नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार विज्ञापन पर होने वाले खर्च को लेकर सुर्खियों में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी योजना ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ के तहत पिछले चार सालों में आवंटित हुए कुल फंड का 56 फीसदी से ज्यादा हिस्सा केवल उसके प्रचार में खत्म कर दिया गया। ये जानकारी इसी साल बीते चार जनवरी को लोकसभा में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने अपने जवाब में दी है।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना पर साल 2014-15 से 2018-19 तक सरकार अब तक कुल 648 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है। इनमें से केवल 159 करोड़ रुपये ही जिलों और राज्यों को भेजे गए हैं।
कुल आवंटन का 56 फीसदी से अधिक पैसा यानी कि 364.66 करोड़ रुपये ‘मीडिया संबंधी गतिविधियों’ पर खर्च किया गया। वहीं 25 फीसदी से कम धनराशि जिलों और राज्यों को बांटी गई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 19 फीसदी से अधिक धनराशि जारी ही नहीं की गई।
साल 2018-19 के लिए सरकार ने 280 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, जिसमें से 155.71 करोड़ रुपये केवल मीडिया संबंधी गतिविधियों पर खर्च कर दिए। इनमें से 70.63 करोड़ रुपये ही राज्यों और जिलों को जारी किए गए जबकि सरकार ने 19 फीसदी से अधिक की धनराशि यानी 53.66 करोड़ रुपये जारी ही नहीं किए।
इसी तरह, साल 2017-18 में सरकार ने 200 करोड़ रुपये आवंटित किए थे जिसमें से 68 फीसदी धनराशि यानी 135.71 करोड़ रुपये मीडिया संबंधी गतिविधियों पर खर्च की गई थी। वहीं साल 2016-17 में सरकार ने 29.79 करोड़ रुपये मीडिया संबंधी गतिविधियों पर खर्च कर दिए जबकि केवल 2.9 करोड़ रुपये ही राज्यों एवं जिलों को बांटे गए।
22 जनवरी, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यम से देशभर में लागू करने का फैसला किया था।
पांच सांसदों, भाजपा के कपिल पाटिल और शिवकुमार उदासी, कांग्रेस की सुष्मिता देव, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के गुथा सुकेंदर रेड्डी और शिवसेना के संजय जाधव ने सदन में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ को लेकर सवाल पूछा था।
योजना को सरकार द्वारा विफल माने जाने से डॉ। वीरेंद्र कुमार ने इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि सरकार ने देश के सभी 640 जिलों में इस योजना को लागू करने का फैसला लिया है।
उन्होंने कहा, ‘साल 2015 में स्कीम के पहले चरण में, सरकार ने अपेक्षाकृत कम लिंगानुपात वाले 100 जिलों पर ध्यान केंद्रित किया। उसके बाद दूसरे चरण में, सरकार ने 61 और जिलों को जोड़ा। इन 161 जिलों में बाल लिंगानुपात के आधार पर योजना आंशिक तौर पर सफल रही है। 161 में से 53 जिलों में, 2015 से बाल लिंग अनुपात में गिरावट आई है। इनमें से पहले चरण के 100 में से 32 जिले और दूसरे चरण के 61 में से 21 जिले शामिल हैं। हालांकि, बाकी जिलों में बाल लिंगानुपात में वृद्धि हुई है।’
कुमार ने बताया, ‘केंद्रशासित प्रदेशों में गिरावट खास तौर पर तेज रही है। उदाहरण के लिए, निकोबार में, लिंग अनुपात साल 2014-15 में प्रति 1000 पुरुषों पर 985 महिलाओं का था, जो साल 2016-17 में गिरकर 839 हो गया। पुदुचेरी के यानम में, यह 2014-15 में 1107 था, जो गिरकर 976 हो गया। सरकार ने क्रमशः अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पुदुचेरी को 55 करोड़ रुपये और 46 करोड़ रुपये दिए हैं।’
इस योजना में मुख्य रूप से राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान और बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई शामिल है। बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई में प्री कंसेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक तकनीकि (पीसी एंड पीएनडीटी) अधिनियम को लागू करना, बच्चे के जन्म से पहले और जन्म के बाद मां की देखभाल करना, स्कूलों में लड़कियों के नामांकन में सुधार, सामुदायिक सहभागिता/प्रशिक्षण/जागरूकता सृजन आदि चीजें शामिल हैं।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना पर साल 2014-15 से 2018-19 तक सरकार अब तक कुल 648 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है। इनमें से केवल 159 करोड़ रुपये ही जिलों और राज्यों को भेजे गए हैं।
कुल आवंटन का 56 फीसदी से अधिक पैसा यानी कि 364.66 करोड़ रुपये ‘मीडिया संबंधी गतिविधियों’ पर खर्च किया गया। वहीं 25 फीसदी से कम धनराशि जिलों और राज्यों को बांटी गई। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 19 फीसदी से अधिक धनराशि जारी ही नहीं की गई।
साल 2018-19 के लिए सरकार ने 280 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, जिसमें से 155.71 करोड़ रुपये केवल मीडिया संबंधी गतिविधियों पर खर्च कर दिए। इनमें से 70.63 करोड़ रुपये ही राज्यों और जिलों को जारी किए गए जबकि सरकार ने 19 फीसदी से अधिक की धनराशि यानी 53.66 करोड़ रुपये जारी ही नहीं किए।
इसी तरह, साल 2017-18 में सरकार ने 200 करोड़ रुपये आवंटित किए थे जिसमें से 68 फीसदी धनराशि यानी 135.71 करोड़ रुपये मीडिया संबंधी गतिविधियों पर खर्च की गई थी। वहीं साल 2016-17 में सरकार ने 29.79 करोड़ रुपये मीडिया संबंधी गतिविधियों पर खर्च कर दिए जबकि केवल 2.9 करोड़ रुपये ही राज्यों एवं जिलों को बांटे गए।
22 जनवरी, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यम से देशभर में लागू करने का फैसला किया था।
पांच सांसदों, भाजपा के कपिल पाटिल और शिवकुमार उदासी, कांग्रेस की सुष्मिता देव, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के गुथा सुकेंदर रेड्डी और शिवसेना के संजय जाधव ने सदन में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ को लेकर सवाल पूछा था।
योजना को सरकार द्वारा विफल माने जाने से डॉ। वीरेंद्र कुमार ने इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि सरकार ने देश के सभी 640 जिलों में इस योजना को लागू करने का फैसला लिया है।
उन्होंने कहा, ‘साल 2015 में स्कीम के पहले चरण में, सरकार ने अपेक्षाकृत कम लिंगानुपात वाले 100 जिलों पर ध्यान केंद्रित किया। उसके बाद दूसरे चरण में, सरकार ने 61 और जिलों को जोड़ा। इन 161 जिलों में बाल लिंगानुपात के आधार पर योजना आंशिक तौर पर सफल रही है। 161 में से 53 जिलों में, 2015 से बाल लिंग अनुपात में गिरावट आई है। इनमें से पहले चरण के 100 में से 32 जिले और दूसरे चरण के 61 में से 21 जिले शामिल हैं। हालांकि, बाकी जिलों में बाल लिंगानुपात में वृद्धि हुई है।’
कुमार ने बताया, ‘केंद्रशासित प्रदेशों में गिरावट खास तौर पर तेज रही है। उदाहरण के लिए, निकोबार में, लिंग अनुपात साल 2014-15 में प्रति 1000 पुरुषों पर 985 महिलाओं का था, जो साल 2016-17 में गिरकर 839 हो गया। पुदुचेरी के यानम में, यह 2014-15 में 1107 था, जो गिरकर 976 हो गया। सरकार ने क्रमशः अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पुदुचेरी को 55 करोड़ रुपये और 46 करोड़ रुपये दिए हैं।’
इस योजना में मुख्य रूप से राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान और बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई शामिल है। बहु-क्षेत्रीय कार्रवाई में प्री कंसेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक तकनीकि (पीसी एंड पीएनडीटी) अधिनियम को लागू करना, बच्चे के जन्म से पहले और जन्म के बाद मां की देखभाल करना, स्कूलों में लड़कियों के नामांकन में सुधार, सामुदायिक सहभागिता/प्रशिक्षण/जागरूकता सृजन आदि चीजें शामिल हैं।