हें प्राप्त रहती है। दूसरी ओर, विरोध करने वालों को ही दबा दिया जाता है और उन पर ही झूठे आरोप लगाए जाते हैं।" अब्दुल के अनुसार, "इस हमले का मुख्य आरोपी सुशील, जो नवीन के बड़े पिता का बेटा है अपने साथियों के साथ शराब के नशे में पहले से योजना बनाकर हमला करने के बाद से फरार है।
मृतक बादशाह खान के रिश्तेदार अफज़ाल खान कहते हैं, "हमारा गांव अब उस पुलिया के कारण अशांत हो गया है, जहां पर मारपीट हुई थी। उस दिन, जब वे लोग करीब दस से पंद्रह की संख्या में हमारे घर आए, तो हमें लगा कि शायद कोई समझौता हो सकेगा। लेकिन वे तो सीधे हम पर टूट पड़े। हमारे मन में लड़ाई-झगड़े की कोई मंशा नहीं थी, पर वे लोग ईंट-पत्थर और लाठी-डंडे लेकर आए थे। हमारी बात सुने बगैर ही उन्होंने हमारे ऊपर हमला कर दिया। लगभग बीस मिनट तक वे हम पर बेरहमी से लाठियां बरसाते रहे और ईंटें फेंकते रहे। उस वक्त हम सिर्फ अपने परिवार को बचाने की कोशिश कर रहे थे।"
वह आगे कहते हैं, "हमें ऐसा लगता है जैसे पुलिस किसी एक पक्ष की मदद कर रही है, क्योंकि इस पूरे मामले का मुख्य आरोपी अब तक गिरफ्तार नहीं हो पाया है। न्याय की उम्मीद धुंधली होती जा रही है और हमारे परिवार की चोटें सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक भी हैं। हम इंसाफ चाहते हैं, ताकि हमारे एक सदस्य की मौत व्यर्थ न जाए और परिवार को थोड़ा सुकून मिले।"
मृतक बादशाह खान की पत्नी गुलसमा और उनकी चार बहनों-आयशा, फातिमा, जाहिदा और फरीदा का रो-रोकर बेसुध हैं। आयशा कहती हैं, "हम अपने-अपने बेटे को साथ लेकर मायके आए थे। हमारी आंखों के सामने ही हमारे भाई को बेरहमी से मार डाला गया। घटना के बाद निष्ठुर चंदौली थाना पुलिस ने हमारे भतीजे अशरफ को पूरी रात थाने में बैठाए रखा। जब मामला तूल पकड़ने लगा, तब सुबह जाकर उसे छोड़ा गया। हमारे दोनों भतीजे अशरफ और तौहीद का रो-रोकर बुरा हाल है, क्योंकि आफ़ताब के अलावा अब घर में कमाने वाला कोई नहीं बचा है।"
चंदौली की साझी विरासत पर सवाल
चंदौली ज़िला पूर्वांचल की उस ज़मीन का नाम है, जहां मज़हब से ऊपर उठकर इंसानियत की इबादत होती रही है। बनारस से सटे इस ज़िले ने हमेशा सांप्रदायिक सौहार्द, गंगा-जमुनी तहज़ीब और साझी संस्कृति को जिया है। यहां मंदिर और मजार की दीवारें कभी अलग नहीं रहीं, बल्कि इन्हीं दीवारों के बीच से मोहब्बत और एकता की इबारतें लिखी गई हैं। ऐसे ज़िले में नेगुरा गांव की हिंसा न सिर्फ चिंता का विषय है, बल्कि यह चंदौली की साझा विरासत पर सीधा सवाल भी है।
शहाबगंज प्रखंड के लालपुर गांव का उदाहरण लिया जाए, तो वहां एक ओर विशाल शिव मंदिर है तो ठीक उसके पास शहीद बाबा की मजार। दोनों धार्मिक स्थलों पर पूजा और प्रार्थना समान श्रद्धा से होती है। यहां कोई किसी को धर्म के चश्मे से नहीं देखता। जलाभिषेक और अज़ान दोनों के स्वर यहां के वातावरण को पवित्र बनाते हैं। मेले से लेकर रोज़मर्रा की देखरेख तक, मंदिर और मजार की ज़िम्मेदारी हिंदू-मुस्लिम मिलकर निभाते हैं। यहां परंपरा है कि शिव मंदिर में मनौती तभी पूरी होती है जब मजार पर पहले मत्था टेका जाए।

चेदौली जिला अस्पताल में पीड़ितों का दुख-दर्द बांटतींं गार्गी सिंह पटेल
इसी तरह उतरौत गांव के पास स्थित तकिया शाह भोला की मजार भी सांप्रदायिक एकता का अद्वितीय प्रतीक है। यह कोई आम धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ऐसा आध्यात्मिक केंद्र है जहां मज़हब की पहचान पीछे छूट जाती है और इंसानियत आगे आ जाती है। यहां आने वाले लोगों में कोई हिंदू या मुसलमान नहीं होता, बस इंसान होते हैं। मजार पर माथा टेकना, नीम की पत्तियों को औषधि मानकर सेवन करना और एक ही परिसर में शांति से आस्था व्यक्त करना, यह सब दर्शाता है कि चंदौली की मिट्टी में कितनी गहराई से मेल-जोल की जड़ें समाई हुई हैं।
इसी सांझी परंपरा का एक और गवाह है चंदौली का तलीफशाह मजार। यहां भी हिंदू और मुसलमान दोनों बड़ी श्रद्धा से आते हैं। यह मजार केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि समाजिक समरसता की जीती-जागती मिसाल है। यहां आकर लोग जाति, धर्म और वर्ग की सीमाएं भूल जाते हैं। चादर चढ़ाना, दीप जलाना, मन्नत मांगना, ये सब बिना किसी भेदभाव के होता है। यहां सिर झुकाने वाले की पहचान धर्म नहीं, आस्था होती है।
हज़रत लतीफशाह की मजार वर्षों से एक ऐसी परंपरा को संजोए हुए है, जहां धर्म की दीवारें टूट जाती हैं और इंसानियत की आवाज बुलंद होती है। यहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग पूरी श्रद्धा के साथ मत्था टेकते हैं, मन्नत मांगते हैं और चादर चढ़ाते हैं। मजार के बाहर न कोई मजहब पूछा जाता है, न कोई पहचान। यहां सिर्फ इंसानियत के नाम पर सिर झुकते हैं।
हर गुरुवार को इस मजार पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। इनमें न केवल मुसलमान बल्कि बड़ी संख्या में हिन्दू भी शामिल होते हैं। कोई मौन प्रार्थना करता है, कोई फूल चढ़ाता है, कोई चादर ओढ़ाता है, तो कोई बस दरगाह की चौखट पर बैठकर मन की बात करता है। यह दृश्य उस भारत की याद दिलाता है, जहां धर्म व्यक्तिगत आस्था है, मगर इंसानियत सार्वजनिक पहचान।
लतीफशाह की मजार न केवल चकिया क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे चंदौली ज़िले के लिए सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बन चुकी है। ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालु अगर सच्चे मन से मन्नत मांगें तो उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। दिलचस्प बात यह है कि कई परिवारों में मजार पर जाना पीढ़ियों से एक परंपरा रही है, चाहे उनका मजहब कुछ भी हो।
मजार पर आने वालों में आसपास के गांवों जैसे उतरौत, तियरा, भरुहिया, अम्मर, डहिया, भस्करपुर आदि के लोग नियमित रूप से पहुंचते हैं। किसी की बेटी की शादी हो, बेटे की नौकरी या किसी की बीमारी, हर परेशानी के समाधान के लिए लोग यहां उम्मीद लेकर आते हैं। कई श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो मंदिर में पूजा करने के बाद सीधे मजार पर मत्था टेकते हैं, मानो यह एक ही आस्था की दो शक्लें हों।
जब देश के कई हिस्सों में धर्म के नाम पर दूरियां पैदा करने की कोशिशें हो रही हैं, तब चंदौली जैसे ज़िले में लालपुर के शिवमंदिर और चकिया में लतीफशाह की मजार एक ऐसी लौ की तरह जल रही है जो अंधेरे में भी रोशनी देती है। ये धार्मिक स्थल याद दिलाते हैं कि भारत की असल आत्मा उसकी साझा विरासत में बसती है। वह विरासत जो सूफियों, संतों, और साधकों ने अपने प्रेम और समर्पण से रची थी। ये सिर्फ एक मजहबी स्थल नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने वाला वह पुल है, जो आज भी चंदौली में हिन्दू-मुसलमान दोनों समुदायों को एक धागे में पिरोए हुए है। यहां की मिट्टी नफरत को पनपने नहीं देती, क्योंकि इसमें रची-बसी है मोहब्बत, आस्था और इंसानियत की खुशबू। ऐसी जगहें ही भारत को भारत बनाती हैं।

मृतक बादशाह की पत्नी
चंदौली जिले के गौड़िहार गांव में एक धार्मिक स्थल ऐसा भी है जहां एक ही चबूतरे पर हिंदू श्रद्धालु देवताओं को प्रसाद अर्पित करते हैं, तो वहीं मुस्लिम समुदाय के लोग उसी स्थान पर सजदा कर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। यह स्थान आपसी भाईचारे और धार्मिक एकता का जीवंत प्रतीक है। चबूतरे के एक ओर नूर मुहम्मद शहीद बाबा की दरगाह स्थित है, तो दूसरी ओर दैत्यरा बीर की भव्य चौरी। पास ही एक पीपल का वृक्ष भी है, जिसे परी माता का वास माना जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र स्थल पर सच्चे दिल से मांगी गई मन्नतें जरूर पूरी होती हैं।
गौड़िहार के लोग बताते हैं कि यहां आने वाले श्रद्धालु, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, तब तक उनकी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक वे दोनों दैत्यरा बाबा और शहीद बाबा की संयुक्त रूप से आराधना न करें। विशेष बात यह है कि यहां के दोनों धार्मिक स्थलों की देखरेख हिन्दू पुजारी नन्दलाल मौर्य करते हैं। वह कहते हैं, "चाहे दैत्यरा बीर को जनेऊ, खड़ाऊं और चिलम चढ़ानी हो या शहीद बाबा की चादरपोशी करनी हो, इन सभी विधियों का संचालन वह खुद करते हैं। हर साल कार्तिक एकादशी के अवसर पर 24 घंटे का अखंड हरिकीर्तन होता है और उसके अगले दिन शहीद बाबा का सलाना उर्स पूरे श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है। इस आयोजन में हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदाय के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
प्रत्येक गुरुवार को यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, खासकर वे लोग जो असाध्य रोगों से पीड़ित होते हैं। पुजारी नन्दलाल इन रोगियों को नि:शुल्क जड़ी-बूटियों से बनी औषधियां वितरित करते हैं। साथ ही, प्रेतबाधा से ग्रसित लोग भी यहां आकर राहत महसूस करते हैं और अनेक उदाहरण हैं जहां लोगों ने पूर्ण रूप से मुक्ति पाई है। गौड़िहार गांव का यह धार्मिक स्थल केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एकता, विश्वास और मानवीय सहयोग का प्रतीक बन चुका है।
सपा का प्रतिनिधिमंडल पहुंचा निगुरा
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव के निर्देश पर 19 मई 2025 को पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल चंदौली निगुरा पहुंचा। यह दौरा गांव के निवासी बादशाह ख़ान पुत्र नसीर अहमद (45 वर्ष) की हत्या के विरोध में और शोकाकुल परिवार से मुलाक़ात के लिए किया गया। सपा प्रतिनिधिमंडल ने निगुरा गांव पहुंचकर सबसे पहले घटनास्थल का जायज़ा लिया। इसके पश्चात प्रतिनिधिमंडल ने मृतक के परिजनों से मिलकर गहरी संवेदना प्रकट की और भरोसा दिलाया कि समाजवादी पार्टी इस दुख की घड़ी में पूरी मजबूती से उनके साथ खड़ी है। प्रतिनिधिमंडल ने प्रशासन से मांग की कि दोषियों को अविलंब गिरफ़्तार किया जाए और घटना की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाए।
इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व चंदौली के सांसद श्री वीरेंद्र सिंह कर रहे थे। उनके साथ प्रतिनिधिमंडल में सत्य नारायण राजभर, सांसद छोटे लाल खरवार, विधायक प्रभुनारायण यादव, पूर्व विधायक जितेन्द्र प्रसाद, सपा प्रवक्ता मनोज काका, अयूब ख़ान गुड्डू, मुसाफ़िर चौहान, औसाफ़ अहमद और चन्द्रशेखर यादव शामिल रहे। प्रतिनिधियों ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिला, तो समाजवादी पार्टी पूरे प्रदेश में आंदोलन छेड़ेगी।

इस अवसर पर समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधिमंडल ने एक ज्ञापन भी राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए सौंपा, जिसमें निगुरा गांव की घटना का विस्तृत विवरण दिया गया है और संवैधानिक हस्तक्षेप की मांग की गई है। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि चंदौली ज़िले के निगुरा ग्रामसभा में जो कुछ घटा, वह न केवल मानवता को शर्मसार करता है बल्कि यह उत्तर प्रदेश सरकार की नाकामी और पक्षपातपूर्ण रवैये को भी उजागर करता है।
ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश में हिन्दू-मुसलमानों के बीच वैमनस्य फैलाकर सामाजिक सौहार्द को तोड़ना चाहती है। प्रशासन को सरकार एक टूल की तरह इस्तेमाल कर रही है। भावनाओं को भड़काकर समाज को बांटने की कोशिश हो रही है, जिससे एक विशेष वर्ग में भय और आक्रोश व्याप्त है।
ज्ञापन में यह भी उल्लेख है कि भारत सरकार जहां एक ओर मुस्लिम देशों से संबंध मज़बूत करने और आतंकवाद के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर देश के अंदर भाजपा समर्थित सरकारें नफ़रत के ज़हरीले बीज बोने का काम कर रही हैं। गांव-गांव में दो समुदायों के बीच टकराव का माहौल बनाया जा रहा है और प्रशासन इस स्थिति को संभालने के बजाय उसे हवा देने का काम कर रहा है।
निगुरा की घटना इसका ताज़ा उदाहरण है, जो लगभग तीन से छह महीने पुरानी रंजिश का नतीजा है। थानाध्यक्ष ने बार-बार समझौता कराने की ज़बरन कोशिश की, लेकिन गंभीर सूचनाएं होने के बावजूद कड़ा कदम नहीं उठाया, जिसके चलते एक निरीह नागरिक की हत्या हो गई। प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मांग की है कि इस मामले में देश के गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को निर्देशित किया जाए कि वे ऐसे माहौल में प्रशासन को एक राजनीतिक उपकरण न बनने दें, ताकि देश में सामाजिक समरसता बनी रहे। इसी विश्वास और उम्मीद के साथ यह ज्ञापन राष्ट्रपति को सौंपा गया है।

पुलिस की छावनी बना नेगुरा गांव
पुलिस की नाकामी जिम्मेदार
पूर्व विधायक मनोज सिंह डब्लू ने रविवार को चंदौली जनपद के नेगुरा गांव का दौरा किया, जहां उन्होंने अपने समर्थकों के साथ हाल ही में हिंसा के शिकार पीड़ित परिवार से मुलाकात की। पीड़ितों के दुख-दर्द को समझते हुए उन्होंने उन्हें हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया। बाद में ‘सबरंग इंडिया’ से विशेष बातचीत में मनोज सिंह डब्लू ने इस घटना को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि "आफताब की हत्या एक सामान्य अपराध नहीं बल्कि एक सुनियोजित और सोची-समझी साजिश प्रतीत होती है। यह किसी व्यक्तिगत रंजिश का मामला नहीं दिखता, बल्कि इसमें कुछ मनबढ़ और असामाजिक तत्वों की संलिप्तता है, जिन्होंने पहले इस नृशंस कृत्य को अंजाम दिया और फिर उसे जानबूझकर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की।"
पूर्व विधायक ने आगे कहा, "घटना के बाद से पुलिस प्रशासन की भूमिका अत्यंत निराशाजनक रही है। पुलिस मूकदर्शक की तरह तमाशा देखती रही और अब इस मामले को दबाने तथा लीपापोती करने की कोशिशें की जा रही हैं। इस प्रकार की उदासीनता और निष्क्रियता से देश का हर संवेदनशील नागरिक आहत और क्षुब्ध है। सबरंग इंडिया से बात करते हुए चंदौली के मनोज सिंह डब्लू ने कहा कि समाजवादी पार्टी के पीड़ित परिवार के साथ है। चंदौली में अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जो सत्ता की चमक में अंधे नहीं हुए, जो इंसानियत की लड़ाई को ज़िंदा रखे हुए हैं। "
सपा के पूर्व विधायक मनोज कटाक्ष करते हुए यह भी कहा कि "आज जब देश को न्याय, कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक सौहार्द की सबसे अधिक आवश्यकता है, तब जिनके कंधों पर संविधान और देश को संभालने की जिम्मेदारी है, वे तिरंगा यात्रा और सतही आयोजनों में व्यस्त हैं। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि आम नागरिकों के भीतर आक्रोश और असुरक्षा की भावना भी पैदा कर रही है। घटना की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषियों को जल्द से जल्द कानून के दायरे में लाकर कड़ी सजा दी जानी चाहिए, ताकि देश में न्याय और भरोसे की भावना बनी रह सके।"
चंदौली जिला अस्पताल में हिंसा में घायल पीड़ितों से मिलकर उनका हौसला बढ़ाने पहुंचीं उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी की महिला विंग की जिलाध्यक्ष गार्गी सिंह पटेल ने प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर योगी सरकार को कड़ी आलोचना का निशाना बनाया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि, "दंगा, फसाद और सामाजिक तनाव ही भाजपा शासन और सत्ता का तरीका बन चुका है, जो अब पूरी तरह से योगी सरकार के तहत उत्तर प्रदेश में अपनाया जा रहा है।"
गार्गी सिंह पटेल ने कहा, "इस घटना के पीछे पुलिस और प्रशासन की पूरी तरह से अनदेखी और निष्क्रियता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस-प्रशासन नींद में था, जिसकी वजह से इस तरह की हिंसक घटनाओं को समय रहते नहीं रोका जा सका। इस निष्क्रियता के कारण ही नेगुरा में हुई हिंसा जैसी घटनाएं संभव हो सकीं।"
"पुलिस प्रशासन और योगी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए गार्गी ने इस बात पर भी चिंता जताई कि क्या नेगुरा में हुई हिंसा स्वाभाविक थी या फिर कहीं से सुनियोजित तरीके से सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने की साज़िश की गई है। उन्होंने कहा कि चंदौली की सांस्कृतिक विरासत सदियों से सामाजिक सद्भाव और भाईचारे पर आधारित रही है। ऐसे में इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह हमला उसी साझा सौहार्द पर चोट पहुंचाने का इरादा था? "
गार्गी सिंह पटेल ने यह भी कहा कि, "यह वक्त आत्ममंथन का है। अब यह तय करना होगा कि क्या हम अपने पूर्वजों की वह अमूल्य विरासत, जो सद्भाव और प्रेम की मिसाल रही है, उसे नफरत और तुष्टिकरण की आग में जलने देंगे या फिर हम एकजुट होकर चंदौली की इस साझी संस्कृति को बचाएंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चंदौली सिर्फ मंदिरों और मजारों का ज़िला नहीं है, बल्कि यह उन लोगों से बना है जो हर सुबह और शाम प्रेम और सम्मान का उदाहरण बनते रहे हैं। चंदौली जिले में कई धार्मिक स्थल ऐसे हैं जहां शिवलिंग पर जल चढ़ता है और मजार पर चादर भी चढ़ती है। यही चंदौली की असली पहचान है, यही इसकी ताक़त है, और यही हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है।"
वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "चंदौली ज़िले के नेगुरा गांव में बुनकर बादशाह खान की हत्या इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गई। यहां सूरज तो डूबा ज़रूर, मगर नफ़रत का एक और सूरज उग आया जो इंसानियत को जला गया। यह भीड़ का हमला नहीं था, यह व्यवस्था की चूक थी। यह किसी एक बादशाह ख़ान की हत्या नहीं थी, यह हमारे संविधान की आत्मा पर हमला था।"
"चंदौली जिला मुख्यालय से सटे नेगुरा गांव की ज़मीन आज गीली है, ख़ून से, आंसुओं से और शर्म से। इंसाफ का रास्ता धुंधला है, क्योंकि जिन्हें देखना था, वे आंखें मूंदे बैठे हैं। जिन पर भरोसा था, वे नफ़रत के सौदागर बन बैठे हैं। बादशाह खान अब नहीं रहे, लेकिन उनकी मौत एक सवाल बनकर इस शासन की छाती पर खड़ी है कि क्या इंसाफ अब सिर्फ दबंगों की जागीर है? क्या अब किसी निरीह की जान सस्ती खबर बनकर रह जाएगी? "
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

उत्तर प्रदेश के चंदौली ज़िले के निगुरा गांव में 17 मई 2025 की शाम इंसानियत का खून हुआ। सूरज तो हर दिन डूबता है, लेकिन उस दिन नेगुरा की मिट्टी पर जो अंधेरा छाया, वह किसी रात की तरह शांत नहीं था, वह चीखता हुआ अंधेरा था। नफ़रत की भीड़ ने एक बेक़सूर बुनकर, एक पिता, एक बेटा बादशाह खान को इस बर्बरता से मारा कि वह फिर कभी उठ न सके। उनके शरीर पर लाठियों-पत्थरों की बौछार थी और आत्मा पर सत्ता और सियासत की चुप्पी का बोझ।
45 वर्षीय बादशाह खान पर हमला तब हुआ जब वह परिवार के एक सदस्य आफ़ताब के साथ पिकअप लेकर बनारस जा रहे थे। गाड़ी को पास नहीं देने पर कुछ लोगों से हल्का-सा विवाद हुआ, लेकिन बात इतनी सी नहीं थी। यह बहाना था उस सुनियोजित हिंसा का जो उनके खून की प्यासी थी। कुछ दबंग जो पहले से लाठी-डंडों के साथ गांव के बाहर नहर की पुलिया पर बैठे थे। उन्होंने उन्हें घेरकर हमला बोल दिया। लाठी, डंडे, पत्थर... और फिर घातक चुप्पी। बीएचयू ट्रॉमा सेंटर ले जाते वक्त रास्ते में ही बादशाह खान की मौत हो गई। आफ़ताब को अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन इस हमले में वो शख्स चला गया जो वह उस भीड़ की नज़र में "दूसरे" समुदाय के लोग थे।
इस दरिंदगी के बीच जो उन्हें बचाने दौड़े उनके अपने वे भी घायल हुए। गांव की औरतें, बच्चे, बुज़ुर्ग... सब पर नफ़रत के नाम का कहर टूटा। जिला अस्पताल के बिस्तरों पर अब वे सिर्फ जख़्म नहीं, उस समाज का चेहरा भी लिए पड़े हैं, जो धर्म और दल के नाम पर इंसान को न पहचान सका।

घटना के दो दिन बाद, 19 मई को, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर एक प्रतिनिधिमंडल निगुरा पहुंचा। उन्होंने पीड़ित परिवार से मिलकर संवेदना व्यक्त की और प्रशासनिक रवैये पर तीखे सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, पूरी मानवता पर है। और सच भी यही है, क्योंकि जो हुआ, वह सिर्फ हत्या नहीं थी। वह चेतावनी थी उन लोगों के लिए जो न्याय की उम्मीद करते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से गांव में ध्रुवीकरण बढ़ा है। कुछ बाहरी और स्थानीय तत्वों ने मुस्लिम समुदाय को टारगेट करना शुरू कर दिया है। गांव की हवा में अब मेल-मिलाप की जगह डर और संदेह की गंध है।
मामूली विवाद ने लिया खूनी संघर्ष का रूप
चंदौली थाना पुलिस में बादशाह खान के पुत्र अशरफ की ओर से दर्ज कराई गई रिपोर्ट के अनुसार शनिवार शाम लगभग 7:30 बजे मामूली विवाद ने हिंसक टकराव का रूप ले लिया। यह घटना गांव स्थित नहर की सड़क पर पुलिया के पास घटित हुई, जहां शराब के नशे में धुत शिफ्फु (पुत्र नवीन सिंह), आदर्श पांडेय, त्रिपुंड पांडेय, हर्ष सिंह (पुत्र अजात), सभी निवासी नेगुरा (थाना व जिला चंदौली) अपने अन्य साथियों कुणाल अग्रहरी (पुत्र अजात, वार्ड संख्या-6, कस्बा चंदौली) एवं कुणाल मिश्रा (निवासी मसौनी) के साथ मोटरसाइकिलों से सड़क पर खड़े थे।
इसी दौरान नेगुरा निवासी आफताब खान ने अपने पिकअप वाहन के लिए रास्ता मांगने हेतु हॉर्न बजाया, जिससे आक्रोशित युवकों ने पहले अभद्र भाषा का प्रयोग किया और फिर अचानक लाठियों से हमला कर दिया। घटना की सूचना आफताब खान ने तत्क्षण फोन पर गुलशाद खान को दी।
इस सूचना के बाद अशरफ खान अपने पिता बादशाह खान, दादा अब्दुल अली, दादा अब्दुल गनी, बुआ फरीदा खातून एवं गांव की रानी आदि के साथ स्थिति स्पष्ट करने और समझाने-बुझाने के उद्देश्य से नवीन सिंह के घर की ओर जा रहे थे। रास्ते में श्याम बिहारी के घर के सामने उन्हें नवीन सिंह (पुत्र भरत सिंह), शिफ्फु, सुशील सिंह (पुत्र ध्रुव सिंह) एवं आदर्श पांडेय (सभी निवासी नेगुरा, चंदौली) मिले। तभी उपरोक्त व्यक्तियों ने पूर्व की रंजिश के तहत एक राय होकर बादशाह और उनके परिवारीजनों पर लाठी-डंडों तथा ईंट-पत्थरों से हमला कर दिया।
इस हमले में बादशाह खान को सिर में गंभीर चोट आई, जबकि अन्य पर भी शारीरिक चोटें आईं। सभी घायलों को प्राथमिक उपचार के लिए पंडित कमलापति त्रिपाठी जिला अस्पताल, चंदौली ले जाया गया, जहां बादशाह खान की स्थिति अत्यंत गंभीर होने के कारण उन्हें बीएचयू ट्रॉमा सेंटर, वाराणसी रेफर किया गया। उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इस संघर्ष में दूसरे पक्ष की 60 वर्षीय महिला कलावती एवं 17 वर्षीय किशोरी निशा भी गंभीर रूप से घायल हो गईं। मुस्लिम पक्ष के अब्दुल अली का उपचार जिला अस्पताल में जारी है।
नेगुरा गांव में उत्पन्न तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए एडीशनल एसपी दिगंबर कुशवाहा के नेतृत्व में भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है। सदर क्षेत्राधिकारी राजेश राय के साथ-साथ नौगढ़, चकिया, सैयद राजा एवं शहाबगंज थानों की पुलिस बल भी मौके पर मौजूद है। किसी भी संभावित अप्रिय घटना को रोकने हेतु महिला पुलिस बल को भी सतर्क रूप से तैनात किया गया है। बादशाह खान के अंतिम संस्कार के समय गांव में और दूर-दराज़ से आए रिश्तेदारों की भारी भीड़ उमड़ी। पूरे क्षेत्र में शोक की गहरी छाया व्याप्त रही।
बादशाह की मौत से हालात तनावपूर्ण
चंदौली के डिप्टी एसपी राजेश कुमार राय ने ‘सबरंग इंडिया’ को बताया कि आफताब नहर के रास्ते से पिकअप लेकर जा रहे थे। वहां कुछ लोग पहले से बैठे थे और पास देने को लेकर विवाद हुआ, जो फसाद का कारण बन गया। घटना के तुरंत बाद पुलिस मौके पर पहुंच गई। पीड़ित पक्ष का आरोप है कि हमलावर शराब के नशे में धुत थे। कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है। डिप्टी एसपी ने दावा किया कि स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है और घटना में शामिल लोगों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई की जाएगी।
चंदौली जिला मुख्यालय से सटे नेगुरा गांव की आबादी लगभग पांच हज़ार से अधिक है, जिनमें तीन हज़ार से अधिक मतदाता हैं। यहां की प्रमुख आबादी चौहान (नोनिया) और मुस्लिम समुदाय की है। इनके अतिरिक्त भूमिहार, ब्राह्मण, सोनकर, कन्नौजिया, मौर्य-कुशवाहा, पासवान, कायस्थ, कुर्मी, गोंड और वैश्य जातियों के लोग भी निवास करते हैं। पहले इस गांव में सभी समुदायों के बीच आपसी मेल-मिलाप और सौहार्द बना रहता था। मुस्लिम समुदाय के लोग कहते हैं कि जब से बीजेपी सत्ता में आई है, तभी से यहां सांप्रदायिकता का ज़हर फैलना शुरू हुआ। कुछ दबंगों ने हिन्दू-मुस्लिमों के बीच दूरी बढ़ाने और ज़हर घोलने की कोशिशें तेज कर दीं।

हिंसा में घायल अब्दुल अली खान
इस घटना के नेपथ्य में देखें तो चंदौली थाना पुलिस भी कम दोषी नहीं है। घटना के कुछ ही देर बाद आफताब की मौत हो चुकी थी, लेकिन पुलिस अधिकारी मीडिया के सवालों से बचते रहे। यदि इस घटना की तह में जाकर देखा जाए तो यह वारदात सुनियोजित प्रतीत होती है। मुस्लिम समुदाय पर हमला करने के लिए कई बाहरी लोग नेगुरा गांव में पहुंचे थे, जिनके नाम रिपोर्ट में दर्ज हैं। इनमें कुणाल अग्रहरी (चंदौली बाज़ार) और कुणाल मिश्र (मसोई गांव) के नाम शामिल हैं, जिनका संबंध भारतीय जनता पार्टी से बताया जा रहा है।
दूसरी गंभीर बात यह रही कि शाम लगभग 7:30 बजे घटी इस घटना की रिपोर्ट पुलिस ने अगली सुबह 4:12 बजे दर्ज की। पीड़ित पक्ष का आरोप है कि घटना के बाद चंदौली थाना पुलिस ने पीड़ित के पुत्र तौहीद खान को ज़बरन थाने में बैठा लिया और इस मामले को दबाने में जुट गई। पुलिस लगातार यह कोशिश करती रही कि रिपोर्ट दर्ज न हो और दोनों पक्षों के बीच कोई समझौता करा दिया जाए। इस मामले में पुलिस ने दूसरे पक्ष की रिपोर्ट भी दर्ज की है, जिसमें आधा दर्जन से अधिक लोगों को नामजद किया गया है।
आज निगुरा की गलियों में सन्नाटा पसरा है। जहां पहले बच्चे खेलते थे, वहां अब पुलिस की गाड़ियां दौड़ रही हैं। जवानों के बूटों की धमक हर दरवाज़े पर सुनाई दे रही है। डर गांव के कोने-कोने में समाया है। रविवार की शाम, पुलिस की निगरानी में, कड़ी सुरक्षा के बीच अशरफ के पिता बादशाह खान को दफनाया गया। नेगुरा की मिट्टी एक और इंसान समा गया, जिसे एक नफ़रती भीड़ ने सिर्फ उसकी पहचान के कारण मार दिया।
बादशाह की मौत के बाद परिवार बेहाल
नेगुरा गांव में हुई हिंसा की दर्दनाक घटना के बाद बादशाह खान की मृत्यु ने उनके पूरे परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया है। बादशाह के दो बेटे अशरफ (20) और तौहीद (18) सहित उनकी चार बेटियां इस त्रासदी से पूरी तरह टूट चुकी हैं। अशरफ ने बताया कि उनके पिता बुनकरी का काम करते थे और बनारसी साड़ियां बुनते थे। परिवार के लोगों की आजीविका चलाने वाले वो इकलौता सहारा थे।
इसी बीच, इस हिंसा में घायल हुए अब्दुल अली खान का इलाज चंदौली जिला अस्पताल में चल रहा है। उनके सिर में गंभीर चोटें आई हैं और वे अब भी उपचाराधीन हैं। अब्दुल अली ने घटना का विवरण देते हुए बताया कि जब वह भोजन कर रहे थे, तभी बाहर शोर सुनाई दिया। वे बाहर निकले तो देखा कि गांव के कई लोग इकट्ठा हैं। कुछ लोग हाथ जोड़कर माफी मांग रहे थे, लेकिन माहौल बेहद तनावपूर्ण था।
अब्दुल बताते हैं, "हम नेगुरा गांव के पठान टोली मुहल्ले में रहते हैं। हमारे मुहल्ले के पास एक शिव मंदिर और एक बड़ा तालाब है, जिनके इर्द-गिर्द हमारे बाग-बगीचे भी हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग बचपन से ही मंदिर और तालाब के आसपास बैठते आए हैं। लेकिन कुछ महीने पहले, भूमिहार समुदाय के कुछ लोगों से विवाद उत्पन्न हुआ और तब से प्रयास किए जा रहे हैं कि हमें मंदिर, तालाब और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोका जाए। इस घटना को जानबूझकर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई।"
उन्होंने यह भी कहा कि यह पूरा विवाद आपसी मनमुटाव और गलतफहमी का नतीजा था, लेकिन पुलिस की भूमिका संदिग्ध प्रतीत होती है। पुलिस खुद मारपीट में शामिल नहीं थी, बल्कि जब दूसरे पक्ष ने ईंट-पत्थर और लाठियों से हमला किया, तब पुलिस ने बवाल शांत करने की कोशिश की। इसी दौरान हमलावरों ने अब्दुल अली के सिर पर ईंट-पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। उनका कहना है कि इस झगड़े में उनकी कोई गलती नहीं थी, फिर भी उन पर जानलेवा हमला किया गया।

हिंसा की घटना से आहद मुस्लिम समुदाय के लोग
अब्दुल कहते हैं, " सरेशाम हुई हत्या के इस मामले में पुलिस प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। जिन लोगों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, पुलिस उन्हीं का पक्ष लेती प्रतीत होती है। ऐसे लोग चाहे गोली चलाएं या पत्थर-डंडों से हमला करें, पुलिस की ढाल उन्हें प्राप्त रहती है। दूसरी ओर, विरोध करने वालों को ही दबा दिया जाता है और उन पर ही झूठे आरोप लगाए जाते हैं।" अब्दुल के अनुसार, "इस हमले का मुख्य आरोपी सुशील, जो नवीन के बड़े पिता का बेटा है अपने साथियों के साथ शराब के नशे में पहले से योजना बनाकर हमला करने के बाद से फरार है।
मृतक बादशाह खान के रिश्तेदार अफज़ाल खान कहते हैं, "हमारा गांव अब उस पुलिया के कारण अशांत हो गया है, जहां पर मारपीट हुई थी। उस दिन, जब वे लोग करीब दस से पंद्रह की संख्या में हमारे घर आए, तो हमें लगा कि शायद कोई समझौता हो सकेगा। लेकिन वे तो सीधे हम पर टूट पड़े। हमारे मन में लड़ाई-झगड़े की कोई मंशा नहीं थी, पर वे लोग ईंट-पत्थर और लाठी-डंडे लेकर आए थे। हमारी बात सुने बगैर ही उन्होंने हमारे ऊपर हमला कर दिया। लगभग बीस मिनट तक वे हम पर बेरहमी से लाठियां बरसाते रहे और ईंटें फेंकते रहे। उस वक्त हम सिर्फ अपने परिवार को बचाने की कोशिश कर रहे थे।"
वह आगे कहते हैं, "हमें ऐसा लगता है जैसे पुलिस किसी एक पक्ष की मदद कर रही है, क्योंकि इस पूरे मामले का मुख्य आरोपी अब तक गिरफ्तार नहीं हो पाया है। न्याय की उम्मीद धुंधली होती जा रही है और हमारे परिवार की चोटें सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक भी हैं। हम इंसाफ चाहते हैं, ताकि हमारे एक सदस्य की मौत व्यर्थ न जाए और परिवार को थोड़ा सुकून मिले।"
मृतक बादशाह खान की पत्नी गुलसमा और उनकी चार बहनों-आयशा, फातिमा, जाहिदा और फरीदा का रो-रोकर बेसुध हैं। आयशा कहती हैं, "हम अपने-अपने बेटे को साथ लेकर मायके आए थे। हमारी आंखों के सामने ही हमारे भाई को बेरहमी से मार डाला गया। घटना के बाद निष्ठुर चंदौली थाना पुलिस ने हमारे भतीजे अशरफ को पूरी रात थाने में बैठाए रखा। जब मामला तूल पकड़ने लगा, तब सुबह जाकर उसे छोड़ा गया। हमारे दोनों भतीजे अशरफ और तौहीद का रो-रोकर बुरा हाल है, क्योंकि आफ़ताब के अलावा अब घर में कमाने वाला कोई नहीं बचा है।"
चंदौली की साझी विरासत पर सवाल
चंदौली ज़िला पूर्वांचल की उस ज़मीन का नाम है, जहां मज़हब से ऊपर उठकर इंसानियत की इबादत होती रही है। बनारस से सटे इस ज़िले ने हमेशा सांप्रदायिक सौहार्द, गंगा-जमुनी तहज़ीब और साझी संस्कृति को जिया है। यहां मंदिर और मजार की दीवारें कभी अलग नहीं रहीं, बल्कि इन्हीं दीवारों के बीच से मोहब्बत और एकता की इबारतें लिखी गई हैं। ऐसे ज़िले में नेगुरा गांव की हिंसा न सिर्फ चिंता का विषय है, बल्कि यह चंदौली की साझा विरासत पर सीधा सवाल भी है।
शहाबगंज प्रखंड के लालपुर गांव का उदाहरण लिया जाए, तो वहां एक ओर विशाल शिव मंदिर है तो ठीक उसके पास शहीद बाबा की मजार। दोनों धार्मिक स्थलों पर पूजा और प्रार्थना समान श्रद्धा से होती है। यहां कोई किसी को धर्म के चश्मे से नहीं देखता। जलाभिषेक और अज़ान दोनों के स्वर यहां के वातावरण को पवित्र बनाते हैं। मेले से लेकर रोज़मर्रा की देखरेख तक, मंदिर और मजार की ज़िम्मेदारी हिंदू-मुस्लिम मिलकर निभाते हैं। यहां परंपरा है कि शिव मंदिर में मनौती तभी पूरी होती है जब मजार पर पहले मत्था टेका जाए।

चेदौली जिला अस्पताल में पीड़ितों का दुख-दर्द बांटतींं गार्गी सिंह पटेल
इसी तरह उतरौत गांव के पास स्थित तकिया शाह भोला की मजार भी सांप्रदायिक एकता का अद्वितीय प्रतीक है। यह कोई आम धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ऐसा आध्यात्मिक केंद्र है जहां मज़हब की पहचान पीछे छूट जाती है और इंसानियत आगे आ जाती है। यहां आने वाले लोगों में कोई हिंदू या मुसलमान नहीं होता, बस इंसान होते हैं। मजार पर माथा टेकना, नीम की पत्तियों को औषधि मानकर सेवन करना और एक ही परिसर में शांति से आस्था व्यक्त करना, यह सब दर्शाता है कि चंदौली की मिट्टी में कितनी गहराई से मेल-जोल की जड़ें समाई हुई हैं।
इसी सांझी परंपरा का एक और गवाह है चंदौली का तलीफशाह मजार। यहां भी हिंदू और मुसलमान दोनों बड़ी श्रद्धा से आते हैं। यह मजार केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि समाजिक समरसता की जीती-जागती मिसाल है। यहां आकर लोग जाति, धर्म और वर्ग की सीमाएं भूल जाते हैं। चादर चढ़ाना, दीप जलाना, मन्नत मांगना, ये सब बिना किसी भेदभाव के होता है। यहां सिर झुकाने वाले की पहचान धर्म नहीं, आस्था होती है।
हज़रत लतीफशाह की मजार वर्षों से एक ऐसी परंपरा को संजोए हुए है, जहां धर्म की दीवारें टूट जाती हैं और इंसानियत की आवाज बुलंद होती है। यहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग पूरी श्रद्धा के साथ मत्था टेकते हैं, मन्नत मांगते हैं और चादर चढ़ाते हैं। मजार के बाहर न कोई मजहब पूछा जाता है, न कोई पहचान। यहां सिर्फ इंसानियत के नाम पर सिर झुकते हैं।
हर गुरुवार को इस मजार पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। इनमें न केवल मुसलमान बल्कि बड़ी संख्या में हिन्दू भी शामिल होते हैं। कोई मौन प्रार्थना करता है, कोई फूल चढ़ाता है, कोई चादर ओढ़ाता है, तो कोई बस दरगाह की चौखट पर बैठकर मन की बात करता है। यह दृश्य उस भारत की याद दिलाता है, जहां धर्म व्यक्तिगत आस्था है, मगर इंसानियत सार्वजनिक पहचान।
लतीफशाह की मजार न केवल चकिया क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे चंदौली ज़िले के लिए सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बन चुकी है। ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालु अगर सच्चे मन से मन्नत मांगें तो उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। दिलचस्प बात यह है कि कई परिवारों में मजार पर जाना पीढ़ियों से एक परंपरा रही है, चाहे उनका मजहब कुछ भी हो।
मजार पर आने वालों में आसपास के गांवों जैसे उतरौत, तियरा, भरुहिया, अम्मर, डहिया, भस्करपुर आदि के लोग नियमित रूप से पहुंचते हैं। किसी की बेटी की शादी हो, बेटे की नौकरी या किसी की बीमारी, हर परेशानी के समाधान के लिए लोग यहां उम्मीद लेकर आते हैं। कई श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो मंदिर में पूजा करने के बाद सीधे मजार पर मत्था टेकते हैं, मानो यह एक ही आस्था की दो शक्लें हों।
जब देश के कई हिस्सों में धर्म के नाम पर दूरियां पैदा करने की कोशिशें हो रही हैं, तब चंदौली जैसे ज़िले में लालपुर के शिवमंदिर और चकिया में लतीफशाह की मजार एक ऐसी लौ की तरह जल रही है जो अंधेरे में भी रोशनी देती है। ये धार्मिक स्थल याद दिलाते हैं कि भारत की असल आत्मा उसकी साझा विरासत में बसती है। वह विरासत जो सूफियों, संतों, और साधकों ने अपने प्रेम और समर्पण से रची थी। ये सिर्फ एक मजहबी स्थल नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने वाला वह पुल है, जो आज भी चंदौली में हिन्दू-मुसलमान दोनों समुदायों को एक धागे में पिरोए हुए है। यहां की मिट्टी नफरत को पनपने नहीं देती, क्योंकि इसमें रची-बसी है मोहब्बत, आस्था और इंसानियत की खुशबू। ऐसी जगहें ही भारत को भारत बनाती हैं।

मृतक बादशाह की पत्नी
चंदौली जिले के गौड़िहार गांव में एक धार्मिक स्थल ऐसा भी है जहां एक ही चबूतरे पर हिंदू श्रद्धालु देवताओं को प्रसाद अर्पित करते हैं, तो वहीं मुस्लिम समुदाय के लोग उसी स्थान पर सजदा कर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं। यह स्थान आपसी भाईचारे और धार्मिक एकता का जीवंत प्रतीक है। चबूतरे के एक ओर नूर मुहम्मद शहीद बाबा की दरगाह स्थित है, तो दूसरी ओर दैत्यरा बीर की भव्य चौरी। पास ही एक पीपल का वृक्ष भी है, जिसे परी माता का वास माना जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र स्थल पर सच्चे दिल से मांगी गई मन्नतें जरूर पूरी होती हैं।
गौड़िहार के लोग बताते हैं कि यहां आने वाले श्रद्धालु, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, तब तक उनकी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक वे दोनों दैत्यरा बाबा और शहीद बाबा की संयुक्त रूप से आराधना न करें। विशेष बात यह है कि यहां के दोनों धार्मिक स्थलों की देखरेख हिन्दू पुजारी नन्दलाल मौर्य करते हैं। वह कहते हैं, "चाहे दैत्यरा बीर को जनेऊ, खड़ाऊं और चिलम चढ़ानी हो या शहीद बाबा की चादरपोशी करनी हो, इन सभी विधियों का संचालन वह खुद करते हैं। हर साल कार्तिक एकादशी के अवसर पर 24 घंटे का अखंड हरिकीर्तन होता है और उसके अगले दिन शहीद बाबा का सलाना उर्स पूरे श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है। इस आयोजन में हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदाय के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
प्रत्येक गुरुवार को यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, खासकर वे लोग जो असाध्य रोगों से पीड़ित होते हैं। पुजारी नन्दलाल इन रोगियों को नि:शुल्क जड़ी-बूटियों से बनी औषधियां वितरित करते हैं। साथ ही, प्रेतबाधा से ग्रसित लोग भी यहां आकर राहत महसूस करते हैं और अनेक उदाहरण हैं जहां लोगों ने पूर्ण रूप से मुक्ति पाई है। गौड़िहार गांव का यह धार्मिक स्थल केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एकता, विश्वास और मानवीय सहयोग का प्रतीक बन चुका है।
सपा का प्रतिनिधिमंडल पहुंचा निगुरा
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव के निर्देश पर 19 मई 2025 को पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल चंदौली निगुरा पहुंचा। यह दौरा गांव के निवासी बादशाह ख़ान पुत्र नसीर अहमद (45 वर्ष) की हत्या के विरोध में और शोकाकुल परिवार से मुलाक़ात के लिए किया गया। सपा प्रतिनिधिमंडल ने निगुरा गांव पहुंचकर सबसे पहले घटनास्थल का जायज़ा लिया। इसके पश्चात प्रतिनिधिमंडल ने मृतक के परिजनों से मिलकर गहरी संवेदना प्रकट की और भरोसा दिलाया कि समाजवादी पार्टी इस दुख की घड़ी में पूरी मजबूती से उनके साथ खड़ी है। प्रतिनिधिमंडल ने प्रशासन से मांग की कि दोषियों को अविलंब गिरफ़्तार किया जाए और घटना की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाए।
इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व चंदौली के सांसद श्री वीरेंद्र सिंह कर रहे थे। उनके साथ प्रतिनिधिमंडल में सत्य नारायण राजभर, सांसद छोटे लाल खरवार, विधायक प्रभुनारायण यादव, पूर्व विधायक जितेन्द्र प्रसाद, सपा प्रवक्ता मनोज काका, अयूब ख़ान गुड्डू, मुसाफ़िर चौहान, औसाफ़ अहमद और चन्द्रशेखर यादव शामिल रहे। प्रतिनिधियों ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिला, तो समाजवादी पार्टी पूरे प्रदेश में आंदोलन छेड़ेगी।

इस अवसर पर समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधिमंडल ने एक ज्ञापन भी राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए सौंपा, जिसमें निगुरा गांव की घटना का विस्तृत विवरण दिया गया है और संवैधानिक हस्तक्षेप की मांग की गई है। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि चंदौली ज़िले के निगुरा ग्रामसभा में जो कुछ घटा, वह न केवल मानवता को शर्मसार करता है बल्कि यह उत्तर प्रदेश सरकार की नाकामी और पक्षपातपूर्ण रवैये को भी उजागर करता है।
ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश में हिन्दू-मुसलमानों के बीच वैमनस्य फैलाकर सामाजिक सौहार्द को तोड़ना चाहती है। प्रशासन को सरकार एक टूल की तरह इस्तेमाल कर रही है। भावनाओं को भड़काकर समाज को बांटने की कोशिश हो रही है, जिससे एक विशेष वर्ग में भय और आक्रोश व्याप्त है।
ज्ञापन में यह भी उल्लेख है कि भारत सरकार जहां एक ओर मुस्लिम देशों से संबंध मज़बूत करने और आतंकवाद के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर देश के अंदर भाजपा समर्थित सरकारें नफ़रत के ज़हरीले बीज बोने का काम कर रही हैं। गांव-गांव में दो समुदायों के बीच टकराव का माहौल बनाया जा रहा है और प्रशासन इस स्थिति को संभालने के बजाय उसे हवा देने का काम कर रहा है।
निगुरा की घटना इसका ताज़ा उदाहरण है, जो लगभग तीन से छह महीने पुरानी रंजिश का नतीजा है। थानाध्यक्ष ने बार-बार समझौता कराने की ज़बरन कोशिश की, लेकिन गंभीर सूचनाएं होने के बावजूद कड़ा कदम नहीं उठाया, जिसके चलते एक निरीह नागरिक की हत्या हो गई। प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मांग की है कि इस मामले में देश के गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को निर्देशित किया जाए कि वे ऐसे माहौल में प्रशासन को एक राजनीतिक उपकरण न बनने दें, ताकि देश में सामाजिक समरसता बनी रहे। इसी विश्वास और उम्मीद के साथ यह ज्ञापन राष्ट्रपति को सौंपा गया है।

पुलिस की छावनी बना नेगुरा गांव
पुलिस की नाकामी जिम्मेदार
पूर्व विधायक मनोज सिंह डब्लू ने रविवार को चंदौली जनपद के नेगुरा गांव का दौरा किया, जहां उन्होंने अपने समर्थकों के साथ हाल ही में हिंसा के शिकार पीड़ित परिवार से मुलाकात की। पीड़ितों के दुख-दर्द को समझते हुए उन्होंने उन्हें हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया। बाद में ‘सबरंग इंडिया’ से विशेष बातचीत में मनोज सिंह डब्लू ने इस घटना को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि "आफताब की हत्या एक सामान्य अपराध नहीं बल्कि एक सुनियोजित और सोची-समझी साजिश प्रतीत होती है। यह किसी व्यक्तिगत रंजिश का मामला नहीं दिखता, बल्कि इसमें कुछ मनबढ़ और असामाजिक तत्वों की संलिप्तता है, जिन्होंने पहले इस नृशंस कृत्य को अंजाम दिया और फिर उसे जानबूझकर सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की।"
पूर्व विधायक ने आगे कहा, "घटना के बाद से पुलिस प्रशासन की भूमिका अत्यंत निराशाजनक रही है। पुलिस मूकदर्शक की तरह तमाशा देखती रही और अब इस मामले को दबाने तथा लीपापोती करने की कोशिशें की जा रही हैं। इस प्रकार की उदासीनता और निष्क्रियता से देश का हर संवेदनशील नागरिक आहत और क्षुब्ध है। सबरंग इंडिया से बात करते हुए चंदौली के मनोज सिंह डब्लू ने कहा कि समाजवादी पार्टी के पीड़ित परिवार के साथ है। चंदौली में अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जो सत्ता की चमक में अंधे नहीं हुए, जो इंसानियत की लड़ाई को ज़िंदा रखे हुए हैं। "
सपा के पूर्व विधायक मनोज कटाक्ष करते हुए यह भी कहा कि "आज जब देश को न्याय, कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक सौहार्द की सबसे अधिक आवश्यकता है, तब जिनके कंधों पर संविधान और देश को संभालने की जिम्मेदारी है, वे तिरंगा यात्रा और सतही आयोजनों में व्यस्त हैं। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि आम नागरिकों के भीतर आक्रोश और असुरक्षा की भावना भी पैदा कर रही है। घटना की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषियों को जल्द से जल्द कानून के दायरे में लाकर कड़ी सजा दी जानी चाहिए, ताकि देश में न्याय और भरोसे की भावना बनी रह सके।"
चंदौली जिला अस्पताल में हिंसा में घायल पीड़ितों से मिलकर उनका हौसला बढ़ाने पहुंचीं उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी की महिला विंग की जिलाध्यक्ष गार्गी सिंह पटेल ने प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर योगी सरकार को कड़ी आलोचना का निशाना बनाया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि, "दंगा, फसाद और सामाजिक तनाव ही भाजपा शासन और सत्ता का तरीका बन चुका है, जो अब पूरी तरह से योगी सरकार के तहत उत्तर प्रदेश में अपनाया जा रहा है।"
गार्गी सिंह पटेल ने कहा, "इस घटना के पीछे पुलिस और प्रशासन की पूरी तरह से अनदेखी और निष्क्रियता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस-प्रशासन नींद में था, जिसकी वजह से इस तरह की हिंसक घटनाओं को समय रहते नहीं रोका जा सका। इस निष्क्रियता के कारण ही नेगुरा में हुई हिंसा जैसी घटनाएं संभव हो सकीं।"
"पुलिस प्रशासन और योगी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए गार्गी ने इस बात पर भी चिंता जताई कि क्या नेगुरा में हुई हिंसा स्वाभाविक थी या फिर कहीं से सुनियोजित तरीके से सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने की साज़िश की गई है। उन्होंने कहा कि चंदौली की सांस्कृतिक विरासत सदियों से सामाजिक सद्भाव और भाईचारे पर आधारित रही है। ऐसे में इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह हमला उसी साझा सौहार्द पर चोट पहुंचाने का इरादा था? "
गार्गी सिंह पटेल ने यह भी कहा कि, "यह वक्त आत्ममंथन का है। अब यह तय करना होगा कि क्या हम अपने पूर्वजों की वह अमूल्य विरासत, जो सद्भाव और प्रेम की मिसाल रही है, उसे नफरत और तुष्टिकरण की आग में जलने देंगे या फिर हम एकजुट होकर चंदौली की इस साझी संस्कृति को बचाएंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चंदौली सिर्फ मंदिरों और मजारों का ज़िला नहीं है, बल्कि यह उन लोगों से बना है जो हर सुबह और शाम प्रेम और सम्मान का उदाहरण बनते रहे हैं। चंदौली जिले में कई धार्मिक स्थल ऐसे हैं जहां शिवलिंग पर जल चढ़ता है और मजार पर चादर भी चढ़ती है। यही चंदौली की असली पहचान है, यही इसकी ताक़त है, और यही हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है।"
वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "चंदौली ज़िले के नेगुरा गांव में बुनकर बादशाह खान की हत्या इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गई। यहां सूरज तो डूबा ज़रूर, मगर नफ़रत का एक और सूरज उग आया जो इंसानियत को जला गया। यह भीड़ का हमला नहीं था, यह व्यवस्था की चूक थी। यह किसी एक बादशाह ख़ान की हत्या नहीं थी, यह हमारे संविधान की आत्मा पर हमला था।"
"चंदौली जिला मुख्यालय से सटे नेगुरा गांव की ज़मीन आज गीली है, ख़ून से, आंसुओं से और शर्म से। इंसाफ का रास्ता धुंधला है, क्योंकि जिन्हें देखना था, वे आंखें मूंदे बैठे हैं। जिन पर भरोसा था, वे नफ़रत के सौदागर बन बैठे हैं। बादशाह खान अब नहीं रहे, लेकिन उनकी मौत एक सवाल बनकर इस शासन की छाती पर खड़ी है कि क्या इंसाफ अब सिर्फ दबंगों की जागीर है? क्या अब किसी निरीह की जान सस्ती खबर बनकर रह जाएगी? "
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)